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बुधवार, 7 अगस्त 2013

बौद्धिक संपदा

                      बौद्धिक संपदा


                                                                      बौद्धिक संपदा एक व्यक्तिगत विचार एवं बुद्धि से सृजित कोई कृति है तथा बौद्धिक संपदा अधिकार किसी सृजक के, वे बौद्धिक कार्य या विचार हैं, जो उसे संगीत, कला आदि के क्षेत्र में नवीन सृजन अथवा खोज (अन्वेषण) के लिये व्यापार संव्यवहार हेतु प्रयुक्त करने के लिये प्राप्त है ।

                                                  बौद्धिक संपदा अधिकार के रूप में कापीराइट, पेटेंट, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेत, औद्योगिक / लेआउट डिजाइन आते हैं । उक्त बौद्धिक संपदा के संरक्षण का विश्व स्तर पर प्रयास किया जा रहा है, जो कि विश्व व्यापार एवं अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में उद्यमों एवं उत्पादों की प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित एवं संरक्षित करने के लिये आवश्यक है । 

                                            अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन अधिकारों को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन ;ूपचवद्ध द्वारा संरक्षित किया जाता है, जिसका मुख्यालय जेनेवा में है । भारत भी इस संगठन का सदस्य देश है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बौद्धिक संपदा अधिकारों को संरक्षित करने हेतु ट्रिप्स समझौता किया गया है । प्रत्येक सदस्य देश में ऐसे अधिकारों के मानको के संरक्षण के लिये विभिन्न विधियाॅं अधिनियमित की गई हैं । 

 
भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण हेतु अधिनियमित विधियों में मुख्यतः निम्न विधिया हैंः-

01- कापीराइट अर्थात् प्रतिलिप्याकार अधिनियम, 1957 (संशोधित अधिनियम, 1999)
02- माल के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999
03- ट्रेडमार्क एक्ट, 1958 (संशोधित अधिनियम,1999)
04- पेटेंट एक्ट, 1970 (संशोधित अधिनियम, 1999, 2002एवं 2005)
05. डिजाइन अधिनियम, 1911 (संशोधित अधिनियम, 1999)


                                                ‘‘कापीराइट अर्थात् प्रतिलिप्याकार’’ का अर्थ है किसी रचनाकार द्वारा रचित मौलिक साहित्यिक नाटक, संगीतात्मक और कलात्मक कृति अर्थात् चलचित्र, फिल्म, ध्वनि रिकार्डिंग आदि के मौलिक स्वरूप में उस रचनाकार का प्रथम स्वत्व है तथा बिना अनुमति या प्राधिकार के उस कृति को अन्य व्यक्ति द्वारा पुर्नउत्पादित अथवा पुर्नप्रसारित नहीं किया जा सकता ।


                                              ऐसी कृति हेतु उक्त अधिकार को सृजक अथवा अनुज्ञप्तिधारी विधिवत् पंजीकृत कराकर प्रमाण-पत्र प्राप्त कर सकता है । कापीराइट एक्ट, 1957 के अंतर्गत इस अधिकार के उल्लंघन होने पर ऐसे अधिकार का धारक व्यक्ति धारा-55 के अंतर्गत सिविल उपचार जैसे- व्यादेश, क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी होता है । आपराधिक उपचार के अंतर्गत अतिलंघनकर्ता को धारा-63 से 68 के अंतर्गत भिन्न-भिन्न अपराधों में न्यूनतम छः माह एवं अधिकतम तीन वर्ष के कारावास या पचास हजार रूपये से दो लाख रूपये तक के अर्थदण्ड से दंडित किया जाना प्रावधानित है । 

 
                                          ‘‘माल के भौगोलिक संकेत’’ से आशय किसी विशिष्ट क्षेत्र में विशेषतः निर्मित उत्पाद या उस स्थान की गुणवत्ता का उत्पाद जो कृषि वस्तु या प्राकृतिक या प्रसंस्करित उत्पाद के उत्पादन या प्रसंस्करण की पहचान के संकेत से है । इस हेतु सामान्य शर्तों के अंतर्गत ऐसे विशिष्ट उत्पादों का पंजीकरण कराया जाता है जो आरंभ में दस वर्ष के लिये होता है, जिसे दो वर्ष तक विस्तारित किया जा सकता है ।

                                        भारत में माल के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 क्ष्ळमवहतंचीपबंस प्दकपबंजपवदे व िळववके;त्महपेजतंजपवद - च्तवजमबजपवदद्ध ।बजए 1999द्व में विधि अधिनियमित है, जिसमें उल्लंघनकर्ता के विरूद्ध सिविल उपचार में व्यादेश तथा क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है । आपराधिक उपचार में छः माह से तीन वर्ष तक का कारावास एवं पचास हजार रूपये से दो लाख रूपये तक अर्थदण्ड प्रावधानित है, जिसे न्यायालय से अतिलंघनकर्ता के विरूद्ध प्राप्त किया जा सकता है ।

                                                                        ‘‘ट्रेडमार्क’’से आशय किसी विशिष्ट वस्तु या माल या सेवा के संबंध में पैकेजिंग या आकार अथवा रंग संयोजन के संबंध में एक विशिष्ट प्रतिनिधित्व चिंह से है ऐसे व्यापार चिंह को ऐसे माल का धारक स्वामी उसकी विशेषता हेतु पंजीकरण करा सकता है ।
                                   ऐसे पंजीकृत व्यापार चिन्ह के संबंध में अधिनियमित विधि व्यापार एवं पण्य चिन्ह अधिनियम, 1958 को ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 के अंतर्गत संशोधित किया गया है । किसी व्यक्ति द्वारा पंजीकृत व्यापार चिन्ह संबंधी विधि का उल्लंघन करने पर धारा 103 के अंतर्गत छःमाह से तीन वर्ष तक का कारावास एवं 50,000 रूपये से 2,00,000 रूपये तक का अर्थदण्ड अधिरोपित किया जा सकता है।
                       धारा-104 से 106 तक अन्य दांडिक प्रावधान है । परिवेदित व्यक्ति जिला न्यायाधीश के न्यायालय में सिविल उपचार हेतु व्यादेश, नुकसानी तथा व्यय हेतु दावा कर उपच.ार प्राप्त कर सकता है ।

                                             ‘‘पेटेंट’’ एक ऐसा अनन्य विशेषाधिकार है, जो किसी आविष्कारक या सृजक को उसके अविष्कार, लेख, संनिर्माण, संरचना अथवा कृति हेतु सीमित अवधि आरंभ में बीस वर्ष तक के लिए प्रदान किया जाता है । प्राचीन काल से ही पेटेंट के संबंध में विश्व के विभिन्न देशों में संधियंाॅ -समझौते होकर विधियंाॅ निर्मित हुई हैं ।

                       पेटेंट अधिकार की घोषणा हेतु पेटेंट अधिनियम, 1970 (संशोधित अधिनियम, 2005) में पेटेंट अधिकार का उल्लंघन होने पर धारा-105 तथा 106 के अंतर्गत व्यादेश एवं धारा-110 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति जिला न्यायाधीश के न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर प्राप्त की जा सकती है ।

                                          ‘‘डिजाइन’’ का आशय किसी वस्तु के दृश्यमान आकार विन्यास, आभूषण, सौन्दर्य विन्यास या लाईन या रंगयुक्त दो या तीन आयामी संरचना है, जो ऐसी वस्तु के औद्योगिक उत्पाद हस्तकला के रूप में मुद्रित या उत्पादित की जा सकती है । पूर्व में डिजाइन के अधिकार को संरक्षित करने केे लिए डिजाइन एक्ट, 1911 उपबंधित किया गया, जो वर्तमान में डिजाइन अधिनियम, 2000 के रूप में प्रवर्तित है ।

                                           किसी डिजाइन के सृजक द्वारा सृजित कृति को पंजीकरण कराये जाने पर उस पंजीकृत उद्योग अथवा लेआउ्ट डिजाइन का अवैध उपयोग कर विधि का उल्लघंन करने पर अतिलंघनकारी से 25000 रूपये तक की क्षतिपूर्ति संविदा में दिये ऋण की वसूली के रूप में की जा सकती है । सिविल उपचार हेतु जिला न्यायाधीश के न्यायालय में सिविल वाद प्रस्तुत कर व्यादेश के अनुतोष के साथ हानि प्रतिपूर्ति 50,000 रूपये तक प्राप्त की जासकती है ।
                                                                इस प्रकार न्यायालयों द्वारा उपरोक्त वर्णित विधियों के द्वारा वौद्धिक संपदा अधिकार को संरक्षित किया जाता है । इसके साथ ही भारत शासन द्वारा विश्व बौद्धिक संपदा के संरक्षण हेतु कई प्रोजेक्ट विश्व वौद्धिक संपदा संगठन एवं यूनाईटेड नेश्ंास के साथ विभिन्न संधियों तथा समझौतों के द्वारा किये जा रहे हैं, जिनसे विश्व बौद्धिक संपदा का संरक्षण हो सके ।



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