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सोमवार, 5 अगस्त 2013

संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार


      संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार 

                     उच्चतम न्यायलय ने पूनणसिंह और अन्स बनाम राज्य(0आई0आर01975 सुप्रीम कोर्ट 1674) के मामले में संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार
का अबलम्बन लेने के लिये चार परिस्थितियाॅ उपदर्शित की थी एंप पैरा 11 मेंइस प्रकार सम्प्रेक्षित किया था:-
‘‘ कब्जे की प्रकृति, जो अतिचारी संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अनुप्रेयोग करने का हकदार बना सकेगी में निम्नलिखित संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार गुण होना चाहिये:-
1- अतिचारी के पास पर्याप्त रूप से लम्बे समय से संपति का वास्तविक भौतिक कब्जा होना चाहिये ।
2- कब्जा मालिक के अभिव्यक्त या विवक्षित ज्ञान में छिपाने के किसी प्रयासके बिना होना चाहिये ओर जो कब्जे का आशय का तत्व अन्तर्वलित करता है । अतिचारी के कब्जे की प्रकृति प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों एंवपरिस्थितियों पर विनिश्चित किये जाने वाला विषय होगा ।
 
3- अतिचारी द्वारा वास्तविक मालिक के वेकब्जे की प्रक्रिया पूर्ण और अंतिमहोनी चाहिये एंव वास्तविक मालिक द्वारा मौन सहमति होनी चाहिये और 
 
4- व्यवस्थापित ब्जि की गुणबत्ता अवधारित करने के लिये प्रायिक परीक्षाओंमेंसेएक खेती योग्य भूमि की दशा में यह होगी कि क्या अतिचारी कबजाप्राप्त करने के पश्चात कोई फसल उगा चुका था या नहीं । यदि अतिचारी द्वारा फसल उगाई जा चुकी थी तब यहां तक कि वास्तविक मालिक को अतिचारी द्वारा उगाई गई फसल नष्ट करने का कोई अधिकार नहीं है, उस दशा में अतिचारी के पास प्रायवेट प्रतिरक्षा काअधिकार होगा और वास्तविक मालिक को प्रायवेट प्रतिरक्षा का कोईअधिकार नहीं होगा ।



काशीराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य ए0आई0आर0 2001 एस0सी0-2902 निर्दिष्ट किया गया- आत्म रक्षा का अभिवचन स्थापित करने का भारअभियुक्त पर उतना अधिक दुर्भर नहीं होताहै, जितना कि अभियोजनका होता है और यह कि जवकि अभियोजन को उसका मामला युक्ति-युक्त शंका से परे साबित करने की आवश्यक्ता नहीं होती है। अभियुक्तको सम्पूर्ण अभिवचन स्थापित करने की आवश्यक्ता नहीं है ओर या तोउस अभिवचन के लिये आधार प्रदत्त करके संभावनाओं की मात्र बाहुल्यता स्थापित करके उसके भार का निवर्हन कर सकेगा । अभियोजन साक्षीगण के प्रति-परीक्षण में या वचाव साक्ष्य प्रस्तुत करने के द्वारा(सलीम
जिया बनाम उततर प्रदेश राज्य ए0आई0आर0 1979 एस0सी0-391 अबलंबित)

प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को अक्सर प्रोद्वरित सूक्ति में सुनहरे मापोंमें नहीं मापा जा सकता (अमजद खान बनाम मध्यप्रदेश राज्यए0आई0आर1952 एस0सी0165 अबलबित ) चूकि अपीलार्थी का भगवान की हत्या करने का कोई आशय नहीं था,उसका कार्य धारा 308 के तहत अपराधसमझा गया था जवकि उसके द्वारा वहन की गई क्षतियो ने पलिस पदाधिकारीगण को भा0दं0सं0 की धारा325 के तहत अपराध के लिये उत्तरदायी ठहराया था । इस प्रकार तथ्यों पर भीयह निष्कर्ष निकालनासंभव नहीं है कि प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार क अतिक्रमण किया गया
था । 

 
 एक मात्र प्रश्न जो विचारण किये जाने योग्य है वह है प्रायवेट प्रतिरक्षाके अधिकार का अभिकथित अनुप्रयोग । धारा 96 भा0दं0सं0 उपबंधित करती है कि कोई भी कार्य अपराध नहीं है जो प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के अनुप्रयोग में किया जाता है। यह धारा अभियव्यक्ति ‘‘प्रायवेटप्रतिरक्षा का अधिकार ‘‘ को परिभाषित नहीं करती ,यह मात्र इंगित करतीहै कि कोई भी कार्य नहीं है । जो ऐसे अधिकार के अनुप्रयोग में किया जाता है क्या परिस्थितियों के एक विशिष्ट समूह में किसी व्यक्ति ने बैघ
रूप से प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के अनुप्रयोग में कार्य किया था , प्रत्येक प्रकरण केतथ्यों एंव परिस्थितियों पर अबधारित किये जाने वाला तथ्य का एक प्रश्न है । 

                ऐसे प्रश्न को अबधारित करने के लियेकाल्पनिकरूप से परीक्षाप्रतिपादित नहीं की जा सकती । तथ्य के इस प्रश्न कोअबधारित करने में न्यायालय को समस्त आस पास की परिस्थितियो कोविचारण में लेना चाहिये ।
                      अभियुक्त के लिये कई शब्दो में अभिवचनकरने की कोई आवश्यक्ता नहीं है कि उसने प्रायवेट प्रतिरक्षा में कार्य किया था, यदि परिस्थितिया यह दर्शार्ती है कि प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का बैध रूप से अनुप्रयोग किया था, तो न्यायालय ऐसे अभिवचनका विचारण करने में स्वंतत्र होती हे । प्रदत्त मामले में न्यायालय इसकाविचारण करसकती है ,यहां तक कि यदि अभियुक्त ने इसे नहीं उठाया हैयहां तक कि यदि वह अभिलेखगत सामग्री से विचारण के लिये उपलव्धहे।

 भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 साक्ष्य अधिनियम की धारा 105 केतहत सबूत का भार अभियुक्त पर होता है, जो प्रायवेट प्रतिरक्षा का अभिवचन उठाता है और सबूत के अभाव में न्यायालय के लिये आत्मरक्षाके अभिवचन की सच्चाई की उपधारणा करना सभंव नहीं होता है । न्यायालय ऐसी परिस्थितियों के अभाव की उपधारणा करेगा। अभियुक्त केद्वारा या तो स्वंय सकारात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करने के द्वारा या अभियोजनके लिये जांचे गये साक्षियों से आवश्यक तथ्य निकालने के द्वारा अभिलेखपर आवश्यक सामग्री रखना निर्भर करता है ।
                      प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अभिवचन करने वाला अभियुक्त को आवश्यक रूप से साक्ष्यबलाने की कोई आवश्यक्ता नहीं हे वह उसके अभिवचन को अभियोजन
साक्ष्य स्वयमेव से प्रकट करती हुई परिस्थितियों का संदर्भ लेकर उसके अभिचवन को स्थपित कर सकता है । ऐसे मामले में प्रश्न अभियोजन साक्ष्य के सत्य प्रभाव के निर्धारण करने का प्रश्न होगा और अभियुक्तद्वारा कोई भार का निवर्हन करने का प्रश्न नहीं होगा जहां प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अभिवचन किया जाता है तो प्रतिरक्षा युक्तियुक्तऔर संभाव्य वृतांत न्यायालय का समाधान करती हुई होना चाहिये किअभियुक्त के द्वारा कारित अपहानी हमले को बिफल करने के लिये याअभियुक्त की तरफ से आगामी युक्तियुक्त आंशका का आभास करने के लिये आवश्यक थी आत्मरक्षा स्थापित करने का भार अभियुक्त परहोता है
और भार अभिलेखगत सामग्री के आधार परउस अभिवचन के हित मेंसंभावनाओं की बाहुल्यता दर्शाने के द्वारा उन्मोचित किया गया स्थित होता है ।
 मुंशीराम ंव अन्य बनाम दिल्ली प्रशासन 1968 -2 एस0सी0आर
455
,गुजरात राज्य बनाम बाई फातमा,1975-3एस.सी.आर. 993 उत्तरप्रदेश राज्य बनाम मो0 मुशिर खान, 0आई0आर0 1977 एस0सी02226 
 मोहिन्दर पाल जोली बनाम पंजाब राज्य 1979-2 एस0सी0आर0 805