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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

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1.        अभिग्रहित वस्तुओं पर रक्त की मौजूदगी तथा उसकी प्रजाति एवं प्रवर्ग संबंधी साक्ष्य के मूल्य के विषय में विधिक स्थिति की तह तक पहुचने के लिये कतिपय न्याय दृष्टांतों का संदर्भ आवष्यक है।

 जह कंसा बेहरा विरूद्ध उड़ीसा राज्य, ए.आई.आर. 1987 सु.को. 1507 के मामले में अभिग्रहीत वस्तुओं पर पाये गये रक्त समूह का मृतक के रक्त समूह से समरूप पाया जाना एक निर्णायक व निष्चयात्मक दोषिताकारक परिस्थिति माना गया है,


  पूरनसिंह विरूद्ध पंजाब राज्य, 1989 क्रिमिनल ला रिपोर्टर एस.सी. 12 के मामले में अभियुक्त से अभिग्रहीत वस्तु पर सीरम विज्ञानी द्वारा प्रतिवेदित मानव रक्त की मौजूदगी को, जिसके रक्त समूह का पता नहीं लग सका था, पर्याप्त संपुष्टिकारक साक्ष्य माना गया।



 न्याय दृष्टांत रामस्नेही विरूद्ध म.प्र.राज्य, 1984 एम.पी.डब्ल्यू.एन. 342 के मामले में अभिग्रहीत वस्तुओं पर केवल रक्त की उपस्थिति, जिसके स्त्रोत का पता नहीं लग सका था, को भी संपुष्टिकारक साक्ष्य माना गया है।


 माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान राज्य विरूद्ध तेजाराम, 1999 (भाग-3) सु.को.केसेस 507 के मामले में यह सुस्पष्ट विधिक प्रतिपादन किया गया है कि यह नहीं कहा जा सकता है कि उन सभी मामलों में जहा रक्त के स्त्रोत का पता नहीं चल सका है, अभिग्रहीत वस्तु पर रक्त की उपस्थ्तिसे प्रकट परिस्थिति को अनुपयोगी मानकर रद्द कर दिया जायेगा।