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बुधवार, 10 दिसंबर 2014

अग्रक्रय अधिकार


                अग्रक्रय अधिकार

        अग्रक्रय का अधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 जिसे  आगे अधिनियम से संबोधित किया गया है की धारा 22 में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति का बंटवारा होने के पहले यदि उत्तराधिकार में हक व अधिकार प्राप्त होता है और उनमें से कोई एक सदस्य संपत्ति का विक्रय करना चाहता है तो अधिनियम की अनुसूची के वर्ग-1 में विनिर्दिष्ट वारिस अग्रक्रय का दावा कर सकते हैं।

        अग्रक्रय अधिकार लागू किये जाने के लिये आवश्यक शर्ते:-
1. यह कि विवादित संपत्ति संयुक्त हिन्दू परिवार की उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति होना चाहिये।
2. यह कि अनुसूची एक के वारिसों में कम से कम दो या दो से अधिक वारिस  होना चाहिये।
3. यह कि विवादित संपत्ति का बंटवारा नहीं होना चाहिये।
4. यह कि संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होना चाहिये।
5. यह कि संपत्ति उत्तरजीविता के आधार पर अधिनियम की  धारा 6 के अनुसार उत्तरजीवी सहदायिकों को उत्तरजीविता के आधार पर प्राप्त नहीं होना चाहिये।
6. यह कि सहस्वामी के द्वारा अचल संपत्ति में अपना हित हस्तांतरण करने के बाद दूसरा सहस्वामी अग्रक्रय अधिकार के आधार पर क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में दावा पेश कर सकता है।
7. यह कि जिस न्यायालय की स्थानीय सीमाओं के अन्दर संपत्ति स्थिति होगी उसे वाद और आवेदन क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा।
8. यह कि वादकारण संपत्ति की बिक्री के बाद उत्पन्न होता है।
9. यह कि परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद 97 के अनुसार जब खरीददार बिक्रीसुदा संपत्ति पर कब्जा करता है अथवा रजिस्टर्ड विक्रयपत्र का निष्पादन होता है उसके एक साल के अन्दर आवेदन/दावा पेश होना चाहिये।
10. यह कि वर्ग-1 के वारिसों ने निर्वसीयति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त किया है तभी यह धारा लागू होगी।
11. यह कि संपत्ति का मूल्य निर्धारण करने के लिये सक्षम न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया जावेगा और न्यायालय संपत्ति का मूल्य निर्धारित करेगा।
12. यह कि जो भी हिस्सेदार सबसे ज्यादा मूल्य देगा वही अग्रक्रय के अधिकार में संपत्ति प्राप्त करेगा।
13. यह कि हिस्सेदार न्यायालय द्वारा निर्धारित मूल्य पर संपत्ति नहीं खरीदता है तो वह आवेदन का खर्च देगा और उत्तराधिकारी संपत्ति बाहरी व्यक्ति को बिक्री करने के लिये स्वतंत्र होगा।
14.  इसी प्रकार व्यापार कारोबार की बिक्री एवं अधिकार हेतु आवेदन व दावा प्रस्तुत किया जावेगा।
15. इस धारा के अधीन आवेदन पर पारित आदेश अपील योग्य नहीं होगा। लेकिन वाद में पारित आदेश अपीलयोग्य होगा।
16. यह कि बिक्री के बाद दावा पेश होगा , अधिनियम की धारा 22(1) के अन्तर्गत आवेदन पेश नहीं होगा।
17. यह कि धारा 164 म0प्र0.भू राजस्व संहिता के संशोधन के बाद अधिनियम की धारा 22 के प्रावधान लागू होंगे। कृपया देखें ए0आई0आर0 1978 सुप्रीम कोर्ट 793(तीन जज का निर्णय) भजया वि0 श्रीमती गोपिका बाई एवं अन्य। उसमें ए0आई0आर0 1974 म0प्र0 पेज 141 फुल बैंच, चरणलाल साहू वि0 नंदकिशोर भट्ट को मान्यता प्रदान की गई है।
एवं अधिनियम की धारा-4 में संशोधन के बाद धारा 22 के प्रावधान कृषि भूमि पर लागू होंगे।

18.    यह कि म0प्र0सीलिंग एक्ट के अन्तर्गत अधिग्रहित भूमि पर अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
19.        यह कि धारा 22 के अतिक्रमण में सहउत्तराधिकारी द्वारा किया गया हित का अन्तरण शून्य न होकर अन्य सह उत्तराधिकारियों के विकल्प पर शून्यकरणीय होता है।