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सोमवार, 5 अगस्त 2013

बाल मजदूरी


                                     
                   बाल मजदूरी 
                                     माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडू सिविल रिट याचिका क्रमांक-465/86 में बाल श्रम उन्मूलन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे जो निम्नलिखित हैंः-
1. काम करने वाले बच्चों की पहचान के लिये सर्वेक्षण किया जाए।

2. खतरनाक उद्योग में काम कर रहे बच्चों की वापसी हो उन्हें उचित शिक्षा संस्थान में शिक्षित किया जाये।
3. बाल कल्याण बवदजतपइनजपवद / त्ेण् 20000 की स्थापना की गयी है जिसमें प्रति बच्चे के हिसाब से नियोक्ता द्वारा भुगतान किया जाये।
4. बच्चों के परिवार के व्यस्क सदस्य को रोजगार किया जायेगा।
5. राज्य सरकार कल्याण कोष में येागदान देगी।
6. बच्चों के परिवार को वित्तीय सहायता दी जायेगी।
7. गैर खतरनाक व्यवसाय मेें बच्चों को काम पर नहीं लिया जायेगा। 
 
                                         मान0 उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश के अनुरूप वर्ष 2006 में बाल श्रम निषेध कानून की स्थापना की गयी जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी काम धंधों में नहीं लगाया जायेगा।

                                         बच्चो से मजदूरी कराना बाल मजदूरी कहलाता है । बच्चों से काम कराना कानूनन अपराध है । बच्चों सेकाम करवाने पर सजाहो सकती है । सामान्यत‘ यह देखा गया हे कि बाल मजदूरो से काम कराने के बाद भी उन्हें कम मजदूरी दी जाती हैया फिर मामूली सी मजदूरी दी जाती है और उन बाल मजदूरो का जोखिम भरे कार्यो से इस्तमाल भी किया जाता है । बाल श्रम निषेध कानून के तहत बच्चों को 15वां साल लगने से पहल किसी ज्ञी फैक्टृी में काम पर नहीं रखा जा सकता ।

 बच्चों कोनीचे लिखे कार्यो केलिये नहीं रखा जा सकता ।

1- रेलगाड़ी से यात्री सामान या डाक लेजाने के लिये ।
2- रेल्वे स्टेशन की सीमा मे भवन बनाने के लिये ।
3- रेल्वे स्टेशनमेंचाय व खाने पीने केसामान की दुकान पर जहां एक दूसरे
प्लेटफार्म पर बार बार आना जाना पड़ता है ।
4- रेल्वे स्टेशन या रेल लाईन बनाने के काम के लिये ।
5- बंदरगाहपर किसी भी तरह केकाम के लिये ।
6- अल्कालीन (टेम्परेरी) लाईसंेस वाली पटाखों की दुकानो में पटाखें बेंचने के
काम के लिये ।
7- किसी भी घर ,दुकान आदि में पानी ढोने के लिये ।
8- जलाने के ईधन एकत्रित करने के लिये ।
9- खेत जोतने के लिये ।

इन कार्यो में भी बच्चो का लगाना मना है 

 
1- बीड़ी बनाने का काम ।
2- गलीचें बनाने का काम ।
3- सीमेंट कारखाने में सीमेंट बनाना या थेलों में भरना ।
4- कपड़ा बुनाई छपाई या रंगाई का कार्य करवाना ।
5- माचिस पटाखे या बारूद बनाना ।
6- अभ्रक काटना या तोड़ना ।
7- चमड़ा या लाख बनाना ।
8- कांच तथा चूडियो की फेक्टृरी मेंकाम करना ।
9- साबुन बनाना ।
10- चमड़े की पीटाई रंगाई या सिलाई कराना ।
11- उन या रूई की सफाई व घुनाई कराना ।
12- मकान,सड़क,बांध आदि बनाना ।
13- स्लेट पेंसिल बनाना व पैक बंद करना ।
14- गोमेद या कांच की मलाऐं या वस्तुऐ बनाना ।
15- कोई सेा काम जिसमें लैड, पारा ,मैगनीज ,क्रोमियम,अरगजी,पेक्सीन,कीटनाशक
इबाई और एस्बेस्टस जैसे जहरीले धातु ओर पदार्थ उपयोग में लाये जाते हों
16- पत्थर तोड़ने या सड़क बनाने का काम कराना ।
17- किसी बगान आदि में काम कराना ।

केवल 14 से 18 उम्र के बच्चे ही फेक्टृीयों में काम कर सकते हैं लेकिन 
 -
1- बच्चों से 6 घंटे से अधिक समय तक काम नही करवायाजा सकता है।
2- एक साथ बच्चों से चार घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता ।
3- रात के 10 बजे से लेकर सुबह आठ जे की बीच में उनसे कोई भी काम
नहीं लिया जा सकता है ।
4- बच्चों से ज्यादा ज्यादा दो शिफटों में काम करवाया जा सकता है ।
5- सप्ताह में एक दिनकी छुट्टी अनिवार्य है


बच्चों के जीवन की सुरक्षा के लिये कारखाना अधिनियम 1948 में कुछ प्रावधान कियेगये हैं जिनमें से खास यह है -

1- 14 साल स कम उम्र के बच्चों को किसी भी कारखाने में काम की इजाजत
नही है । यानि 15वां साल लगने से पहले बच्चों को काम पर नहीं रखा जा
सकता । कारखाना अधिनियम 1948 ने कारखानों में बच्चों से काम लेने पर
रोक लगाई है ।
2- 14 से 18 साल के बीच के उम्र के अवयस्क बच्चों को कारखाने मं काम
करने दियाजा सकता है ।
3- एक दिन में केवल एक ही कारखाने में उनसे काम करवाया जा सकता है ।

                                                                  माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत में सर्कस में बाल कलाकार का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है। हमारे देश में सर्कस लोकप्रिय है और सर्कस में बच्चे काम करते थे इस संबंध में मान0 उच्चतम न्यायालय के द्वारा 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकारों को उपयोग करने से सर्कस मालिकों पर प्रतिबंध लगा दिया। यह देखा गया कि सर्कस में अव्यस्क बच्चों को उनकी मर्जी के खिलाफ दिन में 5 बार प्रदर्शन के लिये मजबूर किया जाता था औरसर्कस के लिये बच्चो की तस्करी की जाती थी। सर्कस में उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था। इसे बालश्रम माना गया। 
 
                                                 इस संबंध में बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ सिविल याचिका क्रमांक-51/2006 में निम्नलिखि दिशा-निर्देश जारी किये गयेः-


1. 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकार सर्कस में काम नहीं करेंगे।
2. सर्कस में काम कर रहे अव्यस्क बच्चों को दिन में पांच बार प्रदर्शन के लिये मजबूर नहीं किया जायेगा।
3. प्रत्येक राज्य सरकार किशोर घरों की अर्द्ध वर्षिक रिपोर्ट प्राप्त करेगी जिसमें बच्चों की संख्या, स्थिति, पुर्नवास और वर्तमान स्थिति का उल्लेख होगा। इसके लिये राज्य सरकार प्रत्येक जिले में किशोर न्याय सेल खोलेगी।
4. 24 घण्टे घरों में चलने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों का जिला कलेक्टर में पंजीकरण होगा उनके नाम पते सहित पूर्व विवरण, पदाधिकारियों के नाम, मोबाइल नम्बर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किये जाएॅगे इसका एक डेटाबेट तैयार किया जायेगा।
5. सड़क किनारे ढाबे (भोजनालय) और मैकेनिक की दुकानों में काम करने वाले बच्चों को बचाने और उनका पुनर्वास करने में एक मजिस्ट्र्ेट की नियुक्ति, जिला मजिस्ट्र्ेट द्वारा की जायेगी। जिसके द्वारा ऐसे बच्चों की बचाव और निगरानी करने के निर्देश दिये जायेंगे।
6. केन्द्रीय दत्तक ग्रहण रिसोर्स एजेन्सी द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट परिवार समाज कल्याण को दी जायेगी।
7. समेकित बाल संरक्षण योजना के अंतर्गत केन्द्र और राज्य सरकार अर्द्धवार्षिक रणनीति योजना तैयार करेगी।

8. प्रत्येक राज्य सरकार को बच्चों के संबंध में योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये जिम्मेदार बताया गया बाल कल्याण समितियों को जिला जज की देखरेख में रखने की सिफारिश की गयी है।
9. घरों में बच्चों की अच्छी देख भाल हो इसके लिये पालक ध्यान-योजना की सिफारिश की गयी है।
10. केन्द्र सरकार बच्चों के लाभ और कल्याण के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनायेगी, जिससे आवंटित धन का वास्तव में बच्चों के कल्याण के लिये उपयोग होगा। 
 
माननीय उच्चतम न्यायालय बच्चों के शोषण से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक और व्यवस्थित योजना बनाये जाने हेतु दिशा निर्देश जारी किये गये। 
 
अपर्याप्त बजट आवंटन पर चिंता व्यक्त की गई है। आॅकड़ो के अनुसार भारत में दुनियाॅ की 19 प्रतिशत बच्चों की आबादी 1/3 से नीचे लगभग 44 लाख बच्चे की आबादी 18 वर्ष से कम है। इसके बाद भी वर्ष 2005-06 में कुल बजट का 3.86 प्रतिशत और 2006-07 में 4.91 प्रतिशत खर्च किया गया। जब कि देश के बच्चे देश का भविष्य हैं वे क्षमता विकास के अग्रदूत हैं। उनमें गतिशीलता नवाचार, रचनात्मकता परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है। हम स्वस्थ्य और शिक्षित बच्चों की आबादी का विकास करे ताकि आगे चलकर वे अच्छे नागरिकों के रूप में देश की सेवा कर सके। इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुये बाल कल्याण के लिये बजट बढ़ाने का कहा गया है।





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