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मंगलवार, 13 अगस्त 2013

दुष्कर्म क्रूरता की जांच के संबंध में दिशा निर्देश

मान्नीय सर्वोच्य न्यायालय द्वारा दुष्कर्म क्रूरता की जांच के संबंध में निम्नलिखित दिशा निर्देश पुलिस को जारी किये गये हैं । 

 
दुष्कर्म के मामलों में संवदेनशीलता के साथ व्यवहार किये जाये ।
 
व रढि़त की जांच महिला डाक्टर करे
 ,मनोचिकित्सक की सुविधा दी जावे ।
मेडीकल रिपोर्ट तत्काल बने 
, आयु का आंकलन दांतो की संख्या,
 रेडियोलाईजिस्ट टेस्ट की रिपोर्ट साथ में हो । 
 
पीडि़त को तत्काल उपचार की सहायता प्रदान की जावे ।
पुलिस जांच अधिकारी को पीडि़ता का कथनपरिवार के किसी सदस्य के सामने उसकी सुविधा अनुसार ले ।
प्रकरण की जांच शीघ्र पूरी हो , ता कि आरोपी को भा0दं0सं0 की धारा 167-2 का लाभ जमानत में प्राप्त न हो । 
 
महिलाओं का यौन उत्पीड़न:-प्रतिकर एंव पुर्नवास के लिये मार्गदर्शक सिद्वांत 

 
मान्नीय उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिल्ली 

 डोमेस्टिक बर्किंग विमेन्स बनाम यूनियन बैंक आॅफ इंडिया के मामले में 
 
महिलाओं के साथ बढ़ते हुये यौन अपराधो के प्रति गंभीर चिन्ताव्यक्त कीहैं और ऐसे मामलों के शीघ्र परीक्षण तथा उन्हें प्रतिकर प्रदान करने एंवउनके पुर्नवास के लिये विस्तृत मार्गदर्शक सिद्वांत विहित किया है । प्रस्तुत मामले में दिल्ली श्रमजीवी फोरम ने लोकहित वाद के माध्यम सेचार घरेलू श्रमजीवी महिलाओं के साथ सात सेना के जवानो के द्वारायौन उत्पीड़न की घटना को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया । उक्तघटना उस समय घटी थी जब वे महिलाऐं रेल गाड़ी से रांची से दिल्ली
जा रही थी ।

 
मान्नीय उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायमूर्तियों की खण्डपीठ ने ऐसी महिलाओं को प्रतिकर प्रदान करने तथा उनके पुर्नवास के लिये निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्वांत विहित किए हें:-

1- योन शोषण के शिकायतकर्ताओ को वकील के रूप में विधिक सहायता दिया जाना चाहिये जो आपराधिक न्याय प्रणाली से भलिभांती परिचित हों । उसे पीडि़त व्यकित को कार्यवाहियों के बारे में पूरी जानकारी देना चाहिये तथा पुलिस स्टेशन तथा न्यायालय में साहयता ही नहीं देना चाहिये बल्कि यह भी बताना चाहिये कि अन्य प्रकार की सहायता कैसे प्राप्त की जा सकती हे जैेसे मानसिंक परामर्श या चिकित्सा सहायता आदि । निरतंरता बनाये रखेने की दृष्टि से उसी बकील को मामलेको अन्त तक निपटाना चाहिये । 

 
2- पुलिस सटेशन पर सहायता देना आवश्यक है क्योंकि पीडि़त व्यक्ति वहां घवराया रहता है । ऐसे समय अधिवकता की सहायता उसके लिये अत्यन्त आवश्यक है । 
 
3- पुलिस को प्रश्न पूंछे जाने के पूर्व पीडि़त व्यकित को विधिक
प्रतिनिधित्व केअधिकार की जानकारी देना चाहिये और पुलिस रिपोर्ट मेंइसका उल्लेख किया जाना चाहिये कि पीडि़त व्यक्ति को इसकी सूचना दी गई थी ।
4- पुलिस सटेशन पर अधिवक्ताओं की सूवी होनी चाहिये जो
जोऐसे मामलो में स्वेच्छया से कार्यकरना चाहते हें ,जहां पडि़त व्यक्ति का अधिवक्ता उपलव्धनहीं हे या उसे किसी के बारे में जानकारीनहीं है ।
5- अधिवक्ता की नियुक्ति पुलिस के आवेदन पर न्यायालय
द्वारा यथा सभंव शीघ्र की जायेगी । किन्तु यह सुनिश्चित करने के लियेकि पीडि़त व्यक्ति से बिलम्ब किये बिना प्रश्न पूंछे जाये अधिवक्ता कोन्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना भी कार्य करने के लिये अधिकार होगा ।
6- बलात्कार के सभी मामलों में पीडित व्यक्ति की पहचान को न खुलना बनाया रखा जायेगा 
7- अनुच्छेद 38-1 के अधीन नीति निदेशक तत्वों को ध्यान में
रखते हुये आपराधिक क्षति प्रतिकर बोर्ड का गठन किया जाएगा । बलात्कार से पीडित व्यक्ति प्रायः बहुत अधिकवित्तीय हानि उठाता है ।इनमें से कुछ तो सेवा जारी करने में असाहय होते हैं । 
 
8- न्यायालय द्वारा पीडित व्यक्ति को प्रतिकर अपराधी के सिद्वदोष घोषित किये जाने पर पदान किया जायेगा तथा आपराधिक क्षतिया प्रतिकर बोर्ड द्वारादी जायेगी चाहे अपराधी सिद्वदोष घोषित किया गया होया नहीं । बार्ड बलात्कार के परिणाम स्वरूप हुए कष्ट पीड़ा और घक्का तथा गर्भधारण करने के कारण आय में कमी या बच्चे के जन्म परहुये खर्च यदि वह बलात्कार के परिणाम स्वरूप हुई हो ,पर विचार करेगा

न्यायमूर्तियों ने ऐसे मामलों के परीक्षणके लिये भारतीय आपराधिक प्रणाली में व्याप्त दोषों को भी इंगित किया और उसमें सधार किये जाने का सुझाव दिया । ऐसे मामलो के परीक्षण पर उचित ध्याननहीं दियाजाता है । प्रायः पुलिस द्वाराउनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई जाती है । पीडित वयक्तियों को यह कहते पाया जाताहै कि बलात्कार का परीक्षण बलात्कार से अधिक बुरा होता है । 
 
योन कर्मियों के पुर्नवास, उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण दिये जाने तथा रोजबगार प्रदान करने के दिशा निर्देश दिये गये हैं । 

बोधदेव कर्मकार विरूद्व पश्चिम बंगाल राज्य ए0आई0आर0 2011 एस0सी0 में कहा गया है कि बलात्कार पीडित महिला को अंतरिम प्रतिकर पाने का अधिकार प्राप्त है 

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