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सोमवार, 5 अगस्त 2013

लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012

        लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 

                                                                      लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 जिसे आगे अधिनियम से संबोधित किया गया है, अधिनियम में बालक से आशय ऐसा कोई  भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है । इस अधिनियम की धारा-8 में बालक के साथ लैंगिक हमले को दंडित किया गया है और अधिनियम की धारा-7 में लैंगिक हमले को परिभाषित किया गया है। अधिनियम की धारा-12 में लैंगिक उत्पीड़न को दंडित किया गया है और धारा 11 में लैंगिक उत्पीड़न को परिभाषित किया गया है । 

        अधिनियम की धारा 24 में बालक के कथन को अभिलिखित करने की प्रक्रिया दी गई है, अधिनियम की धारा 24 के अनुसार


    1.    बालक के कथन को बालक के निवास पर या

    2.    ऐसे स्थान पर जहां पर साधारणतया निवास करता है या 

    3.    उसकी पंसद के स्थान पर अभिलिखित किया जाएगा,

    4.    जहां तक संभव हो उप निरीक्षक की पंक्ति से अन्यून किसी स्त्री पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया जायेगा ।               धारा-24-1

    5.    बालको के कथन को अभिलिखित किये जाते समय पुलिस अधिकारी बर्दी में नहीं   होगा ।      धारा-24-2

     6.    अन्वेषण करते समय पुलिस अधिकारी बालक या परीक्षण करते समय यह सुनिश्चित  करेगें कि किसी भी समय पर बालक अभियुक्त के किसी भी प्रकार के सम्पर्क में न   आये।      धारा-24-3

    7.    किसी बालक को किसी भी कारण से रात्रि में किसी पुलिस स्टेशन में निरूद्व नहीं  किया जायेगा। धारा-24-4

    8.    पुलिस अधिकारी तब तक सुनिश्चित करेंगेे कि बालक की पहचान पब्लिक मीडिया  से संरक्षित है। जब तक कि बालक के हित में न्यायालय द्वारा अन्यथा निर्देशित न   किया गया होे । धारा-24-5


        अधिनियम की धारा 26 में बालक के कथन अभिलिखित किये जाने के संबंध में अतिरिक्त उपबंध किये गये हैं जो निम्नलिखित है:-


    1.    मजिस्टे्रट या पुलिस अधिकारी बालक के माता पिता या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति की जिसमें बालक का भरोसा या विश्वास है उसकी उपस्थिति में बालक द्वारा बोले गये अनुसार कथन अभिलिखित करेगा । धारा-26-1 ()

    2.    जहा आवश्यक है वहां, यथास्थिति, मजिस्टे्रट या पुलिस अधिकारी, बालक का कथन, अभिलिखित करते समय किसी अनुवादक या किसी दुभाषिए जो ऐसी अर्हताए, अनुभव रखता हो । की सहायता ले सकेगा । 

    3.    अनुवादक या दुभाषिए को ऐसी फीस जो विहित की जाए, संदाय की जायेगी (धारा-26-2)

    4.    यदि बालक मानसिंक या शारीरिक रूप से निशक्त है तो ऐसे बालक से विशेष शिक्षक या बालक से सम्पर्क की रीति से सुपरिचित किसी व्यक्ति या उस क्षेत्र में किसी विशेषज्ञ जो ऐसी योग्यता ओर अनुभव प्राप्त हो उसकी सहायता ली जावेगी 

    5.    इस संबंध में ऐसे विशेषज्ञ व्यक्ति को फीस नियमानुसार प्रदान की जावेगी। (धारा-26-3) 

    6.    जहां आवश्यक हो मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेगें कि बालक का कथन श्रृृव्य-दृश्य इलेक्ट्रोनिक माध्यमो से भी अभिलिखित किया जाये ।(धारा-26-4)


                                                      अधिनियम के विशेष प्रावधान धारा 25-1 में दिये गये हैं । जिसके अनुसार यदि बालक का कथन दं0प्र0सं0 की धारा 164 के अतर्गत अभिलिखित किया गया है तो ऐसे कथन  का अभिलेखन मजिस्टे्रट, उसमें अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी बालक द्वारा बोले गए अनुसार कथन अभिलिखित करेगा। 

                                                  अधिनियम की धारा-’25-1 के परन्तु के अनुसार दं0प्र0सं0 की धारा-164 की उपधारा-1 के प्रथम परंतुक में अंतर्विष्ट उपबंध, जहां तक वह अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति अनुज्ञातकरता है । इस मामले में लागू नहीं होगा । अर्थात अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति में कथन अभिलिखित नहीं किया जावेगा । धारा 164-1 दं0प्र0सं0 ऐसे मामलो में लागू नहीं होगी । 



                                         अधिनियम  की धारा-25 -2 में विशेष प्रावधान दिये गये हैं । जिसमें अभियोग पत्र की नकल चालान पेश होने पर आरोपी को धारा 207 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत प्रदान की जाती है। उसी प्रकार बालक और उसके अभिभावक या उसके प्रतिनिधि को संहिता की धारा 207 के अधीन विनिर्दिष्ट दस्तावेजो की प्रति पुलिस द्वारा अंतिम प्रतिवेदन धारा 173 दं0प्र0सं0  के अंतर्गत फाईल किये जाने पर प्रदान की जावेगी । 



                                                       अधिनियम में यह विशेष प्रावधान किया गया है कि चालान पेश होते  ही बालक को चालान की नकल दी जावे। इसके लिये आवश्यक है कि जैसे ही चालान पेश होता है इसकी सूचना बालक और उसके अभिभावक को न्यायालय के माध्यम से दी जावे ओर बालक और उसके अभिभावक के न्यायालय में उपस्थित होने पर चालान की नकल धारा 207 दं0प्र0सं0के अतंर्गत दी जावेगी । 


                                      इसके लिये यह भी प्रक्रिया अपनाई जा सकती है कि न्यायालय द्वारा विवेचक को निर्देशित किया जा सकता है कि जैसे ही चालान पेश हो वैसे ही वह बालक  और उसके अभिभाक को चालान पेश होने की सूचना दे । ताकि न्यायालय के समक्ष बालक अपने अभिभावक सहित उपस्थित होकर मजिस्ट्रेट से नकल प्राप्त कर सकता है ।  



                                               अधिनियम की धारा-25-2 में मजिस्ट्रेट द्वारा बालक और उसके अभिभावक या उसके प्रतिनिधि को अंतिम रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी सोंपी गई है । इसलिये पुलिस थाने से बालक और उसके अभिभावक या प्रतिनिधि को चालान की नकल देेने की प्रक्रिया नहीं अपनाई जा सकती । इसके लिए आवश्यक है कि चालान पेश होने की सूचना बालक व उसके अभिभावक को दी जावे ओर चालान न्यायालय में पेश होने पर न्यायालय द्वारा सूचना दी जावे और प्रतिलिपि प्रदान की जावे ।  


        मजिस्ट्रेट द्वारा बालक के कथन का अभिलेखन:

                             -(1)यदि बालक का कथन ,प्रक्रिया संहिता 1973 (1074का 2)(जिसे इसमें पश्चात सहिता कहा गया है )की धारा 164 के अधीन अभिलिखित किया गया है, तो ऐसे कथन का अभिलेखन मजिस्ट्रेट उसमें अतंर्विष्टि किसी बात के होते हुये भी बालक द्वारा बोले गये अनुसार कथन अभिलिखित करेगा । 


                                         परन्तु संहिता की धारा 164 की उप धारा(1)के प्रथम परन्तुक में अंतविषर््िट उपबंध, जहां तक वह अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति अनुज्ञात करता है । इस मामले में लागू नहीं होगा ।

    (2)    मजिस्ट्रेट बालक और उसके अभिभावको या प्रतिनिधि को संहिता की धारा 207 के  अधीन विनिर्दिष्ट दस्तावेजों की एक प्रति, उस संहिता की धारा 173 के अधीन पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट फाईल किये जाने पर,प्रदान करेगा ।
   
   

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