यह ब्लॉग खोजें

न्याय तक पहुंच-कितने दूर कितने पास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
न्याय तक पहुंच-कितने दूर कितने पास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 7 अगस्त 2013

न्याय तक पहुंच-कितने दूर कितने पास

              न्याय तक पहुंच-कितने दूर कितने पास
                                                                       उमेश कुमार गुप्ता
                                                        भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतंात्रिक राज्य है । जहां पर जनता में से जनता द्वारा, जनता के लिए प्रतिनिधि चुनकर आते हैं । देश में प्रत्येक व्यक्ति सरकार चुनने में भागीदार होता है और वह लोकतंत्र का आधार पर स्तभ होता है उसके ही बोट से चुनकर लोक प्रतिनिध्ंिा आते हैं। जो सरकार चलाते हैं ,लेकिन हमारे देश में सरकार चुनने वाला व्यक्ति ही सबसे ज्यादा उपेक्षित समाज में रहता है । उसे अपने कल्याण के लिये प्रचलित समाजिक आर्थिक कानून की जानकारी नहीं होती है । वह कानूनी अज्ञानता के कारण उसके हित के लिए चल रही सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विकास की योजनाओं की जानकारी प्राप्त नहीं कर पाता हैे । इसलिए न्याय की पहुच से दूर रहता हैं ।   


                                                                              प्रत्येक व्यक्ति की न्याय तक पहुंच हो। इसके लिये आवश्यक है कि दैनिक जीवन मंे उपयोग हो रहे कानून की जानकारी सर्व साधारण को होना चाहिए। लेकिन हमारे देश में अशिक्षा,अज्ञानता और विधिक साक्षरता की कमी के कारणलोगो को अपने अधिकार,कर्तव्य, की जानकारी नहीं होती है । इसलिए वह न्याय तक पहंुच से दूर रहते हैं । 
 
                                                                 न्याय तक पहुंचने का अधिकार संबिधान के अनुच्छेद- 21 में प्रदत्त प्राण एंव दैेहिक स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल है। जिसे मान्नीय सर्वोच्य न्यायालय द्वारा हुसैन आरा खातून ,डी0 के0बोस, मैनका गांधी आदि सेकड़ो मामलों प्रतिपादित किया गया है । इसके बाद भी समाज का कमजोर वर्ग उपेक्षित है । न्याय तक पहुंच का अधिकार उससे सैकडो मील दूर है । 
 
                                                             हमारे संबिधान में निशुल्क विधिक सहायता का प्रावधान रखा गया है । जिसके लिये केन्द्र, राज्य, तालुका स्तर पर केन्द्र, राज्य, और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण स्थापित है। जो पक्षकारो को निःशुल्क विधिक सेवा,सहायता हर स्तर पर उपलब्ध कराते है। लेकिन यह संस्थाऐं केवल उन व्यक्तियों को सहायता प्रदान करती हैं जो इन संस्थाओ तक पहंुच रखते हैं जो व्यक्ति न्यायालय आते हैं उन्ही तक यह संस्थाएं सीमित है ।
लेकिन जो व्यक्ति घर पर गरीबी, अज्ञानता, के कारण बैठा हुआ है। जिसे कानून की सहायता की जरूरत है । उसे निःशुल्क कानूनी मदद चाहिये। वह अपने घर से न्यायालय तक आने में सहायता असमर्थ है । उसे घर से न्यायालय तक न्याय पहंुचाने के लिए कोई संस्था ,समिति ,प्राधिकरण कार्यरत नहीं है। इसी कारण लोगो की न्याय तक पहंुच में दूरी बनी हुई है ।
                                                     हमारे देश में 50 प्रतिशत से अधिक आबादी अनपढ़ है ,करोड़ो रूपये खर्च करने के बाद भी साक्षरता के नाम पर केबल कुछ प्रतिशत लोग नाम लिखने वाले है । कुछ प्रतिशत लोग गावं में साक्षर हैं । देश में युवा पीढी को छोड दे तो जो प्रोढ पीढी,पूरी तरह से निरक्षर है । जिनका अंगूठा लगाना शैक्षणिक मजबूरी है । ऐसी स्थिति में देश में विधिक साक्षरता जरूरी हैं । इसके लिए आवश्यक है कि देश की प्रौढ़ पीढ़ी को विधिक साक्षरता प्रदान की जाये । 
 
                                                                     हमारे देश में विभिन्न विषयो पर अलग अलग कानून, अधिनियम, नियम प्रचलित है । ब्रिटिश काल का कानून अभी भी प्रचलित है । अधिकांश कानून और उसके संबंध मे ंप्रतिपादित दिशा निर्देश अंग्रेजी में विद्यमान है । इसके कारण देश की अधिकाशं जनता को इनका ज्ञान नहीं हो पाता है । इसलिए महिला, बच्चे, प्रौढ़, बुजुर्गो से संबंिधत कानून को एक ही जगह एकत्रित कर उन्हें लोगों के समक्ष रखा जावे तो कानून की जानकारी उन्हें शीघ्र और सरलता से प्राप्त हो सकती है ।
                                                                        हमारे संविधान में हमे मूल अधिकार प्रदान किये गये है । जो प्रत्येक व्यक्ति को मानवता का बोध कराते हैं । प्रत्येक ्रव्यक्ति का मूल अधिकार है कि वह उत्कृष्ट जीवन जिये ।उसे शिक्षा, स्वास्थ, आवास, रोजगार, प्राप्त है । उसके साथ राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अन्याय न हो । मानवीय स्वतंत्रता एंव गरिमा के अनुरूप उसे मानव अधिकार प्राप्त हो । जिसके लिए आवश्यक है कि उसकी न्याय तक पहंुच हो । उसे अपने अधिकारो की जानकारी हो ।
                                                        भारत का सबिधान देश के सभी नागरिकों के लिए अवसर,और पद की समानता प्रदान करता है । उसे विचार अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता प्रदान करता है। लेकिन इसके बाद भी लोगो को अपने कानूनी अधिकारो की जानकारी नहीं हो पाती । आज प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है । वह प्रतिफल के बदले में सेवा प्राप्त करता है।लेकिन कदम-कदम पर जानकारी न होने के कारण ठगा जाता है। इसके लिये जरूरी है कि उपभेक्ता प्रचलित कानून और अपने अधिकारों को जाने ।
 
                                                 इन संबैधानिक अधिकारों के अतिरिक्त सरकार ने उपेक्षित लोगों के लिए सरकार समर्थित अनुदानो को सुनिश्चित करने के लिये विशेष योजनाएं बनाई है और उनके क्रियान्वयन के लिए कानून बनाकर उन्हें अधिकार के रूप में प्रदान किया है। जिनकी जानकारी आम जनता को नहीं है। यदि उन कानून की जानकारी उन्हें दी जावे तो उनके जीवन की रक्षा होगी, उन्हें उचित संरक्षण प्राप्त होगा । उन्हें सामाजिक ,आर्थिक और राजनैतिक लाभ प्राप्त होगा 
 
                                                                     शिक्षा, रोजगार, आहार, आवास, सूचना को मूल अधिकार मानते हुए सूचना अधिकार अधिनियम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजन, अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, खाद्य सुरक्षा बिल, आदि ये सभी कानून समाज के सबसे कमजोर, उपेक्षित वर्ग के, विकास के लिए बनाये गये हैं । जो उन्हें सामाजिक न्याय, आर्थिक सुरक्षा , राजनैतिक संरक्षण प्रदान करते हैं । 

 
                                                          इतने प्रगतिशील कानूनो के बावजूद और प्रतिवर्ष लाखो कऱोड़ रूपये साक्षरता की रोश्नी जगाने, गरीबी दूर करने बेकारी मिटाने में खर्च किये जाते हैं । इसके बावजूद भी अति उपेक्षित लोग, विशेषकर महिलाऐं, बच्चे, अनुसूचित जाति-जन जाति, पिछडा वर्ग के सदस्य, अपने जायज हकों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं ।

                                           एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के लगभग सत्तर प्रतिशत लोग संविधान मंे दिये गये अधिकार,कर्तव्य, के प्रति जागरूक नहीं है, या उनके पास औपचारिक संस्थाओं के माध्यम से न्याय प्राप्त करने के संसाधन ही नहीं है। शिक्षा के अभाव, अथवा कानून की जानकारी न होने के कारण वे लोग मुख्य धारा से कटे रहते है । 
 
                                                                      इसके लिए आवश्यक है कि उन्हें कानून की सही जानकारी दे कर उनके अधिकार और कर्तव्यों के प्रति सचेत किया जाये । कानूनी साक्षरता का प्रचार-प्रसार किया जाये। एक न्याय तक पहंुच वाले सुदृढ़ एंव विकसित समाज की संरचना की जावें ।