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सोमवार, 5 अगस्त 2013

स्त्रीयों की स्थिति





                                              प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रीयों की स्थिति अच्छी थी । मातृसत्ता थी। वैदिक काल में उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। वे वेदो की ज्ञाता थी । पाणिनी, मैत्रीय, गार्गी, आदि महिलाएं शास्तार्थ की ज्ञाता थी । महिलाओ के बिना कोई भी धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक कार्य, पूरा नहीं होता था। उन्हें शिक्षा-दिक्षा की छूट थी। वे अपनी मर्जी से पति चुन सकती थी। उन्हें पुरूषो के बराबर अधिकार प्राप्त थे। वे समाज में पूज्नीय थी । 

 
                                                                  लेकिन धीरे-धीरे भारतीय समाज में मनुस्मृति, गौतम ऋषि के श्राप के प्रभाव और अहिल्या के शिला बनने के साथ भारतीय समाज पितृसत्तात्मक हो गया और भारतीय नारी का बुरा युग प्रारंभ हो गया । उसे बचपन में पिता पर, जवानी में पति पर, वृद्धा अवस्था में बेटो पर निर्भर बताते हुए पुरूष धर्म का पालन करने वाली स्त्री बना दिया गया । उसे विद्वानो के द्वारा नीच, स्वभाव से मूर्ख, बेवकूफ, नरक का फाटक, पुरूषो को भ्रष्ट करने वाली और अमृत के भेष में जहर बताते हुए उसे ज्ञान शिक्षा जैसे सामाजिक अधिकारो से वंचित करते हुए पैरो की जूती बना दिया गया। ब्राम्हण वाद के नाम पर देवदासी प्रथा, बहुविवाह, बाल विवाह, अशिक्षा, पर्दाप्रथा, को बढावा दिया गया । वह विवाह को संस्कार मानते हुए वह तलाक नहीं दे सकती थी । पति का घर ही उसका घर होता था। मरने के साथ ही उसका शराबी कवबी पति से पिण्ड छूटता था। उससे वेदो का अध्ययन का अधिकार छुनकर उपन्यन संस्कार पर रोक लगा दी गई । 
 
                                                                                   डाॅ. आम्बेडकर के द्वारा हिन्दू महिलाओ के उत्थान और पतन नामक किताब में मनुस्मृति को हिन्दू महिला के पतन के लिए जिम्मेदार माना । उनके अनुसार मनुस्मृति ने महिलाओ के जीवन में बहुत जहर खोला है और वह दास्ता परतंत्रता की देवी बन गई । डाॅ0 आम्बेडकर ने मनुस्मृति में दिये कई उदाहरणों की व्याख्या करते हुए बताया है कि किस प्रकार स्त्री को मंदिर में देवी देवताओ को समर्पित कर देवदासी प्रथा की स्थापना की गई और यलाम्या, जोगनी, भागिन आदि रूपो में वह देवताओ को समर्पित की जाती थी। मंदिर के पुजारी , शहर के व्यापारी, अमीर, जमीदार उसका शारीरिक शोषण करते थे । वह वैश्या का जीवन जीती थी। 

 
                                                                        मनुस्मृति के अनुसार कम उम्र में विवाह होने लगे । बाल विवाह का नियम बन गया । एकांत जीवन बिताने हेतु महिलाओ में पर्दा प्रथा का जन्म हुआ । समाज में उनकी स्थिति शुद्र की तरह हो गई । उन्हें अन्ध विश्वास की दलदल में धकेल कर पूण्य, फल, प्राप्त करना व्रत, उपवास, पूजा पाठ, तीर्थ यात्रा के अंध विश्वास को जगाया गया । उनका कर्म पति की सेवा, पुत्र की नियति, परिवार कल्याण बताया गया । 

 
                                                                   धर्म के नाम पर महिलाओ को जाति से बहिष्कृत कर उनके साथ अन्ध विश्वास, अन्ध श्रृद्धा, कुप्रथा, ने तान्डव रूप धाकर कर लिया । महिलाओ को समाज में पैरों की जूती, ढोर, गवार, शूद्र पशु बना दिया । बच्चा जन्ने की मशीन बन गई । एक महिला 8-8, 10-10 बच्चो को जन्म देकर अपना पूरा जीवन उनको पालने पोषने में निकाल देती थी ।

 
                                           ऐसे भारतीय समाज में अस्पृश्यता एक कलक और हिन्दू धर्म की बुराई के रूप में पैदा होकर समाज के नस-नस मंे रच-बस गई । लडकी पैदा होना अभिशाप माना जाने लगा । उसे पैदा होते ही मार दियाजाता था। लडके के जन्म पर शहनाई बजती थी और लडकी के जन्म पर मां को कोसा जाता था। 
 
                                               ऐसे भारतीय समाज में डाॅ0 आम्बेडकर के द्वारा पूरे सामाजिक ढांचे को बदलना आवश्यक समझा था और इसके लिए महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को आधार बनाते हुए समाज सुधार की नींव रखी थी । इसलिए उनके अननन्याई आधुनिक बौद्ध भी बोलते हैं । उनके द्वारा स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे के सिद्धांत के आधार पर समाज सुधार का बीडा उठाया । 
 
                                                       डाॅ0 आम्बेडकर का मानना था कि भारतीय समाज जो असंख्य जातियों, उपजातियों मे विभाजित, अंध विश्वासों और कट्टर पंथ में डूबा पिछडा समाज है । जो लगातार आधुनिक दुनिया के बीच अमानवीय प्रथाओं में डूबा हुआ है । इसलिए इन बुराओं को दूर किया जाना आवश्यक है । 
 
                                                             डाॅ0 आम्बेडकर का मानना था कि हिन्दू धर्म जन्म पर आधारित, जाति व्यवस्था की कमजोर चट्टान पर खडा है । जहां पर जन्म के आधार पर व्यक्तियों के साथ अमानवीय भेद भाव किया जाता है । उन्हें भोजन पानी, छूने नहीं दियाजाता । सार्वजनिक स्थानो पर छुआछूत को मानते हुए उनके साथ सामाजिक, आथर््िाक व्यवहार नहीं किया जाता है । ऐसे समाज में सबसे पहले उनके द्वारा महिलाओ को शिक्षा के प्रचार प्रसार पर जोर दिया गया था।

                                                                   डाॅ0 आम्बेडकर के द्वारा हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत करते हुए विभिन्न साम्प्रदाय, जातियों, समुदायो, और गोत्र में विभाजित हिन्दुओं, सिख, बौद्ध, जैन धर्म के सभी धर्मलाम्बावियों को एक करते हुए उन्हें हिन्दु मानते हुए हिन्दु शब्द की व्याख्या की । उनका मानना था कि हिन्दु कोई धर्म नहीं । वह पंथ है। वह धर्मो का समूह है । जो विभिन्न जातियों, भाषा, वन के लोग, अपनाते हुए हिन्दुस्तान को एक करते हैं उनके अनुसार धर्म व्यक्तिगत, है । 
 
                                                              हिन्दू धर्म दर्शन के संबंध में डाॅ0 आम्बेडकर का यह मानना था कि वह न तो समाज के लिए उपयोगी है और न ही न्याय की कसौटी पर खरा उतरता है । वह पूरी तरह अपमान जनक और अमानवीय है । इसलिए उन्होने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म सन् 1956 में स्वीकार किया था। डाॅ. आम्बेडकर का मानना था कि बौद्ध धर्म अंधविश्वास और आस्तिकता के खिलाफ लडना सिखाता है । वह करूणा, प्यार बढाता है ।वह समता, समानता बतलाता है ।जब कि अन्य धर्म जो जीवन और मृत्यु के बाद आत्मा के चक्कर में पूरी जिन्दगी भटकते रहते हैं और मरने के बाद भी तंग रहते हैं । जब कि बौद्ध धर्म में यह बुराई नहीं है इसलिए उन्होने बौद्ध धर्म अपनाया थां।
                                         डाॅ0 आम्बेडकर ने राजाराम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योती बा फुले जैसे सामाजिक सुधारको के साथ समाज सुधार की नींव रखी । वे दलित उत्थानो और अछूतोधार आंदोलन के जनक माने गये । वह बौद्धिक शिक्षाविद, विचारक मानवता के वकील थे । उन्हेाने समाजिक पुनर्निमाण की नीव रखकर अनेक दूरदर्शी रचनात्मक यर्थाथ वादी सामाजिक सुधार किये थे । इसलिए लोग उन्हें महान समाज सुधारक कहते थे।

                                                                 डाॅ0 आम्बेडकर के द्वारा सर्व प्रथम भरतीय महिलाओ को शिक्षित होने का संदेश देते हुए जाति, धर्म, भाषा, लिंग, स्थान के आधारपर व्याप्त सामाजिक, असामानता, शोषण भेदभाव, के विरूद्ध लडने के लिए एकजुट होने का संदेश दिया । भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक, कुरीतियों की तरफ समाज का ध्यान आकर्षित करनेक े लिए 25 दिसम्बर 1927 को सार्वजनिक रूप से महिलाओ के साथ मिलकर मनुस्मृति को जलाकर महिलाओ में व्याप्त कुरीतियों, धार्मिक अंधविश्वासों, रूढियों प्रथाओं को समाप्त किये जाने की ज्वाला जलाई थी। उन्होने महिलाओ मंे सम्मान जनक जीवन जीने के लिए लडकियों को शिक्षित करने की बात कहीं थी । उनका मानना था कि यदि स्त्री शिक्षित होगी तो उसका पूरा परिवार शिक्षित होगा ।

डाॅ0 आम्बेडकर 19 और 20 मार्च 1927 को उन्होने दलित वर्ग की एक विशाल रैली में जिसमें महिलाएं भी शामिल थी। महिलाओ को यह संदेश दिया था कि पति को अपना दोस्त माने और दोस्त के अनुसार उसके साथ बराबर का व्यवहार करें । उसके गुलाम होने से मना कर दें । कम उम्र में शादी न करे । शादी होने के बाद ज्यादा बच्चे पैदा न करें ।

डाॅ0 आम्बेडकर के द्वारा 1928 में बम्बई विधान परिषद के सदस्य के रूप में सर्वप्रथम महिलाओ के लिए प्रसूति अवकाश मातृत्व लाभ, और निश्चित धनराशि की सहायता देने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रकार वे भारत में पहले व्यक्ति हे जिन्होंने महिलाओ के लिए प्रसव पूर्व अवधि के दौरान आराम हेतु कानून पारित करवाया था ।

डाॅ0 आम्बेडकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनाये जा रहे संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष थे और स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री थे । इस रूप मंे कार्य करते हुए उनके द्वारा महिला सशक्तिकरण कई वैधानिक कार्य किये गये । उनके प्रयास से ही भारतीय संविधान में जाति, धर्म, भाषा, लिंग, के आधार पर व्याप्त असमानता और भेदभाव को समाप्त किया गया । 

 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया कि राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म जाति लिंग, जन्म स्थान, के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा । संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार सभी को बराबरी के अवसर प्रदान किये जायेंगे । स्त्रियों की दशा भारतीय समाज में दयनीय थी । बाल विवाह, बहु विवाह, दहेज प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों की शिकार थीं और वे पूर्ण रूप से पुरूषों पर आश्रित थीं। उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था। पुरूष की मर्जी ही उनकी मर्जी थी। इसी कारण राज्य को उनके लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार दिया गया।इसलिए संविधान के अनुच्छेद 15-3 में राज्य को स्त्रियों के हित और कल्याण के लिए विशेष उपबंध बनाये जाने हेतु अधिकार प्रदान किये गये । यह माना गया कि अस्तित्व के संबंध में स्त्रियों की शारीरिक बनावट और उनके स्त्री जन्म में दुखद स्थिति का सामना करना पड़ता है। इसलिये उनकी इनकी शारीरिक कुशलता का संरक्षण जनहित का उद्देश्य हो जाता। जिसके कारण उनकी शक्ति और निपुणता को सुरक्षित रखा जा सकता।

 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15-3 में राज्य स्त्रियों ओर बालकों के लिये विशेष प्रावधान कर सकता है । अर्थात अनुच्छेद-15 के अपवाद स्वरूप लिंग के आधार पर विशेष उपबंध बनाकर विभेद कर सकता है ।

संविधान के अनुच्छेद-16 के अनुसार केवल लिंग के आधार पर नियोजन में भेद भाव नहीं किया जायेगा अर्थात अनुच्छेद-16 के अनुसार महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार दिये गये हैं । 
 
महिलाओं को शोषण के विरूद्व अधिकार दिया गया है अनुच्छेद 23 में मानव का व्यापार, बेगार ओर बलात्श्रम को दंडनीय अपराध बनाया गया है । इसी प्रकार अनुच्छेद 23-2 के अंतर्गत सार्वजनिक प्रयोजनो के लिये अनिवार्य सेवा के लिये राज्य महिलाओं को बाध्य नहीं कर सकता ।
संविधान के अनुच्छेद 29-2 के अनुसार राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से संचालित शिक्षा संस्थाओं में लिंग के आधार पर भेद भाव करते हुये महिलाओं के लिये अलग से स्कूल कालेज खोले जा सकते हैं ।
 
मूल अधिकारों के अलाबा महिलाओं को समाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करने ,उनसे विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जगाने प्रतिष्ठा ओर अवसर की समता प्राप्त करने उनकी गरिमा को बढ़ाने नीति निर्देशक तत्वों में राज्य को कल्यानकारी कार्यक्रम निर्देशित किया गया है ।
अनुच्छेद-39-ए में कहा गया है कि राज्य अपनी नीति इस प्रकार संचालित करेगा कि पुरूष और स्त्री सभी नागरिको को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो ।
अनुच्छेद 39-डी के अनुसार पुरूष और स्त्रियों को समान कार्य के लिये समान वेतन दिया जायेगा ।
अनुच्छेद 39-ई के अनुसार पुरूष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थय और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यक्ता से विवश होकर नागरिको को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-42 के अनुसार स्त्री को विशेष प्रसूति अवकाश प्रदान किया जा सकता है। स्त्रियों के लिये राज्य प्रशिक्षण संस्था की स्थापना कर सकता है। अनुच्छेद 44 में सभी नागरिको के लिए समान नागरिक संहिता का प्रावधान रखा गया है । भारत के प्रत्येक नागरिक पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वह अनुच्छेद 51--इ के अनुसार ऐसी प्रथाओं का त्याग करे ,जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्व है ।,
आज डाॅ0 आम्बेडकर के प्रयास से भारत के प्रत्येक नागरिक जिसमें स्त्रियाॅ शामिल है उन्हें राष्टृपति, उपराष्टृपति ,राज्यपाल,सांसद,विधायक,न्यायमूर्ति,न्यायधीश,आदि महत्वपूर्ण पदो पर नियुक्ति में कोई रोकटोक नहीं है । अनुच्छेद-325 में निर्वाचक नामावली में लिंग के आधार पर भेद भाव न करते हुये प्रत्येक चुनाव में वोट देने योग्य माना गया है इसी प्रकार पंचायत,नगर पालिका में जन भागीदारी में उनके 1/3 पद आरक्षित किये गये हें । इसी प्रकार सबिधान में स़्ित्रयों संबंधित विशेष प्रावधान हे ।
राज्य द्वारा अनुच्छेद 15-3 के अंतर्गत दिये विशेष प्रावधानों के अंतर्गत स्त्रियों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता प्रदान की गई है। उन्हें 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। महिलाओ को शोषण से बचाने के लिये विशेष कानून बनाये गये हैं। उनके अधिकारो की रक्षा के लिए राष्ट्र्ीय महिला आयोग की स्थापना की गई है।
डाॅ0 आम्बेडकर के प्रयास से भारतीय समाज में महिलाओं की जन भागीधारी में भूमिका बढ़ाई गई है । हमारे पुरूष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं को जन भागीदारी में भाग लेकर चुनाव में खड़े होने एवं ,जनता का प्रतिनिधित्व करने से हमेशा रोका गया है। यही कारण है कि देश की 50 प्रतिशत आबादी का नेतृत्व करने के बाद भी 5 प्रतिशत महिलाऐं राज्य की विधान सभा और लोक सभा महिलाओं का नेतृत्व नहीं करती । इस कारण संविधान में विशेष संशोधन किए गए हैं। संबिधान के 73 वें संशोधन अधिनियम के द्वारा संबिधान में भाग-9 पंचायत के संबंध में जोड़ा गया है। जिसके अनुसार प्रत्येक राज्य में ग्राम मध्यवर्तीय जिला स्तर पर पंचायतों का गठन किया जाएगा । जिसके अनुसार प्रतिनिधि निर्वाचन से चुने जाएगें ।
संविधान के अनुच्छेद 243-2 ,243-डी-2 के अनुसार आरक्षित स्थानों की कल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान अनुसुचित जाति या अनुसूचित जन जाति व स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेगें । अनुच्छेद 243-डी-3 के अनुसार प्रत्येक पंचायत प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम 1/3 स्थान स्त्रियों के लिये आरक्षित रहगें । इसी अनुच्छेद के अनुसार ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आंबटित किये जायेगें ।
इसी प्रकार अनुच्छेद 243-डी-4 के अनुसार पंचायतो में अध्यक्षों के पद स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेगें, जिनकी संख्या कुल संख्या के 1/3 पद स्त्रियांे के लिये आरक्षित पदों की संख्या प्रत्येक स्तर पर भिन्न भिन्न पंचायतों को चक्रानुक्रम में आंबटित किये जायेगें ।
संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम के द्वारा भाग-9-क जोड़कर प्रत्येक राज्य में जन संख्या के अनुसार नगर पालिका परिषद,नगर निगम ,नगर पंचायत,की स्थापना की गई है । जिसके अनुच्छेद 243-टी-2 में आरक्षित स्थानों की कुल संख्या कर अनुसुचित जातियों या जन जातियों की स्त्रियों के लिये एक तिहाई स्थान आरक्षित किये गये हैं ।
इसी प्रकार 243-टी-3 के अनुसार भरे जाने वाले स्थानो की कुल संख्या की 1/3 स्थान स्त्रियों के लिये आरक्षित रहेगंे जिसमें अनुसूचित जाति या जनजातियों की स्त्रियों के आरक्षित स्थान शामिल हैं। ऐसे स्थान किसी नगर पालिका के भिन्न भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आंबटित किये जायेगें । 243-टी-4 नगरपालिका में अध्यक्षो के पद अनुसूचित जातियों या जनजातियों की स़्ित्रयों के लिये आरक्षित रहेगें जिसे राज्य विधान मंडल विधि द्वारा निर्धारित करेगा ।
संविधान के 97 वें संशोधन के द्वारा भाग-9-ख जोड़कर सहकारी समितियाॅ स्थापित की गई है । प्रत्येक राज्य में आर्थिक भागीदारी और स्वायत्त कार्य संपादन के आधार पर सहकारी समितियों की स्थापना की गई है जो सहकारी समितियों से संबंधित विधि के आधीन रजिस्ट्ीकृत है । सहकारी समिति प्रबंधक नियंत्रण का कार्य सहकारी समिति बोर्ड को सोंपा गया है । अनुच्छेद 243-जेड.जे.-एक के अनुसार 21 निर्देशक होगें जिसमें महिलाओं के लिये दो स्थान आरक्षित रहेगें ।
भारत में एक लम्बी अवधि से लोकसभा ओर राज्य की विधानसभा में स्त्रियों के 1/3 आरक्षण को लेकर वाद विवाद चल रहा है और सर्वसम्मति से इस बिल को पास होने नहीं दिया जा रहा है जवकि संविधान के अनुच्छेद-15-3 के अनुसार स्त्रियों को 1/3 आरक्षण प्रदान किया जा सकता है ।लेकिन गांब पंचायत, जिला स्तर पर महिलाओं की जन भागीदारी स्वीकार की गई है लेकिन अब राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी स्वीकार किये जाने में अनिइच्छा व्यक्त की जा रही है । जो हमारी पुरातनी सोच का प्रतीक है । जिसे बदले जाने की आवश्यकता है ।
डाॅ0आम्बेडकर के द्वारा हिन्दू महिलाओ को पुरूषो के बराबर अधिकार दिये गये हैं। उन्हें विवाह, तलाक, दत्तक का अधिकार प्रदान किये जाने हेतु सन् 1991 हिन्दू कोडबिल पहले न्यायमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया जिसका हिन्दूवादी ताकतो मंे उसे हिन्दू विरोधी बताकर घोर विरोध किया है । डाॅ0 आम्बेडकर को आधुनिकमनु के नाम से बदनामीयत कर हिन्दू संस्कृति के ढांचे के रूप में विपरीत माना गया । जिसके कारण हिन्दू कोडबिल संसद में पारित नहीं हो सका और जिसके विरोध में 27 सितम्बर 1951 को डाॅ0 आम्बेडकर के द्वारा मंत्री मडल से स्तिफा देकर महिलाओ के उत्थान के लिए सर्वोच्च बलिदान एक ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किया है ।
हिन्दू कोडबिल ने जीवन के सभी क्षेत्रो में महिलाओ के लिए समानता नीवं रखी थी। महिलाओ को बच्चे का संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार दिया गया था। उसे भरण पोषण प्रतिकर प्रदान किया गया था। विधवा उत्तराधिकार में पैत्रिक सम्पत्ति प्राप्त कर सकती थी। बच्चे को गोद ले सकती थी । निर्वसीयत सम्पत्ति पर अपना हक जता सकती थी। लेकिन डाॅ0 आम्बेडकर के महिला सुधार और सशक्तिकरण के प्रयासो को महिला विरोधी ज्यादा दिन तक रोक नहीं पाये और बाद में हिन्दू कोड बिल 4 खण्ड में निम्नलिखित रूपो में पारित किया गया है-
1. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955,
2. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956,
3. हिन्दू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956,
4. गोद लेने और रखरखव अधिनियम 1956,
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-6 के अंतर्गत बाद में संशोधन किये गये है और महिला उसके पिता की पैत्रिक सम्पत्ति में पुरूषो के बराबर हक व अधिकार उत्तराधिकार के रूप मेंप्रदान किया गया है । जो आम्बेडकर के द्वारा महिला उत्थान के लिए जलाई गई अलख की रोश्नी का एक भाग है ।
डाॅ0 आम्बेडकर को महिला अधिकारो के चैपियन माना जाता था। उनका मानना था कि शिक्षा शिक्षित महिलाओ के बिना निरर्थक है और आंदोलन महिलाओ की ताकत के बिना अधूरा है । इसलिए उनके द्वारा महिलाओ को जन आंदोलन मे शामिल किया गया था। उनका आधारभूत सिद्धांत था कि भगवान जन्म की जाति या स्थान से आदमी या औरत को नहीं पहचानता है तो आदमी रूढिवादी और अंधविश्वासी धर्मो/ऐसा नहीं होना चाहिए नहीं कर सकते हैं बना दिया है ।
आम्बेडकर साबित कर दिया है खुद को एक प्रतिभाशाली होने के लिए ओर एक महान विचारक, दार्शनिक, क्रांतिकारी, विधिवेत्ता, खासकर विपुल लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और आलोचक के रूप में जाना जाता है और उनकी मृतयु पर्यत भारतीय दृश्य में एक बादशाह की तरह खडे रहे था। अपने विचारो को कभी नही वह एक अछूत के रूप में पैदा हुआ था, सिर्फ इसलिए कि भारतीय समाज की व्यापकता में पर्याप्त ध्यान दिया गया ।
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बाबा आम्बेडकर एक महान् समाज सुधारक एवं भारतीय नारी के उत्थारक थे। उनका मानना था कि स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट््र की उन्नति निर्मित करती है। डाॅ. आम्बेडकर के द्वारा भारतीय नारी को पुरुषो के समान अधिक से अधिक अधिकार और समानता प्रदान किए जाने का प्रयास किया गया था।
उन्होंने देश के प्रथम विधि मंत्री के रूप में हिन्दू कोट बिल प्रस्तुत किया था। महिला-पुरूष एकता की अलग जगाई थी। हिन्दू कोट बिल के संबंध में इनका था कि जिस तरह भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था में देश की आधी से ज्यादा आबादी के साथ घोर अन्याय किया है, उसी तरह उसमें महिला को भी उसके मूलभूत मान्यताओं से वंचित रखा है। इस असमानता को दूर करने के लिए उन्हांेने हिन्दू कोट बिल की संरचना की थी, जिसमें भारतीय महिलाओं में मायके और ससुराल में पुरूषों के बराबर हक प्रदान किया जाए।
देश की आजादी में महिलाआंे ने पुरूषों के बाराबर बढ़कर योगदान दिया था किन्तु खुद आजादी के साथ गुलामी की जंजीर और भेदभाव से अपने को मुक्त नहीं करा पायी थी। डाॅ. आम्बेडकर की दृष्टी में भारतीय स्त्री दलित श्रेणी मंे आती थी, ये मनोवादी समाजी नियमों के कारण अपने अधिकारों से वंचित थी।
19.07.42 को नागपुर के दलित वर्ग परिषद में डाॅ. आम्बेडकर का कहना था कि नारी जगत की जिस अनुपात में तरक्की होगी, उसी मापदण्ड से समाज की भी तरक्की होगी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाली स्त्रियों से कहा था कि:-
1. आप सफाई मंे रहना सीखे।
2. सभी अनैतिक प्रवृत्तियों से मुक्त रहे।
3. हिन्दू भावनाआंे को त्याग दें।
4. शादी विवाह की जल्दी न करें, और अधिक संताने पैदा नहीं करें।
पत्नी को चाहिए की वह पति के काम में एक मत व एक सहयोगी के रूप में अपना दायित्व निभाए लेकिन यदि पति गुलाम के रूप में बर्ताव करे तो उसका खुलकर विरोध करे उसकी बुरी आदतों का विरोध कर समानता का आग्रह करना चाहिए।
1955 में हिन्दू कोट बिल मंे तबके की स्त्रियों में अधिकारों की दृष्टि से मूलभूत आधार बनकर सामने आया था, जिसमें स्त्रियों की सम्मति से विवाह, विच्छेद, उत्तराधिकार, गोद लेने का अधिकार प्रदान किया गया था। हमारे यहां वैवाहिक संबंध परंपरागत मान्यताओं पर आधारित होते थे, उनके द्वारा पुरूषों को विवाह का अधिकार प्रदान किया गया। व्यस्क स्त्री को उसकी अनुमति से विवाह करने के अधिकार प्रदान करने की वकालत की थी।
डाॅ. आम्बेडकर के मनोवादी विचारों से भारतीय समाज का ढाॅंचा बदल गया। उनका मानना था कि भारतीय समाज में समस्त स्त्री की स्थित शिक्षा और समानता के बिना समाज का संास्कृतिक तथा आर्थिक उत्थान नहीं हो सकता। डाॅ. आम्बेडकर का यही मानना था कि स्त्री जातिगत अस्तित्व, मंथन और धर्म से ग्रसित थी प्रत्येक वर्ग की स्त्रियांे की दशा एक समान थी।
डाॅ. आम्बेडकर ने महिला-पुरूष एकता की अलग जगायी।
हिन्दू कोट बिल जिसमंे लड़कियों को गोद लिाया जा सकता था यह प्राधिकारी कट्टरपंथी पचा नहीं पा रहे थे, बहू विवाह रोकने की बात सुनते ही पुरूष प्रधान समाज में आज आग लग गई, स्त्रियों को विलासिता की वस्तु समझते थे ऐसे पुरूषों के तन-बदन में आग लग गई थी। विध्वा, पूर्नविवाह और उत्पीड़न को खत्म करने के धर्म के नाम पर घोर विरोध किया था।
हिन्दू कोट बिल में महिलाओं को वे तमाम अधिकार दिए जा रहे हैं जिन्हें उन्हें हजारों सालों से वंचित रखा गया था। यही कारण था कि हिन्दू कोट बिल का घोर विरोध हुआ और महिला उत्थान के नाम पर डाॅ. आम्बेडकर को स्तीफा देना पड़ा था। डाॅ. आम्बेडकर के द्वारा नारी सशक्तिकरण की जो चिंगारी जगाई गई थी वह अलग बनकर बाद मंे उभरकर आयी और भारत सरकार ने हिन्दू कोट बिल के उपबंधो को खण्ड-खण्ड करके संसद में पारित किया।
आज हम जो हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 हिन्दू अवयस्क्ता अधिनियम और संरक्षता अधिनियम, 1956 और हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 पास हुए। 1956 बाद मंे बनाए गए और हिन्दू विवाह, उत्तराधिकार, दत्तक, भरण-पोषण और अवयस्कता और संरक्षता तीनों क्षेत्रों में संहिताबद्ध किया। इस प्रकार हिन्दू विधि का संहिताबद्ध होना डाॅ. आम्बेडकर की देन थी।
डाॅ. आम्बेडकर स्त्रियों की शिक्षा के पक्ष में थे, उनका मानना था कि स्त्री पढ़-लिख जाए तो स्वयं पिछड़ेपन से उभर जाएंगी इसलिए उनके प्रयास में स्त्री शिक्षा की शुरूआत भारतीय समाज में हुई।
आम्बेडकर जी ने विधानसभा के सदस्य बनकर राजनीति मंे प्रवेश कर सर्वप्रथम 1928 में स्त्री मजदूरों को प्रसूति अवकाश देने संबंधी मेनेजर मेत्री बेनेफीट बिल प्रस्तुत किया था। जुलाई 1928 में कारखानों में मजदूर के रूप में काम करने वाली महिलाओं को राहत देने के लिए बिल पास करते हुए डाॅ. आम्बेडकर का कहना था कि राष्ट््र के हित मंे नारी को गर्भवती और बच्चे के जन्म के बाद भी विश्राम दिया जाए और इस बिल का सिद्धांत पूर्ण रूप से उसी पर आधारित है। महोदय मैं यह कहने को बाध्य हूं कि इसका भार प्रधान रूप से सरकार को वहन करना चाहिए। मैं इसलिए कहने को बाध्य हूं कि जनहित के कार्य प्रधान रूप से सरकार का है। मैं यह स्वीकार करने को तैयार हूं कि सेवायोजक जो किसी नारी की सेवा के लिए नियुक्त करता है इस परिस्थिति में नारी को ऐसे लाभ देने के दायित्व से पूरी तरह स्वतंत्र है क्यांेकि सेवा नियोजक विशेष उधोगों में नारी को इसलिए सेवा के लिए नियुक्त करता है कि वह देखता है कि पुरूषों को सेवा में नियुक्त करने की अपेक्षा नारी को नियुक्त करके वह अधिक लाभ पाता है। इस बिल के बंबई पे्रसीडेंसी तक सीमित रखाना अन्यायपूर्ण है इसे पूरे भारत के लिए विस्तारित करना चाहिए और भारत के अन्य प्रेसीडंेसी एवं राज्यों को भी बंबई पे्रसीडेंसी जैसे सदैव स्वतंत्र कर देना चाहिए।
तृतीय गोलमेज सम्मेलन में डाॅ. आम्बेडकर के द्वारा उच्च क्षेत्रों में मताधिकार प्रदान कराया गया था।
डाॅ. आम्बेडकर के प्रयासों से हिन्दू नारी को पुरूषांे के बाराबर सम्मान व अधिकार प्राप्त हुए। बहू विवाह को दण्डित किया गया और विवाह को संस्कृतिक किया गया, न्यायप्रकरण कराया स्वछन्द निर्णय विवाह करने के प्रावधान बनाए गए। हिन्दू पुरूष के बराबर स्त्रियों, विध्वाओं, माता को बराबर का अधिकार दिया। हिन्दू पुरूष की स्वर्गीय संपत्ती और बराबर खर्च नारी को दिया गया। इस प्रकार हिन्दू नारी के उत्थान में हिन्दू कोट बिल ने आधारशिला रखी।


























































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