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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

’संहिता’ की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण


                                                      ’संहिता’ की धारा 125

1   जागीर कौर विरूद्ध जसवंत सिंह, 1963 ए.आई.आर. (एस.सी.)-521 मंे अभिनिर्धारित किया गया है कि ’संहिता’ की धारा 125 के अंतर्गत सम्पादित की जाने वाली कार्यवाहिया व्यवहार प्रकृति की संक्षिप्त स्वरूप की होती है, जिनका उद्देष्य असहाय व्यक्तियों को तात्कालिक सहायता पहुचाने का है, ताकि उन्हें जीवन यापन के लिये सड़क पर न भटकना पड़े। ऐसे मामलों में प्रमाण भार उतना कठोर नहीं होता है, जितना कि दाण्डिक मामलों में होता है, अपितु साक्ष्य बाहुल्यता एवं अधि-संभावनाओं की प्रबलताओं के आधार पर निष्कर्ष अभिलिखित किये जाने चाहिये। 


2  .        ’संहिता’ की धारा 125 के प्रावधानों के प्रकाष में यह स्थिति भी सुस्पष्ट है कि जहा वैध विवाह प्रमाणित न होने पर महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, वहीं अधर्मज संतान ’संहिता’ की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण राषि प्राप्त करने की अधिकारी हैं। संदर्भ:- बकुल भाई व एक अन्य विरूद्ध गंगाराम व एक अन्य, एस.सी.सी.-1988 (1) पेज-537. 

3.        जहा तक पति/पिता के साधन सम्पन होने का संबंध है, न्याय दृष्टांत चंद्रप्रकाष विरूद्ध शीलारानी, ए.आई.आर. 1961 (दिल्ली)-174, जिसका संदर्भ न्याय दृष्टांत दुर्गासिंह लोधी विरूद्ध प्रेमबाई, 1990 एम.पी.एल.जे.-332 में माननीय मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा किया गया है, में यह सुस्पष्ट प्रतिपादन किया गया है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के बारे में, जो अन्यथा शारीरिक रूप से अक्षम नहीं है, यह माना जायेगा कि वह अपनी पत्नी तथा बच्चों के भरण-पोषण के लिये सक्षम है तथा ऐसे व्यक्ति पर भरण-पोषण हेतु उत्तरदायित्व अधिरोपित किया जाना विधि सम्मत है, भले ही प्रमाणित न हुआ हो कि उसकी वास्तविक आमदनी क्या है। .

4.        ’संहिता’ की धारा 125 के प्रावधानों के प्रकाष में यह स्थिति भी सुस्पष्ट है कि जहा वैध विवाह प्रमाणित न होने पर महिला को भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, वहीं अधर्मज संतान ’संहिता’ की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण राषि प्राप्त करने की अधिकारी हैं। संदर्भ:- बकुल भाई व एक अन्य विरूद्ध गंगाराम व एक अन्य, एस.सी.सी.-1988 (1) पेज-537.


5.        जहा तक पति/पिता के साधन सम्पन होने का संबंध है, न्याय दृष्टांत चंद्रप्रकाष विरूद्ध शीलारानी, ए.आई.आर. 1961 (दिल्ली)-174, जिसका संदर्भ न्याय दृष्टांत दुर्गासिंह लोधी विरूद्ध प्रेमबाई, 1990 एम.पी.एल.जे.-332 में माननीय मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा किया गया है, में यह सुस्पष्ट प्रतिपादन किया गया है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के बारे में, जो अन्यथा शारीरिक रूप से अक्षम नहीं है, यह माना जायेगा कि वह अपनी पत्नी तथा बच्चों के भरण-पोषण के लिये सक्षम है तथा ऐसे व्यक्ति पर भरण-पोषण हेतु उत्तरदायित्व अधिरोपित किया जाना विधि सम्मत है, भले ही प्रमाणित न हुआ हो कि उसकी वास्तविक आमदनी क्या है।