यह ब्लॉग खोजें

मानव अधिकार एंव आयोग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मानव अधिकार एंव आयोग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 5 अगस्त 2013

मानव अधिकार एंव आयोग


मानव अधिकार एंव आयोग


                                               मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो मानव को मानव होने का बोध कराते हैं। इसमें वे सभी अधिकार शामिल हैं जिनका संबंध व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता व प्रतिष्ठा से है।भारत के संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को मूल अधिकार दिए गए हैं । जो उसके जीवन स्वास्थ्य, रहन-सहन आदि बातों से संबंधित हैं । इन मूल अधिकारों की गारंटी माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई है ।


                                  मानव अधिकार स्त्री, पुरुष, बच्चे और वृद्ध सभी लोगों को समान रूप से प्राप्त हैं। इन अधिकारों का हनन, जाति, वर्ण, धर्म, भाषा, लिंग के आधार पर नहीं किया जा सकता। मानव अधिकार सभी के जन्मजात अधिकार हैं।




                                                     इसके अलावा मानव अधिकार में वे अधिकार भी शामिल हैं जिनका भारत के कानून में उल्लेख है। इसके साथ ही ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सर्वमान्य घोषणाओं को भी मानव अधिकार माना गया है । जिन्हें भारत के न्यायालयों में लागू किया जा सकता है। मानव अधिकार किसी विचाराधीन बन्दी या अपराधियों से संबंधित नहीं है । बल्कि आम आदमी से संबंधित है। प्रत्येक व्यक्ति को पीने का स्वच्छ पानी ें, स्वास्थ्य शिक्षा, रोजगार, आवास, प्राप्त हो, सार्वजनिक विवरण प्रणाली का सही उपयोग हो, आदि मूल-भूत बातंे इसमें शामिल हंै, परन्तु मानव अधिकारों का भी प्रचार प्रसार न होने के कारण हम इन्हें अपराधियों, अंातकवादियों, देशद्रोहियों की लाश में तलाशते हैं और वे ही सबसे ज्यादा इनका रोना रोते हैं । 


                                                       हमें इस बात पर पुर्नविचार करना चाहिए कि किस सीमा तक देश के विरूद्ध हथियार उठाने वाले देश द्रोहियों आतंकवादियो को मानव अधिकार प्राप्त होना चाहिए क्योंकि राष्ट्र् हित मानव हित से सर्वोपरि है । इनसे देश की एकता , अखण्डता सम्प्रभूता प्रभावित होती है ।
                                              मानव अधिकार की रक्षा के लिए मानव अधिकार आयोग की रचना की गई है । जिसमें व्यक्तियों के बीच मानव अधिकार लागू करने के विषय पर कार्य किया जाता है । मानव अधिकार के उल्लंघनों के प्रकरण न्यायालय के विषय हैं, किन्तु मानव अधिकार आयोग की कार्यप्रणाली न्यायालय से भिन्न है। आयोग निर्णय पारित करने वाला न्यायालय नहीं है। आयोग का अधिकार क्षेत्र वहीं तक है जहंा मानव अधिकार के उल्लंघन के मामलों में शासन के लोकसेवक सहायता करने के बजाय स्वयं ही मानव अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।


                                            मानव आधिकार आयोग द्वारा केवल उन्हीं शिकायतों पर संज्ञान लिया जाता है जिनमें लोक सेवक मानव अधिकारों के उल्लंघन पर कार्यवाही नहीं करते। यानी आरोपी की परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मदद करते हैं। ऐसी शिकायतों पर आयोग को निर्देश या सिफारिश करता है।
                                      मानव अधिकार आयोग का कार्य देश में प्रचलित शासकीय , अशासकीय कार्यालयों , दफ्तरों और आॅफिसों में यह देखना है कि लोक सेवकों के द्वारा देश के नागरिकों के मानव अधिकारों का हनन तो नहीं किया जा रहा है। संविधान के द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों की गारंटी नागरिकों से प्रदान कराना है ।


                                          मानव अधिकार आयोग का कार्य में कानून में पारित रक्षा उपायों का क्रियान्वयन कराना जेल में बंदियों की दशा सुधारने के कार्य करना उन्हें संरक्षण प्रदान करना, इस संबंध में मार्गदर्शन सिद्धांत बनाना है और उसकी सतह में उत्पन्न समस्याओं को दूर करना है । जिसके कारण देश में जेलों की नरकीय स्थिति सुधरी है , आज वे सुधार गृह हो गए हैं । मानव अधिकारों की रक्षा के लिए मानव अधिकार आयोग का गठन राष्ट्र्ीय और प्रदेश स्तर पर किया गया है ।


 
मानव अधिकार आयोग का कार्य क्षेत्र



1- प्रशासन के अधिकारी, कर्मचारी, पुलिस और अर्ध शासकीय संस्थाओं में कार्यरत व्यक्ति यदि


 कानून में दी गई शक्तियों का दुरु


पयोग कर मानव अधिकारों का हनन करते हैं तब आयोग राहत दिलाने का कार्य करता है। 

 
2- मानव अधिकारों का उल्लंघन होने पर जनता को राहत दिलाना आयोग का प्रमुख कार्य एवं 



उत्तदायित्व है और यही उसके गठन का प्रयोजन भी है।

3- आयोग का कार्य मानव अधिकारों के प्रति लोगों को जाग्रत करने का है। इसके लिए समय-समय 



पर आयोग मित्रों और प्रशासन के सहयोग से प्रदेश भर में सम्मेलन, कार्यशालायें और विशेष 


आयोजन किये जाते हैं। 

 
4- मानव अधिकारों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए समझौते के बाद जारी किये गये घोषणा 


पत्रों के प्रावधानों को कानून में शामिल करने के लिए प्रयत्न करना भी आयोग का महत्वपूर्ण कार्य


 है। 

 
5- इसके लिए आयोग द्वारा आवश्यक मार्गदर्शन व दिशा-निर्देश कार्यपालिका और विधायिका को दिये 

जाते हैं।

6- यद्यपि आयोग एक न्यायालय नहीं है तथापि आयोग अपनी अनुशंसाओं के माध्यम से मानव 


अधिकारों का संरक्षण करने के लिए विद्यमान कानूनों को अमल में लाने के संबंध में दिशा-निर्देश



 एवं सुझाव शासन को दें सकता है। 


 
7- आयोग द्वारा शासन को की गई सिफारिशें निर्धारित अवधि में पालन किये जाने की अपेक्षा


आयोग की रहती है। अनुशंसाओं की अवज्ञा या उपेक्षा अनपेक्षित है।


8- मानव अधिकार संबंधी जिन विषयों पर कोई भी कानून नहीं हैं। उन पर भी आयोग शासन को 
दिशा-निर्देश देता है। 

 
9- आयोग द्वारा चाहे अपराधी हो, पीडि़त हो, देशी या विदेशी हो, उसका उत्पीड़न और अनादर 


न होने देने के लिए कार्यवाही कर आवश्यक निर्देश दिये जाते हैं। 



 
10- आयोग द्वारा उन सभी स्थानों पर मानव संबंधी सभी मूलभूत व्यवस्थाओं को सुनिश्चित किया 

जाता है । जहां व्यक्तियों को आश्रय दिया जाता है, कार्य पर रखा जाता है अथवाा निरुद्ध किया 

जाता है।

11- आयोग अपराधों पर तभी संज्ञान लेता है जब अपराध की प्रथम सूचना दर्ज नहीं की जाती या 



दर्ज कराने के बाद भी पुलिस द्वारा कार्यवाही नहीं की जाती अथवा विवेचना और अनुसंधान में 


किन्हीं कारणों से जानबूझकर छेड़छाड़ या लापरवाही बरती जाती है। 

 
12- आयोग के कार्यक्षेत्र में नौकरी कर रहे व्यक्तियों के सेवा संबंधी विवादों में सीधा हस्तक्षेप करना नहीं है। सेवा संबंधी विवादों के संबंध में कर्मचारियों को पहले सक्षम प्राधिकारियों से ही सहायता प्राप्त करना चाहिये।

13- आयोग का कार्य पुलिस थानों, अस्पताल, जेल और स्कूलों का आकस्मिक निरीक्षण।


14- आयोग का कार्य विप्लव तथा आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्रों में मानव अधिकारों का संरक्षण।


15- आयोग का कार्य बलात्कार, उत्पीड़न से प्रभावितों और अभिरक्षा तथा जेल में मृत्यु होने पर 

  मदद दिलाने का कार्य। 


 
16- आयोग का कार्य शिक्षण संस्थाओं में रैगिंग रोकने का प्रयास।


17- आयोग का कार्य स्कूलों में शुद्ध पेयजल, साफ-सुथरे प्रसाधनगृहों और बस्ते का बोझ कम करने का प्रयास।


18- आयोग का कार्य मानव अधिकारों के संरक्षण के लिये कार्यरत गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहन को शोध अध्ययन के अवसर उपलब्ध कराना।

आयोग की कार्य प्रणाली

1- आयोग का स्वयं का अन्वेषण दल है, जिसका प्रमुख पुलिस महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी होता है।

2- आयोग किसी विशिष्ट मामले में अन्वेषण कार्य के लिए उपयुक्त संख्या में अन्वेषक या पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकता है। 

 
3- आयोग व्यापक लोक हित के मामलों में अनुशंसा करने के पूर्व विशेषज्ञों की समिति गठित कर सुझाव भी ले सकता है।

4- आयोग में व्यक्ति स्वयं उपस्थित होकर या अपने प्रतिनिधि अथवा डाक या फैक्स के माध्यम से आयोग को सीधे शिकायत पत्र प्रस्तुत कर सकता है। इसके लिए किसी वकील की आवश्यकता नहीं है।
5- शिकायत भेजने के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है, शिकायत साधारण कागज पर लिखकर भेजी जा सकती है।

6- शिकायत भेजने के लिए आयोग द्वारा हाल ही में ई-मेल के माध्यम से भी नई सुविधा शुरू की गयी है। इसके लिए मध्यप्रदेश शासन के पोर्टल एम. पी. आॅनलाइन के किसी भी सेंटर से शिकायत भेजी जा सकती है।
7- समाचार पत्रों में प्रकाशित व्यापक जनहित अथवा व्यक्तिगत मामलों में मानव अधिकार के हनन की खबरों पर भी संज्ञान लेकर आयोग द्वारा कार्यवाही की जाती है।
8- आयोग द्वारा घटनाएं घटित होने के एक साल बाद की जाने वाली शिकायतो पर कार्यवाही नहीं की जाती ।
9- आयोग द्वारा किसी अन्य न्यायालय या आयोग के समक्ष विचाराधीन प्रकरण पर कार्यवाही नहीं की जाती ।

10- आयोग द्वारा समझ में न आने वाली शिकायतों पर कार्यवाही नहीं की जाती।


11- आयोग द्वारा ऐसी शिकायतें जो आयोग के विचार क्षेत्र से बाहर हैं और वे जिनमें ओछापन दिखता हो पर कार्यवाही नहीं की जाती है ।


                                                         हमारे देश में शिक्षा की कमी के कारण अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं है जिसके कारण समाज में अपराध बढ़ते हैं । इसलिए यदि हम अधिकारों के प्रति सचेत रहे तो प्रत्येक बुराई का तत्परता से विरोध कर उसका दमन कर सकते हैं और इस कार्य एंव में मानव अधिकार आयोग आपकी सहायता करने पूरी तरह कटिबद्ध है । प्रत्येक जिले में माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश महोदय को मानव अधिकार के हनन के संबंध में सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्रदाय किया है जहाॅ पर परिवाद प्रस्तुत कर सहायता प्राप्त की जा सकती है ।
उमेश कुमार गुप्ता