‘ महिला भ्रूण हत्या ’’
‘‘गर्भपात’’ से आशय है स्त्री के गर्भ में स्थित भ्रूण, जो 20 सप्ताह से कम अवधि तक का (पर्याप्त रूप से विकसित) है, को चिकित्सीय आधार के बिना विनष्ट किया जाना । माॅं की किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी के कारण अथवा गर्भस्थ शिशु की किसी बीमारी, अनुवांशिक असामान्यता आदि संभाव्य होने पर चिकित्सीय परामर्श से गर्भपात कराया जाना अनुमत किया गया है, किंतु लिंग चयन आदि के संबंध में अवैध रूप से कराया गया गर्भपात विधि की दृष्टि में दण्डनीय अपराध है ।
महिला भ्रूण हत्या के संदर्भ में देखे जाने पर भारत में आरंभ से प्रमुखतः पितृ सत्तात्मक व्यवस्था रही है, जिसमें पुरूष को वंश वृद्धि का कारक मानकर वरीयता दिये जाने से महिलाओं की स्थिति दयनीय रही है । कालांतर में इस सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप दिन-प्रतिदिन विकृत होने से कन्या शिशु का जन्म अभिशाप माना जाने लगा, जिसके परिणामस्वरूप कन्या शिशु के जन्म होते ही उसे मार दिया जाता था । वर्तमान में तकनीकों के विकास के पश्चात् से गर्भावस्था के आरंभ में ही भ्रूण परीक्षण कर बड़ी संख्या में कन्या भू्रण को गर्भपात की विभिन्न तकनीकों से समाप्त किया जाने लगा, जिससे कन्या जन्म दर में भारी कमी होने से लिंगानुपात में पुरूष की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अत्यधिक कम होती गई ।
सन्- 1971 में ‘‘गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम’’ विनियमित किया गया । इसके अंतर्गत केवल पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों को निर्धारित शर्तोंं पर उल्लिखित परिस्थितियों में गर्भ समापन किया जाना अनुमत किया गया है । विशिष्ट परिस्थितियों में यदि गर्भवती महिला के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में गंभीर क्षति होना संभावित हो अथवा गर्भस्थ शिशु के पैदा होने पर उसका गंभीर शारीरिक एवं मानसिक असामान्यता या विकलांगता से पीडि़त होना संभाव्य हो, तब गर्भवती स्त्री अथवा उसके संरक्षक अथवा पति की अनुमति से शासकीय चिकित्सालय अथवा इस प्रयोजन हेतु शासन द्वारा अनुमोदित चिकित्सालय में गर्भ का समापन कराया जा सकता है । इस हेतु 12 सप्ताह तक के गर्भ के लिये एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी एवं 12 से 20 सप्ताह की अवधि के गर्भ के लिये दो पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों की इस हेतु राय आवश्यक है । यदि अधिनियम के उल्लंघन में रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा गर्भ समापन किया गया हो अथवा अनुमत स्थान से भिन्न स्थान में गर्भ समापन किया गया हो तो उसे दो वर्ष से सात वर्ष तक के कठोर कारावास से दंडित किया जा सकता है । इस अधिनियम के अंतर्गत बनाये गये विनियमों का जानबूझकर उल्लंघन किये जाने पर एक हजार रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है, किंतु रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा सद्भावपूर्ण की गई किसी कार्यवाही के विरूद्ध कोई विधिक कार्यवाही, किसी हानि के लिये नहीं की जावेगी ।
प्रसूती पूर्व अथवा पश्चात् लिंग चयन के लिये तथा अनुवांशिक विकारों, उपापचयी विकारों, गुणसूत्री विकारों, जन्मजात विकारों या यौन संबंधी विकारों का पता लगाने के लिये प्रसूती पूर्व परीक्षण तकनीक विनियमित करने और इनका दुरूपयोग कर लिंग पता करके कन्या भ्रूण की हत्या रोकने के लिये एवं उससे संबंधित अन्य मामलों के लिये गर्भ धारण के पूर्व, प्रसूती पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 च्छक्ज् ।बज अधिनियमित किया गया है ।
इस अधिनियम के अनुसार विभिन्न तकनीकों के द्वारा प्रसूती पूर्व गर्भ परीक्षण गुण सूत्र में अनियमितता, अनुवांशिक असामान्यता , शारीरिक-मानसिक विकलांगता अथवा सेक्स संबंधी बीमारी होने पर पंजीकृत चिकित्सा संस्था में पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी को अनुमति प्रदान की गई है, जिसमें उस महिला अथवा उसके पति की परीक्षण हेतु अनुमति लिया जाना आवश्यक है । गर्भ धारण के पूर्व अथवा पश्चात् लिंग चयन के लिये उपयोग में लाई जाने वाली तकनीकों के विज्ञापन को तथा अल्ट्रासाउण्ड मशीन को अपंजीकृत व्यक्तियों को विक्रय किये जाने पर भी प्रतिबंध लगाये गये हैं ।
इस अधिनियम के अंतर्गत अनुवांशिक परामर्श केन्द्र, प्रयोगशाला एवं क्लीनिक विहित रूप से पंजीकृत कराये जाने अनिवार्य हैं, जिसका पंजीयन प्रमाण पत्र प्रदाय किया जाता है ।
किसी व्यक्ति, संगठन अथवा अनुवांशिक प्रयोगशाला, क्लीनिक आदि द्वारा अल्ट्रासाउण्ड मशीन अथवा अन्य तकनीक से प्रसूती पूर्व लिंग निर्धारण अथवा गर्भ धारण पूर्व लिंग चयन संबंधी किसी भी प्रकार का विज्ञापन किये जाने पर तीन वर्ष तक के कारावास एवं दस हजार रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है ।
अधिनियम की धारा-23 के अंतर्गत अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर तथा लिंग ज्ञात करने के संबंध में अपराध करने पर तीन वर्ष तक के कारावास एवं दस हजार रूपये के अर्थदण्ड से एवं पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि में पाॅंच वर्ष तक के कारावास एवं पचास हजार रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया जा सकता है तथा ऐसे पंजीकृत चिकित्सा व्यावसायी की दोषसिद्धि पर पाॅंच वर्ष तक पंजीकरण का निलम्बन तथा पुनरावृत्ति पर स्थाई रूप से पंजीकरण का निलम्बन किया जावेगा । किसी व्यक्ति द्वारा गर्भास्थ शिशु के अनुवांशिक विकारों के अतिरिक्त यदि किसी गर्भवर्ती महिला के लिंग चयन, प्रसूती पूर्व परीक्षण तकनीक के प्रयोग में सहायता प्रदान की जाती है तो प्रथम अपराध में तीन वर्ष तक एवं द्वितीय अपराध में पाॅंच वर्ष तक के कारावास तथा पचास हजार रूपये से एक लाख रूपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है ।
अन्य दांडिक प्रावधान धारा-24 लगायत धारा-26 के अंतर्गत हैं तथा इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध संज्ञेय, अजमानतीय, अशमनीय एवं प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होंगे, जिनका परिवाद प्रस्तुत करने पर संज्ञान लिया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि दांडिक प्रावधान उस महिला पर लागू नहीं होंगे, जिसे ऐसी परीक्षण तकनीक या चयन के लिये मजबूर किया गया हो । साथ ही सद्भावपूर्वक किये गये कार्य के विरूद्ध भी कोई कार्यवाही नहीं की जावेगी ।
इस प्रकार गर्भपात के संबंध में विशेषकर महिला भू्रण हत्या के संदर्भ में उपरोक्त विधि अधिनियमित है ।
‘‘गर्भपात’’ से आशय है स्त्री के गर्भ में स्थित भ्रूण, जो 20 सप्ताह से कम अवधि तक का (पर्याप्त रूप से विकसित) है, को चिकित्सीय आधार के बिना विनष्ट किया जाना । माॅं की किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी के कारण अथवा गर्भस्थ शिशु की किसी बीमारी, अनुवांशिक असामान्यता आदि संभाव्य होने पर चिकित्सीय परामर्श से गर्भपात कराया जाना अनुमत किया गया है, किंतु लिंग चयन आदि के संबंध में अवैध रूप से कराया गया गर्भपात विधि की दृष्टि में दण्डनीय अपराध है ।
महिला भ्रूण हत्या के संदर्भ में देखे जाने पर भारत में आरंभ से प्रमुखतः पितृ सत्तात्मक व्यवस्था रही है, जिसमें पुरूष को वंश वृद्धि का कारक मानकर वरीयता दिये जाने से महिलाओं की स्थिति दयनीय रही है । कालांतर में इस सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप दिन-प्रतिदिन विकृत होने से कन्या शिशु का जन्म अभिशाप माना जाने लगा, जिसके परिणामस्वरूप कन्या शिशु के जन्म होते ही उसे मार दिया जाता था । वर्तमान में तकनीकों के विकास के पश्चात् से गर्भावस्था के आरंभ में ही भ्रूण परीक्षण कर बड़ी संख्या में कन्या भू्रण को गर्भपात की विभिन्न तकनीकों से समाप्त किया जाने लगा, जिससे कन्या जन्म दर में भारी कमी होने से लिंगानुपात में पुरूष की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अत्यधिक कम होती गई ।
सन्- 1971 में ‘‘गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम’’ विनियमित किया गया । इसके अंतर्गत केवल पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों को निर्धारित शर्तोंं पर उल्लिखित परिस्थितियों में गर्भ समापन किया जाना अनुमत किया गया है । विशिष्ट परिस्थितियों में यदि गर्भवती महिला के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में गंभीर क्षति होना संभावित हो अथवा गर्भस्थ शिशु के पैदा होने पर उसका गंभीर शारीरिक एवं मानसिक असामान्यता या विकलांगता से पीडि़त होना संभाव्य हो, तब गर्भवती स्त्री अथवा उसके संरक्षक अथवा पति की अनुमति से शासकीय चिकित्सालय अथवा इस प्रयोजन हेतु शासन द्वारा अनुमोदित चिकित्सालय में गर्भ का समापन कराया जा सकता है । इस हेतु 12 सप्ताह तक के गर्भ के लिये एक पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी एवं 12 से 20 सप्ताह की अवधि के गर्भ के लिये दो पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों की इस हेतु राय आवश्यक है । यदि अधिनियम के उल्लंघन में रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा गर्भ समापन किया गया हो अथवा अनुमत स्थान से भिन्न स्थान में गर्भ समापन किया गया हो तो उसे दो वर्ष से सात वर्ष तक के कठोर कारावास से दंडित किया जा सकता है । इस अधिनियम के अंतर्गत बनाये गये विनियमों का जानबूझकर उल्लंघन किये जाने पर एक हजार रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है, किंतु रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा सद्भावपूर्ण की गई किसी कार्यवाही के विरूद्ध कोई विधिक कार्यवाही, किसी हानि के लिये नहीं की जावेगी ।
प्रसूती पूर्व अथवा पश्चात् लिंग चयन के लिये तथा अनुवांशिक विकारों, उपापचयी विकारों, गुणसूत्री विकारों, जन्मजात विकारों या यौन संबंधी विकारों का पता लगाने के लिये प्रसूती पूर्व परीक्षण तकनीक विनियमित करने और इनका दुरूपयोग कर लिंग पता करके कन्या भ्रूण की हत्या रोकने के लिये एवं उससे संबंधित अन्य मामलों के लिये गर्भ धारण के पूर्व, प्रसूती पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 च्छक्ज् ।बज अधिनियमित किया गया है ।
इस अधिनियम के अनुसार विभिन्न तकनीकों के द्वारा प्रसूती पूर्व गर्भ परीक्षण गुण सूत्र में अनियमितता, अनुवांशिक असामान्यता , शारीरिक-मानसिक विकलांगता अथवा सेक्स संबंधी बीमारी होने पर पंजीकृत चिकित्सा संस्था में पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी को अनुमति प्रदान की गई है, जिसमें उस महिला अथवा उसके पति की परीक्षण हेतु अनुमति लिया जाना आवश्यक है । गर्भ धारण के पूर्व अथवा पश्चात् लिंग चयन के लिये उपयोग में लाई जाने वाली तकनीकों के विज्ञापन को तथा अल्ट्रासाउण्ड मशीन को अपंजीकृत व्यक्तियों को विक्रय किये जाने पर भी प्रतिबंध लगाये गये हैं ।
इस अधिनियम के अंतर्गत अनुवांशिक परामर्श केन्द्र, प्रयोगशाला एवं क्लीनिक विहित रूप से पंजीकृत कराये जाने अनिवार्य हैं, जिसका पंजीयन प्रमाण पत्र प्रदाय किया जाता है ।
किसी व्यक्ति, संगठन अथवा अनुवांशिक प्रयोगशाला, क्लीनिक आदि द्वारा अल्ट्रासाउण्ड मशीन अथवा अन्य तकनीक से प्रसूती पूर्व लिंग निर्धारण अथवा गर्भ धारण पूर्व लिंग चयन संबंधी किसी भी प्रकार का विज्ञापन किये जाने पर तीन वर्ष तक के कारावास एवं दस हजार रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है ।
अधिनियम की धारा-23 के अंतर्गत अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर तथा लिंग ज्ञात करने के संबंध में अपराध करने पर तीन वर्ष तक के कारावास एवं दस हजार रूपये के अर्थदण्ड से एवं पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि में पाॅंच वर्ष तक के कारावास एवं पचास हजार रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया जा सकता है तथा ऐसे पंजीकृत चिकित्सा व्यावसायी की दोषसिद्धि पर पाॅंच वर्ष तक पंजीकरण का निलम्बन तथा पुनरावृत्ति पर स्थाई रूप से पंजीकरण का निलम्बन किया जावेगा । किसी व्यक्ति द्वारा गर्भास्थ शिशु के अनुवांशिक विकारों के अतिरिक्त यदि किसी गर्भवर्ती महिला के लिंग चयन, प्रसूती पूर्व परीक्षण तकनीक के प्रयोग में सहायता प्रदान की जाती है तो प्रथम अपराध में तीन वर्ष तक एवं द्वितीय अपराध में पाॅंच वर्ष तक के कारावास तथा पचास हजार रूपये से एक लाख रूपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है ।
अन्य दांडिक प्रावधान धारा-24 लगायत धारा-26 के अंतर्गत हैं तथा इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध संज्ञेय, अजमानतीय, अशमनीय एवं प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय होंगे, जिनका परिवाद प्रस्तुत करने पर संज्ञान लिया जा सकता है । उल्लेखनीय है कि दांडिक प्रावधान उस महिला पर लागू नहीं होंगे, जिसे ऐसी परीक्षण तकनीक या चयन के लिये मजबूर किया गया हो । साथ ही सद्भावपूर्वक किये गये कार्य के विरूद्ध भी कोई कार्यवाही नहीं की जावेगी ।
इस प्रकार गर्भपात के संबंध में विशेषकर महिला भू्रण हत्या के संदर्भ में उपरोक्त विधि अधिनियमित है ।
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