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सोमवार, 5 अगस्त 2013

किशोर न्याय









बच्चों से संबंधित विशेष विधि एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश-
किशोर न्याय
विधि के साथ संघर्षरत किशोरो को शीघ्र न्याया प्रदान करने हेतु किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण) अधिनियम 2000 की रचना की गई है । जिसमें 18 साल से कम आयु के वे बच्चे जिन्होने कानून का उल्लंघन किया हो । उनका किशोर न्याय बोर्ड के द्वारा निराकरण किया जाता है । ऐसे किशोर को गिरफतारी के 24 घंटे के अंदर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाता है । बोर्ड को मामले की जांच अधिकतम चार माह मे पूर करनी चाहिए । बोर्ड 14 वर्ष की आयु से बडे कामकाजी बच्चे को जुर्माना लगाने का आदेश देता है । विवाहित किशोर को अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए विशेष गृह/सुधार गृह भेजने का आदेश दिया जाता है । कानून विवादित किशोर को सामूहिक गतिविधियों तथा सामुदायिक सेवा कार्यो में भाग लेने का आदेश दिया जाता है । बोर्ड को मुफ्त कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराना राज्य विधिक सेवाए प्राधिकरण और जिला बाल संरक्षण इकाई के कानूनी अधिकारी की जिम्मेदारी है ।

अधिनियम में बाल कल्याण हेतु बालगृह बनाने की व्यवस्था है । इसके अंतर्गत बच्चो को अस्थाई रूप से रखने के लिए निरीक्षण गृह, विशेष गृह आफटर केयर गृह की स्थापना की जायेगी जिसमें किशोरो को ईमानदारी, मेहनत और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाएगा । अनाथ शोषित, उपेक्षित, परित्यक्त बच्चो के पुनर्वास की व्यवस्था की गई है । ऐसे बाल गृहोे में बच्चो के स्वास्थ, शिक्षा, पोषण, सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाएगा । इसके लिए बाल कल्याण समिति चाइल्ड हेल्प लाइन 1098 की स्थापना की गई है ।

लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012
हमारे देश में छोटे बच्चो का यौन शोषण आम बात है । विशेषकर बच्चे के परिचित, रिश्तेदार, जानपहचान वाले, आस-पास रहने वाले पडौसी, शिक्षक आदि बच्चो पर प्रभाव डालकर यौन शोषण करते हैं। इन लोगो में ऐसे व्यक्तियों की संख्या ज्यादा जो अपना प्रभाव इन बच्चो पर रखते हैं और इस प्रभाव के अनुसरण में बच्चो के साथ अपनी यौन इच्छा, यौन पिपासा को शंात करते हैं ।
यौन शोषण के अंतर्गत न सिर्फ इनके साथ अप्राकृतिक मैथुन बलात्कार किया जाता है बल्कि इन्हें अश्लील फिल्में देखने बाध्य किया जाता है । इनके साथ अश्लील व्यवहार कर उसका फिल्मान्कन किया जाता है । यौन शोषण से बच्चो में निराशा, पीडा, आत्म सम्मान में कमी, की वृद्धि होती है । जिससे बच्चे के मानसिक स्तर पर कूप्रभाव पडता है और वह अपराध की ओर अग्रसर होते है या इसका बुरी तरह से शिकार होते हैं ।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 की रचना की गई है । जिसमें बालक से आशय ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम अभिप्रेत है। इस अधिनियम में इन अपराधो को यौन उत्पीडन, यौन शोषण, के रूप में परिभाषित कर दण्डित किया गया है ।
इसके साथ ही साथ दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 दिनांक 3.2.13 से प्रभावशील किया गया है जिसमें यौन शोषण,और यौन उत्पीडन को बलात्कार की परिभाषा में शामिल कर कठोर दण्ड से दण्डित किया गया है । बार-बार अपराध करने वालो को मृत्यु दण्ड और उनके जीवन के रहते आजीवन कारावास से दंडित किया गया है।
बाल विवाह
हमारे देश में बच्चो की कम उम्र में शादी की परम्परा है । जिसके कारण बच्चें कम उम्र में मां बाप बन जाते हैं । गर्भवती महिलाओ को मृत्यु और गर्भपात में वृद्धि होती है । शिशु मृत्यु दर बढती है । बच्चो को बाल मजदूरी अवैध व्यापार या वैश्या वृत्ति में लगा दिया जाता है भारत में बाल विवाह को दण्डित किया गया है जिसके संबंध में बाल विवाह निषेध अधियिम 2006 की रचना की गई है ।

अधिनियम के अनुसार एक ऐसी लडकी का विवाह जो 18 साल से कम की है या ऐेसे लडके का विवाह जो 21 साल से कम का है । बाल विवाह कहलाता है ।जिसके लिए 18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र का बालक जो विवाह करता है । उसे और उसके मिाता पिता संरक्षक अथवा वे व्यक्ति जिनके देखरेख बाल विवाह सम्पन्न होता है । बाल विवाह में शामिल होने वाले व्यक्तियों को भी दण्डित किया जाता है । े

बाल विवाह के आरोपियों को दण्डित किया गया है । उन्हें दो साल तक का कठोर कारावास या एक लाख रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनो से दण्डित किया जा सकता है । इसके अलावा बाल विवाह कराने वाले माता पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है । किन्तु बाल विवाह कानून के अंतर्गत किसी महिला को न ही माता पालक अथवा बालक या बालिका जिसका विवाह हुआ है उसे कारावास की सजा नहीं दी जाएगी।

बाल विवाह की शिकायत कोई भी व्यक्ति निकटतम थाने में कर सकता है । इसके लिए सरकार के द्वारा प्रत्येक जिले में जिला कलेक्टर बाल विवाह निषेध अधिकारी की शक्तियां दी गई है । जिसका काम उचित कार्यवाही से बाल विवाह रोकना है । उनकी अभिरक्षा भरण पोषण की जिम्मेदारी उसकी है । उसका काम समुदाय के लोगो में जागरूकता पैदा करना है । वह बाल विवाह से संबंधित मामलो में जिला न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करवायेगा ।

बाल विवाह को विवाह बंधन में आने के बाद किसी भी बालक या बालिका की आनिच्छा होने पर उसे न्यायालय द्वारा वयस्क होने के दो साल के अंदर अवैध घोषित करवाया जा सकता है । जिला न्यायालय भरण पोषण दोनो पक्षों को विवाह में दिए गए गहने कीमती वस्तुएंे और धन लौटाने के आदेश पुनर्विवाह होने तक उसके निवास का आदेश कर सकेगा।

माननीय उच्चतम न्यायालय बच्चों के शोषण से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक और व्यवस्थित योजना बनाये जाने हेतु दिशा निर्देश जारी किये गये।
अपर्याप्त बजट आवंटन पर चिंता व्यक्त की गई है। आॅकड़ो के अनुसार भारत में दुनियाॅ की 19 प्रतिशत बच्चों की आबादी 1/3 से नीचे लगभग 44 लाख बच्चे की आबादी 18 वर्ष से कम है। इसके बाद भी वर्ष 2005-06 में कुल बजट का 3.86 प्रतिशत और 2006-07 में 4.91 प्रतिशत खर्च किया गया। जब कि देश के बच्चे देश का भविष्य हैं वे क्षमता विकास के अग्रदूत हैं। उनमें गतिशीलता नवाचार, रचनात्मकता परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है। हम स्वस्थ्य और शिक्षित बच्चों की आबादी का विकास करे ताकि आगे चलकर वे अच्छे नागरिकों के रूप में देश की सेवा कर सके। इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुये बाल कल्याण के लिये बजट बढ़ाने का कहा गया है।
यौन शोषण
हमारे देश में छोटे बच्चो का यौन शोषण आम बात है । विशेषकर बच्चे के परिचित, रिश्तेदार, जानपहचान वाले, आस-पास रहने वाले पडौसी, शिक्षक आदि बच्चो पर प्रभाव डालकर यौन शोषण करते हैं। इन लोगो में ऐसे व्यक्तियों की संख्या ज्यादा जो अपना प्रभाव इन बच्चो पर रखते हैं और इस प्रभाव के अनुसरण में बच्चो के साथ अपनी यौन इच्छा, यौन पिपासा को शंात करते हैं ।
यौन शोषण के अंतर्गत न सिर्फ इनके साथ अप्राकृतिक मैथुन बलात्कार किया जाता है बल्कि इन्हें अश्लील फिल्में देखने बाध्य किया जाता है । इनके साथ अश्लील व्यवहार कर उसका फिल्मान्कन किया जाता है । यौन शोषण से बच्चो में निराशा, पीडा, आत्म सम्मान में कमी, की वृद्धि होती है । जिससे बच्चे के मानसिक स्तर पर कूप्रभाव पडता है और वह अपराध की ओर अग्रसर होते है या इसका बुरी तरह से शिकार होते हैं ।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 की रचना की गई है । जिसमें बालक से आशय ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम अभिप्रेत है। इस अधिनियम में इन अपराधो को यौन उत्पीडन, यौन शोषण, के रूप में परिभाषित कर दण्डित किया गया है ।
इसके साथ ही साथ दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 दिनांक 3.2.13 से प्रभावशील किया गया है जिसमें यौन शोषण,और यौन उत्पीडन को बलात्कार की परिभाषा में शामिल कर कठोर दण्ड से दण्डित किया गया है । बार-बार अपराध करने वालो को मृत्यु दण्ड और उनके जीवन के रहते आजीवन कारावास से दंडित किया गया है।




































































































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