दण्ड विधि (संशोधन)अधिनियम 2013
दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 जो दिनांक 3.2.13 से प्रभावशील हुआ था । उसकी जगह अब दण्ड विधि संशोधन 2013 संसद द्वारा पास कर दिया गया है और जिसमें धारा 376-ई संशोधन द्वारा जोड़ी गई है जिसके अनुसार बार बार अपराध करने वालो को दंडित किया जावेगा ।
धारा 376 के अनुसार जो भी व्यकित धारा 376-1 के अनुसार जो कोई व्यकित धारा 376-2 में दिये गये मामलो के अलावा योन हमला कारित करता है तो उसे सश्रम कारावास से दंडित किया जावेगा जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी ,परन्तु जिसे कि उम्र केद तक बढ़ाया जा सकेगा ओर वह जुर्माना करने योग्य भी है ।
दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 में धारा 376-ई में योन हमला की जगह बलात्कार शब्द जोड़ा गया है ।
धारा-376-क में पीडिता की मृत्यु कारित करने पर अथवा पीडित को लगातार निष्क्रीय दंश तक पहुंचा देने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है ।
धारा 376-क में सामूहिक बलात्कार का प्रावधान किया है जिसमें पीडिता को मुआवजा भुगतान कराये जाने जो कि उस पीडिता के चिकित्सीय खर्च एंव पुर्नवास के खर्च वहन करने हेतु युक्तियुक्त होगा । इस प्रकार धारा 376-ई में पूर्व दोषसिद्व व्यक्ति को दंडित किये जाने का प्रावधान किया गया है
।
धारा-376-ई जिसे आगे संहिता से संबोधित किया जा रहा है, अभियुक्त को धारा 376-क, 376-ख के अंतर्गत सिद्वदोष ठहराया जा चुका होने ,उसके बाद यदि आरोपी पूर्व में उक्त धाराओं में दंडित हुआ है तो उसको पूर्व में दंडित किये जाने उसके आधार पर दोषसिद्ध की इस संबंध में दं0 प्र0सं0 की धारा एंव मध्य प्रदेश दंड रूल्स एंव आर्डर के नियमो को ध्यान में रखते हुये आरोप लगाया जावेगा ।
देश में बालको के प्रति बढते यौन शोषण या लैंगिक शोषण के अपराधों जैसे बाल बलात्कार, अपहरण, नाबालिग लडकियों की दलाली वैश्यावृत्ति के लिए लडकियों को उकसाना, बेचना, आत्महत्या के लिए उकसाना कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार कर हत्या करने, जैसे गम्भीर अपराधो की संख्या में वृद्धि को देखते हुए समाज में आंदोलन हुए और उन आंदोलनो के असर के कारण सरकार को दण्ड विधि में संशोधन करना पडा है ।
इसके लिए भारत सरकार के द्वारा 3 फरवरी 2013 को संसद के द्वारा दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 पारित किया है जिसे बाद में दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 के रूप में मान्यता प्रदान की गई है । अध्यादेश में यौन हमले को दण्डित किया गया था जिसे अधिनियम में परिवर्तित कर बलात्कार कर दिया गया है । लेकिन बलात्कार की परिभाषा यौन हमले को धारा’- 375क, ख,ग,घ के रूप में शामिल किया गया है ।
इस दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 जिसे आगे अध्यादेश से संबोधित किया गया है । उसमें धारा 376-ई जोडी गई है । जिसमें बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध बार बार करने के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है ।
अध्यादेश की धारा-376ई के अनुसार- जो भी व्यक्ति धारा 376 या 376-ए या धारा 376-सी अथवा धारा376-डी के अंतर्गत दंडनीय अपराध के लिये पूर्व में दोषसिद्धि हुआ है एंव क्रमबार रूप से उक्त अपराधों में से किसी भी धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध के लिये दोषित सिद्ध हुआ हे तो उसे उम्र केद की सजा से दंडित किया जावेगा, इसका मतलब उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की अवधि से होगा अथवा उसे मृत्यु से दंडित किया जावेगा ।
1- इस प्रकार बलात्कार अंतर्गत धारा-376
2- मृत्यु कारित करने पर अथवा पीडित को लगातार निष्क्रिय दंश तक पहंुचा देने पर दण्ड अंतर्गत धारा-376ए
3- किसी पद पर रहते हुए किसी व्यक्ति के साथ संभोग की दशा में दण्ड, अंतर्गत धारा-376सी
4- दल या टोली द्वारा यौन हमला की दशा में दण्ड, अंतर्गत धारा-376डी
के अंतर्गतं एक बार दण्डित हो जाने के बाद यदि पुनः वहीं अपराध में आरेापी दोषी ठहराया जाता है तो उसे धारा-376ई के अंतर्गत मृत्यु दण्ड अथवा ऐसी उम्र कैद की सजा से दण्डित किया जावेगा इसका मतलब उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की अवधि से होगा अतः ऐसे व्यक्ति को पूरी उम्र जेल में रहना होगा ।
धारा376 ई में आरोप की विरचना एंव प्रारूप
धारा-376ई पूर्व दोष सिद्धि का आरोप दं0प्र0सं0 की धारा 211-7 के अनुसार लगाया जायेगा । जिसके अनुसार यदि अभियुक्त किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किये जाने पर किसी पश्चातवर्ती अपराध के लिए ऐसी पूर्व दोषसिद्धि के कारण वर्धित दण्ड का या भिन्न प्रकार के दण्ड का भागी है और यह आशयित है कि ऐसी पूर्व दोषसिद्धि उस दण्ड को प्रभावित करने के प्रयोजन के लिए साबित की जाये जिसे न्यायालय पश्चातवर्ती अपराध के लिए देना ठीक समझे तो पूर्व दोष सिद्धि का तथ्य तारीख और स्थान आरोप में कथित होंगे और यदि ऐसा कथन रह गया है तो न्यायालय दण्डादेश देने के पूर्व किसी समय भी उसे जोड सकेगा ।
इस प्रकार न्यायालय द्वारा पूर्व दोष सिद्धि का आरोप लगाये जाते समय उसके तथ्य तारीख स्थान का आरोप में वर्णन करेगा। जिसका प्रारूप निम्नलिखित रहेगा
पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात बलात्कार के आरोप
मैं---------------------सत्र न्यायाधीश आप-------- अभियुक्त व्यक्ति का नाम पर निम्नलिखित आरोप लगाता हूं ।
यह कि आपने दिनांक--------को या उसके लगभग----------- में प्रार्थीया के साथ बलात्कार का अपराध किया है । जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा- 376/376ए /376सी/376डी के अधीन दण्डनीय है और सैशन न्यायालय के संज्ञान के अंतर्गत है और आप ------------- पर यह भी आरोप है कि आप उक्त अपराध करने के पूर्व अर्थात तारीख ------------ को-------के-------न्यायालय द्वारा भा0द0सं0 के धारा- 376/ 376ए / 376सी/376डी के अंतर्गत ------------- कठोर कारावास एंव --------अर्थ दण्ड से दोष सिद्ध किये गये थे जो दोषसिद्धि अब तक पूर्णतया प्रवृत्त और प्रभावशाली है और आप भा.द.सं. की धारा-376ई के अधीन परिवर्धित दण्ड से दण्डनीय है । और मैं इसके द्वारा निेर्देश देता हूं कि आपका विचारण धारा-376 ई भा.द.सं. में किया जाये इत्यादि ।
पूर्व दोष सिद्धि प्रमाणित करना-
दं0प्र0सं0 की धारा-298 के अनुसार पूर्व दोषसिद्धि के तथ्य को साबित किया जायेगा। धारा-298 के अनुसार पूर्व दोष सिद्धि के तथ्य को इस संहिता के अधीन किसी जांच विचारण या अन्य कार्यवाही में किसी अन्य ऐसे ढंग के अतिरिक्त जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा उपबंधित है-
क- ऐसे उद्धरण द्वारा जिसका उस न्यायालय के जिसमें ऐसी दोषसिद्धि हुई अभिलेखों को अभिरक्षा में रखने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित उस दण्डादेश या आदेश की प्रतिलिपि होना है अथवा
ख- दोषसिद्धि की दशा में या तो ऐसे प्रमाण पत्र द्वारा जो उस जेल के भारसाधक अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित है जिसमें दण्ड या उसका कोई भाग भोगा गया या सुपुर्दगी के उस वारंट को पेश करके, जिसके अधीन दण्ड भोगा गया था,
और इन दशाओ में से प्रत्येक में इस बात के साक्ष्य के साथ कि अभियुक्त व्यक्ति वहीं व्यक्ति है जो ऐसे दोष सिद्ध किया गया, साबित किया जा सकेगा ।
इस प्रकार पूर्व दोषसिद्धि के तथ्य को----
1- निर्णय की प्रतिलिपि प्रस्तुत करके अथवा
2- जेल वारंट प्रस्तुत करके जिसके अंतर्गत उसके द्वारा सजा भुगती गई है ।
3- इसके साथ ही साथ आरोपी की पहचान स्थापित कर दोषसिद्धि के तथ्य को साबित किया जा सकता है
मध्य प्रदेश नियम एंव आदेश अपराधिक के नियम 175 से179 तक में पूर्व दोषसिद्धि के आरोप और प्रमाणी करण के संबंध में नियम दिये गये है । जिसके नियम 175 के नोट क्रमांक-2 के अनुसार जब कि कोई एक व्यक्ति एक ही समय पर या लगभग एक से अधिक अपराधों में दोषसिद्ध होता है तथा उन अपराधों के एकत्रित दण्ंड को भुगतने के पश्चात अन्य अपराध करता है तथा पुनः दोषसिद्ध होता है तो वर्तमान दोषसिद्धि के संबंध में प्रत्येक पूर्व दोषसिद्धि पृथक दोषसिद्धि होगी
इसी प्रकार नियम-178 के अनुसार यदि प्रतिलिपि प्रमाण पत्र या अधिपत्र में दिया गया दण्डादेश दिए गए व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, और जाति का मिलान उससे होता है जो कि विचारण के अधीन अभियुक्त बताता है तो वह इकरार अभियुक्त के विरूद्ध साक्ष्य में प्रकट होने वाली परिस्थिति मानी जाना चाहिए ।
नियम के अनुसार उससे संहिता की धारा-313 के अधीन उसके बारे में स्पष्टीकरण देने की अपेक्षा की जानी चाहिए । यदि परिक्षण करने पर वह अपनी पहचान दस्तावेज में वर्णित व्यक्ति से भिन्न होना बतावे साक्षी तब साक्षियों को जिन्हें इस बात का व्यक्तिगत ज्ञान हो कि उस अभियुक्त की पूर्व दोष सिद्धि हो चुकी है बुलाना आवश्यक होगा।
नियम 179 के अनुसार अंतिम वाक्य में निर्दिष्ट प्रकार के मामलो में पूर्व दोषसिद्धियां यदि वे स्वीकृत नहीं की गई है तो उन्हे औपचारिक रूप से सिद्ध कियाजाना चाहिए। उन्हें इस सीमित अभिप्राय से प्रयोग करने में मजिस्ट्रेट को संहिता की धारा 32 के सदृश मार्ग दर्शन लेना चाहिए ।
न्यायालय जैसे ही निर्णय में इस निष्कर्ष पर पहंुचे कि अभियुक्त दोषी है उस निर्णय को अस्थाई रूप से रोक दिया जाना चाहिए । तब आदेश पत्र में यह दर्शाना चाहिए कि अभियुक्त से कोई पूर्व दोषसिद्धियां जो कि कथित की गई है।
परन्तु इसके पहले उस प्रक्रम तक वह साक्ष्य में ग्राहय नहीं है, जब तक कि उसके बारे में प्रश्न नहीं पूछे गए हैं । वस्तुतः प्रश्न एंव उत्तर अभियुक्त से संहिता की धारा 313 के अधीन पहिले ही किए गए परीक्षण पर ही अतिरिक्त रूप में अभिलिखित किए जावेंगे ।चाहे वे दोषसिद्धियां स्वीकृत की जावे या अस्वीकृत उनके वैध प्रमाण का गठन करने वाले दस्तावेजों की अभिलेख में फाइल किया जाएगा । निर्णय अंतिम रूप से पूर्ण किया जाना चाहिए तथा निष्कर्ष अभिलिखित किया जाना चाहिए।
इस प्रकार सर्व प्रथम आरोपी को धारा-376, 376ए,376सी, 376डी के अंतर्गत सिद्धदोष ठहराया जायेगा। उसके बाद प्रकरण दण्ड के प्रश्न पर जब सुनवाई हेतु स्थगित किया जायेगा तब उस पर पूर्व दोषसिद्धि का आरोप धारा-211-7 दं0प्र0सं0 के अनुसार लगाया जायेगा । पूर्व दोषसिद्धि का आरोप दं0प्र0सं0 की धारा-298 के अनुसार प्रमाणित हो जाने के बाद अभियुक्त परीक्षण किया जायेगा और उससे इस संबंध में प्रश्न पूछे जायेगें उसके बाद पूर्व दोषसिद्धि का आरोप प्रमाणित हो जाने के बाद पुनः निर्णय दण्ड के प्रश्न पर सुनवाई हेतु स्थगित किये जाने के बाद उभय पक्ष को दण्ड के प्रश्न पर सुनकर आरोपी को धारा-376ई भा0द0वि0 के आरोप में दण्डित किया जायेगा ।
दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 में धारा-376ई में धारा-376, 376ए,376सी, 376डी में दण्डित किया गया है जबकि दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 में केवल बलात्संग के लिए दण्ड धारा-376, पीडिता की मृत्यु या लगातार विकृतशील दशा मारित करने के लिए दण्ड धारा-376क, सामूहिक बलात्कार धारा- 376घ के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों को दण्डित किया गया है । अधिनियम लागू होने के बाद अध्यादेश के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 जो दिनांक 3.2.13 से प्रभावशील हुआ था । उसकी जगह अब दण्ड विधि संशोधन 2013 संसद द्वारा पास कर दिया गया है और जिसमें धारा 376-ई संशोधन द्वारा जोड़ी गई है जिसके अनुसार बार बार अपराध करने वालो को दंडित किया जावेगा ।
धारा 376 के अनुसार जो भी व्यकित धारा 376-1 के अनुसार जो कोई व्यकित धारा 376-2 में दिये गये मामलो के अलावा योन हमला कारित करता है तो उसे सश्रम कारावास से दंडित किया जावेगा जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी ,परन्तु जिसे कि उम्र केद तक बढ़ाया जा सकेगा ओर वह जुर्माना करने योग्य भी है ।
दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 में धारा 376-ई में योन हमला की जगह बलात्कार शब्द जोड़ा गया है ।
धारा-376-क में पीडिता की मृत्यु कारित करने पर अथवा पीडित को लगातार निष्क्रीय दंश तक पहुंचा देने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है ।
धारा 376-क में सामूहिक बलात्कार का प्रावधान किया है जिसमें पीडिता को मुआवजा भुगतान कराये जाने जो कि उस पीडिता के चिकित्सीय खर्च एंव पुर्नवास के खर्च वहन करने हेतु युक्तियुक्त होगा । इस प्रकार धारा 376-ई में पूर्व दोषसिद्व व्यक्ति को दंडित किये जाने का प्रावधान किया गया है
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धारा-376-ई जिसे आगे संहिता से संबोधित किया जा रहा है, अभियुक्त को धारा 376-क, 376-ख के अंतर्गत सिद्वदोष ठहराया जा चुका होने ,उसके बाद यदि आरोपी पूर्व में उक्त धाराओं में दंडित हुआ है तो उसको पूर्व में दंडित किये जाने उसके आधार पर दोषसिद्ध की इस संबंध में दं0 प्र0सं0 की धारा एंव मध्य प्रदेश दंड रूल्स एंव आर्डर के नियमो को ध्यान में रखते हुये आरोप लगाया जावेगा ।
देश में बालको के प्रति बढते यौन शोषण या लैंगिक शोषण के अपराधों जैसे बाल बलात्कार, अपहरण, नाबालिग लडकियों की दलाली वैश्यावृत्ति के लिए लडकियों को उकसाना, बेचना, आत्महत्या के लिए उकसाना कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार कर हत्या करने, जैसे गम्भीर अपराधो की संख्या में वृद्धि को देखते हुए समाज में आंदोलन हुए और उन आंदोलनो के असर के कारण सरकार को दण्ड विधि में संशोधन करना पडा है ।
इसके लिए भारत सरकार के द्वारा 3 फरवरी 2013 को संसद के द्वारा दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 पारित किया है जिसे बाद में दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 के रूप में मान्यता प्रदान की गई है । अध्यादेश में यौन हमले को दण्डित किया गया था जिसे अधिनियम में परिवर्तित कर बलात्कार कर दिया गया है । लेकिन बलात्कार की परिभाषा यौन हमले को धारा’- 375क, ख,ग,घ के रूप में शामिल किया गया है ।
इस दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 जिसे आगे अध्यादेश से संबोधित किया गया है । उसमें धारा 376-ई जोडी गई है । जिसमें बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध बार बार करने के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है ।
अध्यादेश की धारा-376ई के अनुसार- जो भी व्यक्ति धारा 376 या 376-ए या धारा 376-सी अथवा धारा376-डी के अंतर्गत दंडनीय अपराध के लिये पूर्व में दोषसिद्धि हुआ है एंव क्रमबार रूप से उक्त अपराधों में से किसी भी धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध के लिये दोषित सिद्ध हुआ हे तो उसे उम्र केद की सजा से दंडित किया जावेगा, इसका मतलब उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की अवधि से होगा अथवा उसे मृत्यु से दंडित किया जावेगा ।
1- इस प्रकार बलात्कार अंतर्गत धारा-376
2- मृत्यु कारित करने पर अथवा पीडित को लगातार निष्क्रिय दंश तक पहंुचा देने पर दण्ड अंतर्गत धारा-376ए
3- किसी पद पर रहते हुए किसी व्यक्ति के साथ संभोग की दशा में दण्ड, अंतर्गत धारा-376सी
4- दल या टोली द्वारा यौन हमला की दशा में दण्ड, अंतर्गत धारा-376डी
के अंतर्गतं एक बार दण्डित हो जाने के बाद यदि पुनः वहीं अपराध में आरेापी दोषी ठहराया जाता है तो उसे धारा-376ई के अंतर्गत मृत्यु दण्ड अथवा ऐसी उम्र कैद की सजा से दण्डित किया जावेगा इसका मतलब उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की अवधि से होगा अतः ऐसे व्यक्ति को पूरी उम्र जेल में रहना होगा ।
धारा376 ई में आरोप की विरचना एंव प्रारूप
धारा-376ई पूर्व दोष सिद्धि का आरोप दं0प्र0सं0 की धारा 211-7 के अनुसार लगाया जायेगा । जिसके अनुसार यदि अभियुक्त किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किये जाने पर किसी पश्चातवर्ती अपराध के लिए ऐसी पूर्व दोषसिद्धि के कारण वर्धित दण्ड का या भिन्न प्रकार के दण्ड का भागी है और यह आशयित है कि ऐसी पूर्व दोषसिद्धि उस दण्ड को प्रभावित करने के प्रयोजन के लिए साबित की जाये जिसे न्यायालय पश्चातवर्ती अपराध के लिए देना ठीक समझे तो पूर्व दोष सिद्धि का तथ्य तारीख और स्थान आरोप में कथित होंगे और यदि ऐसा कथन रह गया है तो न्यायालय दण्डादेश देने के पूर्व किसी समय भी उसे जोड सकेगा ।
इस प्रकार न्यायालय द्वारा पूर्व दोष सिद्धि का आरोप लगाये जाते समय उसके तथ्य तारीख स्थान का आरोप में वर्णन करेगा। जिसका प्रारूप निम्नलिखित रहेगा
पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात बलात्कार के आरोप
मैं---------------------सत्र न्यायाधीश आप-------- अभियुक्त व्यक्ति का नाम पर निम्नलिखित आरोप लगाता हूं ।
यह कि आपने दिनांक--------को या उसके लगभग----------- में प्रार्थीया के साथ बलात्कार का अपराध किया है । जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा- 376/376ए /376सी/376डी के अधीन दण्डनीय है और सैशन न्यायालय के संज्ञान के अंतर्गत है और आप ------------- पर यह भी आरोप है कि आप उक्त अपराध करने के पूर्व अर्थात तारीख ------------ को-------के-------न्यायालय द्वारा भा0द0सं0 के धारा- 376/ 376ए / 376सी/376डी के अंतर्गत ------------- कठोर कारावास एंव --------अर्थ दण्ड से दोष सिद्ध किये गये थे जो दोषसिद्धि अब तक पूर्णतया प्रवृत्त और प्रभावशाली है और आप भा.द.सं. की धारा-376ई के अधीन परिवर्धित दण्ड से दण्डनीय है । और मैं इसके द्वारा निेर्देश देता हूं कि आपका विचारण धारा-376 ई भा.द.सं. में किया जाये इत्यादि ।
पूर्व दोष सिद्धि प्रमाणित करना-
दं0प्र0सं0 की धारा-298 के अनुसार पूर्व दोषसिद्धि के तथ्य को साबित किया जायेगा। धारा-298 के अनुसार पूर्व दोष सिद्धि के तथ्य को इस संहिता के अधीन किसी जांच विचारण या अन्य कार्यवाही में किसी अन्य ऐसे ढंग के अतिरिक्त जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा उपबंधित है-
क- ऐसे उद्धरण द्वारा जिसका उस न्यायालय के जिसमें ऐसी दोषसिद्धि हुई अभिलेखों को अभिरक्षा में रखने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित उस दण्डादेश या आदेश की प्रतिलिपि होना है अथवा
ख- दोषसिद्धि की दशा में या तो ऐसे प्रमाण पत्र द्वारा जो उस जेल के भारसाधक अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित है जिसमें दण्ड या उसका कोई भाग भोगा गया या सुपुर्दगी के उस वारंट को पेश करके, जिसके अधीन दण्ड भोगा गया था,
और इन दशाओ में से प्रत्येक में इस बात के साक्ष्य के साथ कि अभियुक्त व्यक्ति वहीं व्यक्ति है जो ऐसे दोष सिद्ध किया गया, साबित किया जा सकेगा ।
इस प्रकार पूर्व दोषसिद्धि के तथ्य को----
1- निर्णय की प्रतिलिपि प्रस्तुत करके अथवा
2- जेल वारंट प्रस्तुत करके जिसके अंतर्गत उसके द्वारा सजा भुगती गई है ।
3- इसके साथ ही साथ आरोपी की पहचान स्थापित कर दोषसिद्धि के तथ्य को साबित किया जा सकता है
मध्य प्रदेश नियम एंव आदेश अपराधिक के नियम 175 से179 तक में पूर्व दोषसिद्धि के आरोप और प्रमाणी करण के संबंध में नियम दिये गये है । जिसके नियम 175 के नोट क्रमांक-2 के अनुसार जब कि कोई एक व्यक्ति एक ही समय पर या लगभग एक से अधिक अपराधों में दोषसिद्ध होता है तथा उन अपराधों के एकत्रित दण्ंड को भुगतने के पश्चात अन्य अपराध करता है तथा पुनः दोषसिद्ध होता है तो वर्तमान दोषसिद्धि के संबंध में प्रत्येक पूर्व दोषसिद्धि पृथक दोषसिद्धि होगी
इसी प्रकार नियम-178 के अनुसार यदि प्रतिलिपि प्रमाण पत्र या अधिपत्र में दिया गया दण्डादेश दिए गए व्यक्ति का नाम, पिता का नाम, और जाति का मिलान उससे होता है जो कि विचारण के अधीन अभियुक्त बताता है तो वह इकरार अभियुक्त के विरूद्ध साक्ष्य में प्रकट होने वाली परिस्थिति मानी जाना चाहिए ।
नियम के अनुसार उससे संहिता की धारा-313 के अधीन उसके बारे में स्पष्टीकरण देने की अपेक्षा की जानी चाहिए । यदि परिक्षण करने पर वह अपनी पहचान दस्तावेज में वर्णित व्यक्ति से भिन्न होना बतावे साक्षी तब साक्षियों को जिन्हें इस बात का व्यक्तिगत ज्ञान हो कि उस अभियुक्त की पूर्व दोष सिद्धि हो चुकी है बुलाना आवश्यक होगा।
नियम 179 के अनुसार अंतिम वाक्य में निर्दिष्ट प्रकार के मामलो में पूर्व दोषसिद्धियां यदि वे स्वीकृत नहीं की गई है तो उन्हे औपचारिक रूप से सिद्ध कियाजाना चाहिए। उन्हें इस सीमित अभिप्राय से प्रयोग करने में मजिस्ट्रेट को संहिता की धारा 32 के सदृश मार्ग दर्शन लेना चाहिए ।
न्यायालय जैसे ही निर्णय में इस निष्कर्ष पर पहंुचे कि अभियुक्त दोषी है उस निर्णय को अस्थाई रूप से रोक दिया जाना चाहिए । तब आदेश पत्र में यह दर्शाना चाहिए कि अभियुक्त से कोई पूर्व दोषसिद्धियां जो कि कथित की गई है।
परन्तु इसके पहले उस प्रक्रम तक वह साक्ष्य में ग्राहय नहीं है, जब तक कि उसके बारे में प्रश्न नहीं पूछे गए हैं । वस्तुतः प्रश्न एंव उत्तर अभियुक्त से संहिता की धारा 313 के अधीन पहिले ही किए गए परीक्षण पर ही अतिरिक्त रूप में अभिलिखित किए जावेंगे ।चाहे वे दोषसिद्धियां स्वीकृत की जावे या अस्वीकृत उनके वैध प्रमाण का गठन करने वाले दस्तावेजों की अभिलेख में फाइल किया जाएगा । निर्णय अंतिम रूप से पूर्ण किया जाना चाहिए तथा निष्कर्ष अभिलिखित किया जाना चाहिए।
इस प्रकार सर्व प्रथम आरोपी को धारा-376, 376ए,376सी, 376डी के अंतर्गत सिद्धदोष ठहराया जायेगा। उसके बाद प्रकरण दण्ड के प्रश्न पर जब सुनवाई हेतु स्थगित किया जायेगा तब उस पर पूर्व दोषसिद्धि का आरोप धारा-211-7 दं0प्र0सं0 के अनुसार लगाया जायेगा । पूर्व दोषसिद्धि का आरोप दं0प्र0सं0 की धारा-298 के अनुसार प्रमाणित हो जाने के बाद अभियुक्त परीक्षण किया जायेगा और उससे इस संबंध में प्रश्न पूछे जायेगें उसके बाद पूर्व दोषसिद्धि का आरोप प्रमाणित हो जाने के बाद पुनः निर्णय दण्ड के प्रश्न पर सुनवाई हेतु स्थगित किये जाने के बाद उभय पक्ष को दण्ड के प्रश्न पर सुनकर आरोपी को धारा-376ई भा0द0वि0 के आरोप में दण्डित किया जायेगा ।
दण्ड विधि संशोधन अध्यादेश 2013 में धारा-376ई में धारा-376, 376ए,376सी, 376डी में दण्डित किया गया है जबकि दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 में केवल बलात्संग के लिए दण्ड धारा-376, पीडिता की मृत्यु या लगातार विकृतशील दशा मारित करने के लिए दण्ड धारा-376क, सामूहिक बलात्कार धारा- 376घ के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों को दण्डित किया गया है । अधिनियम लागू होने के बाद अध्यादेश के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
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