सूचना क्रांति
सूचना पाने का अधिकार अधि., 2005 भारत के संविधान मं लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गई है, जिसमें जनता में से, जनता के द्वारा, जनता के लिए, चुने प्रतिनिधियों द्वारा राज्य किया जाता है । इस प्रकार जनता का राज्य होता है । ऐसे राज्य मंे प्रत्येक नागरिक, वर्ग, को वाक् एंव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है जिससे उसे यह जानने का अधिकार है कि उसके खून-पसीने की कमाई से एकत्र किये गये लोकधन का सरकार लोक प्राधिकारी, लोक संस्थाएं किस प्रकार उपयोग कर रही है। ऐसी सूचना की पारदर्शिता की अपेक्षा प्रत्येक व्यक्ति सरकार से करता है । जो उसका मूल अधिकार है । इसी पारदर्शिता को लागू और प्रदर्शित करने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की स्थापना की गई है । जिसे आगे संक्षिप्त में आर.टी.आई. कानून या अधिनियम कहा गया है ।
अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा । सूचना के अधिकार को अधिनियम की धारा-2आई में परिभाषित किया गया है ।जिसके अनुसार सूचना का अधिकार से अभिप्रेत है। इस अधिनिमय के अधीन पहंुच योग्य सूचना का जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन धारित है, अधिकार अभिप्रेत है । उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि लेना, अभिलेखों की जॉंच पड़ताल करना तथा ऑंकड़ों की प्रति प्राप्त करना भी सूचना प्राप्त करने के अधिकार में शामिल है।
सूचना पाने का अधिकार अधि., 2005 सूचना की स्वतंत्रता अधि., 2002 के स्थान पर लाया गया है जो एक कमजोर तथा निष्प्रभावी कानून सिद्ध हुआ है. नए अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1 सभी नागरिकों को सूचना तक पहॅंच का अधिकार स्पष्टतया प्रदान करना।
2 सभी लोक अधिकारियों के लिए इस प्रकार की सूचना के प्रसार को एक बाध्यता बनाया जाना.
3 केन्द्र एवं राज्य स्तर पर एक उच्च-स्तरीय स्वतंत्र निकाय के रूप में सूचना आयोगों की स्थापना करना ।
4 सूचना आयोग सूचना प्राप्त करने के अधिकार को प्रोन्नत करेंगे तथा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करेंगे. ये निकाय अपीलीय अधिकरण के रूप में कार्य करेंगे तथा इन्हें दीवानी न्यायालय के अधिकार प्राप्त होंगे।
5 अधिनियम में सूचना आयोग को ऐसी शक्तियॉं प्रदान की गई हैं जो लोक अधिकारियों को सूचना देने से मना करने से हतोत्साहित करेंगी।
अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में आने वाली विषय वस्तु
1. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के सभी मन्त्रालय तथा विभाग सुरक्षा एवं इंटेलीजेन्स संगठनों को छोड़कर।
2. पंचायती राज संस्थाएं तथा स्थानीय नगर निकाय।
3. सरकार से वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन।
4. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले निगम तथा कंम्पनियॉं।
अधिनियम के विशेष प्रावधान
1. सूचना प्राप्त करने के लिए लिखित मे अनुरोध किया जाएगा । अनुरोध प्राप्ति के 30 दिन के भीतर ऐसी फीस संदाय किये जाने पर सूचना उपलब्ध कराई जाएगी ।
2. यदि जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है तो वह 48 घंटे के अंदर उपलब्ध कराई जायेगी ।
3. सूचना न दिये जाने के आदेश के विरूद्ध 30 दिन के अंदर अपील की जाएगी। दूसरी अपील 90 दिन के अंदर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को दी जाएगी।
4. कानून के मुताबिक सूचना प्रदान करने में असफल रहने पर दण्ड का प्रावधान।
5. बिना किसी युक्तियुक्त कारण के सूचना न देने पर कोई आवेदन प्राप्त किये जाने पर निश्चित समय पर सूचना न दिये जाने पर असदभावना पूर्वक सूचना दिये जाने पर, जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दिये जाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
6. यदि उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
7. यह जुर्माने की रकम दो सौ पचास रूपये से पच्चीस हजार रूपये तक होगी ।
8. अधिनियम को अध्यारोही प्रभाव दिया गया है । अन्य न्यायालय की अधिकारिता वर्जित की गई है ।
9. आम व्यक्ति को लोकहित में सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है । जो विषय वस्तु लोकहित से संबंधित है । वह सूचना के अधिकार में शामिल है ।
10. यदि किसी स्तर पर सूचना पाने के अधिकार अधिनियम-2005 तथा ऑफीशियल सीक्रेट्स अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के बीच टकराव की स्थिति आती है, तो सूचना पाने के अधिकार अधिनियम-2005 के प्रावधानों को ही प्रमुखता प्राप्त होगी।
सूचना के अधिकार से लाभ
1. सूचना के अधिकार से आम जनता को यह लाभ प्राप्त है कि लोक प्राधिकारी जो कार्य करेंगे उसकी जानकारी रहेगी । यदि वह मनमाने तौर पर काम करते है तो उस पर रोक लगाई जा सकेगी ।
2. यदि लोक प्राधिकारी द्वारा सरकारी कार्य करने में हीला हवाला किया जाता है, वे कार्य में उपेक्षा बरतते है, जिससे शासकीय कार्य में मनमानी, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद को बढावा देते है तो उन पर रोक लगाई जा सकेगी ।
3. आर.टी.आई एक्ट से यह भी लाभ है कि लोकहित के कार्यो की सुनवाई समय पर हो सकेगी ।
4. समुचित राहत आम नागरिकों को समय पर प्राप्त होगी।
5. सराकरी सेवको में कर्तव्य परायणता, जनसेवा की भावना जागृत होगी । जो इस अधिनियम का मूल्य उददेश्य है।
6. सूचना के अधिकार से देश को यह लाभ है कि लोक प्राधिकारी के कृत्यों में पारदर्शिता आएगी तथा नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढेगी ।उचित ढंग से कार्य करने की भावना/मानसिकता विकसित होगी ।
7. देश को स्वच्छ प्रशासन सुशासन प्राप्त होगा ।
8. नागरिकों की सामान्य सुविधाए प्राप्त करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना पडेगा
9. लोकहित में मानक स्तर के कार्य होंगे ।
10. घटिया निर्माण कार्य पर रोक लगेगी ।
इन्ही सब बातो को देखते हुए सूचना का अधिकार ’’सुशासन की कुंजी’’ माना गया है परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि सरकारी रिकार्ड चुस्त दुरूस्त सूची बद्ध कम्प्यूटरीकृत रखे जावे।
आजादी के 58 वर्षों बाद विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सूचना का अधिकार कानून निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेही और पारदर्शी बनाने के लिए लाया गया और इसने 8 वर्षों में जो लोकप्रियता हासिल की है, संभवतः वह किसी अन्य कानून ने हासिल नहीं की है। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में इस कानून के उपयोग के बाद निकलने वाली जानकारियों ने भ्रष्टाचार करने वाले देशद्रोहियों को बेनकाब किया है।
आर.टी.आई. कानून लागू होने के बाद सरकारी विभागों से मांगी जा रही सूचनाओं के कारण अनेक घोटालों का पर्दाफास हुआ है। घोटालो में फसने वाले नेताओं और अफसरों की नींद हराम हुई है । इस कानून ने भ्रष्ट नेता और अफसरों की नाक में दम कर रखा है । राष्ट्रपति भवन में बहुमूल्य गिफ्टों की अव्यवस्थित प्रबंधन की बात हो, स्पैक्ट्रम घोटाला, कॉनवेल्थ गेम्स घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला, सब जगह सूचना का अधिकार ने अपने उद्देश्य को सार्थक किया है।
आर.टी.आई. की सूचना जुटाकर घोटालों का भंडफोड करने में अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा है । पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें समय-समय पर डराया धमकाया, सताया जाता है । ऐसी दशा में समाज के लिए काम करने वाले ऐसे आर.टी.आई. कार्यकताओं को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ।इसके लिए अधिनियम में संशोधन द्वारा दण्ड का प्रावधान अलग से जोडा जाना चाहिए । जिसके अनुसार यदि आर0टी0आई0 एक्ट के अंतर्गत सूचना मांगे जाने का डराया,धमकाया जाता है तो उस कार्य को अपराध घोषित कर दण्डित किया जाना चाहिए।
सूचना का अधिकार कानून जैसे-जैसे सशक्त बन कर उभर रहा है । वैसे-वैसे इसके विरोधियों की संख्या दिन पर दिन बढती जा रही है । जो इसे ब्लेकमेलिंग कर बता रहे हैं।राजनीतिक दल का आरोप है कि इस अधिकार का दुरूपयोग हो रहा है । इसके द्वारा सरकारी और राजनीतिक लोगो को जबरन परेशान किया जा रहा है । जबकि आर0टी0आई0 कार्यकर्ता इसे राजनीतिक साजिश और लोक अभिकर्ताओ का षडयंत्र बता रहे हैं । उनका कहना है कि सरकार की पोल खुलने के कारण इस अधिकार को कम करने और उसे जनता से छीनने का प्रयास किया जा रहा है । जो अब समय नहीं है क्यों कि सूचना के अधिकार को मान्नीय उच्चतम न्यायालय ने हमे मूल अधिकार घोषित कर दिया है ।
सूचना के अधिकार के लिए कई लोगों की हत्या की गई है । लोगो को डराया धमकाया जाता है । लेकिन इससे सूचना के अधिकार की ज्वाला बुझने वाली नहीं है । इसने समाज में एक नयी रोशनी उम्मीद, आशा की किरण जगाई है । इसलिए जरूरत है कि ऐसे लोगों का साथ दिया जाये और प्रशासन पर दबाव बनाया जाये कि वह भ्रष्ट नेता, अफसरों, के प्रभाव में आकर ऐसा कोई काम न करे जिससे कानून मजाक बनकर
केन्द्रीय सूचना आयुक्त नें एक महत्वपूर्ण फैसले में राजनीतिक दल को भी आर0टी0आई कानून के अंतर्गत शामिल कर लिया है । उनका अभिमत है कि राजनीतिक दल सरकार से सुविधाएं लेते है । सरकार उन्हें वित्तीय मदद देती है । इसलिए वह सार्वजनिक प्राधिकारी है ।
सूचना के अधिकार को प्राइवेट संस्थाओ में भी लागू किया जाना चाहिए । प्राइवेट संस्थाओ लोकहित में कार्य करती है और उनके कार्य से लोकहित स्वास्थ, प्रभावित होते है। इसलिए यह आवश्यक है कि सभी प्राइवेट संस्थाओ जो कि लोकहित संबधी कार्य कर रही है उनमें भी अधिनियम के प्रावधान लागू किये जाये ।
सूचना का अधिकार कानून की धारा 26 के तहत जनता को जागरूक करने की जिम्मेदारी सरकार की है, उसका कर्तव्य है कि इस कानून का प्रचार-प्रसार करें । इसके लिए उसे राज्य के स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ।
इसके अलावा प्रत्येक विभाग की वेबसाइड बनाकर सारी जानकारी प्रतिदिन उस पर अपलोड कर दी जानी चाहिए । ताकि सरकारी संस्थाओ पर सूचना दिये जाने का अतिरिक्त कार्य बोझ न बने । आज प्रत्येक सरकारी कार्यालय में सूचना देने के लिए अलग से विभाग और कर्मचारियों की आवश्यकता पड रही है । जिसे खुद सूचना सार्वजनिक कर इस कार्य को आसान बनाया जा सके ।
मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा अधिनियम की धारा- 27 के अंतर्गत सूचना अधिकार फीस और लागत या विनियमन नियम 2005 बनाया गया है । जिसके अंतर्गत 10 रूपये आवेदन के साथ फीस नगद मांग देय, ड्राफट या बैंकर चैक के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी को संदेय किये जाने पर सूचना प्राप्त की जा सकती है ।
उमेश कुमार गुप्ता
सूचना पाने का अधिकार अधि., 2005 भारत के संविधान मं लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गई है, जिसमें जनता में से, जनता के द्वारा, जनता के लिए, चुने प्रतिनिधियों द्वारा राज्य किया जाता है । इस प्रकार जनता का राज्य होता है । ऐसे राज्य मंे प्रत्येक नागरिक, वर्ग, को वाक् एंव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है जिससे उसे यह जानने का अधिकार है कि उसके खून-पसीने की कमाई से एकत्र किये गये लोकधन का सरकार लोक प्राधिकारी, लोक संस्थाएं किस प्रकार उपयोग कर रही है। ऐसी सूचना की पारदर्शिता की अपेक्षा प्रत्येक व्यक्ति सरकार से करता है । जो उसका मूल अधिकार है । इसी पारदर्शिता को लागू और प्रदर्शित करने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की स्थापना की गई है । जिसे आगे संक्षिप्त में आर.टी.आई. कानून या अधिनियम कहा गया है ।
अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा । सूचना के अधिकार को अधिनियम की धारा-2आई में परिभाषित किया गया है ।जिसके अनुसार सूचना का अधिकार से अभिप्रेत है। इस अधिनिमय के अधीन पहंुच योग्य सूचना का जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन धारित है, अधिकार अभिप्रेत है । उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि लेना, अभिलेखों की जॉंच पड़ताल करना तथा ऑंकड़ों की प्रति प्राप्त करना भी सूचना प्राप्त करने के अधिकार में शामिल है।
सूचना पाने का अधिकार अधि., 2005 सूचना की स्वतंत्रता अधि., 2002 के स्थान पर लाया गया है जो एक कमजोर तथा निष्प्रभावी कानून सिद्ध हुआ है. नए अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1 सभी नागरिकों को सूचना तक पहॅंच का अधिकार स्पष्टतया प्रदान करना।
2 सभी लोक अधिकारियों के लिए इस प्रकार की सूचना के प्रसार को एक बाध्यता बनाया जाना.
3 केन्द्र एवं राज्य स्तर पर एक उच्च-स्तरीय स्वतंत्र निकाय के रूप में सूचना आयोगों की स्थापना करना ।
4 सूचना आयोग सूचना प्राप्त करने के अधिकार को प्रोन्नत करेंगे तथा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करेंगे. ये निकाय अपीलीय अधिकरण के रूप में कार्य करेंगे तथा इन्हें दीवानी न्यायालय के अधिकार प्राप्त होंगे।
5 अधिनियम में सूचना आयोग को ऐसी शक्तियॉं प्रदान की गई हैं जो लोक अधिकारियों को सूचना देने से मना करने से हतोत्साहित करेंगी।
अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में आने वाली विषय वस्तु
1. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के सभी मन्त्रालय तथा विभाग सुरक्षा एवं इंटेलीजेन्स संगठनों को छोड़कर।
2. पंचायती राज संस्थाएं तथा स्थानीय नगर निकाय।
3. सरकार से वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन।
4. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले निगम तथा कंम्पनियॉं।
अधिनियम के विशेष प्रावधान
1. सूचना प्राप्त करने के लिए लिखित मे अनुरोध किया जाएगा । अनुरोध प्राप्ति के 30 दिन के भीतर ऐसी फीस संदाय किये जाने पर सूचना उपलब्ध कराई जाएगी ।
2. यदि जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है तो वह 48 घंटे के अंदर उपलब्ध कराई जायेगी ।
3. सूचना न दिये जाने के आदेश के विरूद्ध 30 दिन के अंदर अपील की जाएगी। दूसरी अपील 90 दिन के अंदर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को दी जाएगी।
4. कानून के मुताबिक सूचना प्रदान करने में असफल रहने पर दण्ड का प्रावधान।
5. बिना किसी युक्तियुक्त कारण के सूचना न देने पर कोई आवेदन प्राप्त किये जाने पर निश्चित समय पर सूचना न दिये जाने पर असदभावना पूर्वक सूचना दिये जाने पर, जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दिये जाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
6. यदि उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
7. यह जुर्माने की रकम दो सौ पचास रूपये से पच्चीस हजार रूपये तक होगी ।
8. अधिनियम को अध्यारोही प्रभाव दिया गया है । अन्य न्यायालय की अधिकारिता वर्जित की गई है ।
9. आम व्यक्ति को लोकहित में सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है । जो विषय वस्तु लोकहित से संबंधित है । वह सूचना के अधिकार में शामिल है ।
10. यदि किसी स्तर पर सूचना पाने के अधिकार अधिनियम-2005 तथा ऑफीशियल सीक्रेट्स अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के बीच टकराव की स्थिति आती है, तो सूचना पाने के अधिकार अधिनियम-2005 के प्रावधानों को ही प्रमुखता प्राप्त होगी।
सूचना के अधिकार से लाभ
1. सूचना के अधिकार से आम जनता को यह लाभ प्राप्त है कि लोक प्राधिकारी जो कार्य करेंगे उसकी जानकारी रहेगी । यदि वह मनमाने तौर पर काम करते है तो उस पर रोक लगाई जा सकेगी ।
2. यदि लोक प्राधिकारी द्वारा सरकारी कार्य करने में हीला हवाला किया जाता है, वे कार्य में उपेक्षा बरतते है, जिससे शासकीय कार्य में मनमानी, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद को बढावा देते है तो उन पर रोक लगाई जा सकेगी ।
3. आर.टी.आई एक्ट से यह भी लाभ है कि लोकहित के कार्यो की सुनवाई समय पर हो सकेगी ।
4. समुचित राहत आम नागरिकों को समय पर प्राप्त होगी।
5. सराकरी सेवको में कर्तव्य परायणता, जनसेवा की भावना जागृत होगी । जो इस अधिनियम का मूल्य उददेश्य है।
6. सूचना के अधिकार से देश को यह लाभ है कि लोक प्राधिकारी के कृत्यों में पारदर्शिता आएगी तथा नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढेगी ।उचित ढंग से कार्य करने की भावना/मानसिकता विकसित होगी ।
7. देश को स्वच्छ प्रशासन सुशासन प्राप्त होगा ।
8. नागरिकों की सामान्य सुविधाए प्राप्त करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना पडेगा
9. लोकहित में मानक स्तर के कार्य होंगे ।
10. घटिया निर्माण कार्य पर रोक लगेगी ।
इन्ही सब बातो को देखते हुए सूचना का अधिकार ’’सुशासन की कुंजी’’ माना गया है परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि सरकारी रिकार्ड चुस्त दुरूस्त सूची बद्ध कम्प्यूटरीकृत रखे जावे।
आजादी के 58 वर्षों बाद विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सूचना का अधिकार कानून निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेही और पारदर्शी बनाने के लिए लाया गया और इसने 8 वर्षों में जो लोकप्रियता हासिल की है, संभवतः वह किसी अन्य कानून ने हासिल नहीं की है। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में इस कानून के उपयोग के बाद निकलने वाली जानकारियों ने भ्रष्टाचार करने वाले देशद्रोहियों को बेनकाब किया है।
आर.टी.आई. कानून लागू होने के बाद सरकारी विभागों से मांगी जा रही सूचनाओं के कारण अनेक घोटालों का पर्दाफास हुआ है। घोटालो में फसने वाले नेताओं और अफसरों की नींद हराम हुई है । इस कानून ने भ्रष्ट नेता और अफसरों की नाक में दम कर रखा है । राष्ट्रपति भवन में बहुमूल्य गिफ्टों की अव्यवस्थित प्रबंधन की बात हो, स्पैक्ट्रम घोटाला, कॉनवेल्थ गेम्स घोटाला, कोल ब्लॉक घोटाला, सब जगह सूचना का अधिकार ने अपने उद्देश्य को सार्थक किया है।
आर.टी.आई. की सूचना जुटाकर घोटालों का भंडफोड करने में अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा है । पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें समय-समय पर डराया धमकाया, सताया जाता है । ऐसी दशा में समाज के लिए काम करने वाले ऐसे आर.टी.आई. कार्यकताओं को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ।इसके लिए अधिनियम में संशोधन द्वारा दण्ड का प्रावधान अलग से जोडा जाना चाहिए । जिसके अनुसार यदि आर0टी0आई0 एक्ट के अंतर्गत सूचना मांगे जाने का डराया,धमकाया जाता है तो उस कार्य को अपराध घोषित कर दण्डित किया जाना चाहिए।
सूचना का अधिकार कानून जैसे-जैसे सशक्त बन कर उभर रहा है । वैसे-वैसे इसके विरोधियों की संख्या दिन पर दिन बढती जा रही है । जो इसे ब्लेकमेलिंग कर बता रहे हैं।राजनीतिक दल का आरोप है कि इस अधिकार का दुरूपयोग हो रहा है । इसके द्वारा सरकारी और राजनीतिक लोगो को जबरन परेशान किया जा रहा है । जबकि आर0टी0आई0 कार्यकर्ता इसे राजनीतिक साजिश और लोक अभिकर्ताओ का षडयंत्र बता रहे हैं । उनका कहना है कि सरकार की पोल खुलने के कारण इस अधिकार को कम करने और उसे जनता से छीनने का प्रयास किया जा रहा है । जो अब समय नहीं है क्यों कि सूचना के अधिकार को मान्नीय उच्चतम न्यायालय ने हमे मूल अधिकार घोषित कर दिया है ।
सूचना के अधिकार के लिए कई लोगों की हत्या की गई है । लोगो को डराया धमकाया जाता है । लेकिन इससे सूचना के अधिकार की ज्वाला बुझने वाली नहीं है । इसने समाज में एक नयी रोशनी उम्मीद, आशा की किरण जगाई है । इसलिए जरूरत है कि ऐसे लोगों का साथ दिया जाये और प्रशासन पर दबाव बनाया जाये कि वह भ्रष्ट नेता, अफसरों, के प्रभाव में आकर ऐसा कोई काम न करे जिससे कानून मजाक बनकर
केन्द्रीय सूचना आयुक्त नें एक महत्वपूर्ण फैसले में राजनीतिक दल को भी आर0टी0आई कानून के अंतर्गत शामिल कर लिया है । उनका अभिमत है कि राजनीतिक दल सरकार से सुविधाएं लेते है । सरकार उन्हें वित्तीय मदद देती है । इसलिए वह सार्वजनिक प्राधिकारी है ।
सूचना के अधिकार को प्राइवेट संस्थाओ में भी लागू किया जाना चाहिए । प्राइवेट संस्थाओ लोकहित में कार्य करती है और उनके कार्य से लोकहित स्वास्थ, प्रभावित होते है। इसलिए यह आवश्यक है कि सभी प्राइवेट संस्थाओ जो कि लोकहित संबधी कार्य कर रही है उनमें भी अधिनियम के प्रावधान लागू किये जाये ।
सूचना का अधिकार कानून की धारा 26 के तहत जनता को जागरूक करने की जिम्मेदारी सरकार की है, उसका कर्तव्य है कि इस कानून का प्रचार-प्रसार करें । इसके लिए उसे राज्य के स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ।
इसके अलावा प्रत्येक विभाग की वेबसाइड बनाकर सारी जानकारी प्रतिदिन उस पर अपलोड कर दी जानी चाहिए । ताकि सरकारी संस्थाओ पर सूचना दिये जाने का अतिरिक्त कार्य बोझ न बने । आज प्रत्येक सरकारी कार्यालय में सूचना देने के लिए अलग से विभाग और कर्मचारियों की आवश्यकता पड रही है । जिसे खुद सूचना सार्वजनिक कर इस कार्य को आसान बनाया जा सके ।
मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा अधिनियम की धारा- 27 के अंतर्गत सूचना अधिकार फीस और लागत या विनियमन नियम 2005 बनाया गया है । जिसके अंतर्गत 10 रूपये आवेदन के साथ फीस नगद मांग देय, ड्राफट या बैंकर चैक के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी को संदेय किये जाने पर सूचना प्राप्त की जा सकती है ।
उमेश कुमार गुप्ता
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