निष्पादन में विक्रय
डिक्री के निष्पादन के संबंध में किसी चल अथवा अचल संपत्ती के विकय की शक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता (जिसे आगे संहिता से संबोधित जायेगा) की धारा 51 के खंड ’’क’’ के अनुसार निष्पादन न्यायालय को प्राप्त है। निष्पादक न्यायालय को चल अथवा अचल संपत्ती कुर्क किये जाने के पश्चात् उक्त संपत्ती का विक्रय कराया जाकर उससे प्राप्त राशि को ऐसे हकदार व्यक्ति को देने के आदेश की शक्ति भी प्राप्त है ।
विक्रय के संबंध में साधारणतया प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 64 से 73 तक में दिये गये हैं। चल संपत्ती के विक्रय के संबंध में प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 74 से 81 तक में दिये गये हैं तथा अचल (स्थावर) संपत्ती के विक्रय की प्रक्रिया आदेश 21 के नियम 82 से 96 तक में दिये गये हैं ।
विक्रय का संचालन न्यायालय के अधिकारी अथवा इस हेतु नियुक्त अन्य व्यक्ति द्वारा लोक नीलाम से किया जाता है । इसके संबंध में आदेश 21 नियम 65 से 66 है,जिसमें लोक नीलाम से विक्रय किये जाने की उदघोषणा नियम 66 के अधीन परिशिष्ट ड. के प्रारूप संख्या 28,29, एवं 30 के ,द्वारा निकाली जाती है ।
आदेश 21नियम 67 के अंतर्गत उदघोषणा नियम 54 के उप नियम दो के अंतर्गत ऐसी संपत्ती के स्थान पर डोढी पिटवाकर या अन्य रूढीगत ढंग से उदघोषित किया जावेगा और ऐसे आदेश की प्रति सहज दृष्य भाग पर लगाई जावेगी
नियम 68 में विक्रय का समय निर्धारित किया गया है एवं नियम 69 में विक्रय के स्थगन या रोके जाने का प्रावधान है,जिसके लिए विक्रय का संचालन करने वाला अधिकारी स्थगन के कारणों को लेखवद्ध कर विक्रय स्थगित कर सकेगा। नियम 71 के अनुसार के्रता के व्यतिक्रम के कारण दोवारा नीलामी करने पर इससे हुई हानि के लिए वह उत्तरदायी होगा विक्रय के समय कुछ लोगों को बोली लगाने से प्रतिबंधित भी कियागया है ।
नियम 72 में न्यायालय से अनुमति लेकर डिक्रीदार द्वारा ऐसी संपत्ती के लिए बोली लगाने और क्रय किये जाने का उपबंध है। यदि अनुमति के बिना यदि डिक्री दार की ओर से बोली लगाई जाय तब विक्रय आदेश अपास्त कर खर्चे डिक्रीदार के द्वारा वहन किये जावेगें । बंधकदार द्वारा न्यायालय की इजाजत के बिना बोली लगाने का उपबंध नियम 72(क) में उपबंधित है तथा विक्रय से संबंधित किसी अधिकारी या व्यक्ति को नीलाम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बोली लगाने से नियम 73 में प्रतिबंधित किया गया है ।
अचल संपत्ती के विक्रय के प्रावधान
नियम 82 में लघुवाद न्यायालय के अलावा किसी भी न्यायालय द्वारा अचल संपत्ती का विक्रय का आदेश किया जा सकता है । नियम 83 के अंतर्गत यदि निर्णीत ऋणी न्यायालय का समाधान कर सके तो विक्रय को स्थगित किया जा सकताहै । नियम 84 के अनुसार क्रेता को नीलामी की रकम का 25 प्रतिशत तुरंत जमा कराना होगा यदि इसमें चूक हो तो पुर्नविक्रय दोबारा नीलामी द्वारा किया जा सकता है।
यदि डिक्रीदार ही के्रता हो तो वह नियम 72 के अंतर्गत क्रय धन को मुजरा कर सकता है । क्रेता को क्रय धन की संपूर्ण रकम निश्चित अवधि में जमा करना होगा अन्यथा के्रता से विक्रय व्यय काटने के बाद दोवारा विक्रय किया जा सकता है। उक्त प्रावधान नियम 85,86 एवं 87 में है ।
नियम 88 के अनुसार अविभक्त अचल संपत्ती के सह अंशधारी को विक्रय मे बोली में प्राथमिकता दी जावेगी । नियम 89 के अनुसार कोई हितधारी व्यक्ति विक्रय को आपास्त करने के लिए आवेदन कर सकता है । अनियमित्ता या कपट के आधार पर विक्रय अपास्त करने के लिए आवेदन के निपटारे के लिए नियम 90 के अनुसार प्रक्रिया होगी ।
नियम 91 के अनुसार के्रता यह आवेदन कर सकता है कि निर्णीत ऋणी का विक्रय की संपत्ती पर कोई विक्रय हित नहीं था। यदि नियम 89से91के अंतर्गत कोई आवेदन नहीं किया जाता है, अथवा ऐसा आवेदन खारिज हो जाता है,तो विक्रय की पुष्टि का आदेश करेगा और विक्रय अत्यांतिक हो जावेगा,जो नियम 92 में प्रावधान है यदि विक्रय आदेश अपास्त होता है,तो उसके लिए कोई वाद नहीं लाया जा सकेगा। पंरतु अन्य पक्षकार नीलाम के्रता के विरूद्ध वाद फाईल करके निर्णीत ऋणी के हक को चुनोती दे सकते है। जहंा निर्णीत ऋणी के साथ डिक्रीदार भी पक्षकार होगा,धारा 92(2) नियम 93 में कुछ दशा में क्रय धन की वापिसी किये जाने का प्रावधान है तथा नियम 94 में अचल संपत्ती का विक्रय अंतिम हो जाने पर के्रता को प्रमाणपत्र दिये जाने का उपबंध है ।
नियम 95 में निर्णीत ऋणी के अधिभोग की संपत्ती का प्रावधान तथा नियम 96 में अधिकारी के अधिभोग की संपत्ती के परिदान का प्रावधान है ।
आदेश 97 में कब्जे की डिक्री के धारक या निष्पादन में विक्रय की गई संपत्ती के के्रता को यदि कब्जा प्राप्त करने में किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध किया जाता है,तो वह ऐसे प्रतिरोध का परिवाद आवेदन न्यायालय से कर सकता है ।
इस संदभर््ा में सिल्वर लाईन फोरम प्रायवेट लिमिटेड राजीव ट्रस्ट ए.आई.आर. 1998 सुप्रीम कोर्ट 1754 में यह स्पष्ट किया है,कि यदि न्यायालय को आवश्यक प्रतीत होता है तो वह उक्त आवेदन के संदभ्र्। में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए भी कह सकता है । नियम 99 में डिक्रीदार या के्रता ,द्वारा निर्णीत ऋणी से भिन्न किसी व्यक्ति को ऐसी संपत्ती से वेकब्जा करने पर वह न्यायालय में आवेदन कर सकता है ।
नियम 101 के अनुसार नियम 97 या 99 के अधीन आवेदन में न्यायालय कार्यवाही के पक्षकार अथवा उनके प्रतिनिधियों के बीच पैदा होने वाले और उससे सुसंगत सभी प्रश्न जिसमें संपत्ती के अधिकार का हक या हित से संबंधित प्रश्न शामिल है का न्यायालय अवधारण करेगा । नियम 98 एवं 100 के अनुसार प्रश्नों के अवधारण करते समय न्यायालय आवेदन मंजूर कर या खारिज कर आदेश करेगा नियम 98 (2) के अनुसार जहंा न्यायालय का समाधान हो जाय कि निर्णीत ऋणी या उसकी ओर से किसी व्यक्ति ,द्वारा प्रतिरोध या बाधा डाली जा रही है,तो आवेदक के आवेदन पर 30 दिन तक निर्णीत ऋणी को सिविल कारागार में निरूद्ध रखने का आदेश भ्ंाी दे सकताहै ।
नियम 103 के अंतर्गत ऐसे आदेश का प्रभाव डिक्री माना जाता है एवं वह अपीलनीय होता है। नियम 105 के अनुसार सुनवाई के लिए स्थगित तिथी को आवेदक के उपस्थित न होने पर आवेदन खारिज किया जा सकता है एवं विरोधी पक्षकार उपस्थित न होने पर एक पक्षीय आदेश किया जा सकता है। नियम 106 के अंतर्गत एक पक्षीय आदेश आदि पर्याप्त कारण होने पर अपास्त किये जा सकते है ।
चल संपत्ती के विक्रय की प्रक्रिया
आदेश नियम 74 एवं 75 के अंतर्गत कृर्षि उपज तथा उगती फसलों के संबंध में उपबंधित किया गया है जिसमें ऐसे उपज का विक्रय लोक समागम के निकटतम स्थान अथवा हाट के स्थान पर किया जाता है। नियम 76 में पराक्रम्य लिख्।तो एवं निगम के अंश के विक्रय का दलाल के माध्यम से करने का प्रावधान है । चल संपत्ती का विक्रय लोक नीलाम द्वारा करतेे समय निश्चित समय में क्रय राशि जमा न करने पर उसी समय संपत्ती का पुनर्विक्रय किया जाता है । नियम 77 में नीलामी अधिकारी द्वारा क्रय राशि जमा कर लेने पर रसीद देने पर विक्रय अंतिम हो जाता है
नियम 78 के अंतर्गत यदि विक्रय के प्रकाशन या प्रक्रिया में कोई अनियमित्ता हुई हो ,तो ऐसा विक्रय दूषित नहीं होगा ,किंतु यदि ऐसी अनियमित्ता से वह व्यक्ति जिसे कोई क्षति हुई हो उस संपत्ती की वापिसी या प्रतिकर के लिए पृथक से वाद ला सकता है । नियम 79 एवं 80 के अंतर्गत चल संपत्ती ऋणी और अंशों का परिदान के्रता को किये जाने एवं पराक्र्राम्य लिखतों तथा अंशों का अंतरण पृष्ठांकन द्वारा किये जाने के संबंध में प्रावधन है । नियम 81 में पूर्व उपबंध से भिन्न किसी चल संपत्ती के बारे में क्रेता में उसको निहीत करने का आदेश दिया जा सकता है ।
इस प्रकार सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत संपत्ती के विक्रय के संबंध में आज्ञप्ति के निष्पादन में न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया उपबंधित है ।
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