चिकित्सीय उपेक्षा के मामले में आपराधिक दायित्व की सीमा ?
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अनेक मामलों में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब तक डाक्टर के द्वारा घोर उपेक्षा जानबूझकर घोर लापरवाही न की जाए तब तक उसके काम को अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
घोर उपेक्षा को भा0दं0सं0 में परिभाषित नहीं किया गया है माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे चिकित्सीय उपेक्षा के मामले में परिभाषित किया गया है। सामान्य अर्थ में उपेक्षा का अर्थ उस सतर्कता का अभाव है जिसको कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में प्रयुक्त करना विधिक कत्र्तव्य होता है। उपेक्षा आशय के विपरीत एक मानसिक अवस्था को प्रदर्शित करती है जिसमें कि किसी विशिष्ट परिणाम कारित करने की इच्छा का अभाव रहता है। इसका अर्थ प्रमाद अथवा असावधानी ही है।
उपेक्षा मंे वह परिणाम की इच्छा नहीं की जाती है न ही उसके उत्पन्न करने के लिए कार्य कियाजाता है जो परिणाम उत्पन्न होते है संक्षेप में उपेक्षा का अर्थ दोषपूर्ण असावधानी है। उपेक्षा के मामले में पक्षकार वह कार्य नहीं करता है जिसके करने के लिए वह सक्षम है वह एक निश्चात्मक कत्र्तव्य का उल्लघन करता है यहां वह उस कार्य की ओर ध्यान नहीं देता है जिसको करनाउसका कत्र्तव्य है।
इसलिए अनुचित चिकित्सा उपचार जिसमें कि सामान्य ज्ञान और कुशलता का अभाव होगा और जो सद्भावना पूर्वक नहीं किया गया हो वही चिकित्सीय उपचार उपेक्षा की श्रेणी में आता है। यदि कोई डाक्टरद्वारा अनुचित अशुद्ध उपचार सद्भावनापूर्वक सामान्य ज्ञान तथा कुशलतापूर्वक किया गया है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है और केवल सिविल दायित्व ही उत्पन्न करता है।
भा0दं0वि0 की धारा -88 92 93 में चिकित्सक द्वारा उनके समान अंन्य प्रोफेशनल व्यक्तियां को विशेष परिस्थितियों में कार्य किए जाने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा चिकित्सक के कार्य को तब तक अपराधिक कार्य नहीं माना जा सकता है जब तक उसके द्वारा इलाज करने में तीव्र उपेक्षा व उच्च स्तर की लापरवाही नहीं बरती गयी है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सुरेश गुप्ता बनाम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (2004)6 एस0सी0सी0-422 मे पारित दिशा निर्देशों के अनुसार चिकित्सीय उपचार के दौरान प्रत्येक दुर्घटना या मृत्यु के लिए चिकित्सीय व्यक्ति के खिलाफ सजा के लिए कार्यव्राही नहीं की जा सकती। उनके दोष को इंगित करते हुए पर्याप्त चिकित्सीय अभिमत के बिना चिकित्सगण का दांडिक अभियोजन समुदाय में आम जनता की गलत सेवा होगी, क्योंकि यदि न्यायालयें, अस्पतालों और चिकित्सकों पर प्रत्येक बात जो गलत होती है, के लिए दांडिक दायित्व अधिरोपित किया जाता है, तो चिकित्सकगण उनके रोगियों का सर्वोत्तम उपचार करने की अपेक्षा उनके स्वयं की सुरक्षा के बारे में अधिक चितिंत होगें। यह चिकित्सक और रोगी के मध्य आपसी विश्वास हिल जाने में परिणित होगा।
चिकित्सक के अस्पताल या दवाखाना में प्रत्येक दुर्घटना या दुर्भाग्य उसका सदोष उपेक्षा के अपराध के लिए परीक्षण करने के लिए उपेक्षा का घोर कृत्य नहीं है। ृ इसी प्रकार माननीय उच्चतम न्यायालयेद्वारा जैकब मैथ्यु बनाम स्टेट आॅफ पंजाब, ए0आई0आर0 2005, सु0को0-3180 में यह अभिनिर्धारित किया है कि प्रोफेशनल व्यक्ति को उपेक्षा के लिए दो आधारों पर दायी माना जा सकता है। या तो उसके पास वह अपेक्षित कौशल न हो जिसके होने के संबंध में वह दर्शाता है अथवा उसके द्वारा युक्तियुक्त सक्षमता से कौशल न किया गया हो। यह निर्णीत करने के लिए कि व्यक्ति उपेक्षा का दोषी था अथवा नहीं मानक यह होगा कि क्या साधारण सक्षम व्यक्ति की तरह उस पेशे के साधारण कौशल काउपयोग किया गया था। यह स्पष्ट किया गया कि प्रत्येक प्रोफेशनल के लिए उस ब्रांच मे जिसमें कि वह प्रेक्टिस करता है उच्च स्तर की विशेषज्ञता को धारण करना अथवा कौशल को धारण करना संभव नहीं होता है।
इसी प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालयद्वारा आगे यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब मरीज चिकित्सीय इलाज अथवा सर्जिकल आॅपरेशन के लिए सहमत होता है तो मेडिकल मेन के प्रत्येक उपेक्षावान कृत्य को आपराधिक होना नहीं कहा जा सकता है। इसे उसदशा में ही आपराधिक होना कहा जा सकता है जबकि चिकित्सकीय व्यक्ति घोर अक्षमता वाला प्रदर्शित करे अथवा उसके द्वारा घोर लापरवाही की गयी हो। मात्र अनवधानता अथवा कतिपय डिग्री की पर्याप्त केयर एवं सर्तकता का अभाव होने पर सिविल दायित्व ही सृजित होगां। इस आधार पर आपराधिक दायित्व सृजित नहीं होगा।
डा0 उषा बाधवा बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0 2003(2)एम0पी0डब्ल्यु0एन0 -92,
रूपलेखा बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0 2006 (3) एम0पी0एल0जे0- 120
डा0 अशोक लोधा बनाम स्टेट आॅफ एम0 पी0 2005 (3) एम0पी0एल0जे0-281
हसमुख बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0-2005 क्रि0लाॅ0रि0-844 खुशलदास बनाम स्टेट 1959 एम0पी0एल0जे0-966 म0प्र0 1959 जे0एल0जे0-602 म0प्र0 ए0आई0आर0-1960 म0प्र0-50 आादि मामले में
म0प्र0 उच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त अभिनिर्धारित सिद्धांतों के आधार पर चिकित्सीय उपेक्षा को वर्णित किया है।इस प्रकार चिकित्सीय कार्य तभी आपराधिक उपेक्षा की श्रेणी में आएगा:-
1 जब चिकित्सीय व्यक्ति घोर अक्षमता प्रदर्शित करें।
2 जब चिकित्सीय व्यक्ति द्वारा घोर उच्च स्तर की लापरवाही बरती जाए।
3 जब चिकित्सक के द्वारा युक्तियुक्त सक्षमता से उस कौशल का उपयोग न किया गया हो, जिसे वह धारण करता है।
4 जब चिकित्सक के द्वारा किए गए कार्य और निकाले गए इलाज केे परिणाम का प्रत्यक्ष निकटतम संबंध हो।
5 जब उसके द्वारा साधारण व्यक्ति की तरह अपने पेशे में धारण कौशल का साधारण तरीके से उपयोग किया गया है।
6 जब चिकित्सीय रिपोर्ट या अन्य चिकित्सक कीयह राय हो कि उचित इलाज नहीं हुआ है और चिकित्सक की राय के अनुसार कार्य तीव्रतापूर्वक अथवा अत्यधिक उपेक्षापूर्ण कृत्य की कोटि में आता है।
7 चिकित्सीय उपेक्षा में आपराधिक दायित्व के लिए रे ईप्सा लाक्यूटर (घटना स्वयं बोलती है) का सिद्धांत लागू नहीं होता है। क्योंकि यह नियम साक्ष्य की विषय वस्तु है और इसके आधार पर केवल सिविल दायित्व अपेक्षित किया जा सकता है
8 चिकित्सीय उपेक्षा का टेस्ट बाॅलम टेस्ट बोलम बनाम फीयर अस्पताल प्रबंधन समिति 1957 (2) आॅल0ई0आर0 118 में निर्धारित मानकों के अनुसार करना चाहिए अर्थात यदि कोई व्यक्ति चिकित्सीय विज्ञान से अथवा सर्जरी की प्रेक्टिस से पूरी तरह अनभिज्ञ हो ओैर वह इलाज करे अथवा आॅपरेशन करे तो उसके इस कृत्य के संबंध में गंभीर उपेक्षा अथवा तीव्रता का अनुमान
लगाया जा सकता है।
9 सिविल दायित्व और आपराधिक दायित्व में अंतर होता है कोई उपेक्षा सिविल दायित्व उत्पन्न कर सकती है, जरूरी नहीं कि वह आपराधिक दायित्व उत्पन्न करे। कतिपय डिग्री की पर्याप्त केयर एवं सर्तकता का अभाव होने पर सिविल दायित्व होता है। मात्र आवश्यक सर्तकता ध्यान देने या कोैशल अपनाने की मात्र कमी होने पर सिविल दायित्व उत्पन्न होताहै।
उपरोक्त दशाओं में चिकित्सक का कार्य अपराध की श्रेणी में आता है।
यही कारण है कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जैकब मैथ्यू के मामले में देश में बढ़ते डाक्टरों के विरूद्ध आपराधिक मामलों की संख्या को देखते हुए तथा ऐसे मामले मे डाक्टरों की अकारण गिरफतारी तथा डाक्टरों एवं मरीजों के बीच बढ़ते अविश्वास को देखते हुए सरकार को नियम बनाने निर्देशित किया गया है कि मेडिकल कौसिंल आफ इंडिया के साथ मिलकर उसेनियम बनाना चाहिए और मानक निर्धारित किया जाना चाहिए कि किस स्तर की उपेक्षा एवं लापरवाही अपराध दायित्व की श्रेणी में आती है।
इस संबंध में डाक्टरों की ऐसे मामलों में अकारणगिरफतारी न की जाए ऐसे दिशा निर्देश भी दिए गए है
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अनेक मामलों में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब तक डाक्टर के द्वारा घोर उपेक्षा जानबूझकर घोर लापरवाही न की जाए तब तक उसके काम को अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
घोर उपेक्षा को भा0दं0सं0 में परिभाषित नहीं किया गया है माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे चिकित्सीय उपेक्षा के मामले में परिभाषित किया गया है। सामान्य अर्थ में उपेक्षा का अर्थ उस सतर्कता का अभाव है जिसको कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में प्रयुक्त करना विधिक कत्र्तव्य होता है। उपेक्षा आशय के विपरीत एक मानसिक अवस्था को प्रदर्शित करती है जिसमें कि किसी विशिष्ट परिणाम कारित करने की इच्छा का अभाव रहता है। इसका अर्थ प्रमाद अथवा असावधानी ही है।
उपेक्षा मंे वह परिणाम की इच्छा नहीं की जाती है न ही उसके उत्पन्न करने के लिए कार्य कियाजाता है जो परिणाम उत्पन्न होते है संक्षेप में उपेक्षा का अर्थ दोषपूर्ण असावधानी है। उपेक्षा के मामले में पक्षकार वह कार्य नहीं करता है जिसके करने के लिए वह सक्षम है वह एक निश्चात्मक कत्र्तव्य का उल्लघन करता है यहां वह उस कार्य की ओर ध्यान नहीं देता है जिसको करनाउसका कत्र्तव्य है।
इसलिए अनुचित चिकित्सा उपचार जिसमें कि सामान्य ज्ञान और कुशलता का अभाव होगा और जो सद्भावना पूर्वक नहीं किया गया हो वही चिकित्सीय उपचार उपेक्षा की श्रेणी में आता है। यदि कोई डाक्टरद्वारा अनुचित अशुद्ध उपचार सद्भावनापूर्वक सामान्य ज्ञान तथा कुशलतापूर्वक किया गया है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता है और केवल सिविल दायित्व ही उत्पन्न करता है।
भा0दं0वि0 की धारा -88 92 93 में चिकित्सक द्वारा उनके समान अंन्य प्रोफेशनल व्यक्तियां को विशेष परिस्थितियों में कार्य किए जाने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा चिकित्सक के कार्य को तब तक अपराधिक कार्य नहीं माना जा सकता है जब तक उसके द्वारा इलाज करने में तीव्र उपेक्षा व उच्च स्तर की लापरवाही नहीं बरती गयी है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सुरेश गुप्ता बनाम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (2004)6 एस0सी0सी0-422 मे पारित दिशा निर्देशों के अनुसार चिकित्सीय उपचार के दौरान प्रत्येक दुर्घटना या मृत्यु के लिए चिकित्सीय व्यक्ति के खिलाफ सजा के लिए कार्यव्राही नहीं की जा सकती। उनके दोष को इंगित करते हुए पर्याप्त चिकित्सीय अभिमत के बिना चिकित्सगण का दांडिक अभियोजन समुदाय में आम जनता की गलत सेवा होगी, क्योंकि यदि न्यायालयें, अस्पतालों और चिकित्सकों पर प्रत्येक बात जो गलत होती है, के लिए दांडिक दायित्व अधिरोपित किया जाता है, तो चिकित्सकगण उनके रोगियों का सर्वोत्तम उपचार करने की अपेक्षा उनके स्वयं की सुरक्षा के बारे में अधिक चितिंत होगें। यह चिकित्सक और रोगी के मध्य आपसी विश्वास हिल जाने में परिणित होगा।
चिकित्सक के अस्पताल या दवाखाना में प्रत्येक दुर्घटना या दुर्भाग्य उसका सदोष उपेक्षा के अपराध के लिए परीक्षण करने के लिए उपेक्षा का घोर कृत्य नहीं है। ृ इसी प्रकार माननीय उच्चतम न्यायालयेद्वारा जैकब मैथ्यु बनाम स्टेट आॅफ पंजाब, ए0आई0आर0 2005, सु0को0-3180 में यह अभिनिर्धारित किया है कि प्रोफेशनल व्यक्ति को उपेक्षा के लिए दो आधारों पर दायी माना जा सकता है। या तो उसके पास वह अपेक्षित कौशल न हो जिसके होने के संबंध में वह दर्शाता है अथवा उसके द्वारा युक्तियुक्त सक्षमता से कौशल न किया गया हो। यह निर्णीत करने के लिए कि व्यक्ति उपेक्षा का दोषी था अथवा नहीं मानक यह होगा कि क्या साधारण सक्षम व्यक्ति की तरह उस पेशे के साधारण कौशल काउपयोग किया गया था। यह स्पष्ट किया गया कि प्रत्येक प्रोफेशनल के लिए उस ब्रांच मे जिसमें कि वह प्रेक्टिस करता है उच्च स्तर की विशेषज्ञता को धारण करना अथवा कौशल को धारण करना संभव नहीं होता है।
इसी प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालयद्वारा आगे यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब मरीज चिकित्सीय इलाज अथवा सर्जिकल आॅपरेशन के लिए सहमत होता है तो मेडिकल मेन के प्रत्येक उपेक्षावान कृत्य को आपराधिक होना नहीं कहा जा सकता है। इसे उसदशा में ही आपराधिक होना कहा जा सकता है जबकि चिकित्सकीय व्यक्ति घोर अक्षमता वाला प्रदर्शित करे अथवा उसके द्वारा घोर लापरवाही की गयी हो। मात्र अनवधानता अथवा कतिपय डिग्री की पर्याप्त केयर एवं सर्तकता का अभाव होने पर सिविल दायित्व ही सृजित होगां। इस आधार पर आपराधिक दायित्व सृजित नहीं होगा।
डा0 उषा बाधवा बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0 2003(2)एम0पी0डब्ल्यु0एन0 -92,
रूपलेखा बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0 2006 (3) एम0पी0एल0जे0- 120
डा0 अशोक लोधा बनाम स्टेट आॅफ एम0 पी0 2005 (3) एम0पी0एल0जे0-281
हसमुख बनाम स्टेट आॅफ एम0पी0-2005 क्रि0लाॅ0रि0-844 खुशलदास बनाम स्टेट 1959 एम0पी0एल0जे0-966 म0प्र0 1959 जे0एल0जे0-602 म0प्र0 ए0आई0आर0-1960 म0प्र0-50 आादि मामले में
म0प्र0 उच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त अभिनिर्धारित सिद्धांतों के आधार पर चिकित्सीय उपेक्षा को वर्णित किया है।इस प्रकार चिकित्सीय कार्य तभी आपराधिक उपेक्षा की श्रेणी में आएगा:-
1 जब चिकित्सीय व्यक्ति घोर अक्षमता प्रदर्शित करें।
2 जब चिकित्सीय व्यक्ति द्वारा घोर उच्च स्तर की लापरवाही बरती जाए।
3 जब चिकित्सक के द्वारा युक्तियुक्त सक्षमता से उस कौशल का उपयोग न किया गया हो, जिसे वह धारण करता है।
4 जब चिकित्सक के द्वारा किए गए कार्य और निकाले गए इलाज केे परिणाम का प्रत्यक्ष निकटतम संबंध हो।
5 जब उसके द्वारा साधारण व्यक्ति की तरह अपने पेशे में धारण कौशल का साधारण तरीके से उपयोग किया गया है।
6 जब चिकित्सीय रिपोर्ट या अन्य चिकित्सक कीयह राय हो कि उचित इलाज नहीं हुआ है और चिकित्सक की राय के अनुसार कार्य तीव्रतापूर्वक अथवा अत्यधिक उपेक्षापूर्ण कृत्य की कोटि में आता है।
7 चिकित्सीय उपेक्षा में आपराधिक दायित्व के लिए रे ईप्सा लाक्यूटर (घटना स्वयं बोलती है) का सिद्धांत लागू नहीं होता है। क्योंकि यह नियम साक्ष्य की विषय वस्तु है और इसके आधार पर केवल सिविल दायित्व अपेक्षित किया जा सकता है
8 चिकित्सीय उपेक्षा का टेस्ट बाॅलम टेस्ट बोलम बनाम फीयर अस्पताल प्रबंधन समिति 1957 (2) आॅल0ई0आर0 118 में निर्धारित मानकों के अनुसार करना चाहिए अर्थात यदि कोई व्यक्ति चिकित्सीय विज्ञान से अथवा सर्जरी की प्रेक्टिस से पूरी तरह अनभिज्ञ हो ओैर वह इलाज करे अथवा आॅपरेशन करे तो उसके इस कृत्य के संबंध में गंभीर उपेक्षा अथवा तीव्रता का अनुमान
लगाया जा सकता है।
9 सिविल दायित्व और आपराधिक दायित्व में अंतर होता है कोई उपेक्षा सिविल दायित्व उत्पन्न कर सकती है, जरूरी नहीं कि वह आपराधिक दायित्व उत्पन्न करे। कतिपय डिग्री की पर्याप्त केयर एवं सर्तकता का अभाव होने पर सिविल दायित्व होता है। मात्र आवश्यक सर्तकता ध्यान देने या कोैशल अपनाने की मात्र कमी होने पर सिविल दायित्व उत्पन्न होताहै।
उपरोक्त दशाओं में चिकित्सक का कार्य अपराध की श्रेणी में आता है।
यही कारण है कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जैकब मैथ्यू के मामले में देश में बढ़ते डाक्टरों के विरूद्ध आपराधिक मामलों की संख्या को देखते हुए तथा ऐसे मामले मे डाक्टरों की अकारण गिरफतारी तथा डाक्टरों एवं मरीजों के बीच बढ़ते अविश्वास को देखते हुए सरकार को नियम बनाने निर्देशित किया गया है कि मेडिकल कौसिंल आफ इंडिया के साथ मिलकर उसेनियम बनाना चाहिए और मानक निर्धारित किया जाना चाहिए कि किस स्तर की उपेक्षा एवं लापरवाही अपराध दायित्व की श्रेणी में आती है।
इस संबंध में डाक्टरों की ऐसे मामलों में अकारणगिरफतारी न की जाए ऐसे दिशा निर्देश भी दिए गए है
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