आपराधिक मामले में आयु निर्धारण
किसी भी आपराधिक प्रकरण में आरोपी अथवा पीडित व्यक्ति की आयु निर्धारण का प्रश्न विचाराधीन हो अथवा अवयस्क के साथ होने वाले अपराधों के संबंध में पीडित व्यक्ति की आयु प्रश्नगत हो अथवा बाल अपराधी की आयु प्रश्नगत हो तो ऐसे व्यक्तियों की आयु निर्धारण के निम्न लिखित तरीके हैं:-
(1) ऐसे व्यक्ति के जन्म प्रमाणपत्र से आयु का निर्धारण करना ।
(2) ऐसे व्यकित की स्कूली शिक्षा विशेषकर हाई स्कूल प्रमाणपत्र एवं स्कूल की प्रवेश पंजी से आयु का निर्धारण ।
(3) ऐसे व्यक्ति के माता पिताकी मौखिक साक्ष्य के द्वारा आयु का निर्धारण।
(4) ऐसे व्यक्ति के चिकित्सीय परीक्षण द्वारा आयु का निर्धारण करना ।
उक्त तरीको के साथ ही व्यक्ति की भौतिक संरचना,लंबाई,भार,शारीरिक बनावट आदि से भी उसकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है । यहंा अभियुक्त या पीडित व्यक्ति कि आयु निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षणकी साक्ष्य पर विचार किया जाना है । उक्त र्निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षण में मुख्यतः दंत परीक्षण,अस्थी संयोजन द्वारा आयु का अनुमान लगाया जाता है ।
इस प्रकार उपरोक्तानुसार किसी पीडित व्यक्ति या अभियुक्त व्यक्ति की आयु का निर्धारण महत्बपूर्ण है । साक्ष्य विधि में चिकित्सीय परीक्षण के आधार पर अनुमानित आयु निश्चायक साक्ष्य नहीं मानी जाती है,किंतु ऐसी साक्ष्यकी प्रकृति सुसंगत होती है ।
साक्ष्य विधि में इस प्रकार चिकित्सीय परीक्षण के आधार पर अनुमानित आयु निश्चायक साक्ष्य नहीं मानी जाती,लेकिन ऐसी साक्ष्य की प्रकृति सुसंगत होती है ।
इस संबंध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के अनुसार:-
जब न्यायालय को विदेशी विधि की या विज्ञान की या कला की किसी बात पर हस्तलेख या अंगुली चिन्हों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि विज्ञान या कला में या हस्तलेख या अंगुली चिन्होें की अनन्यतः विषयक प्रश्नों में विशेष कुशल व्यक्तियों की राय सुसंगत तथ्य है तथा ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते हैं ।
स्पष्ट तौर पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम 45 के अनुसार किसी क्षे़त्र के विशेषज्ञ की राय सुसंगत तथ्य अवश्य हैं किंतु वह राय निश्चायक सबूत नहीं है ।
तत्संबंध में अवलोकनीय न्यायदृष्टांत रामस्वरूप वि0 उत्तर प्रदेश राज्य 1989 क्रिमिनल लाॅ जनरल 24,35 इलाहाबाद के अनुसार पीडित व्यक्ति के आयु अवधारण हेतु एक्सरे परीक्षण के माध्यम से बताई गई आयु स्वीकार किये जानने योग्य मानी जावेगी ।
यहंा यह भी उल्लेखनीय है कि यदि एक्सरे परीक्षण व चिकित्सीय साक्ष्य में तथा प्रश्नगत पीडित या अभियुक्त व्यक्ति के शाला अभिलेख या अंकसूची जो कि उचित रूपसे संधारित अभिलेख की प्रविष्टी होते है तो चिकित्सीय साक्ष्य में उसे वरीयता दी जावेगी,
क्योंकि वह अभिलेख धारा 35 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार किसी लोक या राजकीय पुस्तक रजिस्टर या रिकार्ड अथवा इलेक्ट्रानिक, रिकार्ड में की गई प्रविष्टी के किसी निश्चायक साक्ष्य सुसंगत तथ्य का कथन करती और किसी लोक सेवक द्धारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में या उस देश की जिसमें ऐसी पुस्तक रजिस्टर या रिकार्ड ,इलेक्ट्रानिक रिकार्ड रखा जाता है विधि द्वारा विशेष रूप से व्यादिष्ट कर्तव्य के पालन में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई है स्वंय सुसंगत तथ्य है ।
इस संबंधमें न्यायदृष्टांत 1997 क्रिमिनल लाॅ जनरल,2842 मोहन लोहट वि0 राज्य एवं अन्य 1983 एम.पी.एल.जे. 855 अवलोकनीय है जिसमें पीडित व्यक्ति के अस्थी परीक्षण की अपेक्षा शाला अभिलेख को अधिक विश्वसनीय माना गया है ।
न्यायदृष्टांत 2008(1) एम.पी.एल.जे. (क्रिमिनल) 2004,अनुजसिंह वि0 म0प्र0राज्य में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया है कि
, जहंा घटना के समय अभियुक्त की आयु 18 वर्ष से कम या अधिक होना प्रश्नगत हो तथा स्कूल रजिस्टर में जन्मतिथी 18 वर्ष से कम आयु की प्रकट हो एवं अस्थी जंाच आसिफिकेशन टेस्ट में उसकी आयु 19 वर्ष बताई गई हो तो इस संबंध में दो दृष्टीकोण संभावित हो जाते हैं ।
यह सुस्थापित विधि सिद्धांत है कि जब दो दृष्टीकोण हो तब जो अभियुक्त के हित में हो वह दृष्टीकोण स्स्वीकार किया जाना चाहिये इस दृष्टी से आसिफिकेशन टेस्ट में अनुमानित आयु में दो वर्ष पूर्व एवं पश्चात् का अनुमान लगायाजाता है । इस कारण अभियुक्त के हित में उसे 18 वर्ष से अधिक होने का निष्कर्ष निकालना त्रुटीपूर्ण होगा
इसके साथ ही न्याय दृष्टांत दयाचंद वि0 साहिब सिंह ए.आई.आर. 1991 सु.को. 93 में यह अवधारित है कि, जहाॅं दो स्कूल के प्रमाण पत्रों मे भिन्न आयु दर्शायी हो, वहाॅं मेडीकल बोर्ड के द्वारा व रेडियोलाॅजिस्ट टेस्ट के द्वारा बताई गई आयु को वरीयता दी जानी चाहिये ।
आयु निर्धारण का किसी भी आपराधिक मामले में महत्बपूर्ण स्थान होता है और निम्न परिस्थितियों में आयु निर्धारण की साक्ष्य महत्बपूर्ण हो जाती है ।
(1) आपराधिक उत्तर दायित्वः- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 में 7 वर्ष से कम आयु के बालक द्धारा किया गया कार्य अपराध नहीं माना गया है । धारा 83 में 7 से 12 वर्ष की आयु के बीच के बालक के द्वारा किया गया अपराध तभी अपराध माना गया है जब वह कार्य की प्रकृति को समझ कर अपराध करता है धारा 89 में 12 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति सम्मति देने में समर्थ नहीं है और धारा 87 के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति विधि मान्य सम्मति मृत्यु और घोर उपहति के लिए नहीं दे सकता ।
(2) न्यायिक दण्डः- किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण ) अधिनियम 2000 के अनुसार किशोर की आयु 18 वर्ष से कम है तो उस पर अधिनियम के अंतर्गत प्रकरण किशोर न्यायबोर्ड के समक्ष चलेगा एवं अपराध साबित हो जाने पर उन्हे अधिकतम सुधार गृह भेजा जाता है ।
(3) व्यपहरण :- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361,366,369,372,373 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से अपहरण के अपराध हैं जिन्हे साबित करने हेतु पीडित की आयु का निर्धारण किया जाना महत्बपूर्ण है।
(4) बलात्संग:- धारा 375 भा.द.सं. में परिभाषित बलात्संग के अपराध में भी पीडित की आयु महत्बपूर्ण है जिसके साबित होने पर ही अपराध की प्रकृति अनुसार दंड निर्धारित होता है ।
(5) विवाह:- बाल विवाह निषेद्ध अधिनियम 1929 में भी बधु की आयु 18 वर्ष तथा वर की आयु 21 वर्ष से कम न होना निर्धारित है जिसका उल्लंधन दण्डनीय अपराध है ।
(6) प्राप्तवय:- भारत में प्राप्त वय 18 वर्ष की आयु में होना माना जाता है । इससे कम आयु के व्यक्ति के अवयस्क होने से संपत्ती संबंधी कानूनों ,संरक्षता संबंधी विधि में एवं सहमति का अधिकार न होने से ऐसे अधिकार वयस्क होने पर ही प्राप्त माने जाते हैं ।
(7) सेवा या नियोजनः-सामान्यतया18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को शासकीय सेवा में या अन्य निकाय में नियोजन का पात्र नहीं माना जाता ।
(8) शिशु हत्या एवं गर्भपात:- शिशु हत्या एवं गर्भपात के मामले में भी आपराधिक दायित्व के निर्धारण में शिशु या गर्भ की आयु महत्बपूर्ण है ।
(9) व्यक्तिगत पहचान:- किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान निर्धारित करने में भी आयु का अनुमान महत्बपूर्ण होता है ।
निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि किसी आपराधिक मामले में पीडित व्यक्ति या अभियुक्त की आयु प्रश्नगत हो तब सर्वप्रथम उसकी आयु निर्धारण महत्बपूर्ण है एवं आयु निर्धारण हेतु प्रत्येक प्रकरण में परिस्थिति अनुसार उपलब्ध साक्ष्य जो शाला दस्ताबेज हो अथवा चिकित्सीय साक्ष्य हो अथवा अन्य साक्ष्य हो उस साक्ष्य की विश्वसनीयता के आधार पर आयु निर्धारण किया जाना चाहिये ।
किसी भी आपराधिक प्रकरण में आरोपी अथवा पीडित व्यक्ति की आयु निर्धारण का प्रश्न विचाराधीन हो अथवा अवयस्क के साथ होने वाले अपराधों के संबंध में पीडित व्यक्ति की आयु प्रश्नगत हो अथवा बाल अपराधी की आयु प्रश्नगत हो तो ऐसे व्यक्तियों की आयु निर्धारण के निम्न लिखित तरीके हैं:-
(1) ऐसे व्यक्ति के जन्म प्रमाणपत्र से आयु का निर्धारण करना ।
(2) ऐसे व्यकित की स्कूली शिक्षा विशेषकर हाई स्कूल प्रमाणपत्र एवं स्कूल की प्रवेश पंजी से आयु का निर्धारण ।
(3) ऐसे व्यक्ति के माता पिताकी मौखिक साक्ष्य के द्वारा आयु का निर्धारण।
(4) ऐसे व्यक्ति के चिकित्सीय परीक्षण द्वारा आयु का निर्धारण करना ।
उक्त तरीको के साथ ही व्यक्ति की भौतिक संरचना,लंबाई,भार,शारीरिक बनावट आदि से भी उसकी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है । यहंा अभियुक्त या पीडित व्यक्ति कि आयु निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षणकी साक्ष्य पर विचार किया जाना है । उक्त र्निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षण में मुख्यतः दंत परीक्षण,अस्थी संयोजन द्वारा आयु का अनुमान लगाया जाता है ।
इस प्रकार उपरोक्तानुसार किसी पीडित व्यक्ति या अभियुक्त व्यक्ति की आयु का निर्धारण महत्बपूर्ण है । साक्ष्य विधि में चिकित्सीय परीक्षण के आधार पर अनुमानित आयु निश्चायक साक्ष्य नहीं मानी जाती है,किंतु ऐसी साक्ष्यकी प्रकृति सुसंगत होती है ।
साक्ष्य विधि में इस प्रकार चिकित्सीय परीक्षण के आधार पर अनुमानित आयु निश्चायक साक्ष्य नहीं मानी जाती,लेकिन ऐसी साक्ष्य की प्रकृति सुसंगत होती है ।
इस संबंध में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के अनुसार:-
जब न्यायालय को विदेशी विधि की या विज्ञान की या कला की किसी बात पर हस्तलेख या अंगुली चिन्हों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि विज्ञान या कला में या हस्तलेख या अंगुली चिन्होें की अनन्यतः विषयक प्रश्नों में विशेष कुशल व्यक्तियों की राय सुसंगत तथ्य है तथा ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते हैं ।
स्पष्ट तौर पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम 45 के अनुसार किसी क्षे़त्र के विशेषज्ञ की राय सुसंगत तथ्य अवश्य हैं किंतु वह राय निश्चायक सबूत नहीं है ।
तत्संबंध में अवलोकनीय न्यायदृष्टांत रामस्वरूप वि0 उत्तर प्रदेश राज्य 1989 क्रिमिनल लाॅ जनरल 24,35 इलाहाबाद के अनुसार पीडित व्यक्ति के आयु अवधारण हेतु एक्सरे परीक्षण के माध्यम से बताई गई आयु स्वीकार किये जानने योग्य मानी जावेगी ।
यहंा यह भी उल्लेखनीय है कि यदि एक्सरे परीक्षण व चिकित्सीय साक्ष्य में तथा प्रश्नगत पीडित या अभियुक्त व्यक्ति के शाला अभिलेख या अंकसूची जो कि उचित रूपसे संधारित अभिलेख की प्रविष्टी होते है तो चिकित्सीय साक्ष्य में उसे वरीयता दी जावेगी,
क्योंकि वह अभिलेख धारा 35 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार किसी लोक या राजकीय पुस्तक रजिस्टर या रिकार्ड अथवा इलेक्ट्रानिक, रिकार्ड में की गई प्रविष्टी के किसी निश्चायक साक्ष्य सुसंगत तथ्य का कथन करती और किसी लोक सेवक द्धारा अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में या उस देश की जिसमें ऐसी पुस्तक रजिस्टर या रिकार्ड ,इलेक्ट्रानिक रिकार्ड रखा जाता है विधि द्वारा विशेष रूप से व्यादिष्ट कर्तव्य के पालन में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई है स्वंय सुसंगत तथ्य है ।
इस संबंधमें न्यायदृष्टांत 1997 क्रिमिनल लाॅ जनरल,2842 मोहन लोहट वि0 राज्य एवं अन्य 1983 एम.पी.एल.जे. 855 अवलोकनीय है जिसमें पीडित व्यक्ति के अस्थी परीक्षण की अपेक्षा शाला अभिलेख को अधिक विश्वसनीय माना गया है ।
न्यायदृष्टांत 2008(1) एम.पी.एल.जे. (क्रिमिनल) 2004,अनुजसिंह वि0 म0प्र0राज्य में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया है कि
, जहंा घटना के समय अभियुक्त की आयु 18 वर्ष से कम या अधिक होना प्रश्नगत हो तथा स्कूल रजिस्टर में जन्मतिथी 18 वर्ष से कम आयु की प्रकट हो एवं अस्थी जंाच आसिफिकेशन टेस्ट में उसकी आयु 19 वर्ष बताई गई हो तो इस संबंध में दो दृष्टीकोण संभावित हो जाते हैं ।
यह सुस्थापित विधि सिद्धांत है कि जब दो दृष्टीकोण हो तब जो अभियुक्त के हित में हो वह दृष्टीकोण स्स्वीकार किया जाना चाहिये इस दृष्टी से आसिफिकेशन टेस्ट में अनुमानित आयु में दो वर्ष पूर्व एवं पश्चात् का अनुमान लगायाजाता है । इस कारण अभियुक्त के हित में उसे 18 वर्ष से अधिक होने का निष्कर्ष निकालना त्रुटीपूर्ण होगा
इसके साथ ही न्याय दृष्टांत दयाचंद वि0 साहिब सिंह ए.आई.आर. 1991 सु.को. 93 में यह अवधारित है कि, जहाॅं दो स्कूल के प्रमाण पत्रों मे भिन्न आयु दर्शायी हो, वहाॅं मेडीकल बोर्ड के द्वारा व रेडियोलाॅजिस्ट टेस्ट के द्वारा बताई गई आयु को वरीयता दी जानी चाहिये ।
आयु निर्धारण का किसी भी आपराधिक मामले में महत्बपूर्ण स्थान होता है और निम्न परिस्थितियों में आयु निर्धारण की साक्ष्य महत्बपूर्ण हो जाती है ।
(1) आपराधिक उत्तर दायित्वः- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 में 7 वर्ष से कम आयु के बालक द्धारा किया गया कार्य अपराध नहीं माना गया है । धारा 83 में 7 से 12 वर्ष की आयु के बीच के बालक के द्वारा किया गया अपराध तभी अपराध माना गया है जब वह कार्य की प्रकृति को समझ कर अपराध करता है धारा 89 में 12 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति सम्मति देने में समर्थ नहीं है और धारा 87 के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति विधि मान्य सम्मति मृत्यु और घोर उपहति के लिए नहीं दे सकता ।
(2) न्यायिक दण्डः- किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण ) अधिनियम 2000 के अनुसार किशोर की आयु 18 वर्ष से कम है तो उस पर अधिनियम के अंतर्गत प्रकरण किशोर न्यायबोर्ड के समक्ष चलेगा एवं अपराध साबित हो जाने पर उन्हे अधिकतम सुधार गृह भेजा जाता है ।
(3) व्यपहरण :- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361,366,369,372,373 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से अपहरण के अपराध हैं जिन्हे साबित करने हेतु पीडित की आयु का निर्धारण किया जाना महत्बपूर्ण है।
(4) बलात्संग:- धारा 375 भा.द.सं. में परिभाषित बलात्संग के अपराध में भी पीडित की आयु महत्बपूर्ण है जिसके साबित होने पर ही अपराध की प्रकृति अनुसार दंड निर्धारित होता है ।
(5) विवाह:- बाल विवाह निषेद्ध अधिनियम 1929 में भी बधु की आयु 18 वर्ष तथा वर की आयु 21 वर्ष से कम न होना निर्धारित है जिसका उल्लंधन दण्डनीय अपराध है ।
(6) प्राप्तवय:- भारत में प्राप्त वय 18 वर्ष की आयु में होना माना जाता है । इससे कम आयु के व्यक्ति के अवयस्क होने से संपत्ती संबंधी कानूनों ,संरक्षता संबंधी विधि में एवं सहमति का अधिकार न होने से ऐसे अधिकार वयस्क होने पर ही प्राप्त माने जाते हैं ।
(7) सेवा या नियोजनः-सामान्यतया18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को शासकीय सेवा में या अन्य निकाय में नियोजन का पात्र नहीं माना जाता ।
(8) शिशु हत्या एवं गर्भपात:- शिशु हत्या एवं गर्भपात के मामले में भी आपराधिक दायित्व के निर्धारण में शिशु या गर्भ की आयु महत्बपूर्ण है ।
(9) व्यक्तिगत पहचान:- किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान निर्धारित करने में भी आयु का अनुमान महत्बपूर्ण होता है ।
निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि किसी आपराधिक मामले में पीडित व्यक्ति या अभियुक्त की आयु प्रश्नगत हो तब सर्वप्रथम उसकी आयु निर्धारण महत्बपूर्ण है एवं आयु निर्धारण हेतु प्रत्येक प्रकरण में परिस्थिति अनुसार उपलब्ध साक्ष्य जो शाला दस्ताबेज हो अथवा चिकित्सीय साक्ष्य हो अथवा अन्य साक्ष्य हो उस साक्ष्य की विश्वसनीयता के आधार पर आयु निर्धारण किया जाना चाहिये ।
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