धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत ‘‘मृत्यु समीक्षा‘‘ एवं धारा-176 (1-ए) दं0प्र0सं0 जांच
भारतीय संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, इसलिए कि व्यक्ति के साथ न्याय हो। अतः मृत्यु समीक्षा के अलावा न्यायिक मजिस्टेªट द्वारा भी जांच के प्रावधान धारा-176 (1-ए) के अंतर्गत दं0प्र0सं0 में जोड़े गये हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य यह है कि:-
1- किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता या नागरिक अधिकार अन्यायपूर्ण तरीके से न छीनें जाये।
2- कोई भी व्यक्ति जिसकी स्वतंत्रता छीन ली गई है अभिरक्षा में रहे व्यक्तियों की निर्दयता और उपेक्षा का शिकार न बनने पाये।
3- किसी भी मृत व्यक्ति की जो जमीन में गाड़ दिया गया है पहचान हो सके और मृत्यु के कारणों का पता चल सके।
4- यदि मृत्यु या मामले पर संदेह हो, तो मामला न्यायिक मृत्यु समीक्षा में सुलझना चाहिए न कि पुलिस मृत्यु समीक्षा से।
5- यह कि, पुलिस अभिरक्षा के दौरान मृत्यु या बलात्कार होने पर पीडि़त व्यक्ति को न्याय प्राप्त हो सके और दोषी को सजा प्राप्त हो सके।
उपरोक्त मानवीय दृष्टिाकोण को ध्यान में रखते हुए न्यायिक मजिस्टेªट के द्वारा मृत्यु समीक्षा के अधिकार दं0प्र0सं0 मंे दिये गये हैं।
मृत्यु समीक्षा:-समीक्षा का अर्थ है, तथ्य की विधिवत जांच चिकित्सा न्यायशास्त्र में मृत्यु समीक्षा का अर्थ है मृत्यु के उन कारणों की जांच जो प्राकृतिक कारण नहीं लगते। जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो विधि के अंतर्गत यह आवश्यक है, कि जांच की जाए कि मृत्यु प्राकृतिक या अप्राकृतिक किन कारणों से हुई है।
यदि मृत्यु प्राकृतिक कारणों जैसे हृदयधमनी अवरोध, कर्क रोग, फुफ््फुसशोथ आदि से हुई है तो आगे की जांच आवश्यक नहीं है और शव की अंत्येष्ठि क्रिया उसके धार्मिक संस्कारों के अनुसार कर दी जाती है।
यदि मृत्यु अप्राकृतिक कारणों से हुई है तो यह आवश्यक है, कि मृत्यु के कारण की जांच की जाए (मृत्यु समीक्षा) और अपराधी को पकड़कर दंड दिया जाए। ऐसी मृत्यु को अप्राकृतिक या संदेहास्पद मृत्यु कहते हैं और यह जरूरी है, कि उसकी रिपोर्ट अधिकारियों को की जाए ताकि अन्वेषण हो सके।
धारा-176 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मृत्यु के कारण की मजिस्टेªट द्वारा जांच के प्रावधान दिये गये हैं।
निम्नलिखित परिस्थितियों में मजिस्टेªट मृत्यु की जांच कर सकता है
1- जब किसी व्यक्ति की मृत्यु पुलिस की अभिरक्षा में हुई है।
2- जब मृत्यु उन परिस्थितियों में हुई है जो धारा-174 में पुलिस द्वारा जांच के संबंध में बताई गई है।
धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की जांच की आवश्यकता है -
जब (1) किसी व्यक्ति ने आत्महत्या की है, या
(2) किसी व्यक्ति की हत्या की गई है, या
(3) किसी व्यक्ति की मृत्यु-
1. किसी पशु द्वारा, या
2. किसी मशीन द्वारा,
3. किसी दुर्घटना में हुई है, या
(4) किसी व्यक्ति की मृत्यु ऐसी परिस्थितियों में हुई है कि जिससे ऐसा संदेह है, कि उसके साथ किसी ने अपराध किया है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 द्वारा-
धारा-176 (1) (क) जोड़ी गई है जिसके अनुसार पुलिस द्वारा की जा रही जांच और विवेचना के अतिरिक्त न्यायिक मजिस्टेªट या महानगरीय मजिस्टेªट जैसा भी मामला हो जिसकी स्थानीय क्षेत्राधिकारिता में अपराध हुआ है, उसके द्वारा जांच की जाएगी। ऐसी जांच निम्नलिखित मामलों में की जाएगी।
1. जहाॅ कोई व्यक्ति या महिला पुलिस अभिरक्षा में है या मजिस्टेªट या न्यायालय द्वारा प्राधिकृत अभिरक्षा में है और इस दौरान.......................................
जहाॅ कोई व्यक्ति मर जाता है,
जहाॅ कोई व्यक्ति गायब हो जाता है,
जहाॅ किसी स्त्री के साथ बलात्कार किया जाना अपेक्षित है,
वहाॅ पर न्यायिक मजिस्टेªट द्वारा जांच की जाएगी।
जांच की प्रक्रिया:-
1. ऐसी जांच करने वाला मजिस्टेªट उसके संबंध में लिए गए साक्ष्य को इसमें इसके पश्चात् विहित किसी प्रकार से मामले की परिस्थितियों के अनुसार अभिलिखत करेगा।
2. जब कभी ऐसे मजिस्टेªट के विचार में यह समीचीन है, कि किसी व्यक्ति के, जो पहले ही गाड़ दिया गया है, मृत शरीर की इसलिए परीक्षा की जाए कि उसकी मृत्यु के कारण का पता चले, तब मजिस्टेªट उस शरीर को निकलवा सकता है और उसकी परीक्षा करा सकता है।
3. जहाॅ कोई जांच इस धारा के अधीन की जानी है, वहाॅ मजिस्टेªट जहाॅ कहीं साध्य है, मृतक के उन नातेदारों को, जिनके नाम और पते ज्ञात हैं, इत्तिला देगा और उन्हें जांच के समय उपस्थित रहने की अनुज्ञा देगा। ‘‘नातेदार‘‘ पद से माता-पिता, संतान, भाई-बहिन और पति या पत्नि अभिप्रेत है।
4. जांच अधिकारी किसी व्यक्ति की मृत्यु के 24 घंटे के भीतर शव को परीक्षित किये जाने की दृष्टि से निकटतम सिविल सर्जन या इसके लिये राज्य शासन द्वारा नियुक्त अन्य सुयोग्य चिकित्सकीय व्यक्ति को अग्रेषित करेगा। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो लिखित रूप से ऐसे कारणांे को अभिलिखित किया जावेगा।
धारा-174 दं0प्र0सं0 एवं धारा-176 दं0प्र0सं0 में जांच अंतर
धारा-174 दं0प्र0सं0
धारा-176 दं0प्र0सं0
(1) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत विशेष रूप से नियुक्त मृत्यु समीक्षा करने के लिये सशक्त जिला मजिस्टेªट, उपखंड मजिस्टेªट, कार्यपालिक मजिस्टेªट द्वारा जांच की जाएगी।
जबकि धारा-176 दं0प्र0सं0 (1) (क) के अंतर्गत स्थानीय क्षेत्राधिकारिता के न्यायिक मजिस्टेªट या महानगरीय मजिस्टेªट जिसकी स्थानीय क्षेत्राधिकारिता पर अपराध कारित हुआ, उसके द्वारा जांच की जावेगी।
(2) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मृत्यु के दृष्यमान कारणांे की जांच की जाती है और केवल उसकी रिपोर्ट तैयार की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत साक्ष्य अभिलिखत करके मामले की संपूर्ण जांच कर ही रिपोर्ट तैयार की जाती है और उसमें दोषी व्यक्ति का उल्लेख भी होता है।
(3) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत नियुक्त मजिस्टेªट मृत्यु के कारण की बाबत् संदेह होने पर एवं मृत्यु की समीक्षा कर कारणों का उल्लेख कर यह राय देता है, कि मृत्यु अप्राकृतिक मृत्यु है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत न्यायिक मजिस्टेªट मामले की जांच करता है। साक्षियों के कथन अभिलिखत कर मृत्यु के कारणों का पता लगाकर उसके रिश्तेदारों से पूछताछ कर, शव परीक्षण कराकर उपर्युक्त जांच प्रतिवेदन देता है,जिसमें किये गये अपराध का उल्लेख, जिन व्यक्तियों ने अपराध किया, उनका उल्लेख, कौन सा अपराध किया, उसका उल्लेख होता है और इस प्रकार का जांच प्रतिवेदन आपराधिक कार्यवाही किये जाने के लिये पर्याप्त आधार होता है।
(4) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मौके पर केवल दो अधिक गवाहों को उस समय की वास्तविक स्थिति के दर्शाने हेतु एवं मामले के तथ्यों से परिचित व्यक्तियों को बुलाया जाता है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत मृतक के रिश्तेदार की उपस्थिति में भी जांच की जाती है और संबंधित व्यक्तियों की साक्ष्य अभिलिखित की जाती है, उसके बाद प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है, जिसमंे संपूर्ण परिस्थितियों का वर्णन रहता है।
(5) धारा-174 दं0प्र0सं0 की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट में साक्षियों का वर्णन नहीं रहता है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत की जा रही जांच में साक्षियों के नाम का उल्लेख रहता है।
(6) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जिन परिस्थितियों में मृत्यु होना पाया जाता है उसकी जांच की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत किस व्यक्ति ने अपराध किया उसकी जांच की जाती है।
(7) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच की प्रक्रिया धारा-174 और 175 दं0प्र0सं0 के अनुसार की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत प्रक्रिया निर्धारित नहीं है। इसे जांच अधिकारी स्वयं निर्धारित कर सकता है या जिस अधिकारी ने उसे नियुक्त किया है वह प्रक्रिया को निर्धारित करके दे सकता है।
(8) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच अधिकारी की शक्तियाॅ सीमित हैं।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत जांच करने हेतु मजिस्टेªट को ये सब शक्तियाॅ प्राप्त हैं जो उसे किसी अपराध की जांच विचारण के संबंध में प्राप्त हैं।
इस प्रकार धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत सीमित जांच की जाती है, जबकि धारा-176 (1) (क) दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच का क्षेत्र असीमित हैं।
भारतीय संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, इसलिए कि व्यक्ति के साथ न्याय हो। अतः मृत्यु समीक्षा के अलावा न्यायिक मजिस्टेªट द्वारा भी जांच के प्रावधान धारा-176 (1-ए) के अंतर्गत दं0प्र0सं0 में जोड़े गये हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य यह है कि:-
1- किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता या नागरिक अधिकार अन्यायपूर्ण तरीके से न छीनें जाये।
2- कोई भी व्यक्ति जिसकी स्वतंत्रता छीन ली गई है अभिरक्षा में रहे व्यक्तियों की निर्दयता और उपेक्षा का शिकार न बनने पाये।
3- किसी भी मृत व्यक्ति की जो जमीन में गाड़ दिया गया है पहचान हो सके और मृत्यु के कारणों का पता चल सके।
4- यदि मृत्यु या मामले पर संदेह हो, तो मामला न्यायिक मृत्यु समीक्षा में सुलझना चाहिए न कि पुलिस मृत्यु समीक्षा से।
5- यह कि, पुलिस अभिरक्षा के दौरान मृत्यु या बलात्कार होने पर पीडि़त व्यक्ति को न्याय प्राप्त हो सके और दोषी को सजा प्राप्त हो सके।
उपरोक्त मानवीय दृष्टिाकोण को ध्यान में रखते हुए न्यायिक मजिस्टेªट के द्वारा मृत्यु समीक्षा के अधिकार दं0प्र0सं0 मंे दिये गये हैं।
मृत्यु समीक्षा:-समीक्षा का अर्थ है, तथ्य की विधिवत जांच चिकित्सा न्यायशास्त्र में मृत्यु समीक्षा का अर्थ है मृत्यु के उन कारणों की जांच जो प्राकृतिक कारण नहीं लगते। जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो विधि के अंतर्गत यह आवश्यक है, कि जांच की जाए कि मृत्यु प्राकृतिक या अप्राकृतिक किन कारणों से हुई है।
यदि मृत्यु प्राकृतिक कारणों जैसे हृदयधमनी अवरोध, कर्क रोग, फुफ््फुसशोथ आदि से हुई है तो आगे की जांच आवश्यक नहीं है और शव की अंत्येष्ठि क्रिया उसके धार्मिक संस्कारों के अनुसार कर दी जाती है।
यदि मृत्यु अप्राकृतिक कारणों से हुई है तो यह आवश्यक है, कि मृत्यु के कारण की जांच की जाए (मृत्यु समीक्षा) और अपराधी को पकड़कर दंड दिया जाए। ऐसी मृत्यु को अप्राकृतिक या संदेहास्पद मृत्यु कहते हैं और यह जरूरी है, कि उसकी रिपोर्ट अधिकारियों को की जाए ताकि अन्वेषण हो सके।
धारा-176 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मृत्यु के कारण की मजिस्टेªट द्वारा जांच के प्रावधान दिये गये हैं।
निम्नलिखित परिस्थितियों में मजिस्टेªट मृत्यु की जांच कर सकता है
1- जब किसी व्यक्ति की मृत्यु पुलिस की अभिरक्षा में हुई है।
2- जब मृत्यु उन परिस्थितियों में हुई है जो धारा-174 में पुलिस द्वारा जांच के संबंध में बताई गई है।
धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में मृत्यु के कारणों की जांच की आवश्यकता है -
जब (1) किसी व्यक्ति ने आत्महत्या की है, या
(2) किसी व्यक्ति की हत्या की गई है, या
(3) किसी व्यक्ति की मृत्यु-
1. किसी पशु द्वारा, या
2. किसी मशीन द्वारा,
3. किसी दुर्घटना में हुई है, या
(4) किसी व्यक्ति की मृत्यु ऐसी परिस्थितियों में हुई है कि जिससे ऐसा संदेह है, कि उसके साथ किसी ने अपराध किया है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 द्वारा-
धारा-176 (1) (क) जोड़ी गई है जिसके अनुसार पुलिस द्वारा की जा रही जांच और विवेचना के अतिरिक्त न्यायिक मजिस्टेªट या महानगरीय मजिस्टेªट जैसा भी मामला हो जिसकी स्थानीय क्षेत्राधिकारिता में अपराध हुआ है, उसके द्वारा जांच की जाएगी। ऐसी जांच निम्नलिखित मामलों में की जाएगी।
1. जहाॅ कोई व्यक्ति या महिला पुलिस अभिरक्षा में है या मजिस्टेªट या न्यायालय द्वारा प्राधिकृत अभिरक्षा में है और इस दौरान.......................................
जहाॅ कोई व्यक्ति मर जाता है,
जहाॅ कोई व्यक्ति गायब हो जाता है,
जहाॅ किसी स्त्री के साथ बलात्कार किया जाना अपेक्षित है,
वहाॅ पर न्यायिक मजिस्टेªट द्वारा जांच की जाएगी।
जांच की प्रक्रिया:-
1. ऐसी जांच करने वाला मजिस्टेªट उसके संबंध में लिए गए साक्ष्य को इसमें इसके पश्चात् विहित किसी प्रकार से मामले की परिस्थितियों के अनुसार अभिलिखत करेगा।
2. जब कभी ऐसे मजिस्टेªट के विचार में यह समीचीन है, कि किसी व्यक्ति के, जो पहले ही गाड़ दिया गया है, मृत शरीर की इसलिए परीक्षा की जाए कि उसकी मृत्यु के कारण का पता चले, तब मजिस्टेªट उस शरीर को निकलवा सकता है और उसकी परीक्षा करा सकता है।
3. जहाॅ कोई जांच इस धारा के अधीन की जानी है, वहाॅ मजिस्टेªट जहाॅ कहीं साध्य है, मृतक के उन नातेदारों को, जिनके नाम और पते ज्ञात हैं, इत्तिला देगा और उन्हें जांच के समय उपस्थित रहने की अनुज्ञा देगा। ‘‘नातेदार‘‘ पद से माता-पिता, संतान, भाई-बहिन और पति या पत्नि अभिप्रेत है।
4. जांच अधिकारी किसी व्यक्ति की मृत्यु के 24 घंटे के भीतर शव को परीक्षित किये जाने की दृष्टि से निकटतम सिविल सर्जन या इसके लिये राज्य शासन द्वारा नियुक्त अन्य सुयोग्य चिकित्सकीय व्यक्ति को अग्रेषित करेगा। यदि ऐसा करना संभव न हो, तो लिखित रूप से ऐसे कारणांे को अभिलिखित किया जावेगा।
धारा-174 दं0प्र0सं0 एवं धारा-176 दं0प्र0सं0 में जांच अंतर
धारा-174 दं0प्र0सं0
धारा-176 दं0प्र0सं0
(1) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत विशेष रूप से नियुक्त मृत्यु समीक्षा करने के लिये सशक्त जिला मजिस्टेªट, उपखंड मजिस्टेªट, कार्यपालिक मजिस्टेªट द्वारा जांच की जाएगी।
जबकि धारा-176 दं0प्र0सं0 (1) (क) के अंतर्गत स्थानीय क्षेत्राधिकारिता के न्यायिक मजिस्टेªट या महानगरीय मजिस्टेªट जिसकी स्थानीय क्षेत्राधिकारिता पर अपराध कारित हुआ, उसके द्वारा जांच की जावेगी।
(2) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मृत्यु के दृष्यमान कारणांे की जांच की जाती है और केवल उसकी रिपोर्ट तैयार की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत साक्ष्य अभिलिखत करके मामले की संपूर्ण जांच कर ही रिपोर्ट तैयार की जाती है और उसमें दोषी व्यक्ति का उल्लेख भी होता है।
(3) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत नियुक्त मजिस्टेªट मृत्यु के कारण की बाबत् संदेह होने पर एवं मृत्यु की समीक्षा कर कारणों का उल्लेख कर यह राय देता है, कि मृत्यु अप्राकृतिक मृत्यु है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत न्यायिक मजिस्टेªट मामले की जांच करता है। साक्षियों के कथन अभिलिखत कर मृत्यु के कारणों का पता लगाकर उसके रिश्तेदारों से पूछताछ कर, शव परीक्षण कराकर उपर्युक्त जांच प्रतिवेदन देता है,जिसमें किये गये अपराध का उल्लेख, जिन व्यक्तियों ने अपराध किया, उनका उल्लेख, कौन सा अपराध किया, उसका उल्लेख होता है और इस प्रकार का जांच प्रतिवेदन आपराधिक कार्यवाही किये जाने के लिये पर्याप्त आधार होता है।
(4) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत मौके पर केवल दो अधिक गवाहों को उस समय की वास्तविक स्थिति के दर्शाने हेतु एवं मामले के तथ्यों से परिचित व्यक्तियों को बुलाया जाता है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत मृतक के रिश्तेदार की उपस्थिति में भी जांच की जाती है और संबंधित व्यक्तियों की साक्ष्य अभिलिखित की जाती है, उसके बाद प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है, जिसमंे संपूर्ण परिस्थितियों का वर्णन रहता है।
(5) धारा-174 दं0प्र0सं0 की मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट में साक्षियों का वर्णन नहीं रहता है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत की जा रही जांच में साक्षियों के नाम का उल्लेख रहता है।
(6) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जिन परिस्थितियों में मृत्यु होना पाया जाता है उसकी जांच की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत किस व्यक्ति ने अपराध किया उसकी जांच की जाती है।
(7) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच की प्रक्रिया धारा-174 और 175 दं0प्र0सं0 के अनुसार की जाती है।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत प्रक्रिया निर्धारित नहीं है। इसे जांच अधिकारी स्वयं निर्धारित कर सकता है या जिस अधिकारी ने उसे नियुक्त किया है वह प्रक्रिया को निर्धारित करके दे सकता है।
(8) धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच अधिकारी की शक्तियाॅ सीमित हैं।
जबकि धारा-176 (1) (क) के अंतर्गत जांच करने हेतु मजिस्टेªट को ये सब शक्तियाॅ प्राप्त हैं जो उसे किसी अपराध की जांच विचारण के संबंध में प्राप्त हैं।
इस प्रकार धारा-174 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत सीमित जांच की जाती है, जबकि धारा-176 (1) (क) दं0प्र0सं0 के अंतर्गत जांच का क्षेत्र असीमित हैं।