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शनिवार, 17 मई 2014

जन्म तिथि में सुधार

                        जन्म तिथि में सुधार
    जन्म तिथि में सुधार की सहायता के लिये सिविल अधिकारिता अपवर्जित नहीं होगी। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा (ईश्वर सिंह बनाम नेशनल फर्टिलाईजर्स एवं अन्य, ए.आई.आर. 1991 एस.सी. 1546) के मामले में अभिनिर्धारित किया है कि सी.पी.सी. की धारा 9 की अधिकारिता के भीतर जन्म तिथि सुधार के मामले आते हैं वह सिविल न्यायालय में पोषणीय होते हैं। वास्तव में उस प्रकार की सुधार की मांग करना विभिन्न प्रयोजनों के लिये हो सकेगा और औद्योगिक विववाद अधिनियम के तहत उपलब्ध अनुतोष के दावा करने के प्रश्न तक आवश्यक रूप से सीमित होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    न्यायालय के अनूुसार वाद की पोषणीयता का विनिश्चय कार्यवाहियों को संस्थित करने के संदर्भ में किया जाना चाहए और चूंकि उस दिनांक जब वाद दाखिल किया गया था, और औद्यौगिक विवाद अधिनियम की धारा 2 -क द्वारा आवरित कोई भी दशाएं प्रकट नहीं हुई है तो याचिकाकर्ता अनुतोष के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत फोरम के पास नहीं जा सकता और उक्त स्थिति में सिविल वाद औद्यौगिक विवाद अधिनियम की धारा 2-क के द्वारा अपवर्जित नहीं होगा।

    न्यायालय द्वारा यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि वाद के अनुतोषों के लिये वाद उस फोरम में पोषणीय है जहां पर दाखिल किया गया तो फोरम वादी के लिये इसके दरवाजे बंद करने की स्वतंत्रता नहीं रखता। मामले के इस रूप में जहां तक जन्म तिथि से संबंधित अभिलेखों में सुधार की सहायता का संबंध है तो सिविल न्यायालय को अनुतोष प्रदान करने की अधिकारिता है।
   
    न्यायालय ने यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां कर्मचारी यहां तक कि सुधारी गयी जन्म तिथि के आधार पर सेवा निवृत्त स्थिति उस समय तक सिविल वाद उसके हित में विनिश्चत करने में आया तो पारिणामिक अनुतोष सिविल न्यायालय द्वारा प्रदान नहीं किये जा सकते।

    शीर्ष न्यायालय ने द प्रीमियर आॅटो मोबाईल लिमिटेड बनाम कमलाकर शांताराम वाईके एवं अन्य, ए.आई.आर. 1975 एस.सी. 2238 के मामले में भी निम्न लिखित रीति में औद्योगिक विवाद के संबंध में सिविल न्यायालय की अधिकारिता को लागू सिद्धांत प्रतिपादित कियेः-

    (1)    यदि विवाद, औद्योगिक विवाद नहीं है, न यह अधिनियम के तहत किसी अन्य अधिकार के प्रवर्तन से संबंधित है तो केवल सिविल न्यायालय में उपचार उपलब्ध है।

    (2)    यदि विवाद, सामान्य या काॅमन लाॅ के अधीन किसी अधिकार या दायित्व से उत्पन्न औद्वद्योगिक विवाद है और इस अधिनियम के तहत नहीं तो सिविल न्यायालय की अधिकारिता, अनुतोष जो किसी विशिष्ट अनुतोष में मंजूर किए जाने के लिए सक्षम हो के लिए उसके उपचार का चुनाव करने के लिए संबंधित वादी के निर्वाचन पर इसको छोड़ते हुए वैकल्पिक होती है।

    (3)    यदि औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत सृजित अधिकार या बाध्यता के प्रवर्तन से संबंधित है तो वादी को उपलब्ध एकमात्र उपचार का न्याय निर्णयन इस अधिनियम के तहत् किया जाता है।

    (4)    यदि अधिकार जो प्रवर्तित किया जाना इप्सित है वह इस अधिनियम के तहत् सृजित अधिकार है जैसे अध्याय 5-क तो इसके प्रवर्तन के लिए उपचार या तो धारा 33-ग है या औद्योगिक विवाद उठाना, यथा स्थिति हो है।
    5-    न्यायालय के मार्गदर्शक सिद्धांत है जिसके आधार पर सिविल न्यायालय को यह विनिश्चय करना होता है कि क्या कोई विवाद औद्योगिक विवाद की परिभाषा के अधीन आवरित है वाद औद्योगिक अधिनियम की धारा 2-ए या 2(क) के उपबंधों के अधीन अपवर्जित होगा या नहीं होगा।

    6-    वाद दाखिल करने के दिनांक और उक्त दिनांक को कर्मचारी की स्थिति पर भी विचारण किया जाना चाहिए। यदि अभिलेखों को देखने के बाद यह प्रकट हो कि उस बिंदु पर विनिश्चय केवल सभी संबंधित पक्षकारों को सुनवाई का सम्यक् अवसर प्रदान करने के पश्चात् किया जाना चाहिए।

    7-    प्रथम दृष्टया प्रकरण विनिश्चत करने के लिए मामले को व्यवह्त करते समय मात्र संयोगिक रूप से कहना, अपील न्यायालय उपर्युक्त रीति में नहीं कह सकती कि इसके पास वाद ग्रहण करने की कोई अधिकारिता नहीं है। यह आदेश इसके लिए कोई कारण प्रदत्त किये बिना एक पंक्ति में पारित एक सतही आदेश है और वह मान्य नहीं ठहराया जा सकता।

    8-    यह व्यवस्थापित विधि है कि कारण, प्रश्न में विवाद का निर्णय करने वाले मस्तिष्क और विनिश्चय या निकाले निष्कर्ष के मध्य जीवंत संबंध है। कारण प्रदत्त करनेकी विफलता न्याय करने से इंकार करना समझा जाता है।  अलेक्जेंडर मशीनरी हुडली लिमिटेड बनाम फैक्ट्री, 1974 एल.सी.आर. 120 जिसको रिजनल मैनेजर, यू.पी.एस.आर.टी.सी. इटावा एवं अन्य बनाम होतीलाल, ए.आई.आर. 2003 एस.सी. 1462, देखों पैरा 10 के मामले में निर्दिष्ट किया गया है।
   
    9- सेवा के अंतिम प्रक्रम पर क्या जन्म दिनांक संशोधित करने की प्रार्थना स्वीकार किए जाने योग्य है, यह बिंदु विचारणीय था। इस संबंध में नकारात्मक मत निम्नलिखित न्याय दृष्टांतों में दिया गया।

    1-1994(6) सु.को.के. 302
    2-2003(6) सु.को.के. 483
    3-2006 ए.आई.आर.एस.सी.डब्ल्यू.3697
    4-(सुरेंद्र सिंह बनाम स्टेट आॅफ एम.पी., 2007(1) म.प्र. लाॅ.ज. 296     म.प्र.)


    5-    सचिव एवं आयुक्त, गृह विभाग बनाम आर.क्यूरूबक्रम, ए.     आई. आर. 1993 एस.सी. 2647,
    6-    उड़ीसा राज्य एवं अन्य बनाम श्री आर.पटनायक, 1997(2)     एल.एल.जे. 206,
    7-    जी.एम.भारतकोकिंग कोल लिमिटेड पं.बं. बनाम शिव कुमार     दुष्ट, ए.आई.आर. 2001 एल.सी. 72,
     8-    उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम श्रीमती गुलायची,     (2003)6 एस.सी.सी. 483,
    9-    पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम एस.सी.चह्ढ़ा, (2004) 3 एस.    सी.सी. 394 गिरीश नाथ बनाम भारत का संघ एवं अन्य,     2005(1)एम.पी.एल.जे.233


       

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