यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

एकल साक्षी की अभिसाक्ष्य



 1-----      यद्यपि एकल साक्षी की अभिसाक्ष्य के आधार पर दोष-सिद्धि का निष्कर्ष निकाला जा सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति में ऐसी साक्षी की अभिसाक्ष्य पूर्णतः विष्वसनीय होनी चाहिये। यहा इस विधिक स्थिति का उल्लेख करना असंगत नहीं होगा कि किसी साक्षी की अभिसाक्ष्य को मात्र इस आधार पर यांत्रिक तरीके से अविष्वसनीय ठहराकर अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है कि स्वतंत्र स्त्रोत से उसकी साक्ष्य की संपुष्टि नहीं है, क्योंकि साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत संपुष्टि का नियम सावधानी एवं प्रज्ञा का नियम है, विधि का नियम नहीं है। जहा किसी साक्षी की अभिसाक्ष्य विष्लेषण एवं परीक्षण के पष्चात् विष्वसनीय है, वहा उसके आधार पर दोष-सिद्धि अभिलिखित करने में कोई अवैधानिकता नहीं हो सकती है।

 इस क्रम में न्याय दृष्टांत लालू मांझी विरूद्ध झारखण्ड राज्य, (2003) 2 एस.सी.सी.-401, उत्तरप्रदेष राज्य विरूद्ध अनिल सिंह, ए.आई.आर. 1988 एस.सी. 1998 तथा वेदी वेलू थिवार  विरूद्ध मद्रास राज्य, ए.आई.आर. 1957 एस.सी. 614 में किये गये विधिक प्रतिपादन सुसंगत एवं अवलोकनीय है।



2.        इसी क्रम में     उत्तरप्रदेष राज्य विरूद्ध अनिल सिंह, 1989 क्रि.लाॅ.जर्नल पेज 88 = ए.आई.आर.-1988 एस.सी. पेज 1998 दिशा निर्धारक मामले में शीर्षस्थ न्यायालय ने दांडिक मामलों में साक्ष्य विश्लेषण संबंधी सिद्धांत की गहन एवं विस्तृत समीक्षा करते हुये यह प्रतिपादित किया है कि यदि प्रस्तुत किया गया मामला अन्यथा सत्य एवं स्वीकार है तो उसे केवल इस आधार पर अस्वीकार करना उचित नहीं है कि घटना के सभी साक्षीगण तथा स्वतंत्र साक्षीगण को संपुष्टि के लिये प्रस्तुत नहीं किया गया है। साक्ष्यगत अतिरंजना के विषय में माननीय शीर्षस्थ न्यायालय ने यह इंगित किया है कि हमारे देश के साक्षियों में यह प्रवृत्ति होती है कि किसी भी अच्छे मामले का अतिश्योक्तिपूर्ण कथन द्वारा समर्थन किया जाये तथा साक्षीगण इस भय के कारण भी अभियोजन पक्ष के वृतांत  में नमक मिर्च मिला देते हैं कि उस पर विश्वास किया जायेगा, किन्तु यदि मुख्य मामले में सच्चाई का अंश है तो उक्त कारणवश उनकी साक्ष्य को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह साक्ष्य में से वास्तविक सच्चाई का पता लगाये तथा इस क्रम में यह स्मरण रखना आवश्यक है कि कोई न्यायाधीश दांडिक विचारण में मात्र यह सुनिश्चित करने के लिये पीठासीन नहीं होता कि कोई निर्दोष व्यक्ति दण्डित न किया जाये अपितु न्यायाधीश यह सुनिश्चित करने के लिये भी कर्तव्यबद्ध है कि अपराधी व्यक्ति बच न निकले।
---------------------------------------------------


1 सूचना रिपोर्ट अपने आप में घटना का विस्तृत ज्ञानकोष नहीं है तथा ऐसी रिपोर्ट में मामले की एक सामान्य तस्वीर होना ही आवष्यक है तथा यह जरूरी नहीं है कि उसमें घटना से संबंधित विषिष्टिया उल्लिखित की जाये, संदर्भ:- बल्देव सिंह विरूद्ध पंजाब राज्य, ए.आई.आर. 1996 (एस.सी.) 372.
-----------------------------------------------------

 विधिक स्थिति सुस्थापित है कि मात्र पक्ष विरोधी घोषित किये जाने से किसी साक्षी की अभिसाक्ष्य पूरी तरह धुल नहीं जाती है तथा यदि उसका कोई अंष विष्वास योग्य है तो उस पर निर्भर करने में कोई अवैधानिकता नहीं है। (संदर्भ:- खुज्जी उर्फ सुरेन्द्र तिवारी विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, ए.आई.आर.-1991 (एस.सी.)-1853)

-----------------------------------------------------
े यांत्रिक तरीके से इस आधार पर रदद् नहीं किया जा सकता कि वे पुलिस अधिकारी हैं, संदर्भ:- न्याय दृष्टांत करमजीतसिंह विरूद्ध राज्य (2003) 5 एस.सी.सी. 291 एवं बाबूलाल विरूद्ध म.प्र.राज्य 2004 (2) जेेे.एल.जे. 425 ।
------------------------------------------------------

न्याय दृष्टांत वादी वेलूथिवार विरूद्ध मद्रास राज्य, ए.आई.आर. 1957 एस.सी. 614 के मामले में यह ठहराया गया है कि यदि एकल साक्षी पूर्णतः विष्वास योग्य है तो स्वतंत्र स्त्रोत से सम्पुष्टि के अभाव में भी उसकी अभिसाक्ष्य पर निर्भर किया जा सकता है। 

 न्याय दृष्टांत लालू मांझी व एक अन्य विरूद्ध झारखण्ड राज्य (2003) 2 एस.सी.सी.-401  जहाॅं तक स्वतंत्र स्त्रोत से सम्पुष्टि का प्रष्न है यह आवष्यक नहीं है कि प्रत्येक मामले में स्वतंत्र साक्षी उपलब्ध हों। 

न्याय दृष्टांत उत्तरप्रदेष राज्य विरूद्ध अनिल सिंह ए.आई.आर.-1988 एस.सी. पेज-1998 में यह इंगित किया गया है कि यह देखने में आया है कि स्वतंत्र साक्षी प्रायः अभियोजन घटनाक्रम का समर्थन करने के लिये बहुत अधिक इच्छुक नहीं रहते हैं, ऐसी दषा में उपलब्ध साक्ष्य को मात्र यह कहकर अस्वीकृत कर देना कि स्वतंत्र स्त्रोत से उसका समर्थन नहीं होता है, उचित नहीं है।

----------------------------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें