यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

शिक्षा पहुंची द्वार-द्वार

                    शिक्षा पहुंची द्वार-द्वार 

                        केन्द्र सरकार ने शिक्षा पहुंची द्वार-द्वार सबके लिये शिक्षा कार्यक्रम लगभग आठ साल से चलाया जा रहा हे

                                              जिसमें 14 लाख स्कूलो में 20 करोड़ बच्चों को शिक्षण सुविधा पदान की जाती है,जिसमें विशेष कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्प संख्यको पर ध्यान रखा जाता है ।

                                              लड़कियो की शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाता है।जिसमें 3,60,000 लड़कियाॅ शिक्षा पा रही है इस स्कूल में छटी  आंठवी तक की छात्राओं के लिये छात्रावास की व्यवस्था है । 

                                            शैक्षणिकरूप से पिछडे हुये जिलों में इस तरह के स्कूल चलाये जाते हें इन स्कूलों की तदाद 29 फीसदी स्कूल अनुसूवित जाति ,26 प्रतिशत स्कूलअनुसूचित जनजाति, 26 प्रतिशत स्कूल पिछड़े वर्ग, 9 प्रतिशत स्कूल अल्प संख्यकों और 10 पतिशत स्कूल बी0पी0एल0 नीिवारों की छात्राओं के लिये चजाये जा रहे हैं । 
 
                                                           एन0सी0आर0टी0 के दो बार हुये सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इन स्कूलों में लड़कियों की सीखने की क्षमता में बहुत अधिकसुधार हुआ है । कूलमिलाकर तस्बीर यह सामने आई रही है कि ग्रामीणक्षेत्रों के लड़के लड़कियों की उपलव्धियों का फासला शहरी लड़के लड़कियों के मुकाबले बहुत कम हुई है ।

लापता बच्चों के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश

          लापता बच्चों के संबंध में माननीय           उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश

   
                                                      माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के संबंध में एफ0आई0आर0 पंजीकरण के साथ ही साथ प्रत्येक राज्य में विशेष किशोर पुलिस इकाई हर राज्य में विशेष रूप से स्थापित की जाने पर जोर दिया है। न्यायालय के निर्देशानुसार  कम से कम पुलिस स्टेशन मं तैनात एक अधिकारी को यह शक्ति दी जानी चाहिए कि वह विशेष किशोर पुसिल इकाई के रूप में कार्य करे। इस संबंध में राष्ट्र्य मानव अधिकार आयोग को सचेत किया गया है कि वह देखे कि इस संबंध में क्या कार्यवाही हो रही है। इससे राज्य में बच्चों के लापता या बच्चों की तस्करी कम होगी।


                                                   प्रत्येक राज्य में किशोर न्यायालय अधिनियम-2000 की धारा-63 में किशोर न्याय नियम 2007 के अनुसार प्रत्येक राज्य में विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना नहीं की गयी जबकि सभी जिलों और सभी पुलिस थानों में पुलिस इकाईयों और किशोर बाल कल्याण अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य है और उन्हें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।   लापता बच्चों के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय बच्चों के शोषण से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक और व्यवस्थित योजना बनाये जाने हेतु दिशा निर्देश जारी किये गये।


       

     
    माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के सभी मामलों में एफ.आई.आर. के अनिवार्य पंजीकरण के आदेश याचिका कर्ता बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ और ओ.आर.एस. संघ रिट याचिका सिविल नम्बर-75 वर्ष 2012 में पारित किये गये हैं जो निम्नलिखित हैंः-



    1.    इन सभी मामलों के संबंध में एफ.आई.आर. अनिवार्य रूप से  रिकार्ड की जाये।

    2.    राज्यों में विशेष किशोर पुलिस इकाई लापता बच्चों के संबंध में बनाई जाये।

    3.    ऐसे मामलों में एफ.आई.आर. दर्ज होते ही उचित कदम तुरंत   उठाना चाहिए।

    4.    ऐसे लापता बच्चों का एक डाटाबेट तैयार किया जावे।

    5ण्    ूूूण् जतंबा जीमउमेेपदह बीपसकण्हवअण्पद
        ूूूण् बीपसकसपदमपदकपंण्वतहण्पद
        ूूूण्ेजवच तंपिबापदहण्पद  बच्चों से संबंधित इन तीनों वेबसाइट में             जानकारी अपलोड की जाये। 

    6.     प्रत्येक की फाइल व डाटा कम्प्यूटर में अपलोड किया जाना चाहिए ताकि इनके ट्रेंसिंग के प्रयास का उपयोग   किया जाना चाहिए।

    7.    सी.सी.टी.एन.एस. के माध्यम से खोया बचपन बेव साइट पर इसे  शामिल करना चाहिए।

    8.    डी0आई0जी0 रेंक के नीचे के अधिकारी को नोडल अधिकारी             घोषित किया जाये।

    9.    वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मामले की जाॅच कर पर्यवेक्षण करेगी।
    10.    लापता बच्चों की मासिक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिये, ताकि उनका         मिलान हो सके।

    11.    बच्चों का आयोग भीख मांगने, ऊट जाकिंग, वैश्यावृत्ति                 प्रीडियोंफिलिप मेट जाच की जानी चाहिये। 

    12.    इसके लिये सी0आई0डी0 ग्राम पंचायत की सहायता ली जा             सकती है।

    13.    सीमावर्ती स्थानों की चैकसी, रेल्वे स्टेशन, बस स्टेण्ड, सड़क   मार्ग की नियमित चैंकिग की जा सकती है।

    14.    1099 टोल फ्री नम्बर की सहायता ली जा सकती है। निगरानी  समिति हेल्पलाइन बनाई जा सकती।

       
     


  

बालमजदूरी



                                      बालमजदूरी 

         

 माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडू सिविल रिट याचिका क्रमांक-465/86 में बाल श्रम उन्मूलन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे जो निम्नलिखित हैंः-


1. काम करने वाले बच्चों की पहचान के लिये सर्वेक्षण किया जाए।
2. खतरनाक उद्योग में काम कर रहे बच्चों की वापसी हो उन्हें उचित शिक्षा संस्थान में शिक्षित किया जाये। 
 
3. बाल कल्याण बवदजतपइनजपवद / त्ेण् 20000 की स्थापना

 की गयी है जिसमें प्रति बच्चे के हिसाब से नियोक्ता द्वारा भुगतान 

किया जाये।
 
4. बच्चों के परिवार के व्यस्क सदस्य को रोजगार किया जायेगा। 
 
5. राज्य सरकार कल्याण कोष में येगदान देगी। 
 
6. बच्चों के परिवार को वित्तीय सहायता दी जायेगी। 
 
7. गैर खतरनाक व्यवसाय मे बच्चों को काम पर नहीं लिया जायेगा। 
 
                                                मान0 उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश के अनुरूप वर्ष 2006 में बाल श्रम निषेध कानून की स्थापना की गयी जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी काम धंधों में नहीं लगाया जायेगा। 


 बालक श्रम प्रतिषेध और विनियम अधिनियम 1986

 
                                                               हमरे देश में बाल मजदूरी आम बात है । देश में करोडो बच्चे पढने की उम्र में बोझा ढोते हैं । कारखाना, फैक्ट्री, में खतरनाक काम करते हैं । जबकि बाल मजदूरी को बालक श्रम प्रतिषेध और विनियमन अधिनियम 1986 की धारा-14 में अपराध घोषित कर उसे दण्डित किया गया है । 
 
                                                  इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चो को 15वां साल लगने से पहले किसी भी फेक्ट्री में काम पर नहीं रखा जा सकता । उनसे रेलवे स्टेशन, बंदरगाह, कारखाने, उद्योग धंधे जहां पर खतरनाक रसायन और कीटनाशक निकलते हैं । वहा पर उन्हें काम पर नहीं लगाया जा सकता है

                                   ैकेवल 14 से 18 साल की उम्र के बच्चे को ही फैक्ट्रियो मंे 6 घंटे काम पर लगाया जा सकता है । जिसमें उनसे एक बार में चार घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता है । रात के 10 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच में उनसे कोई भी काम नहीं करवाया जायेगा । उन्हें सप्ताह में एक दिन छुटटी अवश्य दी जायेगी ।

                                                  उनकी सुरक्षा के विशेष इंतजाम कारखाना अधिनियम 1948 के अनुसार किये जाएगें ।जब से बच्चो को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है तब से 18 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को काम करने की इजाजत नही दी जानी चाहिए।

 
                                                               माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत में सर्कस में बाल कलाकार का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है।

                                    हमारे देश में सर्कस लोकप्रिय है और सर्कस में बच्चे काम करते थे इस संबंध में मान0 उच्चतम न्यायालय के द्वारा 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकारों को उपयोग करने से सर्कस मालिकों पर प्रतिबंध लगा दिया। यह देखा गया कि सर्कस में अव्यस्क बच्चों को उनकी मर्जी के खिलाफ दिन में 5 बार प्रदर्शन के लिये मजबूर किया जाता था और सर्कस के लिये बच्चो की तस्करी की जाती थी। सर्कस में उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था। इसे बालश्रम माना गया। 

 
इस संबंध में बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ सिविल याचिका क्रमांक-51/2006 में निम्नलिखि दिशा-निर्देश जारी किये गयेः-

1. 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकार सर्कस में काम नहीं करेंगे। 
 
2. सर्कस में काम कर रहे अव्यस्क बच्चों को दिन में पांच बार प्रदर्शन के लिये मजबूर नहीं किया जायेगा। 
 
3. प्रत्येक राज्य सरकार किशोर घरों की अर्द्ध वर्षिक रिपोर्ट प्राप्त करेगी जिसमें बच्चों की संख्या, स्थिति, पुर्नवास और वर्तमान स्थिति का उल्लेख होगा। इसके लिये राज्य सरकार प्रत्येक जिले में किशोर न्याय सेल खोलेगी। 
 
4. 24 घण्टे घरों में चलने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों का जिला कलेक्टर में पंजीकरण होगा उनके नाम पते सहित पूर्व विवरण, पदाधिकारियों के नाम, मोबाइल नम्बर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किये जाएॅगे इसका एक डेटाबेट तैयार किया जायेगा। 
 
5. सड़क किनारे ढाबे (भोजनालय) और मैकेनिक की दुकानों में काम करने वाले बच्चों को बचाने और उनका पुनर्वास करने में एक मजिस्ट्र्ेट की नियुक्ति, जिला मजिस्ट्र्ेट द्वारा की जायेगी। जिसके द्वारा ऐसे बच्चों की बचाव और निगरानी करने के निर्देश दिये जायेंगे।
6. केन्द्रीय दत्तक ग्रहण रिसोर्स एजेन्सी द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट परिवारसमाज कल्याण को दी जायेगी।
7. समेकित बाल संरक्षण योजना के अंतर्गत केन्द्र और राज्य सरकार अर्द्धवार्षिक रणनीति योजना तैयार करेगी।
8. प्रत्येक राज्य सरकार को बच्चों के संबंध में योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये जिम्मेदार बताया गया बाल कल्याण समितियों को जिला जज की देखरेख में रखने की सिफारिश की गयी है। 
 
9. घरों में बच्चों की अच्छी देख भाल हो इसके लिये पालक ध्यान-योजना की सिफारिश की गयी है। 
 
10. केन्द्र सरकार बच्चों के लाभ और कल्याण के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनायेगी, जिससे आवंटित धन का वास्तव में बच्चों के कल्याण के लिये उपयोग होगा। 


                                    बच्चो से मजदूरी कराना बाल मजदूरी कहलाता है बच्चों से काम कराना कानूनन अपराध है बच्चों सेकाम करवाने पर सजाहो सकती है सामान्यतयह देखा गया हे किबाल मजदूरो से काम कराने के बाद भी उन्हेंकम मजदूरी दी जाती हैया फिर मामूली सी मजदूरी दी जाती है और उनबाल मजदूरो का जोखिम भरे कार्यो से इस्तमाल भी किया जाता है
इस कानून के तहत बच्चों को 15वां साल लगने से पहल किसी ज्ञी फैक्टृी में कामपर नहीं रखा जा सकता

 बच्चों कोनीचे लिखे कार्यो केलिये नहीं रखा जा सकता
1- रेलगाड़ी से यात्री सामान या डाक लेजाने के लिये
2- रेल्वे स्टेशन की सीमा मे भवन बनाने के लिये
3- रेल्वे स्टेशनमेंचाय खाने पीने केसामान की दुकान पर जहां एक दूसरे
प्लेटफार्म पर बार बार आना जाना पड़ता है
4- रेल्वे स्टेशन या रेल लाईन बनाने के काम के लिये
5- बंदरगाहपर किसी भी तरह केकाम के लिये
6- अल्कालीन (टेम्परेरी) लाईसंेस वाली पटाखों की दुकानो में पटाखें बेंचने के
काम के लिये
7- किसी भी घर ,दुकान आदि में पानी ढोने के लिये
8- जलाने के ईधन एकत्रित करने के लिये
9- खेत जोतने के लिये

इन कार्यो में भी बच्चो का लगाना मना है
1- बीड़ी बनाने का काम
2- गलीचें बनाने का काम
3- सीमेंट कारखाने में सीमेंट बनाना या थेलों में भरना
4- कपड़ा बुनाई छपाई या रंगाई का कार्य करवाना
5- माचिस पटाखे या बारूद बनाना
6- अभ्रक काटना या तोड़ना
7- चमड़ा या लाख बनाना
8- कांच तथा चूडियो की फेक्टृरी मेंकाम करना
9- साबुन बनाना
10- चमड़े की पीटाई रंगाई या सिलाई कराना
11- उन या रूई की सफाई घुनाई कराना
12- मकान,सड़क,बांध आदि बनाना
13- स्लेट पेंसिल बनाना पैक बंद करना
14- गोमेद या कांच की मलाऐं या वस्तुऐ बनाना
15- कोई सेा काम जिसमें लैड, पारा ,मैगनीज ,क्रोमियम,अरगजी,पेक्सीन,कीटनाशक
इबाई और एस्बेस्टस जैसे जहरीले धातु ओर पदार्थ उपयोग में लाये जाते हों
16- पत्थर तोड़ने या सड़क बनाने का काम कराना
17- किसी बगान आदि में काम कराना
बच्चों को किन-किन शर्तो पर काम करने के लिये कानून इजाजत देता है ?
केवल 14 से 18 उम्र के बच्चे ही फेक्टृीयों में काम कर सकते हैं लेकिन -
1- बच्चों से 6 घंटे से अधिक समय तक काम नही करवायाजा सकता है।
2- एक साथ बच्चों से चार घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता
3- रात के 10 बजे से लेकर सुबह आठ जे की बीच में उनसे कोई भी काम
नहीं लिया जा सकता है
4- बच्चों से ज्यादा ज्यादा दो शिफटों में काम करवाया जा सकता है
5- सप्ताह में एक दिनकी छुट्टी अनिवार्य है

बच्चोकी सुरक्षाके लिये कानून में क्या प्रावधान है?
बच्चों के जीवन की सुरक्षा के लिये कारखाना अधिनियम 1948 में कुछ प्रावधान कियेगये हैं जिनमें से खास यह है -
1- 14 साल कम उम्र के बच्चों को किसी भी कारखाने में काम की इजाजत
नही है यानि 15वां साल लगने से पहले बच्चों को काम पर नहीं रखा जा
सकता कारखाना अधिनियम 1948 ने कारखानों में बच्चों से काम लेने पर
रोक लगाई है
2- 14 से 18 साल के बीच के उम्र के अवयस्क बच्चों को कारखाने मं काम
करने दियाजा सकता है
3- एक दिन में केवल एक ही कारखाने में उनसे काम करवाया जा सकता है










































भारत सरकार की मनरेगा योजना

            भारत सरकार की मनरेगा योजना 

 
                                                       यह योजना अनुसूचित जात,अनुसूचित जनजाति और बरीबीरेखा से नीचे की भूमिहीन आबादी जो पहले अमीर भूस्वामियो के खेतोमें बंधुआ मजदूर के रूप में काम करती थी,मनरेगा की योजनाओं के कारण भू-स्वामियोके चंगुल सेमुकत हो चुकी हैं ।
                                            मनरेगा योजना देश के 625 जिलों में लागू हैं । ग्रमीण विकास मंत्रालय के तहत मनरेगा पिछले दशक में भारत सरकार की बहुत ही क्रातिकारी योजनाओं में से एक है । यह भारत के ग्रामीण परिवारों की 25 फीसदी आबादी को रोजगार उपलव्ध कराता है ।
 
                                           इस योजनाके अंतर्गत लोगों को अधिक मजदूरी मिले और गरिमा तथा आत्म सम्मान के साथ जीने लगे । उनकी जीवन शेली मेंसुधर हुआ वे अच्छा स्वास्थ ,अच्छे कपड़े और बहतर हुये ,अहार व्यवहारकाआनंद उठाने लगे ।
                         अपने कानूनी ढांचे औरअधिकार आधारित दृष्टिकोण के साथमनरेगा का उद्वेश्य प्रत्येक परिवार को एक वित्त वर्ष में 100 दिनो की मजदूरी की गारंटी वाला रोजगार उपलव्ध कराने के जरिये उनकी अजीविका बढ़ाना है । इन ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्य स्वैच्छिक गैर प्रशिक्षित हाथ का कार्य करते हैं । 
 
                                        मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों को अनुमानित 128 लाख करोड रूपये सीधे मजदूरी भुगतान के रूप में दिये जा चुके हैं और वर्ष2008 के हर साल करीब पांच करोड परिवारो को रोजगार उपलव्ध कराया जा रहा है ।