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सोमवार, 5 अगस्त 2013

लापता बच्चों


माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के सभी मामलों में एफ.आई.आर. के अनिवार्य पंजीकरण के आदेश याचिका कर्ता बचपन बचाओं
आंदोलन विरूद्ध भारत संघ और ओ.आर.एस. संघ रिट याचिका सिविल नम्बर-75 वर्ष 2012 में पारित किये गये हैं जो निम्नलिखित हैंः-
1. इन सभी मामलों के संबंध में एफ.आई.आर. अनिवार्य रूप से रिकार्ड की जाये।
2. राज्यों में विशेष किशोर पुलिस इकाई लापता बच्चों के संबंध में बनाई जाये।
3. ऐसे मामलों में एफ.आई.आर. दर्ज होते ही उचित कदम तुरंत उठाना चाहिए।
4. ऐसे लापता बच्चों का एक डाटाबेट तैयार किया जावे।
5ण् ूूूण् जतंबा जीमउमेेपदह बीपसकण्हवअण्पद
ूूूण् बीपसकसपदमपदकपंण्वतहण्पद
ूूूण्ेजवच तंपिबापदहण्पद बच्चों से संबंधित इन तीनों वेबसाइट में जानकारी अपलोड की जाये।
6. प्रत्येक
की फाइल व डाटा कम्प्यूटर में अपलोड किया जाना चाहिए ताकि इनके ट्रेंसिंग के प्रयास का उपयोग किया जाना चाहिए।
7. सी.सी.टी.एन.एस. के माध्यम से खोया बचपन बेव साइट पर इसे शामिल करना चाहिए।
8. डी0आई0जी0 रेंक के नीचे के अधिकारी को नोडल अधिकारी घोषित किया जाये।
9. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मामले की जाॅच कर पर्यवेक्षण करेगी।
10. लापता बच्चों की मासिक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिये, ताकि उनका मिलान हो सके।
11. बच्चों का आयोग भीख मांगने, ऊॅट जाकिंग, वैश्यावृत्ति प्रीडियोंफिलिप मेट जाॅच की जानी चाहिये।
12. इसके लिये सी0आई0डी0 ग्राम पंचायत की सहायता ली जा सकती है।
13. सीमावर्ती स्थानों की चैकसी, रेल्वे स्टेशन, बस स्टेण्ड, सड़क मार्ग की नियमित चैंकिग की जा सकती है।
14. 1099 टोल फ्री नम्बर की सहायता ली जा सकती है। निगरानी समिति हेल्पलाइन बनाई जा सकती।
अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन उसके समक्ष लाया गया एक व्यक्ति एक किशोर या बालक है लापता बच्चों के संबंध में मान्नीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश’-
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के सभी मामलों में एफ.आई.आर. के अनिवार्य पंजीकरण के आदेश या।ि।।चका कर्ता बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ और ओ.आर.एस. संघ रिट याचिका सिविल नम्बर-75 वर्ष 2012 में पारित किये गये हैं जो निम्नलिखित हैंः-
1. इन सभी मामलों के संबंध में एवहां सक्षम प्राधिकारी उस व्यक्ति की आयु के बारे में सम्यक जांच ेलापता बच्चों के संबंध में मान्नीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश’-
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के सभी मामलों में एफ.आई.आर. के अनिवार्य पंजीकरण के आदेश या।ि।।चका कर्ता बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ और ओ.आर.एस. संघ रिट याचिका सिविल नम्बर-75 वर्ष 2012 में पारित किये गये हैं जो निम्नलिखित हैंः-
1. इन सभी मामलों के संबंध में एफ.आई.आर. अनिवार्य रूप से रिकार्ड की जाये।
2. राज्यों में विशेष किशोर पुलिस इकाई लापता बच्चों के संबंध में बनाई जाये।
3. ऐसे मामलों में एफ.आई.आर. दर्ज होते ही उचित कदम तुरंत उठाना चाहिए।
4. ऐसे लापता बच्चों का एक डाटाबेट तैयार किया जावे।
5ण् ूूूण् जतंबा जीमउमेेपदह बीपसकण्हवअण्पद
ूूूण् बीपसकसपदमपदकपंण्वतहण्पद
ूूूण्ेजवच तंपिबापदहण्पद बच्चों से संबंधित इन तीनों वेबसाइट में जानकारी अपलोड की जाये।
6. प्रत्येक लापता बच्चों की फाइल व डाटा कम्प्यूटर में अपलोड किया जाना चाहिए ताकि इनके ट्रेंसिंग के प्रयास का उपयोग किया जाना चाहिए।
7. सी.सी.टी.एन.एस. के माध्यम से खोया बचपन बेव साइट पर इसे शामिल करना चाहिए।
8. डी0आई0जी0 रेंक के नीचे के अधिकारी को नोडल अधिकारी घोषित किया जाये।
9. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मामले की जाॅच कर पर्यवेक्षण करेगी।
10. लापता बच्चों की मासिक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिये, ताकि उनका मिलान हो सके।
11. बच्चों का आयोग भीख मांगने, ऊॅट जाकिंग, वैश्यावृत्ति प्रीडियोंफिलिप मेट जाॅच की जानी चाहिये।
12. इसके लिये सी0आई0डी0 ग्राम पंचायत की सहायता ली जा सकती है।
13. सीमावर्ती स्थानों की चैकसी, रेल्वे स्टेशन, बस स्टेण्ड, सड़क मार्ग की नियमित चैंकिग की जा सकती है।
14. 1099 टोल फ्री नम्बर की सहायता ली जा सकती है। निगरानी समिति हेल्पलाइन बनाई जा सकती।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा लापता बच्चों के संबंध में एफ0आई0आर0 पंजीकरण के साथ ही साथ प्रत्येक राज्य में विशेष किशोर पुलिस इकाई हर राज्य में विशेष रूप से स्थापित की जाने पर जोर दिया है। न्यायालय के निर्देशानुसार कम से कम पुलिस स्टेशन मंे तैनात एक अधिकारी को यह शक्ति दी जानी चाहिए कि वह विशेष किशोर पुसिल इकाई के रूप में कार्य करे। इस संबंध में राष्ट्र्ीय मानव अधिकार आयोग को सचेत किया गया है कि वह देखे कि इस संबंध में क्या कार्यवाही हो रही है। इससे राज्य में बच्चों के लापता या बच्चों की तस्करी कम होगी।
प्रत्येक राज्य में किशोर न्यायालय अधिनियम-2000 की धारा-63 में किशोर न्याय नियम 2007 के अनुसार प्रत्येक राज्य में विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना नहीं की गयी जबकि सभी जिलों और सभी पुलिस थानों में पुलिस इकाईयों और किशोर बाल कल्याण अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य है और उन्हें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।






आयु निर्धारण


किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण

 अधिनियम 2000 एंव उसके नियमों के अधीन आयु 

निर्धारण 
 
                        किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण) अधिनियम 2000 जिसे आगे अधिनियम से संबोधित किया गया है । उसका उद्देश्य और प्रयोजन विधि का उल्लंघन करने वाले अपचारी और उपेक्षित किशोरों की देख-रेख संरक्षण, उपचार, विकास, और पुनर्वास करने का है । इसलिए इसका निर्वाचन उदारतापूर्वक किशोर के हित में किये जाने निर्देशित किया गया है । अधिनियम की धारा-2 ट के अनुसार किशोर या बालक एक ऐसे व्यक्ति से अभिप्रेत हैं जो 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की गई है । इस प्रकार उपेक्षित किशोर के मामले में बालक और लड़की दोनो की आयु एक समान रखी गई है ।

                  अधिनियम की धारा-4 के अंतर्गत अधीन किशोर न्यायबोर्ड की स्थापना की गई है और सर्व प्रथम विधि के साथ संघर्ष में बालक को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और अधिनियम की धारा-7 के अंतर्गत जब इस अधिनियम के अधीन एक बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए किसी मजिस्ट्ेट के समक्ष बालक को प्रस्तुत किया जायेगा तो अधिनियम की धारा-7(2) के अंतर्गत वह जांच करेगा कि जो किशोर या बालक उसके समक्ष लाया गया है वह वास्तव में किशोर बालक है अथवा नहीं । इस सबंध में अधिनियम की धारा-49 में आयु की उपधारणा और अवधारणा संबंधी प्रावधान दिये गये हैं । 
 
                                  किशोर न्याय बालको की देखरेख संशोधन अधिनियम 2006 की धारा-6 सं संशोधित धारा- 7ए से जोडी गई है- धारा-7ए के अनुसार जब किसी न्यायालय में किशोर होने का दावा प्रस्तुत हो, तब प्रक्रिया- जब किसी न्यायालय में किशोर होने का दावा प्रस्तुत हो या न्यायालय की यह राय हो कि अभियुक्त, अपराध करने के दिनांक को किशोर था, तब न्यायालय उस व्यक्ति की आुय ज्ञात करने के लिए ऐसी जांच करेगा और ऐसी साक्ष्य ग्रहण (लेकिन शपथ पत्र नहीं लेगा) जो आवश्यक हो और जांच का निष्कर्ष लिखेगा कि वह व्यक्ति किशोर या बालक है या नहीं और निष्कर्ष में, उसकी आयु, जहां तक सम्भव हो उतनी सही लिखेगा ।
                परन्तु किशोर होने का दावा, प्रकरण के निराकरण के पश्चात् भी, किसी भी न्यायालय में उठाया जा सकेगा और उसको मान्यता दी जावेगी और वह दावा इस अधिनियम के और इसके अन्तर्गत बने नियमों के प्रावधान अनुसार निर्णित किया जावेगा चाहे वह व्यक्ति इस अधिनियम के लागू होने के दिनांक को या इसके पूर्व किशोर न रहा हो । 
 
                                        अधिनियम की धारा-7-2 के अनुसार, यदि न्यायालय इस निर्णय पर पहंुचती है कि वह व्यक्ति अपराध करने के दिनांक को किशोर था तो वह उस किशोर व्यक्ति को बोर्ड के सन्मुख उचित आदेश पारित करने हेतु प्रस्तुत करेगी और यदि न्यायालय ने कोई दण्डादेश दिया होगा वह प्रभावहीन हो जावेगा ।

प्रताप सिंह बनाम झारखंड राज्य और एक अन्य 2005 भाग-3 उच्चतम न्यायालय पत्रिका 10 में प्रतिपादित दिशा निदेर्शो के अनुसार किसी किशोर की आयु का अवधारण उस तारीख से किया जाएगा जिस तारीख को उसके द्वारा अपराध किया गया न कि उस तारीख से जिसको उसे उस अपराध के सबंध में न्यायालय या सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पेश किया गया । 
 
                                   अधिनियम की धारा-68 के अंतर्गत राज्य सरकार को राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों का अनुपालन करने के लिए नियम बनाने के शक्ति दी गई है । इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए मध्य प्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण )नियम, 2003 की रचना की गई है, जिसे आगे नियम से सम्बंोधित किया गया है । नियम 10 मे किशोर न्यायबोर्ड जांच में अनुशरण की जाने वाली प्रक्रिया बताई गई है । 
 
                           नियम 10(1) के अनुसार बोर्ड बालक से संबंधित प्रत्येक मामले में, उसकी आयु तथा उसकी शारीरिक और मानसिक दशा के बारे में जन्म प्रमाण पत्र या चिकित्सीय राय अभिप्राप्त करेगा । उसके पश्चात अपनी राय किशोर के सबंध में व्यक्त करेगा । यदि बालक 18 वर्ष से कम का पाया जाता है तो अधिनियम की धारा-14 के अंतर्गत आयु की जांच के पश्चात कार्यवाही प्रारंभ करेगा।

                             अधिनियम की धारा-6(2) के अंतर्गत इस प्रकार की शक्तियां किशोर न्यायबोर्ड के रूप में उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय के समक्ष उस समय प्राप्त है जब कार्यवाही अपील पुनरीक्षण या अन्य रूप में उनके सामने आती है । इस सबंध में सुस्थापित सिद्धांत है कि अपचारी किशोर की आयु की जांच लंबित रहते समय उसे अन्तरिम जमानत पर छोड़ा जायेगा ।

                                                शाकिर मेवाती विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन आई.एल.आर. 2011 भाग-3 संक्षिप्त नोट क्रमांक-116 में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि सत्र विचारण के दौरान अभियुक्त की आयु का प्रश्न उठाया जाये तो मामले को किशोर न्यायालय/किशोर न्याय बोर्ड को निर्दिष्ट करने की बजाए सत्र न्यायालय को ही व्यक्ति की आयु के बारे में जांच प्रारंभ करना यह भली भांति सेशन न्यायालय की शक्तियों के भीतर है । 
 
                               किशोर अपराधी की जांच मामले की परिस्थिति के अनुसार की जायेगी संबंधी लेखों व दस्तावेजो पर विचार करने के बाद बोर्ड को संतुष्ट होना चाहिए तथा मामले की परिस्थितियों के अनुसार सभी आवश्यक जांच अपेक्षित है जो उचित व न्यायसंगत है । वह जांच बोर्ड को करनी चाहिए । 
 
                                 बब्लू पासी विरूद्ध झारखण्ड राज्य न्यायदृष्टांत 2009 .आई.आर. सुप्रीम कोर्ट 314 में यह अवधारित किया गया है कि व्यक्ति से प्रथमतः उसके जन्म प्रमाण-पत्र, द्वितीयता मेट््िरकुलेशन या समकक्ष प्रमाण-पत्र आयु के संबंध में प्राप्त किये जाने चाहिए। जन्म प्रमाण-पत्र या मेट््िरकुलेशन प्रमाण-पत्र प्रस्तुत न होने की दशा में व्यक्ति की आयु निर्धारित करने मंे चिकित्सीय बोर्ड का अभिमत लिया जा सकता है किन्तु चिकित्सीय बोर्ड का अभिमत निश्चायक प्रमाण नहीं होता क्यों कि व्यक्ति के खान-पान, वातावरण, रहन-सहन, अनुवांशिकता और अन्य बाह्य कारण उसकी शारीरिक बनावट पर प्रभाव डालते हैं ।
                              इस प्रकार सर्वप्रथम जन्म एंव मृत्यु के रजिस्टर में किये गये प्रविष्टी पर विचार किया जाना चाहिए उसके बाद स्कूल रजिस्टर में प्रवेश आयु पर विचार किया जाना चाहिए । परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि माता-पिता स्कूल में प्रवेश कराते समय आयु को कम ज्यादा कराने की प्रवृत्ति रखते हैं । इसलिए यदि इसकी संभावना हो तो मेडीकल साक्ष्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए । इसके लिए अस्थि परीक्षण कराया जाना चाहिए ।
              कुमारी अनीता बनाम अटल बिहारी 1993 क्रि.ला.जनरल 549 एम.पी. के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है कि-जहां किसी अपराध के संबंध में किसी अभियुक्त व्यक्ति को यह अवसर दिया गया कि वह अपनी बात को साबित करें कि क्या अवयस्क था अथवा यह कि क्या वह बालकथन में अपराध किया है वहां यह विचार व्यक्त किया कि जन्म रजिस्टर की बातें तात्विक मानी जायेंगी । इसी मामले में यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां अभियुक्त की आयु के विषय में कोई सम्यक प्रमाण न था वहां न्यायालय को रेडीयोंलोजिस्ट की रिपोर्ट पर जोर दिया जाना चाहिए ।
इसी मामले में अभियुक्त की आयु प्रश्नगत था कि जिस दिन कथित अपराध कारित हुआ था उस दिन अभियुक्त व्यक्ति एक किशोर था वहां यह विचार व्यक्त किया गया कि उसका विनिश्चय परीक्षण के स्तर पर किया जाना न्यायोचित है । ओसीफिकेशन परीक्षण के संदर्भ में रेडीयोंलोजिस्ट की रिपोर्ट के बारे में यह सुस्थापित सिद्धांत है कि बालक पर खान-पान, जलवायु, रहन-सहन, का असर होने के कारण लगभग दो वर्ष कम ज्यादा का अंतर आयु निर्धारण के समय रखा जाना चाहिए ।

 इस संबंध में 2008 भाग-1 एम.पी.एल.जे. क्रि.204 अनुज सिंह विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है । इसी मामले में अभिनिर्धारित किया गया है जब दो दृष्टिकोण संभव हो तो अभियुक्त के हित में होने वाला दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए । प्रस्तुत मामले में स्कूूल दाखिला रजिस्टर और अस्थि संबंधी जांच में विरोधाभाष पाया गया है । 2007 भाग-3 एम.पी.एल.जे. 214 उमेद सिंह विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन में भी यही बात अभिनिर्धारित की गई है । 
 
अधिनियम की धारा-49 में आयु की उपधारणा और अवधारणा के संबंध में प्रावधान दिया गया है जिसके अनुसार जहां यह सक्षम प्राधिकरण को यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन इसके समक्ष लाया गया व्यक्ति साक्ष्य देने के प्रयोजनार्थ से भिन्न एक किशोर या बालक है वहां सक्षम प्राधिकरण उस व्यक्ति की आयु के बारे में ऐसी सम्यक जांच करेगा और उस प्रयोजन के लिए ऐसा साक्ष्य ग्रहण करेगा जो आवश्यक लेकिन एक शपथ पत्र नहीं और एक निष्कर्ष यथा शाक्य निकटतम उसकी आयु का वर्णन करने वाला एक निष्कर्ष अभिलिखित करेगा चाहे व्यक्ति एक किशोर या बालक हो । 
 
धारा-49(2) के अनुसार एक सक्षम प्राधिकरण का कोई आदेश मात्र इस किसी पश्चात्वर्ती सबूत द्वारा अवैधानिक होना समझा जायेगा कि जिस व्यक्ति के बावत् आदेश पारित किया गया है, वह एक किशोर या बालक, और उसकी आयु होने के लिए सक्षम प्राधिकरण द्वारा अभिलिखित आयु नहीं है । 

 
अधिनियम की धारा-49(1) के अनुसार जहां यह सक्षम प्राधिकारी को प्रतीत होता है किकरेगा और उस प्रयोजनार्थ वह ऐसा साक्ष्य ग्रहण करेगा जो आवश्यक हो और एक निष्कर्ष अभिलिखित करेगा कि क्या व्यक्ति एक किशोर है या नहीं और विशेष तौर पर उसकी यथा शक्य निकटतम आयु के बारे में निष्कर्ष अभिलिखित करेगा । इस संबंध में शपथ पत्र नहीं लिया जायेगा । 

 
इस प्रकार अधिनियम की धारा-6,7,7,49, के अनुसार उपेक्षित बालक की आयु की जांच का निर्धारण किया जायेगा । जांच करते समय घटना दिनांक को उपेक्षित बालक की आयु उसके द्वारा प्रस्तुत जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र एंव प्रस्तुत दस्तावेजो तथा अन्य चिकित्सीय अभिसाक्ष्य पर विचार किया जायेगा ।







बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005


बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005
बालक अधिकारो के संरक्षण के बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आयोग की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य बालाको के विरूद्ध अपराधो या बालक अधिकारो के अतिक्रमण के त्वरित विचारण के लिए बालक न्यायालयो के गठन तथा इसे संबंधित और उसके आनुवंशिक विषयों का उपबंध करना है।

अधिनियम मंे संयुक्त राष्ट महासभा के शिखर सम्मेलन में बालको के लिए उपयुक्त विश्व नामक दस्तावेज को स्वीकार किया है । जिसमें वर्तमान दशक के लिए सदस्य देशो द्वारा अपनाए जाने वाले लक्ष्य उद्देश्य युक्तियां और क्रियाकलाप अंतर्विष्ट है । और यह समीचीन है कि इस संबंध में सरकार द्वारा अंगीकृत नीतियांे, बालक अधिकार संबंधी अधिसमय में विहित मानको और अन्य सभी सुसंगत अन्तरराष्ट्रीय लिखतो को कार्यान्वित करने के लिए बालको से संबंधित विधि अधिनियमित की जाए।

अधिनियम के अनुसार केन्द्र सरकार अधिनियम की धारा-3 के अंतर्गत राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य सरकार अधिनियम की धारा-17 के अंतर्गत राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग का गठन करेगी।

जिनका कार्य अधिनियम की धारा-13 के अनुसार निम्नलिखित होगा-
1- बालक अधिकारो के संरक्षण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रक्षोपायो की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपायो की सिफारिश करना ।
2- केन्द्रीय सरकार को वार्षिक रूप से ओर ऐसे अन्य अंतरालो पर जिन्हे आयोग उचित समझे उन रक्षापायो के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।
3- बालक अधिकारो के अंतिक्रमण की जांच करना और ऐसे मामलो में कार्यवाहिया आंरभ करने की सिफारिश करना ।
4- उन सभी पहलुओ की परीक्षा करना जो आंतकवाद सांप्रदायिक हिंसा , दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी/एडस अवैध व्यापार, दुव्र्यवहार उत्पीडन और शोषण अश्लील साहित्य और वेश्यावृत्ति से प्रभावित बालक अधिकारो के उपयोग को रोकते है और समुचित उपचारी उपायो की सिफारिश करना ।
5- उन बालको से जिन्ह विशेष देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता है जिनके अंतर्गत कष्टो से पीडित बालक तिरस्कृत और असुविधाग्रस्त बालक, विधि का उल्लंघन करने वाले बालक, किशोर, कुटुम्ब रहित बालक और कैदियो के बालक भी हे । संबंधित मामलो की जांच पडताल करना और उपयुक्त उपचारी उपायो की सिफारितश करना ।
6- बालक अधिकारो से संबंधित संधियों और अन्य अंतरराष्ट्रीय लिखतो का अध्ययन करना और विद्यमान नीतियों कार्यक्रमों और अन्य क्रिया कलापो का कालिक पुनर्विलोकन करना तथा बालको के सर्वोत्तम हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करना ।
7- बालक अधिकारो के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे अग्रसर करना।
8 समाज के विभिन्न वर्गो के बीच बालक अधिकार सबंधी जानकारी का प्रसार करना और प्रकाशनो मीडिया, विचार गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनो के माध्यम से इन अधिकारो के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षापायो के प्रति जागरूकता का संवर्धन करना ।
9- केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी किशोर अभिरक्षागृह या किसी अन्य निवास स्थान या बालको के लिए बनाई गई संस्था जिसके अंतर्गत किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाली संस्था भी है का निरीक्षण करना या करवाना, जहां बालको कोउपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनो के लिए निरूद्ध किया जाता है या रखा जाता है निरीक्षण करना या करवाना और किसी उपचारी कार्रवाई के लिए यदि आवश्यक हो संबंधित प्राधिकारियो से बातचीत करना ।
10- निम्नलिखित से संबंधित मामलो के परिवादो की जांच करना और इन मामलो पर स्वप्रेरणा से विचार करना-
- बालक अधिकारो से वचन और उनका अतिक्रमण
- बालको के संरक्षण और विकास के लिए उपबंध करने वाली विधियों का अक्रियान्वयन
- बालको की कठिनाइयों को दूर करने ओरबालको के कल्याण को सुनिश्चित करने तथा ऐसे बालको को अनुतोष प्रदान करने के उददेश्य के लिए नीतिगत विनिश्चियो मार्गदर्शनो या अनुदेशो का अनुुपालक या ऐसे विषयो से उदभूत मुददेो पर समुचित पदाधिकारियो के साथ बातचीत
करना और
11- ऐसे अन्य कृत्य करना जो बालको के अधिकारो के संवर्धन और उपर्युक्त कृत्यो से आनुषंगिक किसी अन्य मामलो के लिए आवश्यक समझे जाए ।
2- आयोग ऐसे किसी 
मामले की जांच नहीं करेगा जो किसी राज्य आयोग या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक रूप से गठित किसी अन्य आयोग के समक्ष लंबित है ।
अधिनियम की धारा-25 के अंतर्गत राज्य सरकार बालको के विरूद्ध अपराधो या बालक अधिकारो के अतिक्रमण के अपराधो का त्वरित विचारण करने का उपबध करने के प्रयोजन के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से अधिसूचना द्वारा उक्त अपराधो का विचारण करने के लिए राज्य में कम से कम एक न्यायालय को प्रत्येक जिले में किसी सेशन न्यायालय को बालक न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी । इसी के अंतर्गत लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 की रचना की गई है ।