भारत का संविधान और पर्यावरण संरक्षण
देश में आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। चैड़ी सड़कों के लिये पेड़ काटे जा रहे हैं। औद्योगिकरण विकास के लिये नये कारखाने स्थापित हो रहे हैं। शहर कांकरीट के जंगल बनते जा रहे हैं। जिसके कारण जल, वायु, धरती तीनों में प्रदूषण बढ़ रहा है। जिसके कारण लोगों का जीवन जीना दूभर हो गया है। प्रदूषण के कारण ही बहरापन, विकलांगता, अंधापन, केंसर, अस्थमा आदि बीमारिया से लोग ग्रसित हो रहे हैं।
हमारे संविधान के आर्टिकल-48-अ में कहा गया कि ष् राज्य देश के पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन का और वनों तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार आर्टिकल-51-अ में पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कत्र्तव्य मानते हुये यह प्रावधान किया गया है कि- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कत्र्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करं और उनका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।
संविधान के इन्हीं प्रावधानों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, जल प्रदूषण अधिनियम 1974, वायु प्रदूषण अधिनियम 1981, राष्ट्रीय पर्यावरण अधिनियम 1995, ध्वनि प्रदूषण नियम 2000, रसायन दुर्घटना आपात योजना तैयारी और अनुक्रिया नियम 1996 जैसे अलग-अलग अधिनियमों की रचना की गई है।
संविधान के अनुच्छेद-21 में जीवन जीने के अधिकार में मानव स्वास्थ्य क्षेम के लिए पर्यावरण को माना गया है। पर्यावरण संरक्षण सरकार एवं न्यायालय का दायित्व बताया गया है। अनुच्छेद 21 के अंतर्गत सफाई एवं पर्यावरण शुद्धाता को शामिल करते हुये यह निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण प्रदूषण से पीडित एवं प्रभावित व्यक्ति प्रतिकार पाने का हकदार है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुये 19 नवम्बर 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की रचना की गई। इसके अनुसार पर्यावरण प्रदूषण से तात्पर्य पर्यावरण में किसी भी पर्यावरणीय प्रदूषण का विद्यमान होना शमिल है, तथा पर्यावरण से अभिप्राय जल, हवा और भूमि तथा जल, भूमि और हवा तथा मानवीय प्राणी अन्य जीवित प्राणी, पौधे, सुक्ष्म जीवाणु तथा संपत्ति में और उनके बीच विद्यमान अंतर्संबंध शामिल है।
इस अधिनियम की धारा-3 में केन्द्र सरकार को शक्ति दी गई है कि अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा संरक्षण के लिए और पर्यावरणीय प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण, अपशमन के लिये उपाय करें। जिसमें पर्यावरण के मानक निर्धारित करना और प्रदूषण को दूर करने के उपाय शामिल हैं। इस संबंध में न्यायालय द्वारा भी समय-समय पर नोटिस जारी किए गए हैं। जिसके उल्लंघन पर धारा 15, 16 में दण्ड के प्रावधान दिये गये हैं।
न्यायालय द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से हुई नुकसानी के लिए राहत और प्रतिकर देने, दुर्घटना से प्रभावी रूप से शीघ्र निपटने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम 1995 को राष्ट््रपति केे द्वारा दिनांक-17.06.1995 को स्वीकृति प्रदान की गई है। जिसके अंतर्गत पर्यावरण दुर्घटना से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति संबंधी विधि की व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत अधिकरण की स्थापना की जायेगी जो दावों की सुनवाई करेगी।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक मामलों में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किए गए हैं न्यायालय द्वारा दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ईंटों के कारखानों से कारित प्रदूषण को रोकने के लिये ऐसे कारखानों को बंद करने अथवा अन्यत्र ले जाने का आदेश दिया गया। न्यायालय द्वारा ही निर्धारित किया गया है कि प्रदूषण का पता लगाने तथा रोकने के उपाय करने का कार्य बोर्ड का है। यमुना के जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए दिल्ली एवं हरियाणा के कई उद्योगों पर प्रतिबंध लगाये गये हैं। ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए वहां से अतिक्रमण को हटाने तथा उस क्षेत्र को हल्का औद्योगिक क्षेत्र घोषित नहीं करने का आदेश दिया गया।
एल. सी. मेहता विरूद्ध भारत सरकार संघ ए.आई.आर 2001 एस.सी. 3262 में न्यायालय ने अधिनिर्धारित किया कि आर्टिकल 51 क (छ) के अंतर्गत केंद्र सरकार का यह कत्र्तव्य है कि वह देश की शिक्षण संस्थाओं में एक घंटे पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देने का निर्देश दे।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रदूषण रहित जल और वायु के उपभोग को अनुच्छद 21 में मूल अधिकार माना गया। पेट्रोल और डीजल से चलित वाहनों के कारण प्रदूषण को रोकने विशेष उपाय किये जाने सरकार को निर्देशित किया गया है।
इन री ध्वनि प्रदूषण ए.आई.आर 2005 एस.सी 3036 के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने सरकार को ध्वनि प्रदूषण रोकने निर्देश दिया है कि देश भर में व्याप्त ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए उससे संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू करें।
उच्चतम न्यायालय ने अधिनिर्धारित किया है कि आर्टिकल 21 के अंतर्गत सभी व्यक्ति को मानव गरिमा से जीने का मूल अधिकार प्राप्त है। मानव जीवन का आकर्षण सुख पूर्ण जीवन जीना है। प्रत्येक व्यक्ति को आर्टिकल 21 के अंतर्गत ध्वनि प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन बिताने का अधिकार है। जिसको अनुच्छेद 19-1-अ में प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करने में विफल नहीं किया जा सकता है।
आर्टिकल 19-1-अ में प्रदत्त अधिकार आन्यत्रिक नहीं है। उस पर आर्टिकल 19-2 के अंतर्गत युक्तियुक्त निर्बन्धन लागू किए जा सकते हैं। कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर और आधुनिक ध्वनि विस्तारकों द्वारा किसी को उसकी आवाज सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
इन री ध्वनि प्रदूषण ए.आई.आर 2005 एस.सी 3036 में न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिये हैं -
1. पटाखों की ध्वनि स्तर वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली के अनुसार करना चाहिए। जब तक कि इससे अच्छी प्रणाली न खोज ली जाए।
2. ध्वनि करने वाले पटाखो के प्रयोग पर 10 बजे रात से 6 बजे सुबह तक पूर्ण रोक होगी।
3. पटाखों को दो भागों में बांटना चाहिए। एक घरेलू प्रयोग के लिए और दूसरा निर्यात के लिए। दोनों के रंग अलग होना चाहिए। घरेलू पटाखों पर रासायनिक तत्वों की जानकारी प्रकाशित होनी चाहिए।
4. लाउडस्पीकर आदि यंत्रों का ध्वनि विस्तार 10 डेसिबल-ए से अधिक नहीं होगा।
5. आवासीय क्षेत्रों मं कारों के हार्न का प्रयोग वर्जित होगा।
6. जब तक सरकार समुचित कानून नहीं बनाती तब तक उपर्युक्त निर्देश कानून की तरह माने जायेंगे।
एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ ए.आई.आर 1991-सुप्रीम कोर्ट ..............के एक लोकहित वाद में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निम्नलिखित निर्देश पर्यावरण के संबंध में दिये हैं ?
1. वे सभी सिनेमाघरों भ्रमणकारी सिनेमाघरों में प्रत्येक शो के पूर्व प्रदूषण संबंधी कम से कम 2 स्लाइड अवश्य दिखाये। यह उन्हें लाइसेंस की एक शर्त होनी चाहिये।
2. फरवरी 1992 से प्रत्येक दिन सिनेमाघरांे में थोड़ी अवधि की प्रदूषण संबंधी फिल्म दिखाई जानी चाहिए।
3. रेडियो और दूरदर्शन से प्रत्येक दिन 5 से 7 मिनिट का प्रोग्राम प्रसारित किया जाना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार इस पर एक लंबा प्रोग्राम दिखाया जाना चाहिए।
4. स्कूल, कालेजों, विश्वविद्यालयों में प्रदूषण एक अनिवार्य विंषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि छात्रों को इसकी जानकारी हो सके और वे इसे अपना लें।
कांउसिल फार इन विरो लीगल एक्शन विरूद्ध यूनियन आफ इण्डिया ए.आई.आर 1996-5-एस.सी. 281 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारत के समुद्री तट क्षेत्रों में स्थित कारखानों द्वारा पारिस्थितिकी और पर्यावरण को होने वाली क्षति से संरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक निर्देश दिये हैं जिससे संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके। न्यायालय द्वारा संबंधित उच्च न्यायालयों में हरी पीठ ग्रीन बेंच की स्थापना का सुझाव दिया जो इस प्रकार के मामलो की सुनवाई करे और निपटावे।
माननीय उच्चतम न्यायालय के सुझाव को ध्यान में रखते हुये 02 जून 2010 को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 (ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई। इसका मूल उद्देश्य भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य पर्यावरण भारत के नागरिकों का मूल अधिकार होने के कारण पर्यावरण की सुरक्षा रहत और व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजा देने संबंधी मामलों को शीघ्र और प्रभावी ढ़ंग से निपटाना है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 की धारा 14 में दी गई अनुसूची के अनुसार निम्नलिखित 06 अधिनियम से संबंधित मामलों का निपटारा किया जायेगा।
1. जल प्रदूषण का निवारण अधिनियम 1976।
2. जल प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण उपकर अधिनियम 1977।
3. वन संरक्षण अधिनियम 1980।
4. वायु प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1981।
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986।
6. सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम 1991 और जैव विविधता अधिनियम 2002।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 (ग्रीन ट्रिब्यूनल) की मुख्य विशेषतायेंः-
1.़ ग्रीन ट्रिव्यूनल में एक अध्यक्ष होगा, 10 राज्य स्तर पर गठित और 20 केंद्र स्तर पर गठित अधिकरण में विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति की जायेगी।
2. आवश्यकता पड़ने पर विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों को निमंत्रित किया जाएगा।
3. सर्वप्रथम पाॅंच राज्यों में कलकत्ता, नई दिल्ली, पूने, भोपाल, चेन्नई में अधिकरण की स्थापना की गई है।
4. पूणे सर्किट बेंच का क्षेत्राधिकार महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दमन दीव में होगा।
5. अधिकारण 06 माह में निर्णय देगी।
6. 90 दिन में सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकती है।
7. पर्यावरण संबंधी 6 अधिनियमों के आदेश की 30 दिन के अंदर न्यायधिकरण में अपील होगी।
8. सिविल कोर्ट की डिग्री की तरह निष्पादन होगा।
9. सिविल कोर्ट अधिकर होंगे।
10. अधिनियम की धारा-15 के अंतर्गत वाद कारण दिनाॅक से 5 वर्ष के अंदर आवेदन किया जायेगा।
11. विशेष कारण से 60 दिन और आवेदन की अवधि बढ़ाई जा सकती।
12. पर्यावरण संबंधी 6 अधिनियमों की अपीलीय अधिकारिता का प्रयोग करेगा।
13. दुनियाॅ का भारत तीसरा देश आस्ट्र्ेेलिया, न्यूजीलैण्ड के बाद है जिसने इस न्यायाधिकरण की रचना की।
14. यह न्यायाधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर कार्य करेगा।
15. यह एक फास्ट टे्र्क अर्द्ध न्यायिक न्यायालय है
16. इससे उच्च न्यायालयों में मुकद्मों का बोझ कम होगा।
17. इसकी स्थापना में मान0 न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार काविशेष योगदान है।
उमेश कुमार गुप्ता
देश में आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है। चैड़ी सड़कों के लिये पेड़ काटे जा रहे हैं। औद्योगिकरण विकास के लिये नये कारखाने स्थापित हो रहे हैं। शहर कांकरीट के जंगल बनते जा रहे हैं। जिसके कारण जल, वायु, धरती तीनों में प्रदूषण बढ़ रहा है। जिसके कारण लोगों का जीवन जीना दूभर हो गया है। प्रदूषण के कारण ही बहरापन, विकलांगता, अंधापन, केंसर, अस्थमा आदि बीमारिया से लोग ग्रसित हो रहे हैं।
हमारे संविधान के आर्टिकल-48-अ में कहा गया कि ष् राज्य देश के पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन का और वनों तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार आर्टिकल-51-अ में पर्यावरण संरक्षण को नागरिकों का मूल कत्र्तव्य मानते हुये यह प्रावधान किया गया है कि- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कत्र्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करं और उनका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।
संविधान के इन्हीं प्रावधानों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, जल प्रदूषण अधिनियम 1974, वायु प्रदूषण अधिनियम 1981, राष्ट्रीय पर्यावरण अधिनियम 1995, ध्वनि प्रदूषण नियम 2000, रसायन दुर्घटना आपात योजना तैयारी और अनुक्रिया नियम 1996 जैसे अलग-अलग अधिनियमों की रचना की गई है।
संविधान के अनुच्छेद-21 में जीवन जीने के अधिकार में मानव स्वास्थ्य क्षेम के लिए पर्यावरण को माना गया है। पर्यावरण संरक्षण सरकार एवं न्यायालय का दायित्व बताया गया है। अनुच्छेद 21 के अंतर्गत सफाई एवं पर्यावरण शुद्धाता को शामिल करते हुये यह निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण प्रदूषण से पीडित एवं प्रभावित व्यक्ति प्रतिकार पाने का हकदार है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुये 19 नवम्बर 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की रचना की गई। इसके अनुसार पर्यावरण प्रदूषण से तात्पर्य पर्यावरण में किसी भी पर्यावरणीय प्रदूषण का विद्यमान होना शमिल है, तथा पर्यावरण से अभिप्राय जल, हवा और भूमि तथा जल, भूमि और हवा तथा मानवीय प्राणी अन्य जीवित प्राणी, पौधे, सुक्ष्म जीवाणु तथा संपत्ति में और उनके बीच विद्यमान अंतर्संबंध शामिल है।
इस अधिनियम की धारा-3 में केन्द्र सरकार को शक्ति दी गई है कि अधिनियम के उपबंधों के अंतर्गत पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा संरक्षण के लिए और पर्यावरणीय प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण, अपशमन के लिये उपाय करें। जिसमें पर्यावरण के मानक निर्धारित करना और प्रदूषण को दूर करने के उपाय शामिल हैं। इस संबंध में न्यायालय द्वारा भी समय-समय पर नोटिस जारी किए गए हैं। जिसके उल्लंघन पर धारा 15, 16 में दण्ड के प्रावधान दिये गये हैं।
न्यायालय द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से हुई नुकसानी के लिए राहत और प्रतिकर देने, दुर्घटना से प्रभावी रूप से शीघ्र निपटने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण अधिनियम 1995 को राष्ट््रपति केे द्वारा दिनांक-17.06.1995 को स्वीकृति प्रदान की गई है। जिसके अंतर्गत पर्यावरण दुर्घटना से हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति संबंधी विधि की व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत अधिकरण की स्थापना की जायेगी जो दावों की सुनवाई करेगी।
पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक मामलों में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय द्वारा समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किए गए हैं न्यायालय द्वारा दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ईंटों के कारखानों से कारित प्रदूषण को रोकने के लिये ऐसे कारखानों को बंद करने अथवा अन्यत्र ले जाने का आदेश दिया गया। न्यायालय द्वारा ही निर्धारित किया गया है कि प्रदूषण का पता लगाने तथा रोकने के उपाय करने का कार्य बोर्ड का है। यमुना के जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए दिल्ली एवं हरियाणा के कई उद्योगों पर प्रतिबंध लगाये गये हैं। ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए वहां से अतिक्रमण को हटाने तथा उस क्षेत्र को हल्का औद्योगिक क्षेत्र घोषित नहीं करने का आदेश दिया गया।
एल. सी. मेहता विरूद्ध भारत सरकार संघ ए.आई.आर 2001 एस.सी. 3262 में न्यायालय ने अधिनिर्धारित किया कि आर्टिकल 51 क (छ) के अंतर्गत केंद्र सरकार का यह कत्र्तव्य है कि वह देश की शिक्षण संस्थाओं में एक घंटे पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देने का निर्देश दे।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रदूषण रहित जल और वायु के उपभोग को अनुच्छद 21 में मूल अधिकार माना गया। पेट्रोल और डीजल से चलित वाहनों के कारण प्रदूषण को रोकने विशेष उपाय किये जाने सरकार को निर्देशित किया गया है।
इन री ध्वनि प्रदूषण ए.आई.आर 2005 एस.सी 3036 के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने सरकार को ध्वनि प्रदूषण रोकने निर्देश दिया है कि देश भर में व्याप्त ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए उससे संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू करें।
उच्चतम न्यायालय ने अधिनिर्धारित किया है कि आर्टिकल 21 के अंतर्गत सभी व्यक्ति को मानव गरिमा से जीने का मूल अधिकार प्राप्त है। मानव जीवन का आकर्षण सुख पूर्ण जीवन जीना है। प्रत्येक व्यक्ति को आर्टिकल 21 के अंतर्गत ध्वनि प्रदूषण रहित वातावरण में जीवन बिताने का अधिकार है। जिसको अनुच्छेद 19-1-अ में प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करने में विफल नहीं किया जा सकता है।
आर्टिकल 19-1-अ में प्रदत्त अधिकार आन्यत्रिक नहीं है। उस पर आर्टिकल 19-2 के अंतर्गत युक्तियुक्त निर्बन्धन लागू किए जा सकते हैं। कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर और आधुनिक ध्वनि विस्तारकों द्वारा किसी को उसकी आवाज सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
इन री ध्वनि प्रदूषण ए.आई.आर 2005 एस.सी 3036 में न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश दिये हैं -
1. पटाखों की ध्वनि स्तर वर्तमान मूल्यांकन प्रणाली के अनुसार करना चाहिए। जब तक कि इससे अच्छी प्रणाली न खोज ली जाए।
2. ध्वनि करने वाले पटाखो के प्रयोग पर 10 बजे रात से 6 बजे सुबह तक पूर्ण रोक होगी।
3. पटाखों को दो भागों में बांटना चाहिए। एक घरेलू प्रयोग के लिए और दूसरा निर्यात के लिए। दोनों के रंग अलग होना चाहिए। घरेलू पटाखों पर रासायनिक तत्वों की जानकारी प्रकाशित होनी चाहिए।
4. लाउडस्पीकर आदि यंत्रों का ध्वनि विस्तार 10 डेसिबल-ए से अधिक नहीं होगा।
5. आवासीय क्षेत्रों मं कारों के हार्न का प्रयोग वर्जित होगा।
6. जब तक सरकार समुचित कानून नहीं बनाती तब तक उपर्युक्त निर्देश कानून की तरह माने जायेंगे।
एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ ए.आई.आर 1991-सुप्रीम कोर्ट ..............के एक लोकहित वाद में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निम्नलिखित निर्देश पर्यावरण के संबंध में दिये हैं ?
1. वे सभी सिनेमाघरों भ्रमणकारी सिनेमाघरों में प्रत्येक शो के पूर्व प्रदूषण संबंधी कम से कम 2 स्लाइड अवश्य दिखाये। यह उन्हें लाइसेंस की एक शर्त होनी चाहिये।
2. फरवरी 1992 से प्रत्येक दिन सिनेमाघरांे में थोड़ी अवधि की प्रदूषण संबंधी फिल्म दिखाई जानी चाहिए।
3. रेडियो और दूरदर्शन से प्रत्येक दिन 5 से 7 मिनिट का प्रोग्राम प्रसारित किया जाना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार इस पर एक लंबा प्रोग्राम दिखाया जाना चाहिए।
4. स्कूल, कालेजों, विश्वविद्यालयों में प्रदूषण एक अनिवार्य विंषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि छात्रों को इसकी जानकारी हो सके और वे इसे अपना लें।
कांउसिल फार इन विरो लीगल एक्शन विरूद्ध यूनियन आफ इण्डिया ए.आई.आर 1996-5-एस.सी. 281 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारत के समुद्री तट क्षेत्रों में स्थित कारखानों द्वारा पारिस्थितिकी और पर्यावरण को होने वाली क्षति से संरक्षण प्रदान करने के लिए आवश्यक निर्देश दिये हैं जिससे संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू किया जा सके। न्यायालय द्वारा संबंधित उच्च न्यायालयों में हरी पीठ ग्रीन बेंच की स्थापना का सुझाव दिया जो इस प्रकार के मामलो की सुनवाई करे और निपटावे।
माननीय उच्चतम न्यायालय के सुझाव को ध्यान में रखते हुये 02 जून 2010 को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 (ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई। इसका मूल उद्देश्य भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य पर्यावरण भारत के नागरिकों का मूल अधिकार होने के कारण पर्यावरण की सुरक्षा रहत और व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजा देने संबंधी मामलों को शीघ्र और प्रभावी ढ़ंग से निपटाना है।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 की धारा 14 में दी गई अनुसूची के अनुसार निम्नलिखित 06 अधिनियम से संबंधित मामलों का निपटारा किया जायेगा।
1. जल प्रदूषण का निवारण अधिनियम 1976।
2. जल प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण उपकर अधिनियम 1977।
3. वन संरक्षण अधिनियम 1980।
4. वायु प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1981।
5. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986।
6. सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम 1991 और जैव विविधता अधिनियम 2002।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 (ग्रीन ट्रिब्यूनल) की मुख्य विशेषतायेंः-
1.़ ग्रीन ट्रिव्यूनल में एक अध्यक्ष होगा, 10 राज्य स्तर पर गठित और 20 केंद्र स्तर पर गठित अधिकरण में विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति की जायेगी।
2. आवश्यकता पड़ने पर विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों को निमंत्रित किया जाएगा।
3. सर्वप्रथम पाॅंच राज्यों में कलकत्ता, नई दिल्ली, पूने, भोपाल, चेन्नई में अधिकरण की स्थापना की गई है।
4. पूणे सर्किट बेंच का क्षेत्राधिकार महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दमन दीव में होगा।
5. अधिकारण 06 माह में निर्णय देगी।
6. 90 दिन में सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकती है।
7. पर्यावरण संबंधी 6 अधिनियमों के आदेश की 30 दिन के अंदर न्यायधिकरण में अपील होगी।
8. सिविल कोर्ट की डिग्री की तरह निष्पादन होगा।
9. सिविल कोर्ट अधिकर होंगे।
10. अधिनियम की धारा-15 के अंतर्गत वाद कारण दिनाॅक से 5 वर्ष के अंदर आवेदन किया जायेगा।
11. विशेष कारण से 60 दिन और आवेदन की अवधि बढ़ाई जा सकती।
12. पर्यावरण संबंधी 6 अधिनियमों की अपीलीय अधिकारिता का प्रयोग करेगा।
13. दुनियाॅ का भारत तीसरा देश आस्ट्र्ेेलिया, न्यूजीलैण्ड के बाद है जिसने इस न्यायाधिकरण की रचना की।
14. यह न्यायाधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर कार्य करेगा।
15. यह एक फास्ट टे्र्क अर्द्ध न्यायिक न्यायालय है
16. इससे उच्च न्यायालयों में मुकद्मों का बोझ कम होगा।
17. इसकी स्थापना में मान0 न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार काविशेष योगदान है।
उमेश कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें