सामान्य आशय
धारा-’34 भा0द0वि0 के अंतर्गत यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई कार्य संयुक्त रूप से करते है तो विधि के अंतर्गत स्थिति वहीं होगी कि मानो उनमें से प्रत्येक के वह कार्य स्वयं व्यक्तिगत रूप से किया गया हो । व्यक्तियों का कार्य अलग हो सकता है किन्तु उनका आषय एक रहना आवष्यक है
इस संबंध में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि धारा-34 किसी आपराधिक कृत्य को करने के संयुक्त दायित्व के सिद्धांत के आधार पर अधिनियमित की गई है । यह धारा केवल एक साक्ष्य का नियम है और इसमें कोई सरवान् अपराध सृजित नहीं किया गया है ।
इस धारा की सुभिन्न विषेषता यह है कि इसमें कार्यवाई में सहभागिता का तत्व विद्यमान है । अनेक व्यक्तियों द्वारा किये गये आपराधिक कार्य के अनुक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा किये गए किसी अपराध के लिए किसी अन्य व्यक्ति का दायितव धारा-34 के अधीन तभी उद्भूत होगा यदि ऐसा आपराधिक कार्य उन व्यक्तियों के, जो अपराध करने में सम्मिलित हुये थे, किसी सामान्य आषय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो ।
सामान्य आशय से संबंिधत धारा-भा0द0सं0 35,36,37,38, है ।
संहिता की धारा-35 के अनुसार जब कभी कोई कार्य जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किये जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति जो ऐेसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसीप्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो ।
संहिता की धारा-36 के अनुसार जहां कही किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां वह समझा जाना है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य द्वारा और अश्तः लोप द्वारा कारित किया जाना वहीं अपराध है ।
संहिता की धारा-37 किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यो में से किसी एक को करके सहयोग करना जब कि कोई अपराध कई कार्यो द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यो में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है ।
संहिता की धारा-38 आपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधो के दोषी हो सकेंगे जहां कि कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए या सम्पृक्त है, वहां वे उस कार्य के आधारपर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे ।
सामान्य आषय का प्रत्यक्ष सबूत यदाकदा उपलब्ध होता है और इसलिए ऐसे आषय का निष्कर्ष केवल मामले के साबित तथ्यों और साबत परिस्थितियों से उपदर्षित परिस्थितियों से ही निकाला जा सकता है ।
सामान्य आषय के आरोप को साबित करने के अनुक्रम में अभियोजन पक्ष को साक्ष्य द्वारा, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या पारिस्थितिक, यह साबित करना होता है कि उस अपराध के करने की, जिसके लिए उन्हें धारा-34 के अंतर्गत आरोपित किया गया है, सभी अभियुक्त व्यक्तियों की योजना थी या मतैक्य था । चाहे वह पूर्व योजनाबद्ध हो या क्षणिक हो किन्तु यह सब आवष्यक रूप से अपराध किये जाने से पूर्व होना चाहिए ।
अषोक कुमार विरूद्ध पंजाब राज्य ए0आई0आर0 1977 एस0सी0 109. वाले मामले में मत व्यक्त किया गया है कि इस धारा को लागू करने के लिए किसी अपराध में भाग लेने वालो के मध्य एक सामान्य आषय का विद्यमान होना आवष्यक तत्व है यह आवष्यक नहीं है कि किसी अपराध को संयुक्त रूप से करने के लिए आरोपित अनेक व्यक्तियों के कार्य समान और समरूप है कार्य स्वरूप में भिन्न भिन्न हो सकते हैं किन्तु वे एक ही सामान्य आषय से किए गये होने चाहिए जिससे कि इस उपबंध को लागू किया जा सके ।
धारा-’34 भा0द0वि0 के अंतर्गत यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई कार्य संयुक्त रूप से करते है तो विधि के अंतर्गत स्थिति वहीं होगी कि मानो उनमें से प्रत्येक के वह कार्य स्वयं व्यक्तिगत रूप से किया गया हो । व्यक्तियों का कार्य अलग हो सकता है किन्तु उनका आषय एक रहना आवष्यक है
इस संबंध में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि धारा-34 किसी आपराधिक कृत्य को करने के संयुक्त दायित्व के सिद्धांत के आधार पर अधिनियमित की गई है । यह धारा केवल एक साक्ष्य का नियम है और इसमें कोई सरवान् अपराध सृजित नहीं किया गया है ।
इस धारा की सुभिन्न विषेषता यह है कि इसमें कार्यवाई में सहभागिता का तत्व विद्यमान है । अनेक व्यक्तियों द्वारा किये गये आपराधिक कार्य के अनुक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा किये गए किसी अपराध के लिए किसी अन्य व्यक्ति का दायितव धारा-34 के अधीन तभी उद्भूत होगा यदि ऐसा आपराधिक कार्य उन व्यक्तियों के, जो अपराध करने में सम्मिलित हुये थे, किसी सामान्य आषय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो ।
सामान्य आशय से संबंिधत धारा-भा0द0सं0 35,36,37,38, है ।
संहिता की धारा-35 के अनुसार जब कभी कोई कार्य जो आपराधिक ज्ञान या आशय से किये जाने के कारण ही आपराधिक है, कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति जो ऐेसे ज्ञान या आशय से उस कार्य में सम्मिलित होता है, उस कार्य के लिए उसीप्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य उस ज्ञान या आशय से अकेले उसी द्वारा किया गया हो ।
संहिता की धारा-36 के अनुसार जहां कही किसी कार्य द्वारा या किसी लोप द्वारा किसी परिणाम का कारित किया जाना या उस परिणाम को कारित करने का प्रयत्न करना अपराध है, वहां वह समझा जाना है कि उस परिणाम का अंशतः कार्य द्वारा और अश्तः लोप द्वारा कारित किया जाना वहीं अपराध है ।
संहिता की धारा-37 किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यो में से किसी एक को करके सहयोग करना जब कि कोई अपराध कई कार्यो द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यो में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है ।
संहिता की धारा-38 आपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधो के दोषी हो सकेंगे जहां कि कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को करने में लगे हुए या सम्पृक्त है, वहां वे उस कार्य के आधारपर विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे ।
सामान्य आषय का प्रत्यक्ष सबूत यदाकदा उपलब्ध होता है और इसलिए ऐसे आषय का निष्कर्ष केवल मामले के साबित तथ्यों और साबत परिस्थितियों से उपदर्षित परिस्थितियों से ही निकाला जा सकता है ।
सामान्य आषय के आरोप को साबित करने के अनुक्रम में अभियोजन पक्ष को साक्ष्य द्वारा, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या पारिस्थितिक, यह साबित करना होता है कि उस अपराध के करने की, जिसके लिए उन्हें धारा-34 के अंतर्गत आरोपित किया गया है, सभी अभियुक्त व्यक्तियों की योजना थी या मतैक्य था । चाहे वह पूर्व योजनाबद्ध हो या क्षणिक हो किन्तु यह सब आवष्यक रूप से अपराध किये जाने से पूर्व होना चाहिए ।
अषोक कुमार विरूद्ध पंजाब राज्य ए0आई0आर0 1977 एस0सी0 109. वाले मामले में मत व्यक्त किया गया है कि इस धारा को लागू करने के लिए किसी अपराध में भाग लेने वालो के मध्य एक सामान्य आषय का विद्यमान होना आवष्यक तत्व है यह आवष्यक नहीं है कि किसी अपराध को संयुक्त रूप से करने के लिए आरोपित अनेक व्यक्तियों के कार्य समान और समरूप है कार्य स्वरूप में भिन्न भिन्न हो सकते हैं किन्तु वे एक ही सामान्य आषय से किए गये होने चाहिए जिससे कि इस उपबंध को लागू किया जा सके ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें