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मंगलवार, 13 अगस्त 2013

बालमजदूरी



                                      बालमजदूरी 

         

 माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडू सिविल रिट याचिका क्रमांक-465/86 में बाल श्रम उन्मूलन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे जो निम्नलिखित हैंः-


1. काम करने वाले बच्चों की पहचान के लिये सर्वेक्षण किया जाए।
2. खतरनाक उद्योग में काम कर रहे बच्चों की वापसी हो उन्हें उचित शिक्षा संस्थान में शिक्षित किया जाये। 
 
3. बाल कल्याण बवदजतपइनजपवद / त्ेण् 20000 की स्थापना

 की गयी है जिसमें प्रति बच्चे के हिसाब से नियोक्ता द्वारा भुगतान 

किया जाये।
 
4. बच्चों के परिवार के व्यस्क सदस्य को रोजगार किया जायेगा। 
 
5. राज्य सरकार कल्याण कोष में येगदान देगी। 
 
6. बच्चों के परिवार को वित्तीय सहायता दी जायेगी। 
 
7. गैर खतरनाक व्यवसाय मे बच्चों को काम पर नहीं लिया जायेगा। 
 
                                                मान0 उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश के अनुरूप वर्ष 2006 में बाल श्रम निषेध कानून की स्थापना की गयी जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी काम धंधों में नहीं लगाया जायेगा। 


 बालक श्रम प्रतिषेध और विनियम अधिनियम 1986

 
                                                               हमरे देश में बाल मजदूरी आम बात है । देश में करोडो बच्चे पढने की उम्र में बोझा ढोते हैं । कारखाना, फैक्ट्री, में खतरनाक काम करते हैं । जबकि बाल मजदूरी को बालक श्रम प्रतिषेध और विनियमन अधिनियम 1986 की धारा-14 में अपराध घोषित कर उसे दण्डित किया गया है । 
 
                                                  इस अधिनियम के अंतर्गत बच्चो को 15वां साल लगने से पहले किसी भी फेक्ट्री में काम पर नहीं रखा जा सकता । उनसे रेलवे स्टेशन, बंदरगाह, कारखाने, उद्योग धंधे जहां पर खतरनाक रसायन और कीटनाशक निकलते हैं । वहा पर उन्हें काम पर नहीं लगाया जा सकता है

                                   ैकेवल 14 से 18 साल की उम्र के बच्चे को ही फैक्ट्रियो मंे 6 घंटे काम पर लगाया जा सकता है । जिसमें उनसे एक बार में चार घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता है । रात के 10 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच में उनसे कोई भी काम नहीं करवाया जायेगा । उन्हें सप्ताह में एक दिन छुटटी अवश्य दी जायेगी ।

                                                  उनकी सुरक्षा के विशेष इंतजाम कारखाना अधिनियम 1948 के अनुसार किये जाएगें ।जब से बच्चो को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है तब से 18 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को काम करने की इजाजत नही दी जानी चाहिए।

 
                                                               माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत में सर्कस में बाल कलाकार का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है।

                                    हमारे देश में सर्कस लोकप्रिय है और सर्कस में बच्चे काम करते थे इस संबंध में मान0 उच्चतम न्यायालय के द्वारा 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकारों को उपयोग करने से सर्कस मालिकों पर प्रतिबंध लगा दिया। यह देखा गया कि सर्कस में अव्यस्क बच्चों को उनकी मर्जी के खिलाफ दिन में 5 बार प्रदर्शन के लिये मजबूर किया जाता था और सर्कस के लिये बच्चो की तस्करी की जाती थी। सर्कस में उनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था। इसे बालश्रम माना गया। 

 
इस संबंध में बचपन बचाओं आंदोलन विरूद्ध भारत संघ सिविल याचिका क्रमांक-51/2006 में निम्नलिखि दिशा-निर्देश जारी किये गयेः-

1. 14 वर्ष से कम उम्र के बाल कलाकार सर्कस में काम नहीं करेंगे। 
 
2. सर्कस में काम कर रहे अव्यस्क बच्चों को दिन में पांच बार प्रदर्शन के लिये मजबूर नहीं किया जायेगा। 
 
3. प्रत्येक राज्य सरकार किशोर घरों की अर्द्ध वर्षिक रिपोर्ट प्राप्त करेगी जिसमें बच्चों की संख्या, स्थिति, पुर्नवास और वर्तमान स्थिति का उल्लेख होगा। इसके लिये राज्य सरकार प्रत्येक जिले में किशोर न्याय सेल खोलेगी। 
 
4. 24 घण्टे घरों में चलने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों का जिला कलेक्टर में पंजीकरण होगा उनके नाम पते सहित पूर्व विवरण, पदाधिकारियों के नाम, मोबाइल नम्बर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किये जाएॅगे इसका एक डेटाबेट तैयार किया जायेगा। 
 
5. सड़क किनारे ढाबे (भोजनालय) और मैकेनिक की दुकानों में काम करने वाले बच्चों को बचाने और उनका पुनर्वास करने में एक मजिस्ट्र्ेट की नियुक्ति, जिला मजिस्ट्र्ेट द्वारा की जायेगी। जिसके द्वारा ऐसे बच्चों की बचाव और निगरानी करने के निर्देश दिये जायेंगे।
6. केन्द्रीय दत्तक ग्रहण रिसोर्स एजेन्सी द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट परिवारसमाज कल्याण को दी जायेगी।
7. समेकित बाल संरक्षण योजना के अंतर्गत केन्द्र और राज्य सरकार अर्द्धवार्षिक रणनीति योजना तैयार करेगी।
8. प्रत्येक राज्य सरकार को बच्चों के संबंध में योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये जिम्मेदार बताया गया बाल कल्याण समितियों को जिला जज की देखरेख में रखने की सिफारिश की गयी है। 
 
9. घरों में बच्चों की अच्छी देख भाल हो इसके लिये पालक ध्यान-योजना की सिफारिश की गयी है। 
 
10. केन्द्र सरकार बच्चों के लाभ और कल्याण के लिये एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनायेगी, जिससे आवंटित धन का वास्तव में बच्चों के कल्याण के लिये उपयोग होगा। 


                                    बच्चो से मजदूरी कराना बाल मजदूरी कहलाता है बच्चों से काम कराना कानूनन अपराध है बच्चों सेकाम करवाने पर सजाहो सकती है सामान्यतयह देखा गया हे किबाल मजदूरो से काम कराने के बाद भी उन्हेंकम मजदूरी दी जाती हैया फिर मामूली सी मजदूरी दी जाती है और उनबाल मजदूरो का जोखिम भरे कार्यो से इस्तमाल भी किया जाता है
इस कानून के तहत बच्चों को 15वां साल लगने से पहल किसी ज्ञी फैक्टृी में कामपर नहीं रखा जा सकता

 बच्चों कोनीचे लिखे कार्यो केलिये नहीं रखा जा सकता
1- रेलगाड़ी से यात्री सामान या डाक लेजाने के लिये
2- रेल्वे स्टेशन की सीमा मे भवन बनाने के लिये
3- रेल्वे स्टेशनमेंचाय खाने पीने केसामान की दुकान पर जहां एक दूसरे
प्लेटफार्म पर बार बार आना जाना पड़ता है
4- रेल्वे स्टेशन या रेल लाईन बनाने के काम के लिये
5- बंदरगाहपर किसी भी तरह केकाम के लिये
6- अल्कालीन (टेम्परेरी) लाईसंेस वाली पटाखों की दुकानो में पटाखें बेंचने के
काम के लिये
7- किसी भी घर ,दुकान आदि में पानी ढोने के लिये
8- जलाने के ईधन एकत्रित करने के लिये
9- खेत जोतने के लिये

इन कार्यो में भी बच्चो का लगाना मना है
1- बीड़ी बनाने का काम
2- गलीचें बनाने का काम
3- सीमेंट कारखाने में सीमेंट बनाना या थेलों में भरना
4- कपड़ा बुनाई छपाई या रंगाई का कार्य करवाना
5- माचिस पटाखे या बारूद बनाना
6- अभ्रक काटना या तोड़ना
7- चमड़ा या लाख बनाना
8- कांच तथा चूडियो की फेक्टृरी मेंकाम करना
9- साबुन बनाना
10- चमड़े की पीटाई रंगाई या सिलाई कराना
11- उन या रूई की सफाई घुनाई कराना
12- मकान,सड़क,बांध आदि बनाना
13- स्लेट पेंसिल बनाना पैक बंद करना
14- गोमेद या कांच की मलाऐं या वस्तुऐ बनाना
15- कोई सेा काम जिसमें लैड, पारा ,मैगनीज ,क्रोमियम,अरगजी,पेक्सीन,कीटनाशक
इबाई और एस्बेस्टस जैसे जहरीले धातु ओर पदार्थ उपयोग में लाये जाते हों
16- पत्थर तोड़ने या सड़क बनाने का काम कराना
17- किसी बगान आदि में काम कराना
बच्चों को किन-किन शर्तो पर काम करने के लिये कानून इजाजत देता है ?
केवल 14 से 18 उम्र के बच्चे ही फेक्टृीयों में काम कर सकते हैं लेकिन -
1- बच्चों से 6 घंटे से अधिक समय तक काम नही करवायाजा सकता है।
2- एक साथ बच्चों से चार घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता
3- रात के 10 बजे से लेकर सुबह आठ जे की बीच में उनसे कोई भी काम
नहीं लिया जा सकता है
4- बच्चों से ज्यादा ज्यादा दो शिफटों में काम करवाया जा सकता है
5- सप्ताह में एक दिनकी छुट्टी अनिवार्य है

बच्चोकी सुरक्षाके लिये कानून में क्या प्रावधान है?
बच्चों के जीवन की सुरक्षा के लिये कारखाना अधिनियम 1948 में कुछ प्रावधान कियेगये हैं जिनमें से खास यह है -
1- 14 साल कम उम्र के बच्चों को किसी भी कारखाने में काम की इजाजत
नही है यानि 15वां साल लगने से पहले बच्चों को काम पर नहीं रखा जा
सकता कारखाना अधिनियम 1948 ने कारखानों में बच्चों से काम लेने पर
रोक लगाई है
2- 14 से 18 साल के बीच के उम्र के अवयस्क बच्चों को कारखाने मं काम
करने दियाजा सकता है
3- एक दिन में केवल एक ही कारखाने में उनसे काम करवाया जा सकता है










































भारत सरकार की मनरेगा योजना

            भारत सरकार की मनरेगा योजना 

 
                                                       यह योजना अनुसूचित जात,अनुसूचित जनजाति और बरीबीरेखा से नीचे की भूमिहीन आबादी जो पहले अमीर भूस्वामियो के खेतोमें बंधुआ मजदूर के रूप में काम करती थी,मनरेगा की योजनाओं के कारण भू-स्वामियोके चंगुल सेमुकत हो चुकी हैं ।
                                            मनरेगा योजना देश के 625 जिलों में लागू हैं । ग्रमीण विकास मंत्रालय के तहत मनरेगा पिछले दशक में भारत सरकार की बहुत ही क्रातिकारी योजनाओं में से एक है । यह भारत के ग्रामीण परिवारों की 25 फीसदी आबादी को रोजगार उपलव्ध कराता है ।
 
                                           इस योजनाके अंतर्गत लोगों को अधिक मजदूरी मिले और गरिमा तथा आत्म सम्मान के साथ जीने लगे । उनकी जीवन शेली मेंसुधर हुआ वे अच्छा स्वास्थ ,अच्छे कपड़े और बहतर हुये ,अहार व्यवहारकाआनंद उठाने लगे ।
                         अपने कानूनी ढांचे औरअधिकार आधारित दृष्टिकोण के साथमनरेगा का उद्वेश्य प्रत्येक परिवार को एक वित्त वर्ष में 100 दिनो की मजदूरी की गारंटी वाला रोजगार उपलव्ध कराने के जरिये उनकी अजीविका बढ़ाना है । इन ग्रामीण परिवारों के व्यस्क सदस्य स्वैच्छिक गैर प्रशिक्षित हाथ का कार्य करते हैं । 
 
                                        मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों को अनुमानित 128 लाख करोड रूपये सीधे मजदूरी भुगतान के रूप में दिये जा चुके हैं और वर्ष2008 के हर साल करीब पांच करोड परिवारो को रोजगार उपलव्ध कराया जा रहा है । 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

संविधान में बच्चों से संबंधित विशेष प्रावधान





             संविधान में बच्चों से संबंधित विशेष प्रावधान

भारत के संबिधान में बच्चों को विशेष प्रावधान दिये गये हैं। जिसमें आर्थिक शारीरिक शोषण से बचाने, बालश्रम रोकने तथा शिक्षा प्रदान कराने लिये विशेष प्रावधान दिये गये है ।

संविधान के अनुच्छेद-15-3 के अनुसार राज्य स्त्रियों और बालको के लिये विशेष उपबंध बना सकता है ।

 इस संबंध में अनुच्छेद 21-क में 86 वें संशोधन अधिनियम के द्वारा शिक्षा को मूल अधिकार में शामिल करते हुये उपबंधित किया गया है कि राज्य ऐसी रीति से जैसा कि विधि द्वारा उपबंधित है 6 वर्ष की आयु 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलव्ध कराई जावेगी ।

संविधान के अनुच्छेद 23 में बलातश्रम, बेगार, मानव व्यापार को प्रतिबंधित कर दंडनीय अपराध बनाया गया है ।

 संबिधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिये नियोजित नहीं किया जा जायेगा । किसी परिसकंटमय नियोजन में नहीं रखा जायेगा ।

संविधान के निति निर्देशक तत्व के अनुच्छेद 39-ई में पुरूष और स्त्री कर्मकारो के स्वास्थय और शक्ति का तथा बालको की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिको को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो ।

अनुच्छेद 39-एफ के अनुसार बालको के स्वतंत्र और गरिमामय बातावरण में स्वच्छ विकास के अवसर और सुविधाऐं दी जायें और बालको और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक ,परित्याग से रक्षा की जाये ।

अनुच्छेद 45 के अनुसार राज्य 6 वर्ष के आयु के सभी बच्चों के पूर्व बाल्यकाल के देखरेख और शिक्षा देने का प्रयास करेगा ।

भारत के संबिधान में राज्य के नागरिको पर भी कुछ मूल कर्तव्य आरोपित किये गये हैं जिसके अनुच्छेद 51--के के अनुसार 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष के आयु के बच्चों के माता पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षक जैसा मामला हो उन्हें शिक्षा का अवसर प्रदान करे ।


बच्चों से संबंधित विशेष विधि एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश-

 
किशोर न्याय
विधि के साथ संघर्षरत किशोरो को शीघ्र न्याया प्रदान करने हेतु किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण) अधिनियम 2000 की रचना की गई है । जिसमें 18 साल से कम आयु के वे बच्चे जिन्होने कानून का उल्लंघन किया हो ।

 उनका किशोर न्याय बोर्ड के द्वारा निराकरण किया जाता है । ऐसे किशोर को गिरफतारी के 24 घंटे के अंदर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया जाता है । बोर्ड को मामले की जांच अधिकतम चार माह मे पूर करनी चाहिए । बोर्ड 14 वर्ष की आयु से बडे कामकाजी बच्चे को जुर्माना लगाने का आदेश देता है । विवाहित किशोर को अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए विशेष गृह/सुधार गृह भेजने का आदेश दिया जाता है । कानून विवादित किशोर को सामूहिक गतिविधियों तथा सामुदायिक सेवा कार्यो में भाग लेने का आदेश दिया जाता है । बोर्ड को मुफ्त कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराना राज्य विधिक सेवाए प्राधिकरण और जिला बाल संरक्षण इकाई के कानूनी अधिकारी की जिम्मेदारी है ।

अधिनियम में बाल कल्याण हेतु बालगृह बनाने की व्यवस्था है । इसके अंतर्गत बच्चो को अस्थाई रूप से रखने के लिए निरीक्षण गृह, विशेष गृह आफटर केयर गृह की स्थापना की जायेगी जिसमें किशोरो को ईमानदारी, मेहनत और आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने की शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाएगा । अनाथ शोषित, उपेक्षित, परित्यक्त बच्चो के पुनर्वास की व्यवस्था की गई है । ऐसे बाल गृहोे में बच्चो के स्वास्थ, शिक्षा, पोषण, सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाएगा । इसके लिए बाल कल्याण समिति चाइल्ड हेल्प लाइन 1098 की स्थापना की गई है ।

लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 
 
हमारे देश में छोटे बच्चो का यौन शोषण आम बात है । विशेषकर बच्चे के परिचित, रिश्तेदार, जानपहचान वाले, आस-पास रहने वाले पडौसी, शिक्षक आदि बच्चो पर प्रभाव डालकर यौन शोषण करते हैं। इन लोगो में ऐसे व्यक्तियों की संख्या ज्यादा जो अपना प्रभाव इन बच्चो पर रखते हैं और इस प्रभाव के अनुसरण में बच्चो के साथ अपनी यौन इच्छा, यौन पिपासा को शंात करते हैं ।
यौन शोषण के अंतर्गत न सिर्फ इनके साथ अप्राकृतिक मैथुन बलात्कार किया जाता है बल्कि इन्हें अश्लील फिल्में देखने बाध्य किया जाता है । इनके साथ अश्लील व्यवहार कर उसका फिल्मान्कन किया जाता है । यौन शोषण से बच्चो में निराशा, पीडा, आत्म सम्मान में कमी, की वृद्धि होती है । जिससे बच्चे के मानसिक स्तर पर कूप्रभाव पडता है और वह अपराध की ओर अग्रसर होते है या इसका बुरी तरह से शिकार होते हैं ।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 की रचना की गई है । जिसमें बालक से आशय ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम अभिप्रेत है। इस अधिनियम में इन अपराधो को यौन उत्पीडन, यौन शोषण, के रूप में परिभाषित कर दण्डित किया गया है ।
इसके साथ ही साथ दण्ड विधि संशोधन अधिनियम 2013 दिनांक 3.2.13 से प्रभावशील किया गया है जिसमें यौन शोषण,और यौन उत्पीडन को बलात्कार की परिभाषा में शामिल कर कठोर दण्ड से दण्डित किया गया है । बार-बार अपराध करने वालो को मृत्यु दण्ड और उनके जीवन के रहते आजीवन कारावास से दंडित किया गया है।

बाल विवाह 
 
हमारे देश में बच्चो की कम उम्र में शादी की परम्परा है । जिसके कारण बच्चें कम उम्र में मां बाप बन जाते हैं । गर्भवती महिलाओ को मृत्यु और गर्भपात में वृद्धि होती है । शिशु मृत्यु दर बढती है । बच्चो को बाल मजदूरी अवैध व्यापार या वैश्या वृत्ति में लगा दिया जाता है भारत में बाल विवाह को दण्डित किया गया है जिसके संबंध में बाल विवाह निषेध अधियिम 2006 की रचना की गई है ।

अधिनियम के अनुसार एक ऐसी लडकी का विवाह जो 18 साल से कम की है या ऐेसे लडके का विवाह जो 21 साल से कम का है । बाल विवाह कहलाता है ।जिसके लिए 18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र का बालक जो विवाह करता है । उसे और उसके मिाता पिता संरक्षक अथवा वे व्यक्ति जिनके देखरेख बाल विवाह सम्पन्न होता है । बाल विवाह में शामिल होने वाले व्यक्तियों को भी दण्डित किया जाता है । े

बाल विवाह के आरोपियों को दण्डित किया गया है । उन्हें दो साल तक का कठोर कारावास या एक लाख रूपये तक का जुर्माना अथवा दोनो से दण्डित किया जा सकता है । इसके अलावा बाल विवाह कराने वाले माता पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी को भी तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है । किन्तु बाल विवाह कानून के अंतर्गत किसी महिला को न ही माता पालक अथवा बालक या बालिका जिसका विवाह हुआ है उसे कारावास की सजा नहीं दी जाएगी।

बाल विवाह की शिकायत कोई भी व्यक्ति निकटतम थाने में कर सकता है । इसके लिए सरकार के द्वारा प्रत्येक जिले में जिला कलेक्टर बाल विवाह निषेध अधिकारी की शक्तियां दी गई है । जिसका काम उचित कार्यवाही से बाल विवाह रोकना है । उनकी अभिरक्षा भरण पोषण की जिम्मेदारी उसकी है । उसका काम समुदाय के लोगो में जागरूकता पैदा करना है । वह बाल विवाह से संबंधित मामलो में जिला न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करवायेगा ।

बाल विवाह को विवाह बंधन में आने के बाद किसी भी बालक या बालिका की आनिच्छा होने पर उसे न्यायालय द्वारा वयस्क होने के दो साल के अंदर अवैध घोषित करवाया जा सकता है । जिला न्यायालय भरण पोषण दोनो पक्षों को विवाह में दिए गए गहने कीमती वस्तुएंे और धन लौटाने के आदेश पुनर्विवाह होने तक उसके निवास का आदेश कर सकेगा।

माननीय उच्चतम न्यायालय बच्चों के शोषण से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक और व्यवस्थित योजना बनाये जाने हेतु दिशा निर्देश जारी किये गये।
अपर्याप्त बजट आवंटन पर चिंता व्यक्त की गई है। आॅकड़ो के अनुसार भारत में दुनियाॅ की 19 प्रतिशत बच्चों की आबादी 1/3 से नीचे लगभग 44 लाख बच्चे की आबादी 18 वर्ष से कम है। इसके बाद भी वर्ष 2005-06 में कुल बजट का 3.86 प्रतिशत और 2006-07 में 4.91 प्रतिशत खर्च किया गया। जब कि देश के बच्चे देश का भविष्य हैं वे क्षमता विकास के अग्रदूत हैं। उनमें गतिशीलता नवाचार, रचनात्मकता परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है। हम स्वस्थ्य और शिक्षित बच्चों की आबादी का विकास करे ताकि आगे चलकर वे अच्छे नागरिकों के रूप में देश की सेवा कर सके। इन्हीं बातों का ध्यान रखते हुये बाल कल्याण के लिये बजट बढ़ाने का कहा गया है। 

किशोर न्याय अधिनियम 2000 के अधीन आयु निर्धारण

किशोर न्याय ( बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण)  अधिनियम 2000 एंव उसके नियमों के अधीन आयु निर्धारण


                                                                         किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख तथा संरक्षण)  अधिनियम 2000 जिसे आगे अधिनियम से संबोधित किया गया है । उसका उद्देश्य और प्रयोजन विधि का उल्लंघन करने वाले अपचारी और उपेक्षित किशोरों की देख-रेख संरक्षण, उपचार, विकास, और पुनर्वास करने का है । इसलिए इसका निर्वाचन उदारतापूर्वक किशोर के हित में किये जाने निर्देशित किया गया है ।

                         अधिनियम की धारा-2 ट के अनुसार किशोर या बालक एक ऐसे व्यक्ति से अभिप्रेत हैं जो 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की गई है । इस प्रकार उपेक्षित किशोर के मामले में बालक और लड़की दोनो की आयु एक समान रखी गई है ।


                                                           अधिनियम की धारा-4 के अंतर्गत अधीन किशोर न्यायबोर्ड की स्थापना की गई है और सर्व प्रथम विधि के साथ संघर्ष में बालक को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और अधिनियम की धारा-7 के अंतर्गत जब इस अधिनियम के अधीन एक बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए किसी मजिस्ट्ट के समक्ष बालक को प्रस्तुत किया जायेगा तो अधिनियम की धारा-7(2) के अंतर्गत वह जांच करेगा कि जो किशोर या बालक उसके समक्ष लाया गया है वह वास्तव में किशोर बालक है अथवा नहीं ।

                                    इस सबंध में अधिनियम की धारा-49 में आयु की उपधारणा और अवधारणा संबंधी प्रावधान दिये गये हैं ।


                                                     किशोर न्याय बालको की देखरेख संशोधन अधिनियम 2006 की धारा-6 सं संशोधित धारा- 7ए से जोडी गई है- धारा-7ए के अनुसार जब किसी न्यायालय में किशोर होने का दावा प्रस्तुत हो, तब प्रक्रिया-

                                    जब किसी न्यायालय में किशोर होने का दावा प्रस्तुत हो या न्यायालय की यह राय हो कि अभियुक्त, अपराध करने के दिनांक को किशोर था, तब न्यायालय उस व्यक्ति की आुय ज्ञात करने के लिए ऐसी जांच करेगा और ऐसी साक्ष्य ग्रहण (लेकिन शपथ पत्र नहीं लेगा) जो आवश्यक हो और जांच का निष्कर्ष लिखेगा कि वह व्यक्ति किशोर या बालक है या नहीं और निष्कर्ष में, उसकी आयु, जहां तक सम्भव हो उतनी सही लिखेगा ।


                                                    परन्तु किशोर होने का दावा, प्रकरण के निराकरण के पश्चात् भी, किसी भी न्यायालय में उठाया जा सकेगा और उसको मान्यता दी जावेगी और वह दावा इस अधिनियम के और इसके अन्तर्गत बने नियमों के प्रावधान अनुसार निर्णित किया जावेगा चाहे वह व्यक्ति इस अधिनियम के लागू होने के दिनांक को या इसके पूर्व किशोर न रहा हो ।


                                                       अधिनियम की धारा-7ए-2 के अनुसार, यदि न्यायालय इस निर्णय पर पहंुचती है कि वह व्यक्ति अपराध करने के दिनांक को किशोर था तो वह उस किशोर व्यक्ति को बोर्ड के सन्मुख उचित आदेश पारित करने हेतु प्रस्तुत करेगी और यदि न्यायालय ने कोई दण्डादेश दिया होगा वह प्रभावहीन हो जावेगा ।


                                                    प्रताप सिंह बनाम झारखंड राज्य और एक अन्य 2005 भाग-3 उच्चतम न्यायालय पत्रिका 10 में प्रतिपादित दिशा निदेर्शो के अनुसार किसी किशोर की आयु का अवधारण उस तारीख से किया जाएगा जिस तारीख को उसके द्वारा अपराध किया गया न कि उस तारीख से जिसको उसे उस अपराध के सबंध में न्यायालय या सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पेश किया गया ।

                                                               अधिनियम की धारा-68 के अंतर्गत राज्य सरकार को राजपत्र में   अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों का अनुपालन करने के लिए नियम बनाने के शक्ति दी गई है । इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए मध्य प्रदेश शासन  द्वारा मध्य प्रदेश किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण )नियम, 2003 की रचना की गई है, जिसे आगे नियम से सम्बंोधित किया गया है । नियम 10 मे किशोर न्यायबोर्ड जांच में अनुशरण की जाने वाली प्रक्रिया बताई गई है ।


                                                                        नियम 10(1) के अनुसार बोर्ड बालक से संबंधित प्रत्येक मामले में, उसकी आयु तथा उसकी शारीरिक और मानसिक दशा के बारे में जन्म प्रमाण पत्र या चिकित्सीय राय अभिप्राप्त करेगा । उसके पश्चात अपनी राय किशोर के सबंध में व्यक्त करेगा । यदि बालक 18 वर्ष से कम का पाया जाता है तो अधिनियम की धारा-14 के अंतर्गत आयु की जांच के पश्चात कार्यवाही प्रारंभ करेगा।


                         
                                                          अधिनियम की धारा-6(2) के अंतर्गत इस प्रकार की शक्तियां किशोर न्यायबोर्ड के रूप में उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय के समक्ष उस समय प्राप्त है जब कार्यवाही अपील पुनरीक्षण या अन्य रूप में उनके सामने आती है । इस सबंध में सुस्थापित सिद्धांत है कि अपचारी किशोर की आयु की जांच लंबित रहते समय उसे अन्तरिम जमानत पर छोड़ा जायेगा ।

                             शाकिर मेवाती विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन आई.एल.आर. 2011 भाग-3 संक्षिप्त नोट क्रमांक-116 में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि सत्र विचारण के दौरान अभियुक्त की आयु का प्रश्न उठाया जाये तो मामले को किशोर न्यायालय/किशोर न्याय बोर्ड को निर्दिष्ट करने की बजाए सत्र न्यायालय को ही व्यक्ति की आयु के बारे में जांच प्रारंभ करना यह भली भांति सेशन न्यायालय की शक्तियों के भीतर है ।


                                                              किशोर अपराधी की जांच मामले की परिस्थिति के अनुसार की जायेगी संबंधी लेखों व दस्तावेजो पर विचार करने के बाद बोर्ड को संतुष्ट होना चाहिए तथा मामले की परिस्थितियों के अनुसार सभी आवश्यक जांच अपेक्षित है जो उचित व न्यायसंगत है । वह जांच बोर्ड को करनी चाहिए ।


                                                           बब्लू पासी विरूद्ध झारखण्ड राज्य न्यायदृष्टांत 2009 ए.आई.आर. सुप्रीम कोर्ट 314 में यह अवधारित किया गया है कि व्यक्ति से प्रथमतः उसके जन्म प्रमाण-पत्र, द्वितीयता मेट््िरकुलेशन या समकक्ष प्रमाण-पत्र आयु के संबंध में प्राप्त किये जाने चाहिए। जन्म प्रमाण-पत्र या मेट््िरकुलेशन प्रमाण-पत्र प्रस्तुत न होने की दशा में व्यक्ति की आयु निर्धारित करने मंे चिकित्सीय बोर्ड का अभिमत लिया जा सकता है किन्तु चिकित्सीय बोर्ड का अभिमत निश्चायक प्रमाण नहीं होता क्यों कि व्यक्ति के खान-पान, वातावरण, रहन-सहन, अनुवांशिकता और अन्य बाह्य कारण उसकी शारीरिक बनावट पर प्रभाव डालते हैं ।


                                                                        इस प्रकार सर्वप्रथम जन्म एंव मृत्यु के रजिस्टर में किये गये प्रविष्टी पर विचार किया जाना चाहिए उसके बाद स्कूल रजिस्टर में प्रवेश आयु पर विचार किया जाना चाहिए । परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि माता-पिता स्कूल में प्रवेश कराते समय आयु को कम ज्यादा कराने की प्रवृत्ति रखते हैं । इसलिए यदि इसकी संभावना हो तो मेडीकल साक्ष्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए । इसके लिए अस्थि परीक्षण कराया जाना चाहिए ।


                                                          कुमारी अनीता बनाम अटल बिहारी 1993 क्रि.ला.जनरल 549 एम.पी.  के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है कि-जहां किसी अपराध के संबंध में किसी अभियुक्त व्यक्ति को यह अवसर दिया गया कि वह अपनी बात को साबित करें कि क्या अवयस्क था अथवा यह कि क्या वह बालकथन में अपराध किया है वहां यह विचार व्यक्त किया कि जन्म रजिस्टर की बातें तात्विक मानी जायेंगी । इसी मामले में यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां अभियुक्त की आयु के विषय में कोई सम्यक प्रमाण न था वहां न्यायालय को रेडीयोंलोजिस्ट की रिपोर्ट पर जोर दिया जाना चाहिए ।


                                                     इसी मामले में अभियुक्त की आयु प्रश्नगत था कि जिस दिन कथित अपराध कारित हुआ था उस दिन अभियुक्त व्यक्ति एक किशोर था वहां यह विचार व्यक्त किया गया कि उसका विनिश्चय परीक्षण के स्तर पर किया जाना न्यायोचित है



                                                           ओसीफिकेशन परीक्षण के संदर्भ में रेडीयोंलोजिस्ट की रिपोर्ट के बारे में यह सुस्थापित सिद्धांत है कि बालक पर खान-पान, जलवायु, रहन-सहन, का असर होने के कारण लगभग दो वर्ष कम ज्यादा का अंतर आयु निर्धारण के समय रखा जाना चाहिए । इस संबंध में 2008 भाग-1 एम.पी.एल.जे. क्रि.204 अनुज सिंह विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन के मामले में अभिनिर्धारित किया गया है । इसी मामले में अभिनिर्धारित किया गया है जब दो दृष्टिकोण संभव हो तो अभियुक्त के हित में होने वाला दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए । प्रस्तुत मामले में स्कूूल दाखिला रजिस्टर और अस्थि संबंधी जांच में विरोधाभाष पाया गया है । 2007 भाग-3 एम.पी.एल.जे. 214 उमेद सिंह विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन  में भी यही बात अभिनिर्धारित की गई है ।

       
                                        अधिनियम की धारा-49 में आयु की उपधारणा और अवधारणा के संबंध में प्रावधान दिया गया है जिसके अनुसार जहां यह सक्षम प्राधिकरण को यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन इसके समक्ष लाया गया व्यक्ति साक्ष्य देने के प्रयोजनार्थ से भिन्न एक किशोर या बालक है वहां सक्षम प्राधिकरण उस
 व्यक्ति की आयु के बारे में ऐसी सम्यक जांच करेगा और उस प्रयोजन के लिए ऐसा साक्ष्य ग्रहण करेगा जो आवश्यक लेकिन एक शपथ पत्र नहीं और एक निष्कर्ष यथा शाक्य निकटतम उसकी आयु का वर्णन करने वाला एक निष्कर्ष अभिलिखित करेगा चाहे व्यक्ति एक किशोर या बालक हो ।

                                            धारा-49(2) के अनुसार एक सक्षम प्राधिकरण का कोई आदेश मात्र इस किसी पश्चात्वर्ती सबूत द्वारा अवैधानिक होना समझा जायेगा कि जिस व्यक्ति के बावत् आदेश पारित किया गया है, वह एक किशोर या बालक, और उसकी आयु होने के लिए सक्षम प्राधिकरण द्वारा अभिलिखित आयु नहीं है ।

            अधिनियम की धारा-49(1) के अनुसार जहां यह सक्षम प्राधिकारी को प्रतीत होता है कि   अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन उसके समक्ष लाया गया एक व्यक्ति एक किशोर या बालक है

  
      
                                                        इस प्रकार अधिनियम की धारा-6,7,7ए,49, के अनुसार उपेक्षित बालक की आयु की जांच का निर्धारण किया जायेगा । जांच करते समय  घटना दिनांक को उपेक्षित बालक की आयु उसके द्वारा प्रस्तुत जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र एंव प्रस्तुत दस्तावेजो तथा अन्य चिकित्सीय अभिसाक्ष्य पर विचार किया जायेगा ।

                         




बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005

    बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005

                                              बालक अधिकारो के संरक्षण के बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर आयोग की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य बालाको के विरूद्ध अपराधो या बालक अधिकारो के अतिक्रमण के त्वरित विचारण के लिए बालक न्यायालयो के गठन तथा इसे संबंधित और उसके आनुवंशिक विषयों का उपबंध करना है।

                                                    अधिनियम मंे संयुक्त राष्ट महासभा के शिखर सम्मेलन में बालको के लिए उपयुक्त विश्व नामक दस्तावेज को स्वीकार किया है । जिसमें वर्तमान दशक के लिए सदस्य देशो द्वारा अपनाए जाने वाले लक्ष्य उद्देश्य युक्तियां और क्रियाकलाप अंतर्विष्ट है । और यह समीचीन है कि इस संबंध में सरकार द्वारा अंगीकृत नीतियांे, बालक अधिकार संबंधी अधिसमय में विहित मानको और अन्य सभी सुसंगत अन्तरराष्ट्रीय लिखतो को कार्यान्वित करने के लिए बालको से संबंधित विधि अधिनियमित की जाए।

                                         अधिनियम के अनुसार केन्द्र सरकार अधिनियम की धारा-3 के अंतर्गत राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य सरकार अधिनियम की धारा-17 के अंतर्गत राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग का गठन करेगी।\

        जिनका कार्य अधिनियम की धारा-13 के अनुसार निम्नलिखित होगा-

    1-    बालक अधिकारो के संरक्षण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रक्षोपायो की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपायो की सिफारिश करना ।

    2-    केन्द्रीय सरकार को वार्षिक रूप से ओर ऐसे अन्य अंतरालो पर जिन्हे आयोग उचित समझे उन रक्षापायो के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।

    3-     बालक अधिकारो के अंतिक्रमण की जांच करना और ऐसे मामलो में कार्यवाहिया आंरभ करने की सिफारिश करना । 

    4-    उन सभी पहलुओ की परीक्षा करना जो आंतकवाद सांप्रदायिक हिंसा , दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी/एडस अवैध व्यापार, दुव्र्यवहार उत्पीडन और शोषण अश्लील साहित्य और वेश्यावृत्ति से प्रभावित बालक अधिकारो के उपयोग को रोकते है और समुचित उपचारी उपायो की सिफारिश करना ।

    5-    उन बालको से जिन्ह विशेष देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता है जिनके अंतर्गत कष्टो से पीडित बालक तिरस्कृत और असुविधाग्रस्त बालक, विधि का उल्लंघन करने वाले बालक, किशोर, कुटुम्ब रहित बालक और कैदियो के बालक भी हे । संबंधित मामलो की जांच पडताल करना और उपयुक्त उपचारी उपायो की सिफारितश करना ।

    6-    बालक अधिकारो से संबंधित संधियों और अन्य अंतरराष्ट्रीय  लिखतो का अध्ययन करना और विद्यमान नीतियों कार्यक्रमों और अन्य क्रिया कलापो का कालिक पुनर्विलोकन करना तथा बालको के सर्वोत्तम हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करना ।

    7-    बालक अधिकारो के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे अग्रसर करना।

    8    समाज के विभिन्न वर्गो के बीच बालक अधिकार सबंधी जानकारी का प्रसार करना और प्रकाशनो मीडिया, विचार गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनो के माध्यम से इन अधिकारो के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षापायो के प्रति जागरूकता का संवर्धन करना ।

    9-    केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी किशोर अभिरक्षागृह या किसी अन्य निवास स्थान या बालको के लिए बनाई गई संस्था जिसके अंतर्गत किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाली संस्था भी है का निरीक्षण करना या करवाना, जहां बालको कोउपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनो के लिए निरूद्ध किया जाता है या रखा जाता है निरीक्षण करना या करवाना और किसी उपचारी कार्रवाई के लिए यदि आवश्यक हो संबंधित प्राधिकारियो से बातचीत करना ।

    10-    निम्नलिखित से संबंधित मामलो के परिवादो की जांच करना और इन मामलो पर स्वप्रेरणा से विचार करना-

    अ-    बालक अधिकारो से वचन और उनका अतिक्रमण

    ब-    बालको के संरक्षण और विकास के लिए उपबंध करने वाली विधियों का अक्रियान्वयन

    स-    बालको की कठिनाइयों को दूर करने ओरबालको के कल्याण को सुनिश्चित करने तथा ऐसे बालको को अनुतोष प्रदान करने के उददेश्य के लिए नीतिगत विनिश्चियो मार्गदर्शनो या अनुदेशो का अनुुपालक या ऐसे विषयो से उदभूत मुददेो पर समुचित पदाधिकारियो के साथ बातचीत
करना और 

    11-    ऐसे अन्य कृत्य करना जो बालको के अधिकारो  के संवर्धन और उपर्युक्त कृत्यो से आनुषंगिक किसी अन्य मामलो के लिए आवश्यक समझे जाए ।

2-        आयोग ऐसे किसी मामले की जांच नहीं करेगा जो किसी राज्य आयोग या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक रूप से गठित किसी अन्य आयोग के समक्ष लंबित है । 

                                   अधिनियम की धारा-25 के अंतर्गत राज्य सरकार बालको के विरूद्ध अपराधो या बालक अधिकारो के अतिक्रमण के अपराधो का त्वरित विचारण करने का उपबध करने के प्रयोजन के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से अधिसूचना द्वारा उक्त अपराधो का विचारण करने के लिए राज्य में कम से कम एक न्यायालय को प्रत्येक जिले में किसी सेशन न्यायालय को बालक न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी । इसी के अंतर्गत लैगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम 2012 की रचना की गई है ।