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सोमवार, 5 अगस्त 2013

बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम


               निशुल्कऔरअनिवार्यशिक्षाकाअधिकारअधिनियम2009                 


                                   भारत के संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने काअधिकार दिया गया है । सन् 2002 में भारत सरकार द्वारा इसअधिकार में शिक्षा का अधिकार शामिल कर लिया गया । इसके तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों करे मुफत और अनिवार्य शिक्षा उपलव्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है ।
 
                                              इमारे देश की ससंद ने बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षाका अधिकार अधिनियम ,1 अप्रेल 2009 का लागू किया है इसकेबाद कागजी रूप से ही सही पर भारत उन 130 से अधिक देशोंकी जमात में शामिल हो गया है ,जो अपने देश में बच्चों कोनिशुल्क शिक्षा उपलव्ध कराने के लिये कानून से बंधे हैं । यह एक कानून है ,जिसे केन्द्र सरकार द्वारा लागू किया गया है ।

1-------                                   इस कानून में कहा गया हे कि6 से 14 साल तक के हर बच्चे कोचाहे वह बालक हो या बालिका, प्राथमिक शिक्षा कक्षा-1 से 8बींतक की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है । यह शिक्षा सरकारद्वारानिशुल्क ओर उनके घर के नजदीक के विधालय में उपलव्धकराई जाएगी । 

 
 2--------                                       6 से 11 साल तक की उम्र के सभी बालक,बालिकाओं,अनुसूचितजाति ,अनुसूचित जनजाति सामाजिक ओर आर्थिक रूप से पिछड़ेपरिवारो के बच्चे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालेपरिवारों के बच्चे ओर बिकलांग बच्चे आदि सभी को निशुल्क औरअनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार हमारे देशके कानून मेंदिया है । 

 
3---------                                    कक्षा 8बीं तक अब हर बालक ,बालिकाओं को शिक्षा प्राप्त करनेका अधिकार है । इसके लिये स्कूल द्वारा बच्चों सेकोई फीस/शुल्क /व्यय नहीं लिया जाएगा । 
 
निशूल्क से तात्पर्य है कि स्कूल द्वारा किसी बच्चे से ऐसी कोई
फीस शुल्क या व्यय नही लिया जाएगा जो उस बच्चे को प्रारंभिंक
शिक्षा पूरी करने में बाधक हो ।
अनिवार्य शिक्षा से मतलब है कि 6 से 14 साल तक की उम्र के
सभी बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिया जाएगा ,यानि स्कूल में उनका
नाम दर्ज किया जाए ।
सभी बच्चों को स्कूल में शत प्रतिशत उपस्थिति हो यानी बच्चे
नियमित स्कूल जाए और अपनी कक्षा के स्तर के अनुसार पढ़ना
लिखना सीखें । उन बातों को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार कीहै । 
 
            इस कानून के अनुसार जो स्कूल सरकार के अधीन है, उसे
निर्धारित सीमा तक बालक/बालिकाओं को निशुल्क प्रवेश दने
की बाध्यता है । इस कानून के अनूसार बालक/बालिका को किसी स्कूल में प्रवेश देते समय कोई शुल्क जैसे दान,चंदा,व्यय,
आदि नहीं लिया जाएगा । 

 
           यदिकोई विधालय/स्कूल इनबातो का उल्लघंन करता हे यानि
बच्चों से या उसके माता पिता ,अभिभावक से कोई शुल्क,व्यय,
प्राप्त करता है तो उस व्यक्ति या विधालय/स्कूल को जर्माने से
दडित किया जाएगा। यह जुर्मानावसूली गई फीस या शुल्क से
10 गुना तक हो सकता है । 

 
        स्कूल में प्रवेश देने से पहले बालक/बालिका, माता पिता या
संरक्षक का साक्षात्कार या प्रवेश परीक्षा नहीं ली जाएगी ।
यदि कोई स्कूल या व्यक्ति किसी भी बालक/बालिका को इस
प्रक्रियाके अधीन रखता है तो पहली बार उल्लघंन के लिये 25,000
रूपये एंव यदि इसके बाद भी शिकायत मिलती है तो 50,000/-
रूपये तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा । 

 
      ग्रामीण क्षेत्र मेंग्राम पंचायत एंव नगरीय क्षेत्र में नगरीय निकाय
जैसे नगर पालिका नगर निगम औरनगर पंचायत द्वारा पलायन
या बाहर जाने बाले परिवारों का चिन्हित किया जाएगा।

   ऐसे परिवारो की सूची बनाई जाएगी ओर उन परिवारों के बच्चो
को स्कूल में दर्ज कराया जाएगा । साथ ही बिकलांग वच्चों को
भी अपने नतदीक के स्कूल में भर्ती कियका जाएगा ।

   इन बच्चोंका शिक्षा ओर सीखने से संबंधित विशेष सहायक सामग्री उपलव्धकराई जाएगी और यदि स्कूल दूर है या बिकलांग बच्चे को स्कूलतक जाने में दिक्कत है तो ऐसे बच्चों को स्कूल तक आने जानेके लिये वाहन की व्यवस्था की जाएगी । हर स्कूल में रेम्प (आनेजाने के लिए ढाल वाला रास्ता) बनाया जाएगा ता कि बिकलांगबच्चों को स्कूल के अंदर आने में असुविधा न हो ।

 जिन बच्चों को6वर्ष से अधिक उम्र होने पर स्कूल में दर्ज किया जाए और वे 14 वर्ष तक अपनी प्रारभिंक शिक्षा(कक्षा 8बीं )पूरी नहीं कर पाये तो 14 साल से ज्यादा उम्र होने पर भी उन्हंे निशुल्क ओर अनिवार्य शिक्षाप्राप्त करने का अधिकार मिलेगा । 

 
                  इस कानून के क्रियान्वयन में बच्चों के माता पिता और
अभिभावको की भूमिका महत्वपूर्ण है क्यों कि इन लोगों में से ही
 स्कूल प्रबंधनसमिति का गठन किया जाएगा। यह समिति स्कूल कीवार्षिक योजना बनाएगी और स्कूल की नियमित गतिविधियों जैसेस्कूल का समय पर खुलना बंद होना, स्कूल में पढ़ाई होना, बच्चोंका अपने शिक्षा स्तर के अनुसार सीखना ,पालको के साथ हरमहिने बैठक होना ,मध्यान्ह भोजनआदि बातों की देखरेख करेगी
प्रत्येक माता पिता और अभिभावक का यह कर्तव्य है कि वे अपने
वह अपने बच्चंे को प्रारभिक शिक्षा के लिये आस पास के स्कूल मेंप्रवेश दिलाएं,नियमित स्कूल भेंजे ,ओर उसकी प्रारभिंग शिक्षा पूरीकराऐं । बच्चों के माता पिता और अभिभावक यदि बच्चे को स्कूलन भेजें तो उन पर कोई दण्ड या जुर्माना नहीं लगाया जाएगा ।फिर भी मातापिता और अभिभावक का यह कर्तव्य है कि वे अपने
बच्चे को स्कूल में प्रवेश कराएं, उसको नियमित स्कूल भेंते और
प्राथमिक शिक्षा पूरी कराएं । 

 
                 इस कानून के क्रियान्वयन में ग्रामीण क्षेत्र में पंचायत औरनगरीय क्षेत्रों में नगरीय निकायों को कई जिम्मेदारिया सोंपी गई है
जो निम्नलिखित हैं:-

1- अपने पंचायत क्षेत्र में प्रत्येक बच्चे बालक बालिका को नि-
शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त कराना ।
2- इसकानून में तय किये गये मापदंड के अनुसार पड़ोस में
स्कूल उपलव्ध कराना यानि वस्ती के एक किलोमीटर की दूरी के
अंदर प्राथमिक स्कूल और तीन किलोमीटर की दूरी के अंदर
माध्यमिक स्कूल उपलव्ध कराना ।

 
  3  यह सुनिश्चित होगाकि किसी अनुसूचित जाति ,अनुसूचित
जनजाति अन्य पिछड़ा बर्ग ,बी0पी0एल0 परिवार के बच्चे बालिका
और बिकलांग बच्चों के साथ किसर स्कूल में किसी तरह का भेद
भाव न हो और न ही कोई ऐसीबात हो जो किसी बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने में बाधक हो । 


 
4    हर ग्राम पंचायत ओर नगरीय निकाय अपने क्षेत्र में निवास
करने वाले 6 से 14 साल तक की उम्र के बच्चों कर रिकार्ड रखना
हर पंचायत या नगरीय निकाय यह तय करेगे कि उनकी
सीमा में रहने वाले सभी बच्चे स्कूल में प्रवेश लें ,नियमित स्कूल
जाएं और अपनी आठबीं तक शिक्षा पूरी करें ।
5  अपनी पंचायत क्षेत्र में बच्चों की शिक्षा के लिये स्कूल भवन
शिक्षक एंव शिक्षण सामग्री जैसर सुविधाऐं उपलब्ध कराना ।
स्कूल के मानको के अनुसार प्रारभिंक शिक्षा की गूणबत्ता
को सुनिश्चित करना ।
6  यह तय करना कि प्रारंभिक शिक्षा का पाठयक्रम समय पर
पूरा किया जाए ।

7  शिक्षको के लिय प्रशिक्षण की सुविधा उपलव्ध कराना । 
8 प्रवासी परिवार ऐसे परिवार जो मजदूरी आदि के लिये दूसरे
स्थान पर जातें हैं के बच्चों के स्कूल प्रवेश को सुनिश्चित किया
जायेगा। इसके अलावा यह भी देखा जायेगाकि स्कूल जाति वर्ग
धर्म या लिंग आधारित भेदभाव न किया जाये और अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति ,बी0पी0एल0 परिवार और बिकलांग वच्चों केसाथ कक्षा में मध्यान्ह भोजन के समय खेल में पीने का पानी ओरशौचालय के उपयोग में किसी तरह का भेदभाव न किया जाए,औरशौचालय या कक्षा की सफाई करने में भी किसी तरह का भेदभावन किया जाए ।


  8 इस कानून के अनुसार किसी बच्चे को किसी तरह का शारीरिक दण्ड जैसे मारपीट,मुर्गा बनाना ,बेंच पर ,खड़ा करना आदिऔर मानसिंक उत्पीड़न जैसे- जाति ,धर्मसूचक शब्द ,शारीरिकबिकलांगता के शव्द का प्रयोग किसी तरह से नहीं किया जा सकताहै । यदि किसी शिक्षक के द्वारा किसी बच्चे को शारीरिक दंड यामानसिंक उत्पीड़न किया जाता है तो एसे शिक्षक/शिक्षिका केखिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी ।

9  निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिये निजी स्कूलो में 25
प्रतिशत शीट नजदीक रहने वाले अनुसुचित जाति, अनुसूचित जन
जाति,अन्य पिछड़ा वर्ग ,वचिंत वर्ग एंव गरीबी रेखा के नीचे रहने
वाले परिवारों के बच्चों के लिये आरक्षित की गई है ।।

10  विशेष तरह के स्कूलो जैसे केन्द्रीय विधालय, नवोदय
विधालय ,सैनिक विधालय में 25 प्रतिशत सीट पर स्थानीय,अनुसूचितजाति ,अनुसूचित जनजाति ,बी.पी.एल. परिवार के बच्चों एंव बिकलांगबच्चो को प्रवेश दिया जाएगा । साथ ही प्रायवेट विधालय द्वारा स्कूलमें प्रवेश दिये जाने पर इन बालक/बालिकाओं से कोई शुल्क याफीस नहीं ली जायेगी । 

 
किसी भी बालक/बालिका के पास आय का सबूत हो या
न हो उसे प्रवेश दिया जायेगा ।
जन्म प्रमाण पत्र न होने पर विधालय/स्कूल बच्चे को स्कूल
में प्रवेश देने से मना नहीं किया जा सकता है ।

 6 से 14 साल केउम्र के किसी भी बालक/बालिका को स्कूल में प्रवेश देने सेमना नहीं किया जासेगा । लेकिन जन्म का पंजीयन या प्रमाण होनाबच्चे और अभिभावक दोनो के हित में है क्योंकि इस प्रमाण पत्र काउपयोग बच्चे के द्वारा आजीवन विभिन्न कानूनी प्रक्रिया को पूरा करनेकि लिये कियाजाता है । यह पत्र उसके जन्म एंव जीवित होने काएक कानूनी आधार होता है । 

 
शिक्षा सत्र के प्रारंभ होने के समय जुलाई मेे या दसके बाद
कभी भी बच्चे को स्कूल में प्रवेश दिया जा सकता है ।

जिन बच्चो को बाद में प्रवेशदिया जायेगा उन बच्चों की
क्षमता एंव कौशल बढ़ाने के लिये विशेष प्रशिक्षण दिया जायेगा । 

 
स्कूल में छात्र एंव शिक्षक अनुपात के लिये कक्षा पहली से
से पांचवी तक 30 बालक /बालिको की कक्षा पर एक शिक्षक या
60 बालक/बालिकों की कक्षा के लिये दो शिक्षक होगे ।

कक्षा छटबीं से आठवीं कक्षा के प्रत्येक बालक/बालिकाओं
पर कम से कम एक शिक्षक और प्रत्येक विषय गणित,विज्ञान,
सामाजिक अध्ययन एंव भाषा विषय के लिये एक-एक शिक्षक होगा ।
इस कानून के अनुसार शत्र शुरू होने से 6माह कि अंदर
यह छात्र शिक्षक अनुपात पूरा कर लिया जायेगा । 

 
एक शैक्षणिक वर्ष में कक्षा पहली से पांचवी तक 200 कार्य
दिवस तय किये गये हैं यानि 200 दिन स्कूल में पढ़ाई की जायेगी
यानि साल भर में कम से कम 800 घंटे स्कूल में पढ़ाई होगी ।
कक्षा छटवीं से आठवी तक के स्कूल के लिये साल में 220
कार्य दिवस तय किये गये हैं । यानि 220 दिन स्कूल में पढ़ाई होगी
सानि साल में कम से कम 1000 घंटे पढ़ाई की जायेगी ओर सप्ताह
में कम से कम 45 घंटे पढ़ाई की जायेगी ।

स्कूल के काम काज की देख रेख करना यानि स्कूल समय
पर खुले ,समय पर बंद हो, स्कूल में पढ़ाई हो, ओर बच्चे कक्षा स्तर
के अनुसार सीखें । 

 
स्कूल के लिये विकास की योजना तैयार करन और उसकी
सिफारिश करना ।

6 से 14 साल की उम्र के सभी बच्चों को नियमित स्कूल
में आने के लिये उनके अभिभावको को प्रेरित करना ।
बच्चों के माता पिता ओर अभिभावको के साथ नियमित बैठक
करना ओर यह देखना कि कोई शिखक प्राईवेट टयूशन या प्राईवेट
शिक्षण कार्य ना करे । सकूल में बच्चो के साथ मारपीट और मानसिंक उत्पीड़न न हो मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम की देखरेख हो ।

प्रारभिक शिक्षा पूरी होने का प्रमाण पत्र दिया जायेगा । यह प्रमाण
पत्र सिर्फ कुछ विषयो पर पर क्रेन्द्रित नहीं होगा बल्कि इसमें कोर्स
की गतिविधियो के साथ- साथ संगीत नृत्य,साहित्य खेल आदि विषयभी शामिल किये जा सकते हैं ।

 
इस कानून के अनुसार बालक/बालिकाओं के शिक्षा अधिकारों के संरक्षण एंव देखरेख के लिये राष्टृीय बाल अधिकारसंरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को अधिकृतकिया गया है ।

 यह आयोग बच्चों के अधिकारों की प्राप्ती के लियेक्रियान्वयन की परीक्षा एंव प्रभावी क्रियान्वयन के लिये सुझाव देना ।बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लघंन होने पर शिकायतदर्ल लिखित या मौखिक हो सकती है । 

ग्रामीण पंचायम कार्यालयएव नगरीय क्षेत्र में नगर पालिका ,नगर निगम या नंगर पंचायतमें शिकायत दर्ज की जा सकती है ।

संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार


      संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार 

                     उच्चतम न्यायलय ने पूनणसिंह और अन्स बनाम राज्य(0आई0आर01975 सुप्रीम कोर्ट 1674) के मामले में संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार
का अबलम्बन लेने के लिये चार परिस्थितियाॅ उपदर्शित की थी एंप पैरा 11 मेंइस प्रकार सम्प्रेक्षित किया था:-
‘‘ कब्जे की प्रकृति, जो अतिचारी संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अनुप्रेयोग करने का हकदार बना सकेगी में निम्नलिखित संपति और शरीर की प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार गुण होना चाहिये:-
1- अतिचारी के पास पर्याप्त रूप से लम्बे समय से संपति का वास्तविक भौतिक कब्जा होना चाहिये ।
2- कब्जा मालिक के अभिव्यक्त या विवक्षित ज्ञान में छिपाने के किसी प्रयासके बिना होना चाहिये ओर जो कब्जे का आशय का तत्व अन्तर्वलित करता है । अतिचारी के कब्जे की प्रकृति प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों एंवपरिस्थितियों पर विनिश्चित किये जाने वाला विषय होगा ।
 
3- अतिचारी द्वारा वास्तविक मालिक के वेकब्जे की प्रक्रिया पूर्ण और अंतिमहोनी चाहिये एंव वास्तविक मालिक द्वारा मौन सहमति होनी चाहिये और 
 
4- व्यवस्थापित ब्जि की गुणबत्ता अवधारित करने के लिये प्रायिक परीक्षाओंमेंसेएक खेती योग्य भूमि की दशा में यह होगी कि क्या अतिचारी कबजाप्राप्त करने के पश्चात कोई फसल उगा चुका था या नहीं । यदि अतिचारी द्वारा फसल उगाई जा चुकी थी तब यहां तक कि वास्तविक मालिक को अतिचारी द्वारा उगाई गई फसल नष्ट करने का कोई अधिकार नहीं है, उस दशा में अतिचारी के पास प्रायवेट प्रतिरक्षा काअधिकार होगा और वास्तविक मालिक को प्रायवेट प्रतिरक्षा का कोईअधिकार नहीं होगा ।



काशीराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य ए0आई0आर0 2001 एस0सी0-2902 निर्दिष्ट किया गया- आत्म रक्षा का अभिवचन स्थापित करने का भारअभियुक्त पर उतना अधिक दुर्भर नहीं होताहै, जितना कि अभियोजनका होता है और यह कि जवकि अभियोजन को उसका मामला युक्ति-युक्त शंका से परे साबित करने की आवश्यक्ता नहीं होती है। अभियुक्तको सम्पूर्ण अभिवचन स्थापित करने की आवश्यक्ता नहीं है ओर या तोउस अभिवचन के लिये आधार प्रदत्त करके संभावनाओं की मात्र बाहुल्यता स्थापित करके उसके भार का निवर्हन कर सकेगा । अभियोजन साक्षीगण के प्रति-परीक्षण में या वचाव साक्ष्य प्रस्तुत करने के द्वारा(सलीम
जिया बनाम उततर प्रदेश राज्य ए0आई0आर0 1979 एस0सी0-391 अबलंबित)

प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को अक्सर प्रोद्वरित सूक्ति में सुनहरे मापोंमें नहीं मापा जा सकता (अमजद खान बनाम मध्यप्रदेश राज्यए0आई0आर1952 एस0सी0165 अबलबित ) चूकि अपीलार्थी का भगवान की हत्या करने का कोई आशय नहीं था,उसका कार्य धारा 308 के तहत अपराधसमझा गया था जवकि उसके द्वारा वहन की गई क्षतियो ने पलिस पदाधिकारीगण को भा0दं0सं0 की धारा325 के तहत अपराध के लिये उत्तरदायी ठहराया था । इस प्रकार तथ्यों पर भीयह निष्कर्ष निकालनासंभव नहीं है कि प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार क अतिक्रमण किया गया
था । 

 
 एक मात्र प्रश्न जो विचारण किये जाने योग्य है वह है प्रायवेट प्रतिरक्षाके अधिकार का अभिकथित अनुप्रयोग । धारा 96 भा0दं0सं0 उपबंधित करती है कि कोई भी कार्य अपराध नहीं है जो प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के अनुप्रयोग में किया जाता है। यह धारा अभियव्यक्ति ‘‘प्रायवेटप्रतिरक्षा का अधिकार ‘‘ को परिभाषित नहीं करती ,यह मात्र इंगित करतीहै कि कोई भी कार्य नहीं है । जो ऐसे अधिकार के अनुप्रयोग में किया जाता है क्या परिस्थितियों के एक विशिष्ट समूह में किसी व्यक्ति ने बैघ
रूप से प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के अनुप्रयोग में कार्य किया था , प्रत्येक प्रकरण केतथ्यों एंव परिस्थितियों पर अबधारित किये जाने वाला तथ्य का एक प्रश्न है । 

                ऐसे प्रश्न को अबधारित करने के लियेकाल्पनिकरूप से परीक्षाप्रतिपादित नहीं की जा सकती । तथ्य के इस प्रश्न कोअबधारित करने में न्यायालय को समस्त आस पास की परिस्थितियो कोविचारण में लेना चाहिये ।
                      अभियुक्त के लिये कई शब्दो में अभिवचनकरने की कोई आवश्यक्ता नहीं है कि उसने प्रायवेट प्रतिरक्षा में कार्य किया था, यदि परिस्थितिया यह दर्शार्ती है कि प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का बैध रूप से अनुप्रयोग किया था, तो न्यायालय ऐसे अभिवचनका विचारण करने में स्वंतत्र होती हे । प्रदत्त मामले में न्यायालय इसकाविचारण करसकती है ,यहां तक कि यदि अभियुक्त ने इसे नहीं उठाया हैयहां तक कि यदि वह अभिलेखगत सामग्री से विचारण के लिये उपलव्धहे।

 भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 साक्ष्य अधिनियम की धारा 105 केतहत सबूत का भार अभियुक्त पर होता है, जो प्रायवेट प्रतिरक्षा का अभिवचन उठाता है और सबूत के अभाव में न्यायालय के लिये आत्मरक्षाके अभिवचन की सच्चाई की उपधारणा करना सभंव नहीं होता है । न्यायालय ऐसी परिस्थितियों के अभाव की उपधारणा करेगा। अभियुक्त केद्वारा या तो स्वंय सकारात्मक साक्ष्य प्रस्तुत करने के द्वारा या अभियोजनके लिये जांचे गये साक्षियों से आवश्यक तथ्य निकालने के द्वारा अभिलेखपर आवश्यक सामग्री रखना निर्भर करता है ।
                      प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अभिवचन करने वाला अभियुक्त को आवश्यक रूप से साक्ष्यबलाने की कोई आवश्यक्ता नहीं हे वह उसके अभिवचन को अभियोजन
साक्ष्य स्वयमेव से प्रकट करती हुई परिस्थितियों का संदर्भ लेकर उसके अभिचवन को स्थपित कर सकता है । ऐसे मामले में प्रश्न अभियोजन साक्ष्य के सत्य प्रभाव के निर्धारण करने का प्रश्न होगा और अभियुक्तद्वारा कोई भार का निवर्हन करने का प्रश्न नहीं होगा जहां प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अभिवचन किया जाता है तो प्रतिरक्षा युक्तियुक्तऔर संभाव्य वृतांत न्यायालय का समाधान करती हुई होना चाहिये किअभियुक्त के द्वारा कारित अपहानी हमले को बिफल करने के लिये याअभियुक्त की तरफ से आगामी युक्तियुक्त आंशका का आभास करने के लिये आवश्यक थी आत्मरक्षा स्थापित करने का भार अभियुक्त परहोता है
और भार अभिलेखगत सामग्री के आधार परउस अभिवचन के हित मेंसंभावनाओं की बाहुल्यता दर्शाने के द्वारा उन्मोचित किया गया स्थित होता है ।
 मुंशीराम ंव अन्य बनाम दिल्ली प्रशासन 1968 -2 एस0सी0आर
455
,गुजरात राज्य बनाम बाई फातमा,1975-3एस.सी.आर. 993 उत्तरप्रदेश राज्य बनाम मो0 मुशिर खान, 0आई0आर0 1977 एस0सी02226 
 मोहिन्दर पाल जोली बनाम पंजाब राज्य 1979-2 एस0सी0आर0 805