सामान्य उददेश्य
धारा-149 प्रतिनिधिक एंव आन्वयिक दाण्डिक दायितत्व विधि विरूद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य हेतु विहित करती है,जहां अपराध उस जमाव के सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में ऐसे विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा कारित किया गया हो या उस जमाव के सदस्यों का उस उददेश्य के अग्रसरण में कारित किया जाना जानते हुए किया हो ।
विधि के सुस्थापित सिद्धांतो के अनुसार जब कभी न्यायलाय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा-149 की सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध करती है । जमाव के सामान्य उददेश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया गया साक्ष्य न केवल सामान्य उददेश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए । बल्कि यह भी कि उददेश्य विधि विरूद्ध था। भा.द.सं. की धारा-149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित करने के पूर्व, भा.द.सं. की धारा-141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए ।
141 विधिविरूद्ध जमाव- पांच याअधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरूद्ध जमाव कहा जाता है यदि उन व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उददेश्य हो-
पहला- केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्य सरकार को संसद को या किसी राज्य के विधान मंडल को या किसी लोक सेवक को जब कि वह ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना अथवा
दूसरा- किसी विधि के या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिशेध करना अथवा
तीसरा- किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का रना अथवा
चैथा- किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी सम्पत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमति अधिकार को प्रवर्तित करना अथवा
पांचवा- आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो विवश करना ।
स्पष्टीकरण- कोई जमाव जो इकट्ठा होते समय विधि विरूद्ध नहीं था बाद को विधि विरूद्ध जमाव हो सकेगा ।
यह इस प्रकार अवेक्षित किया जाना चाहिए कि धारा-149 के आवश्यक संघटको में से एक है कि अपराध विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा कारित किया जाना चाहिए और धारा-149 यह स्पष्ट करती है कि यह केवल वहां होता, जहंा पांच या अधिक व्यक्ति ने जमाव गठित किया, जो एक विधिविरूद्ध जमाव होता है, उक्त धारा की अन्य आवश्यकतांए स्पष्टतः, यथा उस जमाव को करते हुए व्यक्तियों का सामान्य उददेश्य पूर्ण हो । अन्य शब्दों में, विधिविरूद्ध जमाव की एक आवश्यक शर्त है कि इसकी सदस्यता पांच या अधिक होना चाहिए । जो प्रस्तुत प्रकरण में पूरी होती है। धारा-149 द्वारा विनिर्दिष्ट अपराध के आवश्यक संघटकों के संबंध में सही विधिक स्थिति शंका में नहीं है।
यदि जमाव की सदस्यता पांच से कम हो तो धारा-141 लागू नहीं होती है । इसलिए धारा-149 का अवलम्ब नहीं लिया जा सकता । यदि पंाच या अधिक व्यक्ति विधिविरूद्ध जमाव गठित करने के रूप में आरोपित हैं और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य उन समस्त के विरूद्ध आरोप साबित करता है, यह एक स्पष्ट प्रकरण होता है, जहां धारा- 149 अवलम्ब ली जा सकती है । यह परन्तु आवश्यक नहीं है कि पांच या अधिक व्यक्ति धारा-149 के तहत आरोप के पूर्व दोषसिद्ध किये जाने चाहिए, विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य के विरूद्ध सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है । यह हो सकेगा कि पांच व्यक्तियों से कम धारा-302/149 के तहत आरोपित एंव दोष सिद्ध किये जा सकेंगे, यदि आरोप है कि न्यायालय के समक्ष व्यक्ति अन्य के साथ विधिविरूद्ध जमाव गठित करते, ऐसे नामित अन्य व्यक्ति परीक्षण हेतु उनके साथियों के साथ उपलब्ध नहीं हो सकेंगे, इस कारण से उदाहरण हेतु कि वह फरार हो गये हो ।
ऐसे प्रकरण मंे, तथ्य कि पांच से कम व्यक्ति न्यायालय के समक्ष हैं, धारा-149 को इस साधारण कारण से अप्रयोज्य नहीं बनाता है कि आरोप एंव साक्ष्य दोनो साबित किये जाना ईप्सित है कि न्यायालय के समक्ष व्यक्ति और पांच से अधिक संख्या में एंव इस प्रकार, वे एक साथ विधिविरूद्ध जमाव गठित करते । इसलिए, धारा-149 के तहत आरोप लगाने के अनुसरण मंे, यह आवश्यक नही है कि पांच या अधिक व्यक्ति न्यायालय के समक्ष आवश्यक रूप से लाये जाने चाहिए और दोषसिद्ध किये जाने चाहिए ।
उपर्युक्त उपबन्ध यह स्पष्ट करता है कि भा.द.सं. की धारा-149 की सहायता से अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पूर्व, न्यायालय को सामान्य उददेश्य और यह कि उददेश्य विधिविरूद्ध था की प्रकृति के बारे में स्पष्ट निष्कर्ष देना चाहिए । ऐसे निष्कर्ष साथ ही अभियुक्तगण द्वारा किसी ओर कार्य के अभाव में भी, मात्र तथ्य कि वे लैस थे सामान्य उददेश्य साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा ।धारा-149 एक विनिर्दिष्ट अपराध सृजित करती है और उस अपराध हेतु दण्ड व्यवहत करती है ।
जब कभी न्यायलाय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा-149 की सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध करती है । जमाव के सामान्य उददेश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया गया साक्ष्य न केवल सामान्य उददेश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए । बल्कि यह भी कि उददेश्य विधि विरूद्ध था । भा.द.सं. की धारा-149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित करने के पूर्व, भा.द.सं. की धारा-141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए ।
विधान का धारा-149 अधिनियमित करने में विधिविरूद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य केा इसके एक या अधिक सदस्यों द्वारा कारित किये प्रत्येक अपराध के लिए दण्डित किये जाने का उत्तरदायी बनाने का आशय नहीं है । धारा-149 आकर्षित करने के अनुसरण में, यह देखा जाना चाहिए कि फंसाने वाला कृत्य विधि विरूद्ध जमाव के सामान्य उददेश्य को पूर्ण करने के लिए किया या था और यह अन्य सदस्यों के ज्ञान में होना चाहिए यथा सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में कारित किया होना चाहिए । यदि जमाव के सदस्य जानते या सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में कारित होते हुए विशिष्ट अपराध की सम्भावना से अवगत थे, वे भा.दं.सं. की धारा-149 के तहत इसके लिए उत्तरदायी होगे ।
यदि परिवादी और अभियुक्त स्वयं खुली लडाई में संलग्न थे, इसलिए भा.द.सं. की धारा-149 के तत्व आकर्षित नहीं होगे क्यों कि अपराध की सदोषता अपीलार्थीगण को व्यक्तिगत रूप से अन्तर्वलित करेगा, के विरूद्ध दूसरे दाण्डिक प्रकरण के लम्बान का तथ्य स्वीकार किया है जो वर्तमान अपीलार्थीगण की प्रेरणा पर संस्थित किया गयाथा ।
उच्चतम न्यायालय के ए0आई0आर. 1976 एस0सी0 912 पूरणबनाम राजस्थान राज्य में सम्प्राशित निर्णय की ओर यह दर्शाने के लिए आकर्षित किया कि अचानक दो पक्षकारो के मध्य पारस्परिक लडाई के मामले मंे, भा0द0सं0 की धारा 149 आन्वयिक दाण्डिक दायित्व अधिरोपित करने के प्रयोजन हेतु अवलम्ब नहीं ली जा सकती और अभियुक्तगण व्यक्तिगत रूप से उनके द्वारा कारित क्षतियों के लिए दोषसिद्ध किये जायगे । इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने सम्प्रेक्षित किया है कि पक्षकारो के मध्य अचानक पारस्परिक लडाई के मामले में, भा.0द0सं0 की धारा-149 की सहायता का अवलम्ब लेने के प्रश्न आन्वयिक दाण्डिक दायित्व अधिरोपित करने के प्रयोजन हेतु नहीं होगा और अभियुक्त केवल उसके द्वारा उसके वयैक्तिक कार्य द्वारा कारित क्षतियां के लिए दोषसिद्धि किया जा सकता था ।
उच्चतम न्यायालय के द्वारा मरियादासन और अन्य बनाम तमिलनाडू राज्य ए0आई0आर0 1980 एस0सी0 573 में अभिनिर्धारित किया है कि अपराध कारित करने के सामान्य उददेश्य से किसी अवैध सभा का गठन साबित करने के लिए संतोष जनक साक्ष्य के अभाव में और जब सम्पूर्ण लडाई अचानक आवेश के क्षण प्रारम्भ हुई हो, तब अभियुक्त अकेला उनके वैयक्तिक कार्याे के लिए उत्तरदायी हो सकता है और भा0द0सं0 की धारा-149 के तहत दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता
उच्चतम न्यायालय के ए0आई0आर0 1991 एस0सी0 339 अब्दुल हमीद और अन्य बनाम उ0प्र0 राज्य में सम्प्रकाशित अन्य निर्णय को समान साम्यानुमान दोहराने के लिए अवलम्बित किया कि खुली लडाई में, अभियुक्त उसके वैयक्ति कार्य हेतु उत्तरदायी होगा ।
अब्दल हमीद बनाम उ0प्र0 राज्य 1991 भाग 1 एस0सी0सी0 339 गजानन्द बनाम उ0प्र0 राज्य ए0आई0आर0 1954 एस0सी0 695 के मामले में यह ठहराया गया है कि एक खुली लडाई परिभाषा के अनुसार है जब दोनो तरफ से लडाई प्रारम्भ होना अर्थ है, खुली होती है और एक अवस्था की लडाई होती है प्रश्न ऐसी लडाई में कोैन हमला करता है और कौन बचाव पूर्णतः अतात्विक होता है प्रतिद्वंद्वी कमाण्डर द्वारा अपनाई गयी चालाकियों पर निर्भर करता है।
द्वारका प्रसाद बनाम उ0प्र0 राज्य 1993 सप्ली 3 एस0सी0सी0 141 में यह ठहराया गया है कि -
एक खुली लडाई होती है जब दोनो तरफ से लडाई प्रारंभ होना अर्थ
है । प्रश्न ऐसी लडाई में कौन हमला करता है और कौन बचाव, पूर्णतः अतात्विक होता है, प्रतिद्वंद्वी पक्षकारो द्वारा अपनाई गयी चालाकियों पर निर्भर करता है । पारस्परिक लडाई के ऐसे मामलो में
दोनो उनके वैयक्तिक कार्यो के लिए दोषसिद्ध किये जा सकते है ।
यह स्थिति गजानन्द बनाम उ.प्र.राज्य कानबी नानजी वीरजी बनाम गुजरात राज्य, पूरण बनाम राजस्थान राज्य, विश्वास अबा कुराने बनाम महाराष्ट्र, के मामलो में स्थापित की गई है। यथा एक बार अभियोजन द्वारा यह स्थापित होता है कि प्रश्नगत घटना खुली लडाई के परिणामस्वरूप है, तब सामान्यतः प्रायवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार किसी भी पक्षकार को उपलब्ध नहीं होता है और वे क्रमशः उनके कार्यो हेतु दोषी होंगे ।
केवल सिंह बनाम पंजाब राज्य 2003 भाग-12 एस0सी0सी0 369 में यह सम्प्रकाशित में यह ठहराया गया है कि दोनो पक्षकारगण सशस्त्र आए और खुली लडाई में हुए, जिसके परिणामस्वरूप दोनो पक्षकारो को क्षतियां हुई । चूंकि दोनो पक्षकारगण लडाई के लिए तैयारी से आए थे इस प्रश्न में जाना अनावश्यक है कि क्या उनमें से किसी ने प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अनुप्रयोग किया और इसलिए अभियुक्त की सदोषता उनके वैयक्तिक कार्यो हेतु निर्देशन द्वारा विनिश्चित की जानी चाहिए।इसलिए ऐसी स्थिति में भा0द0सं0 की धाराओ 147,148 और 149 के सिद्धांतो को लागू करने हेतु न्यायालय के लिए सुरक्षित नही ंहोगा ।
धारा-149 प्रतिनिधिक एंव आन्वयिक दाण्डिक दायितत्व विधि विरूद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य हेतु विहित करती है,जहां अपराध उस जमाव के सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में ऐसे विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा कारित किया गया हो या उस जमाव के सदस्यों का उस उददेश्य के अग्रसरण में कारित किया जाना जानते हुए किया हो ।
विधि के सुस्थापित सिद्धांतो के अनुसार जब कभी न्यायलाय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा-149 की सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध करती है । जमाव के सामान्य उददेश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया गया साक्ष्य न केवल सामान्य उददेश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए । बल्कि यह भी कि उददेश्य विधि विरूद्ध था। भा.द.सं. की धारा-149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित करने के पूर्व, भा.द.सं. की धारा-141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए ।
141 विधिविरूद्ध जमाव- पांच याअधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरूद्ध जमाव कहा जाता है यदि उन व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उददेश्य हो-
पहला- केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्य सरकार को संसद को या किसी राज्य के विधान मंडल को या किसी लोक सेवक को जब कि वह ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना अथवा
दूसरा- किसी विधि के या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिशेध करना अथवा
तीसरा- किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का रना अथवा
चैथा- किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी सम्पत्ति का कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्जा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमति अधिकार को प्रवर्तित करना अथवा
पांचवा- आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो विवश करना ।
स्पष्टीकरण- कोई जमाव जो इकट्ठा होते समय विधि विरूद्ध नहीं था बाद को विधि विरूद्ध जमाव हो सकेगा ।
यह इस प्रकार अवेक्षित किया जाना चाहिए कि धारा-149 के आवश्यक संघटको में से एक है कि अपराध विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा कारित किया जाना चाहिए और धारा-149 यह स्पष्ट करती है कि यह केवल वहां होता, जहंा पांच या अधिक व्यक्ति ने जमाव गठित किया, जो एक विधिविरूद्ध जमाव होता है, उक्त धारा की अन्य आवश्यकतांए स्पष्टतः, यथा उस जमाव को करते हुए व्यक्तियों का सामान्य उददेश्य पूर्ण हो । अन्य शब्दों में, विधिविरूद्ध जमाव की एक आवश्यक शर्त है कि इसकी सदस्यता पांच या अधिक होना चाहिए । जो प्रस्तुत प्रकरण में पूरी होती है। धारा-149 द्वारा विनिर्दिष्ट अपराध के आवश्यक संघटकों के संबंध में सही विधिक स्थिति शंका में नहीं है।
यदि जमाव की सदस्यता पांच से कम हो तो धारा-141 लागू नहीं होती है । इसलिए धारा-149 का अवलम्ब नहीं लिया जा सकता । यदि पंाच या अधिक व्यक्ति विधिविरूद्ध जमाव गठित करने के रूप में आरोपित हैं और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य उन समस्त के विरूद्ध आरोप साबित करता है, यह एक स्पष्ट प्रकरण होता है, जहां धारा- 149 अवलम्ब ली जा सकती है । यह परन्तु आवश्यक नहीं है कि पांच या अधिक व्यक्ति धारा-149 के तहत आरोप के पूर्व दोषसिद्ध किये जाने चाहिए, विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य के विरूद्ध सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है । यह हो सकेगा कि पांच व्यक्तियों से कम धारा-302/149 के तहत आरोपित एंव दोष सिद्ध किये जा सकेंगे, यदि आरोप है कि न्यायालय के समक्ष व्यक्ति अन्य के साथ विधिविरूद्ध जमाव गठित करते, ऐसे नामित अन्य व्यक्ति परीक्षण हेतु उनके साथियों के साथ उपलब्ध नहीं हो सकेंगे, इस कारण से उदाहरण हेतु कि वह फरार हो गये हो ।
ऐसे प्रकरण मंे, तथ्य कि पांच से कम व्यक्ति न्यायालय के समक्ष हैं, धारा-149 को इस साधारण कारण से अप्रयोज्य नहीं बनाता है कि आरोप एंव साक्ष्य दोनो साबित किये जाना ईप्सित है कि न्यायालय के समक्ष व्यक्ति और पांच से अधिक संख्या में एंव इस प्रकार, वे एक साथ विधिविरूद्ध जमाव गठित करते । इसलिए, धारा-149 के तहत आरोप लगाने के अनुसरण मंे, यह आवश्यक नही है कि पांच या अधिक व्यक्ति न्यायालय के समक्ष आवश्यक रूप से लाये जाने चाहिए और दोषसिद्ध किये जाने चाहिए ।
उपर्युक्त उपबन्ध यह स्पष्ट करता है कि भा.द.सं. की धारा-149 की सहायता से अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पूर्व, न्यायालय को सामान्य उददेश्य और यह कि उददेश्य विधिविरूद्ध था की प्रकृति के बारे में स्पष्ट निष्कर्ष देना चाहिए । ऐसे निष्कर्ष साथ ही अभियुक्तगण द्वारा किसी ओर कार्य के अभाव में भी, मात्र तथ्य कि वे लैस थे सामान्य उददेश्य साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा ।धारा-149 एक विनिर्दिष्ट अपराध सृजित करती है और उस अपराध हेतु दण्ड व्यवहत करती है ।
जब कभी न्यायलाय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा-149 की सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध करती है । जमाव के सामान्य उददेश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया गया साक्ष्य न केवल सामान्य उददेश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए । बल्कि यह भी कि उददेश्य विधि विरूद्ध था । भा.द.सं. की धारा-149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित करने के पूर्व, भा.द.सं. की धारा-141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए ।
विधान का धारा-149 अधिनियमित करने में विधिविरूद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य केा इसके एक या अधिक सदस्यों द्वारा कारित किये प्रत्येक अपराध के लिए दण्डित किये जाने का उत्तरदायी बनाने का आशय नहीं है । धारा-149 आकर्षित करने के अनुसरण में, यह देखा जाना चाहिए कि फंसाने वाला कृत्य विधि विरूद्ध जमाव के सामान्य उददेश्य को पूर्ण करने के लिए किया या था और यह अन्य सदस्यों के ज्ञान में होना चाहिए यथा सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में कारित किया होना चाहिए । यदि जमाव के सदस्य जानते या सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में कारित होते हुए विशिष्ट अपराध की सम्भावना से अवगत थे, वे भा.दं.सं. की धारा-149 के तहत इसके लिए उत्तरदायी होगे ।
यदि परिवादी और अभियुक्त स्वयं खुली लडाई में संलग्न थे, इसलिए भा.द.सं. की धारा-149 के तत्व आकर्षित नहीं होगे क्यों कि अपराध की सदोषता अपीलार्थीगण को व्यक्तिगत रूप से अन्तर्वलित करेगा, के विरूद्ध दूसरे दाण्डिक प्रकरण के लम्बान का तथ्य स्वीकार किया है जो वर्तमान अपीलार्थीगण की प्रेरणा पर संस्थित किया गयाथा ।
उच्चतम न्यायालय के ए0आई0आर. 1976 एस0सी0 912 पूरणबनाम राजस्थान राज्य में सम्प्राशित निर्णय की ओर यह दर्शाने के लिए आकर्षित किया कि अचानक दो पक्षकारो के मध्य पारस्परिक लडाई के मामले मंे, भा0द0सं0 की धारा 149 आन्वयिक दाण्डिक दायित्व अधिरोपित करने के प्रयोजन हेतु अवलम्ब नहीं ली जा सकती और अभियुक्तगण व्यक्तिगत रूप से उनके द्वारा कारित क्षतियों के लिए दोषसिद्ध किये जायगे । इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने सम्प्रेक्षित किया है कि पक्षकारो के मध्य अचानक पारस्परिक लडाई के मामले में, भा.0द0सं0 की धारा-149 की सहायता का अवलम्ब लेने के प्रश्न आन्वयिक दाण्डिक दायित्व अधिरोपित करने के प्रयोजन हेतु नहीं होगा और अभियुक्त केवल उसके द्वारा उसके वयैक्तिक कार्य द्वारा कारित क्षतियां के लिए दोषसिद्धि किया जा सकता था ।
उच्चतम न्यायालय के द्वारा मरियादासन और अन्य बनाम तमिलनाडू राज्य ए0आई0आर0 1980 एस0सी0 573 में अभिनिर्धारित किया है कि अपराध कारित करने के सामान्य उददेश्य से किसी अवैध सभा का गठन साबित करने के लिए संतोष जनक साक्ष्य के अभाव में और जब सम्पूर्ण लडाई अचानक आवेश के क्षण प्रारम्भ हुई हो, तब अभियुक्त अकेला उनके वैयक्तिक कार्याे के लिए उत्तरदायी हो सकता है और भा0द0सं0 की धारा-149 के तहत दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता
उच्चतम न्यायालय के ए0आई0आर0 1991 एस0सी0 339 अब्दुल हमीद और अन्य बनाम उ0प्र0 राज्य में सम्प्रकाशित अन्य निर्णय को समान साम्यानुमान दोहराने के लिए अवलम्बित किया कि खुली लडाई में, अभियुक्त उसके वैयक्ति कार्य हेतु उत्तरदायी होगा ।
अब्दल हमीद बनाम उ0प्र0 राज्य 1991 भाग 1 एस0सी0सी0 339 गजानन्द बनाम उ0प्र0 राज्य ए0आई0आर0 1954 एस0सी0 695 के मामले में यह ठहराया गया है कि एक खुली लडाई परिभाषा के अनुसार है जब दोनो तरफ से लडाई प्रारम्भ होना अर्थ है, खुली होती है और एक अवस्था की लडाई होती है प्रश्न ऐसी लडाई में कोैन हमला करता है और कौन बचाव पूर्णतः अतात्विक होता है प्रतिद्वंद्वी कमाण्डर द्वारा अपनाई गयी चालाकियों पर निर्भर करता है।
द्वारका प्रसाद बनाम उ0प्र0 राज्य 1993 सप्ली 3 एस0सी0सी0 141 में यह ठहराया गया है कि -
एक खुली लडाई होती है जब दोनो तरफ से लडाई प्रारंभ होना अर्थ
है । प्रश्न ऐसी लडाई में कौन हमला करता है और कौन बचाव, पूर्णतः अतात्विक होता है, प्रतिद्वंद्वी पक्षकारो द्वारा अपनाई गयी चालाकियों पर निर्भर करता है । पारस्परिक लडाई के ऐसे मामलो में
दोनो उनके वैयक्तिक कार्यो के लिए दोषसिद्ध किये जा सकते है ।
यह स्थिति गजानन्द बनाम उ.प्र.राज्य कानबी नानजी वीरजी बनाम गुजरात राज्य, पूरण बनाम राजस्थान राज्य, विश्वास अबा कुराने बनाम महाराष्ट्र, के मामलो में स्थापित की गई है। यथा एक बार अभियोजन द्वारा यह स्थापित होता है कि प्रश्नगत घटना खुली लडाई के परिणामस्वरूप है, तब सामान्यतः प्रायवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार किसी भी पक्षकार को उपलब्ध नहीं होता है और वे क्रमशः उनके कार्यो हेतु दोषी होंगे ।
केवल सिंह बनाम पंजाब राज्य 2003 भाग-12 एस0सी0सी0 369 में यह सम्प्रकाशित में यह ठहराया गया है कि दोनो पक्षकारगण सशस्त्र आए और खुली लडाई में हुए, जिसके परिणामस्वरूप दोनो पक्षकारो को क्षतियां हुई । चूंकि दोनो पक्षकारगण लडाई के लिए तैयारी से आए थे इस प्रश्न में जाना अनावश्यक है कि क्या उनमें से किसी ने प्रायवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अनुप्रयोग किया और इसलिए अभियुक्त की सदोषता उनके वैयक्तिक कार्यो हेतु निर्देशन द्वारा विनिश्चित की जानी चाहिए।इसलिए ऐसी स्थिति में भा0द0सं0 की धाराओ 147,148 और 149 के सिद्धांतो को लागू करने हेतु न्यायालय के लिए सुरक्षित नही ंहोगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें