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सोमवार, 19 अगस्त 2013

घरेलू हिंसा पर निबंध

                                                                            घरेलू हिंसा
                                   
        हमारा भारतीय समाज सदियों से पुरूष प्रधान समाज रहा है । जहां पर  महिलाओं को घर के अंदर रहकर कामकाज करने वाली और परिवार, बच्चों का भरण-पोषण करने वाली अनउपयोगी वस्तु मानते हुए अनादर की दृष्टि से देखते हुए उसे घर और परिवार के लोगो के द्वारा हमेशा से प्रताड़ित किया गया है। इनके साथ घर के अंदर ऐसी घरेलू ंिहंसा की जाती है जिसे किसी कानून में अपराध घोषित किया जाना रिश्तो की नाजुकता के कारण मुश्किल है और जिसका उनके परिवार के सदस्यों  और घर के आस-पास रहने वाले को ज्ञान भी नहीं होता है।

      ऐसी  कुटुम्ब के भीतर होने वाली घरेलू हिंसा से निपटने के लिये घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम  2005 बनाया गया है जो 26 अक्टूबर 2006 से प्रभावशील हुआ है । अधिनियम को प्रभावी ढंग में लागू किये जाने के लिए घरेलू हिंसा में महिलाओ का संरक्षण नियम 2006 के अंतर्गत नियम भी बनाये गये हैं।

        घरेलू हिंसा से तात्पर्य कोई कार्य या हरकत जो किसी पीड़ित महिला एवं बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा जीवन को खतरा/संकट की स्थिति, आर्थिक नुकसान, क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला बच्चे दुखी व अपमानित हो से है । इसके अंतर्गत शारीरिक  मौखिक व भावनात्मक  लैंगिग व आर्थिक हिंसा या धमकी देना आदि शामिल है।

        घरेलू हिंसा के अंतर्गत हमला,आपराधिक अभित्रास, बल, महिला की गरिमा का दुरूपयोग ,अपमान, उपहास, तिरस्कार और विशेष रूप से संतान नर बालक के न होने के संबंध में ताना और हितबद्ध व्यक्ति को शारीरिक पीडा कारित करने की लगातार धमकिया देना, स्त्रीधन, व्यथित द्वारा संयुक्त रूप से या पृथकतः स्वामित्व वाली सम्पत्ति, साझी गृहस्थी और उसके रखरखाव से संबंधित भाटक के संदाय, से वंचित करना, स्थावर, मूल्यवान वस्तुओं, शेयरों , प्रतिभूतियों बंधपत्रों और इसके सदृश या अन्य सम्पत्ति का कोई अन्य संक्रामण, साझी गृहस्थी तक पहंुच  के लिए प्रतिषेध या निर्बन्धन आदि शामिल है ।

        अधिनियम के अंतर्गत पीडित पक्षकार में विवाहित, अविवाहित के अलावा अन्य रिश्तों में रह रही विवाहित, विधवा, मॉ, बहन, बेटी, बहूंॅ, शादी के बगैर साथ रह रही महिला या दूसरी पत्नी के रूप में रह रही या रह चुकी महिला। धोखे से किया गया विवाह/अवैध विवाह वाली महिला शामिल है।

        अधिनियम में किसी भी व्यस्क पुरुष सदस्य के खिलाफ, जिसके साथ महिला बच्चे का घरेलू रिश्ता है या था, के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। घरेलू से तात्पर्य एक ही छत/घर के  नीचे संयुक्त परिवार/ एकल परिवार के पारिवारिक सदस्य जो समरक्तता/संगोत्रता/दस्तक/विवाह द्वारा बनाये गए रिश्ते के रूप में रह रहे या रह चुके महिला एंव बच्चे ।
        पूर्व में इस संबंध में मतभेद था कि क्या पति या पुरूष साथी के महिला रिश्तेदार को प्रत्यर्थी बनाया जा सकता है या नहीं और इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायदृष्टांत 2011 ए0आई0आर0 एस0सी0डब्ल्यू 1327 संध्या मनोज वानखेडे विरूद्ध मनोज वामनराव वानखेडे में यह प्रतिपादित किया गया है कि व्यथित पत्नी या विवाह के प्रकृति के संबंध में रहने वाली महिला पति या पुरूष साथी के किसी भी रिश्तेदार के विरूद्ध परिवाद ला सकती है चाहे वह रिश्तेदार महिला हो या पुरूष हो अर्थात महिला के विरूद्ध भी शिकायत की जा सकती है ।

                अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं

01.    इस कानून के तहत् घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए न्यायालय को धारा 12 में आवेदन प्राप्त होने के 03 दिन के भीतर पहली सुनवाई में न्यायाधीश बचावकारी आदेश दे सकते हैं।
02.    न्यायालय प्रत्येक आवेदन की प्रथम सुनवाई की तारीख से 60 दिनों के अन्दर निपटारा करने का प्रयास करेगा।
03.    अधिनियम घरेलू रिश्तों में रहते हुए भी आपत्तिजनक व्यवहारों को सुधारने का पूरा मौका देता है।
04.    यह कानून महिलाओं बच्चों को अपने घर में स्वतंत्र व सुरक्षित रहने का अधिकार देता है, भले ही उस घर पर उनका मालिकाना हक हो या न हो।
05.    यह एक दिवानी कानून है। इस कानून में दोषी को सजा दिलाने के बजाय पीड़ित के संरक्षण एवं बचाव पर जोर दिया गया है ।
06.    न्यायालय का आदेश न मानने पर दोषी व्यक्ति को एक साल तक की अवधि की सजा या रुपये 20 हजार तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
07.    इस कानून के अनुसार महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा के साक्ष्य के प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। एकमात्र महिला द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों एवं बयानों को ही विश्वसनीय माना जावेगा तथा उस आधार पर ही न्यायाधीश आदेश दे सकते हैं कि हिंसा रोकी जावे और महिला को संरक्षण प्रदान किया जावे।
08.    पीड़िता को, न्यायालय, द्वारा पारित सभी आदेशों की प्रतियां निःशुल्क प्रदाय की जाएगी।
09.    यदि न्यायाधीश ऐसा समझते हैं कि परिस्थितियों के कारण मामले की सुनवाई बंद कमरे में किया जाना आवश्यक है तो या पीड़ित पक्ष ऐसी मांग करे तो मामले की कार्यवाही बंद कमरे में की जा सकेगी।
10.    यदि न्यायाधीश को पीड़ित व्यक्ति या दोषी से आवेदन प्राप्त होने पर यह समाधान हो जाता है कि परिस्थितियों में सुधार हुआ है तो पूर्व आदेश में परिवर्तन, संशोधन या निरस्त कर सकते हैं।
11.    पीड़िता के पूर्व में चल रहे अदालत के केस के अतिरिक्त भी इस कानून में संरक्षण एवं सहायता प्रदान की जा सकती है । घरेलू हिंसा के केस के साथ अन्य कानून के अंतर्गत चल रही कार्यवाही एक साथ चल सकती है।
12.    महिला घटना स्थल या वर्तमान में जहंा निवासरत है, वहां केस दर्ज करा सकती है। पीड़िता जहंा उचित समझे उस क्षेत्र के मजिस्टेªट को आवेदन दे सकती है। 

अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाली सहायता एंव राहत

01.    न्यायाधीश यह समझता है कि नियम के तहत किसी पीड़ित व हिंसाकर्ता को अकेले या संयुक्त रूप से सेवा प्रदाता (पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र) के किसी सदस्य को परामर्श देने की पात्रता और अनुभव रखते हों तो उससे परामर्श लेने का निर्देश दे सकते हैं।
02.    परामर्श में हुए समझौते की कार्यवाही अनुसार मजिस्टे््र्रट संरक्षण एवं सहायता के आदेश जारी कर सकते हैं।
03.    यदि न्यायाधीश को लगता है कि घरेलू हिंसा हुई है और पीड़ित व्यक्ति को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, ऐसी स्थिति में संरक्षण आदेश धारा-18 में दे सकता है ।
04.    संरक्षण आदेश घरेलू हिंसा करने, हिंसा में सहयोग करने या प्रेरित करने से रोकने दिये जा सकते हैं।
05.    हिंसाकर्ता को पीड़ित द्वारा उपयोग किए जाने वाले घर में प्रवेश पर रोक, लगाई जा सकती है ।
06.    अगर पीड़ित की रिपोर्ट से जज को ऐसा लगता है कि पीड़ित को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, तो हिंसाकर्ता (पुरुष) को घर के बारह रहने का आदेश भी  दिया जा सकता है या
07.    घर के जिस भाग में पीड़ित व्यक्ति का निवास है या विद्यालय/महाविद्यालय में जाने से हिंसाकर्ता को मना कर सकता है।
08.    किसी भी पुरुष से व्यक्तिगत, मौखिक, लिखित टेलीफोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सम्पर्क करने से मना किया जा सकता है ।
09.    पीड़ित पर आश्रित व्यक्ति बच्चों या सहायता करने वाले व्यक्तियों पर हिंसा से रोकना। आदेश दिया जा सकता है ।
10.    संयुक्त या जिस संपत्ति पर पीड़ित का हक बनता है ऐसी संपत्तियों का लेन-देन या संचालन पर रोक। लगाई जा सकती है ।
11.    स्त्री धन, आभूषण, कपड़ों इत्यादि पर कब्जा देना।
12.     आपसी विवाह के संबंध में बात करने या उनकी पसंद के किसी व्यक्ति से विवाह के लिए मजबूर न करना।
13.    दहेज की मांग के लिए परेशान करने से रोकना।
14.     न्यायालय के आदेश के बिना बैंक में संधारित लॉकर्स एवं संयुक्त बैंक खातों से राशि, सामग्री हिंसाकर्ता नहींे निकाल सकेगा।
15.    पीड़िता और उसके बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई अन्य उपाय।
16.     पीड़ित को साझी गृहस्थी में रहने का आदेश दिया जा सकता है । चाहे उसमें उसका मालिकाना हक न हो।
17.    अगर जरूरत महसूस हो तो आदालत आरोपी को यह आदेश दे सकती है कि पीड़िता जैसी सुविधा में साझे रूप में निवास कर रही थी वैसा ही किराए का घर उसे रहने के लिए उपलब्ध करावें।
18.    पीड़िता एवं उसके बच्चे घर में या घर के किसी भाग में निवास करते हैं, या कर चुके हैं, तो उसे घर के उस भाग में रहने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
19.    हिंसाकर्ता उस मकान को न तो बेच सकता है न उस पर ऋण ले सकता है न ही किसी के नाम से हस्तांतरित कर सकता है।
20.     न्यायालय पीड़िता की मांग पर उसे उसके बच्चों को अभिरक्षा में देने का अस्थायी आदेश दे सकता है।
21.    पीड़िता की रिपार्ट से न्यायाधीश यह समझते हैं कि हिंसाकर्ता के बच्चे से मिलने/भंेट करने से खतरा उत्पन्न हो सकता है तो वह हिंसाकर्ता को कहीं भी बच्चों से नहीं मिलने का ओदश दे सकते हैं।
22.    पीड़िता और उसके बच्चों का भरण-पोषण, चिकित्सीय खर्च, कपड़े, हिंसा की वजह से हुए किसी सम्पत्ति का नुकसान या हटाए जाने के कारण हुए नुकसान का मुआवजा देने का ओदश देगा।
23.    अदालत मानसिक यातना और भावनात्मक पीड़ा जो रिस्पॉडेंट द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्यों द्वारा पहुंचायी गई है उसकि क्षतिपूर्ति और जीविका की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए दोषी को आदेश दे सकेगी।
24.    सुरक्षा की दृष्टि से या अन्य कारणों से यदि पीड़िता अपने परिवार के साथ रहना नहीं चाहती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य शासन निःशुल्क आश्रय की सुविधा उपलब्ध करायेगा।
25.    शासन द्वारा अधिकृत चिकित्सा सुविधा प्रदाता पीड़िता की प्रार्थना/आवेदन पर चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायेगा
26.    घरेलू हिंसा की रिपोर्ट न दर्ज होने पर भी चिकित्सा सहायता या परीक्षण के लिए चिकित्सक मना नहीं करेगा और उसकी रिपोर्ट स्थानीय पुलिस थाना एवं संरक्षण अधिकारी (परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास) को भेजेगा।
27.    ’’घरेलू हिंसा’’ का अर्थ मामले के सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके निकाला जाएगा ।
28.    अधिनियम के अंतर्गत एक पक्षीय अंतरिम आदेश न्यायालय तत्काल पारित कर सकता है ।
29.    अधिनियम के अंतर्गत पारित आदेश के विरूद्ध 30 दिन के अंदर व्यथित पक्षकार सत्र न्यायालय में अपील कर सकता है ।
30.    अधिनियम के अंतर्गत अपराध सज्ञेय एंव अजामनतीय है ।
31.     अधिनियम के अंतर्गत पारित आदेश के पालन हेतु पुलिस सहायता दी जा सकती है ।
32.    पुलिस में घरेलू हिंसा की रिपोर्ट किये जाने पर यदि भारतीय दण्ड संहिता या अन्य विधि के अधीन किया गया अपराध प्रकट होता है तो नियमानुसार पुलिस द्वारा कार्यवाही की जाएगी ।
33.    यदि पुलिस को घरेलू ंिहंसा की जानकारी मिलती है तो वे तत्काल घटना स्थल पर जाएगें और घरेलू दुर्घटना की रिपोर्ट तैयार करेगें ।
34.     इस अधिनियम के अधीन समुचित आदेश प्राप्त करने के लिए उस रिपोर्ट को पुलिस द्वारा अविलम्ब मजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी ।
35.    संरक्षण अधिकारी के द्वारा कर्तव्य का निर्वाहन न करने पर उसे दण्डित किये जाने के प्रावधान है ।
36.    अधिनियम में पीडिता को निःशुल्क विधिक सहायता दिलाये जाने का प्रावधान भी किया गया है ।
37.    अधिनियम के प्रावधान प्रचलित विधियो के अतिरिक्त होगे उनके अन्यूनीकरण नहीं करेंगे ।
                सरकार के कर्तव्य
        इस अधिनियम में न केवल पुलिस अधिकारी, सरंक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता, मजिस्ट्रेट पर कर्तव्य अधिरोपित किये गये हैं । बल्कि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार पर भी कर्तव्य अधिरोपित किये गये है ।जो निम्नलिखित है-
01.    ऐसे उपाय करना जिससे इस अधिनियम के उपबंधो का जन संचार के माध्यम से व्यापक प्रचार हो सके जैसे टेलीविजन, रेडियों और प्रिंट मिडिया के माध्यम से नियमित अंतराल में प्रचार करना ।
02.    पुलिस अधिकारी और न्यायिक सेवा के सदस्यों को जो इस अधिनियम से संबंधित है उन्हें समय समय पर प्रशिक्षण देना ताकि वे अधिनियम से संबंधित विषयो की जानकारी और उनके बारे में संवेदनशील हो सके ।
03.    विभिन्न मंत्रालयों के बीच प्रभावी समन्वय स्थापित करना जो कि इस अधिनियम से संबंध रखते है ।
04.    यह देखना की महिलाओ को इस अधिनियम के अधीन उपलब्ध सेवाएं मिल सके इसके लिए विभिन्न मंत्रालयों में प्रोटोकाल की व्यवस्था और न्यायालय स्थापित करना शामिल है ।
        मध्य प्रदेश शासन के द्वारा महिला एंव बाल विकास विभाग मंत्रालय, भोपाल ने दिनांक 09 जनवरी 2007 के आदेश द्वारा विकास खण्ड/परियोजन स्तर पर शहरी और ग्रामीण आदिवासी परियोजनाओ के बाल विकास परियोजना अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया है जहां बाल विकास परियोजना स्वीकृत नहीं है उन क्षेत्रो में जिला कार्यक्रम अधिकारी/जिला महिला एंव बाल विकास अधिकारी को संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया है ।
        घरेलू हिंसा में महिलाओ का संरक्षण नियम 2006 के अंतर्गत बनाये गये नियम में संरक्षण अधिकारी के निम्नलिखित कर्तव्य बताये गये है-
01.    पीडिता की ओर से घरेलू हिंसा की रिपोर्ट प्रारूप 1 मे तैयार करना और स्थानीय पुलिस थाना सेवा प्रदाता, विधिक सहायता अधिकारी एंव मजिस्ट्रेट को भेजना ।
02.    पीडित व्यक्ति के अनुरोध पर आश्रय गृह एंव चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना।
03.    कोर्ट आने जाने, आश्रय गृह आदि के लिए परिवहन की निःशुल्क व्यवस्था उपलब्ध करवाना ।
04.    न्यायालय में आवेदन फाईल करने के लिए भारत सरकार के निर्धारित प्रारूप 2,3, एंव 5 में आवेदन तैयार करने में सहयोग करना ।
05.    पीडित व्यक्ति को राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण द्वारा निःशुल्क सहायता उपलब्ध करवाना ।
06.    न्यायालय के संमस/नोटिस तामील करवाना।
07.    मजिस्ट्रेट के निर्देश पर घरेलू हिंसा की घटना की जांच कर रिपोर्ट देना ।
        इस प्रकार संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट और पीडिता के बीच की कडी के रूप में कार्य करेगा और उसकी जिम्मेदारी है कि वह सभी कानूनी सहायता निःशुल्क पीडित महिला और उसके बच्चो को प्रदान करे एंव उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखे ।
        अधिनियम के अंतर्गत पीडिता शिकायत सीधे क्षेत्रीय मजिस्ट्रेट के पास, स्थानीय पुलिस थाना, संरक्षण अधिकारी परियोजना अधिकारी, महिला एंव बाल विकास विभाग, सेवा प्रदाता-पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र एंव पंजीकृत आश्रय गृह में कर सकती है।
                उषा किरण योजना
        मध्य प्रदेश शासन के द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम  2005 एंव घरेलू हिंसा में महिलाओ का संरक्षण नियम 2006 के अंतर्गत  एक नये विश्वास की किरण जगाते हुए उषा किरण योजना पारित हुई है जिसमें पीडिता को अधिनियम एंव नियमो के प्रावधान के तहत सभी सहायता निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी ।

        अब कानून से सुरक्षा शोषण के विरूद्ध और चुप्पी तोडो घरेलू हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज उठाओ । जैसे नारे बुलन्द करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा 1091 टोल फ्री नंबर पर घरेलू हिंसा की तत्काल शिकायत किये जाने की सलाह देते हुए उषा किरण योजना बनाई गई है । जिसमें निःशुल्क विधिक सहायता पीडिता को हर प्रकार की दी गई है ।
                         उमेश कुमार गुप्ता
                   


रविवार, 18 अगस्त 2013

सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय

                             सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय
                                                                  

                                             सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय  का आशय आम तौर पर समाज में लोगो के मध्य समता, एकता, मानव अधिकार, की स्थापना करना है तथा व्यक्ति की गरीमा को विशेष महत्व प्रदान करना है ।

                                          यह मानव अधिकार और समानता की अवधारणाओं पर आधारित है और प्रगतिशील कराधन, आय, सम्पत्ति के पुनर्वितरण, के माध्यम से आर्थिक समतावाद लाना सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य हैं ।
                          भारतीय समाज में सदियों से सामाजिक न्याय की लडाई आम जनता और शासक तथा प्रशासक वर्ग के मध्य होती आई है । यही कारण हे कि इसे हम कबीर की वाणी बुद्ध की शिक्षा, महावीर की दीक्षा, गांधी की अहिंसा, सांई की सीख, ईसा की रोशनी, नानक के संदेश में पाते हैं ।

        सदियों से मानव सामाजिक न्याय को प्राप्त करने भटकता रहा है और इसी कारण दुनिया में कई युद्ध, क्रांति, बगावत, विद्रोह, हुये हैं जिसके कारण कई सत्ता परिवर्तन हुए हैं ।
                                   जिन राज्यों और प्रशासकों ने सामाजिक न्याय के विरूद्ध कार्य किया उनकी सत्ता हमेशा क्रांतिकारियों के निशानों में रही है । इसलिए प्रत्येक शासक ने अपनी नीतियों मे सामाजिक न्याय को मान्यता प्रदान की है । इसे हम चाणक्य की राजनीति, अकबर की नीतियों, शेरशाह सूरी के सुधारों, में देखते हैं ।
 
        हमारा भारतीय समाज पहले वर्ण व्यवस्था पर आधारित था जो धीरे  धीरे बदलकर जाति व्यवस्था मं परिवर्तित हो गया, उसके बाद असमानता, अलगाववाद, क्षेत्रवाद, रूढीवादीता, समाज में उत्पन्न हुई जिसका लाभ विदेशियों के द्वारा उठाया गया और ‘‘फूट डालो और राज्य करों’’ की नीति अपनाकर भारत को एक लम्बी अवधि तक पराधीन रखा। 

        लेकिन लोगो की एकता अखण्डता और भाईचारे की भावना से आजादी की लडाई लडने पर भारत 15 अगस्त सन् 1947 को आजाद हुआ और उसके बाद भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना, व्यक्ति का शासन, सोच की स्वतंत्रता, भाषण प्रेस की आजादी, संघ बनाने की स्वतंत्रता हो, इसके लिए सर्वोच्च कानून बनाये जाने की आवश्यकता समझी गई और डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन किया गया जिसमें डा. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जैसे महान् व्यक्तित्व को मसौदा समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया । 

        संविधान सभा की कई बैठको के बाद भारत के संविधान की रचना की गई, जो विश्व का सबसे बडा, लिखित, अनूठा, संविधान है जिसमें सामाजिक न्याय को सर्वोच्चता प्रदान की गई है । यह दुनिया का सामाजिक न्याय को दर्शित करने वाला एक प्रमाणिक अभिलेख है ।

        हमारे संविधान मं सामाजिक और आर्थिक न्याय की गारंटी समस्त नागरिकों को तथा जीवन जीने की गारंटी प्रत्येक व्यक्ति को दी गई है। सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित के बीच सामान्जस्य स्थापित करना है । इसलिए कल्याणकारी राज्य की कल्पना संविधान निर्माताओं ने की है। बहुजन हितांयैं, बहुजन सुखांयै को ध्यान में रखते हुये समाजवादी व्यस्था स्थापित की गई है ।

        भारतीय समाजवाद अन्य राष्ट् के समाजवाद से अलग है । यहां पर सत्ता समाज में निहित रहती है, परन्तु उसका उपयोग समाज के हित के लिए हो इसलिए सरकार नियंत्रण रखती है । सामाजिक न्याय के लिए संविधान में जो प्रावधान दिये गये हैं उनका मुख्य उद्देश्य वितरण की असमानता को दूर करना तथा असमानों में संव्यवहारों में असमानता को दूर करना व कानून का प्रयोग वितरण योग साधन के रूप में समाज में धन का उचित बटवारां करने में किया जाये। इसका विशेष ध्यान रखा गया है ।

         हमारे संविधान की उद्देशीयका संविधान का आधारभूत ढांचा है । जिसमें सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक न्याय प्रदान किये जाने की गारंटी प्रदान की गई है । इसके लिए भारतीय संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकार दिये गये हैं । भाग-4 में राज्यों को नीतिनिदेशक तत्व बताये गये है, जो राज्य की नीति का आधारस्तम्भ बताये गये हैं ।

                                       लेकिन सामाजिक, आथर्क और राजनीतिक न्याय प्रदान किये जाने संबंधी उपरोक्त संवैधानिक उपबंध केवल संविधान के ‘‘आइना’’ में छबि बनकर रह गये हैं। लोगो का जीवन स्तर निम्न है, गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अशिक्षा, अज्ञानता व्याप्त है । आर्थिक सामनता, सामाजिक न्याय आम जनता से कोसो दूर है ।  

                                           आज हमारे देश में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय प्राप्त करना आम जनता के लिए परीलोक की कहानी है। सामाजिक न्याय चुनावी मरूस्थल में मृगतृष्णा के रूप में जनता को दिखाया जाता है ।सभी राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय प्रदान किये जाने के नारे से भरे रहते हैं, लेकिन कोई भी दलगत जातिगत, व्यक्तिगत राजनीति से उठकर देशहित में न्याय प्रदान नहीं कर पाता है ।

                                             देश की अधिकाशं जनता, गांव में रहती है । गांव में आज भी आजादी के 65 साल बाद भी बिजली, पानी, सडक, की सुविधाओं का अभाव हैं । देश की आधी आबादी लगभग अशिक्षित अल्पशिक्षित, अर्द्धशिक्षित है । 30 प्रतिशत लोग गरीबी का जीवन जी रहे हैं । एक समय का भोजन भी उनके लिए नसीब नहीं है । आज भी गावं की अधिकाश आबादी दिशा मैदान को जाती है । 

                                          गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा, जैसी बुनियादी सुवधिओं का अभाव है । देश के गावों में लोगो का जीवन स्तर निम्न है मनोरंजन साधनो का  अभाव है, अधिकांश लोग गांव में आज भी जुआ, शराब, को मनोरंजन का साधन समझते हैं । गांव में पानी लाने आज भी मीलो जाना पडता है । घरों में फ्लेैश लेट्र्नि नहीं है लोग खुले आम जानवरों की तरह निस्तार करने मजबूर है ।

                                                  देश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव है ।  लोगो को पढने के लिए कोसो मील दूर जाना पडता है । बीमार पडने पर घंटो बाद शहरो में स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती है तब तक अनेक लोग रास्ते में दम तोड चुके होते हैं । 

                                                           देश में अधिकाशं गांव को जोडने वाली पक्की सडक नहीं है शहर में सडक की यह स्थिति है कि मर्द को भी प्रसुति दर्द का एहसास करा देती है। बिजली नाम के लिए आती है केवल मोहनी के रूप में दर्शन देकर चली जाती है जिसके कारण लाखों हेक्टेयर खेती असिंचित रह जाती है । किसानों को समय पर बिजली, खाद, बीज, पानी नहीं मिलता है उसके उपर से प्राकृतिक आपदा भी सहन करनी पडती है । जिसके कारण कई किसान कर्ज न चुका पाने के कारण आत्म हत्या करते है ।        

                                                   देश में आर्थिक न्याय का यह हाल है कि गरीब और गरीब अमीर और अमीर होता जा रहा है । शेयर बाजार, देश के व्यापार, व्यवसाय पर बडे व्यापारी    उद्योगपति औद्योगिक घरानो का राज्य है । सरकार का अतिआवश्यक वस्तुओ दाल, शक्कर, आटा के बाजार भाव  नियंत्रण नहीं है । महगाई आसमान छू रही है । पेट्ोल, डीजल, जैसे अति आवश्यक वस्तुओ के दाम सरकार के नियंत्रण के बाहर है । 

                                          शेयर बाजार में कम दाम पर कम्पनी के आई.पी.ओ. निकाले जाते हैं बाद में उनकी कीमते बढा दी जाती है । जब उन शेयरों की कीमत बढ जाती है तो वहीं कम्पनियां दूसरो से खरीदवाकर उन्हें बाद में बेचकर अधिक पंूजी जुटाकर कर शेयरों की कीमत कम कर देती है । जिससे लोगों की मेहनत मजदूरी की पूंजी डूब जाती है जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है ।

   

                            उमेश कुमार गुप्ता

                  

बुधवार, 14 अगस्त 2013

भारत में निम्न दो विधि पुस्तके प्रकाशित हुई.
1 ब्वदेपमतंजपवद वद भ्पदकन स्ंू य1824द्ध इल थ्तंदबपे डंमबदंहजपवदण्
2 क्पेेमतजंजपवद वद डवींउउमकंद स्ंू य1825द्ध इल ॅपससपंउ डंमबदंनहीजपवद
भारत में प्रतिवेदनों को निम्न प्रकार से उल्लिखित किया जा सकता है.
1ण् डवतजवदे त्मचवतजे 1774ण्1781
2ण् ठपहदमससे त्मचवतजे 1830ण्1831
3ण् थ्ंनसजवदे त्मचवतजे 1842ण्1844
4ण् डवदजतपवनश्े त्मचवतजे 1846
5ण् ठवनसदपवने त्मचवतजे 1853ण्1859
6ण् ळंेचमतश्े ब्वउउमतबपंस ब्ंेमे 1851ण्1860
7ण् ळमवतहम ज्ंलसवतश्े त्मचवतज व िब्ंेमे 1847ण्1848
8ण् ळंेचमतश्े त्मचवतजे व िैउंसस बंनेमे
9ण् च्मततल व्तपमदजंस ब्ंेमे क्मबपेवदे व िठवउइंल भ्पही ब्वनतजण्
10ण् डवतजमलश् क्पहमेजण्



विभाजन संबंधी दावो में प्रारंभिक आज्ञप्ति - अंतिम आज्ञप्ति

        विभाजन संबंधी दावो में प्रारंभिक आज्ञप्ति पारित होने  के पश्चात से अंतिम आज्ञप्ति पारित होने तक की कार्यवाही

                                                               सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा-2-की उपधारा-2 जिसे आगे संहिता से संबोधित किया गया है, उसके अनुसार डिक्री से अभिप्राय ऐसे न्याय निर्णयन की प्ररूपित अभिव्यक्ति है जो जहां तक कि वह उसे अभिव्यक्त करने वाले न्ययालय से संबंधित है । वाद में के सभी या किन्हीं विवादग्रस्त विषयों के संबंध में पक्षकारो के अधिकारों का निश्चायक रूप से अवधारण करता है और वह या तो प्रारंभिक या अंतिम हो सकेगी ।

                                             डिक्री तब प्रारंभिक होती हे जब वाद के पूर्ण रूप से निपटा दिए जा सकने से पहले आगे और कार्यवाहियां की जानी है वह तब अंतिम होती है जब कि ऐसा न्यायनिर्णयन वाद को पूर्ण रूप से निपटा देता है । 

                                          डिक्री अपील योग्य होती है । अतः संहिता की धारा-97 के अनुसार जहां इस संहिता के प्रारंभ के पश्चात पारित प्रारम्भिक डिक्री से व्यक्ति केाई पक्षकार ऐसी डिक्री की अपील नहीं करता है वहां वह उसकी शुद्धता के बारे में अंतिम डिक्री के विरूद्ध की गई अपील में विवाद करने से प्रवारित रहेगा ।

                                          विभाजन संबंधी दावो में प्रारंभिक आज्ञप्ति पारित होने की स्थिति- संहिता के आदेश 20 नियम 18 के अनुसार जब न्यायालय सम्पत्ति के विभाजन के लिए या उनमें के अंश पर पृथक कब्जे के लिए वाद में डिक्री पारित करता है तब सम्पत्ति के भेद के आधार पर डिक्री पारित करता है ।
   
   1.    वह सम्पत्ति जिस पर सरकार द्वारा राजस्व निर्धारित किया गया है
    2.    वह सम्पत्ति जिस पर विभाजन बिना अतिरिक्त जांच के नहीं किया     जा सकता । 


        यदि सम्पत्ति का राजस्व निर्धारित किया गया है तो न्यायालय डिक्री की सम्पत्ति में हितबद्ध पक्षकार के अधिकारो की घोषणा डिक्री में करेगा, और यह निर्देश दिया जायेगा कि धारा-54 के प्रावधानोे के अनुसार सम्पत्ति का विभाजन या पृथककरण कलेक्टर द्वारा या उसके द्वारा प्रतिनियुक्त राजपत्रित  अधीनस्थ अधिकारी के द्वारा किया जाएगा ।

        इस संबंध में संहिता की धारा-54 अवलोकनीय है जिसके अनुसार -जहां डिक्री किसी ऐसी अविभक्त सम्पदा के विभाजन के लिए है, जिस पर सरकार को दिए जाने के लिए राजस्व निर्धारित है, या ऐसी सम्पदा के अंश के पृथक कब्जे के लिए है वहां सम्पदा का विभाजन या अंश का पृथक्करण कलेक्टर के ऐसे किसी राजपत्रिक अधीनस्थ द्वारा जिसे उसने इस निमित्त प्रति नियुक्त किया हो ऐसी सम्पदाओ के विभाजन या अंशों के पृथक् कब्जे से संबंधित  तत्समय प्रवृत्त विधि यदि कोई हो के अनुसार किया जाएगा । 

        दूसरी दशा में अन्य स्थावर या  सम्पत्ति के संबंध में जिसका विभाजन या पृथककरण सुविधापूर्वक नहंी किया जा सकता है। वहा पर न्यायालय का कर्तव्य है कि वह-

    1    उस सम्पत्ति से संबंधित पक्षकारो के अधिकारो की घोषणा करने वाली प्रारंभिक डिक्री पारित की जायेगी जिसमें
    2    अतिरिक्त जांच करने के लिए या जो अपेक्षित हो वैसे निर्देश दिये जावेगें ।
       
न्यायालय आदेश 26 नियम 13 के अंतर्गत स्थावर सम्पत्ति के विभाजन अथवा पृथककरण के लिए कमीशन निकाल सकता है । जिसके संबंध में प्रावधान निम्नलिखित है - 

1-    जहां विभाजन करने के लिए प्रारंभिक डिक्री पारित की गई है वहां न्यायालय किसी भी मामले में जिसके लिए धारा 54 द्वारा उपबन्ध नहीं किया गया है, ऐसी डिक्री में घोषित अधिकारो के अनुसार विभाजन या पृथककरण करने के लिए ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे कमीशन निकाल सकेगा ।
2-    न्यायालय द्वारा कमीशन निकाले जाने के बाद कमीश्नर आदेश 26 नियम 14 के अनुसार जांच की प्रक्रिया अपनायेगा जो निम्नलिखित है । 

आदेश 26 नियम 14 उपनियम 1 के अनुसार

    1    कमिश्नर ऐसी जांच करने के पश्चात जो आवश्यक हो, सम्पत्ति को उतने अंशो में विभाजित करेगा जितने उस आदेश द्वारा निर्दिष्ट हो जिसके अधीन  कमीशन निकाला गया था ।
    2    ऐसे अंशो का पक्षकारो में आवंटन कर देगा
    3    और यदि उसे उक्त आदेश द्वारा ऐसा करने के लिए प्राधिकृत किया जाता है तो वह अशों के मूल्य को बराबर करने के प्रयोजन के लिए दी जाने वाली राशियां अधिनिर्णीत कर सकेगा ।

आदेश 26 नियम 14 उपनियम 2 के अनुसार-

    1    तब हर एक पक्षकार का अंश नियत करके और यदि उक्त आदेश द्वारा ऐसा करने के लिए निर्देश दिया जाता है तो हर एक अंश को माप और सीमांकन करके कमिश्नर अपनी रिपोर्ट तैयार और हस्ताक्षरित करेगा ।
       2    या जहां कमीशन एक से अधिक व्यक्तियों के नाम निकाला गया था और वे परस्पर सहमत नहीं हो सके है वहां कमिश्नर पृथक पृथक रिपोर्ट तैयार करेगे और हस्ताक्षरित करेंगे ।
    3    ऐसी रिपोर्ट या ऐसी रिपोर्टे कमीशन के साथ उपाबंध की जाएगी और न्यायालय को प्रस्तुत की जाएगी।
    4    और पक्षकार जो कोई आक्षेप रिपोर्ट या रिपोर्टो पर करे न्यायालय उन्हे सुनने के पश्चात से या उन्हें पृष्ट करेगा उसमें या उनमें फेरफार  करेगा या उसे या उन्हे अपास्त करेगा ।

आदेश 26 नियम 14-उप नियम-3 के अनुसार

    1    जहां न्यायालय रिपोर्ट या रिपोर्टो को पुष्ट करता है ।
    2    या उसमें या उनमें फेरफार करता है ।
    3    वहां वह उसके पुष्ट या फेरफार किए गए रूप के अनुसार डिक्री पारित करेगा ।
    4    किन्तु जहां न्यायालय रिपोर्ट या रिपोर्टो को अपास्त कर देता है वहां वह या तो नया कमीशन निकालेगा
    5    या ऐसा अन्य आदेश करेगा जो वह ठीक सकझे । 


                                            इस प्रकार किसी भी विभाजन के बाद में दी गई  प्रारम्भिक डिक्री में घोषित अधिकारों के अनुसार विभाजन या पृथक्करण के लिए न्यायालय जिसे उचित समझे, आयुक्त नियुक्त कर सकेगा, जो नियम 14 के अनुसार कार्यवाही करेगा । उसकी रिपोर्ट में परिवर्तन या पुष्टि करने के बाद अंतिम डिक्री पारित की जावेगी।

                            आयुक्त के प्रस्ताव उसी रूप में पक्षकारो पर बाध्य कर नही है। आदेश 26 नियम 10 तथा 12 के विपरीत नियम 14 में इसलिए इस बात पर जोर नहीं दिया गया है कि आयुक्त की रिपोर्ट वाद में स्वतः ही साक्ष्य के एक भाग का रूप बन जाएगी और इसी कारण नियम 14 न्यायालय को आयुक्त की रिपोर्ट को पुष्ट करने, बदलने या अपास्त करने और नया आयुक्त भी जारी करने की विशिष्ट शक्ति प्रदान करता है 

न्यायालय का कर्तव्य और कार्य है कि

1-.    यदि किसी पक्षकार के अधिकार और हिस्से की बावत प्रारंभिक             डिक्री     में घोषणा नहीं की जाती हे तो ऐसी दशा में आयुक्त वादगत         सम्पत्ति में     से ऐेसे पक्षकार के हिस्से का विभाजन या पृथक् रूप         से आवंटन करने के     लिए तब तक सक्षम नहीं होगा जब तक कि         अपील या पुनर्विलोकन में     प्रारंभिक डिक्री में उस आशय का             विनिर्दिष्ट रूप से उपान्तरण ना कर दिया     गया हो ।

2-     यदि पक्षकारो के अंशो को     घोषित करते हुये प्रारभिक डिक्री पारित         की गई । विभाजन आयुक्त को     उक्त संपति कापक्षकारों के वीच         करार के आधार पर विभाजन बंटवारा करने के लिये आवश्यक             कदम उठाने के लिये कहा गया। ऐसे करार पर     ध्यान दिये बिना         आयुक्त की  रिपोर्ट  शून्य व अकृत है,
3-    विभाजन आयुक्त   न्यायालय की इच्छाओं के विपरीत रिपोर्ट प्रस्तुत         करता है तो ऐसी रिपोर्ट पर  अंतिम डिक्री पारित नहीं कि जा             सकती।

अंतिम डिक्री पारित करनेके पूर्व न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह देखेकि-

1-    जब तक पक्षकारो के स्थल पर अधिकारो का अवधारण निर्णय करने         वाली     डिक्री     पारित नहीं हो जाती और वह स्टांप पेपर पर नहीं         बन जाती तब तक कोई निष्पादन योग्य डिक्री अस्तित्व में नहीं             आती ।            
2-    बिना स्टांप पेपर के अंतिम     डिक्री नहीं बन सकती ।
3- उपरोक्त दोनों शर्ते पुरी होने पर आदेश 20 उपनियम 18 के अर्तंगत         अंतिम  डिग्री पारित होती है।
4- परिसीमा अंतिम डिक्री स्टांप पेपर पर बल जाने के बाद ही प्रारंभ             होती है ।
          मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ए0आई0आर0  सु0को0 1211 श्ंाकर बलवंत लोखण्डे मृतक विरूद्ध एल0आर0 एस0चन्द्रकांन्त शंकर लोखण्डे व अन्य  में अभिनिर्धारित किया है कि यही दोनो कार्य एक         अंतिम डिक्री का गठन करते हैं ।
5-    यदि विभाजन के बाद में इच्छापत्र के अधीन सम्पत्ति का व्ययन         किया जाता है तो इच्छा पत्र के वैधता की जांच उसी न्यायालय         द्वारा की जाएगी
6-    जहां कृषि भूमि का अन्य सम्पत्तियों के विभाजन के लिए वाद लाया         जाता है, वहां डिक्री को तब तक प्रारंभिक डिक्री समझी जाएगी,         जब तक कि उस कृषि भूमि का विभाजन करके कब्जा न दे दिया         जाये ।

 7-    जब एक बार प्रारंभिक डिक्री पारित कर दी गई, तो न्यायालय उस         वाद को व्यतिक्रम के कारण खारिज नहीं कर सकता।
    8-    यदि वादी प्रारंभिक डिक्री पारित करने के बाद कोई कदम नहीं             उठाता है तो न्यायालय अनिश्चितकाल के लिए कार्यवाही को             स्थगित कर     सकता है और संबंधित पक्षकारों को यह छूट दे             सकता है कि वे उचित कार्यवाही कर उस वाद को सक्रिय करें ।
    9-    विभाजन वाद में प्रारंभिक डिक्री द्वारा निर्णीत बातों पर पक्षकारों को         विबन्ध का सिद्धांत लागू होगा और वे किसी दूसरे वाद में उन             बिन्दुओं को     पूर्व न्याय के सिद्धांत से वर्जित होने के कारण नही         उठा सकेंगे ।
    10-    सम्पत्ति में वादी को उसके अंश भाग का कब्जा देने के लिए             भुगतान करने की शर्त प्रांम्भिक डिक्री में दी गई थी । अतः जब         तक सम्पत्ति के विभाजन की अंतिम डिक्री पारित नहीं हो जाती,         इस शर्त के अनुसार     प्रारंम्भिक डिक्री का निष्पादन नहीं हो सकता
    11-    प्रारंम्भिक डिक्री की शर्त के अनुसार अंतिम डिक्री पारित करने के         लिए देरी से किया गया आवेदन वर्जित नहीं है ।
    12-    एक विभाजन वाद में पक्षकारो के अंशों का निर्धारण उस दिनांक         को किया जावेगा, जिस दिनांक को प्रारंम्भिक डिक्री पारित की गई         है ।
    13-    यदि उस दिनांक को एक सहदायिकी का आधा अंश एक नीलाम         क्रेत द्वारा खरीद लिया गया तो वह नीलाम क्रेता उस आधे अंश के         लिए     डिक्री अपने पक्ष में करवाने का हकदार होगा ।
  14-.    विभाजन वाद में अंतिम डिक्री प्रारंभिक डिक्री में संशोधन नहीं कर         सकती और न उसकी पृष्ठभूमि में जा सकती है , जो मामले उस         प्रारंभिक डिक्री में तय किये जा चुके है उन पर पुनः विचार नहीं         किया जा सकता ।
    यह सिद्वांत ए0आई0आर0 1977 सु0को0 292 एम0अययना बनाम         एम0जुग्गारा में अभिनिर्धारित किया गया है।
    15-    यदि .विभाजन वाद में प्रारंम्भिक डिक्री अंतः कालीन लाभों के बारे में         शांत     है, फिर भी अंतिम डिक्री तैयार करते समय अन्तः कालीन         लाभो के बारे में निर्देश दिया जा सकता है यद्यपि वाद पत्र में             इसके लिए कोई प्रार्थना ना की गई हो।
    16-    .सम्पत्ति के अंग भागीदारो की अपनी सम्पत्ति है और वे उन अंशों         को वादी के पक्ष में अभ्यर्पित कर सकते है । अतः जहां एक वाद में         भागीदारो ने अपने अंशों का अभ्यर्पण कर दिया तो न्यायालय को         विभाजन वाद के विचारण में उसे प्रभावशील करना होगा । यह             सिद्वंात ए0आई0आर0 1977 सु0को02027 अनार कुमारी बनाम जमुना         प्रसाद में अभिनिर्धारित किया गया है।
     17-    .वादी एक हिन्दू संयुक्त कुटुम्ब के सदस्य के रूप में प्रतिवादियों
        द्वारा     प्राप्त किये गये लाभों के बारे मंे जांच करने के लिए अंतिम         डिक्री की तैयारी के प्रक्रम पर पर आवेदन करने के लिए हकदार         होगा, क्योंकि विभाजन के लिए प्रत्येक वाद उसके संस्थित करने के         दिनांक को लेखे के लिए वाद भी होता है ।

   18-.    ऐसी जांच की मांग करना पक्षकारो के बीच समस्याआंे के समाधान         के लिए आवश्यक है । अतः यह न्यायालय के विवेकाधिकार के             भीतर है कि प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर         ऐसी प्रार्थना की अनुमति दे ।
    19-    विभाजन वाद में पारित की गई अंतिम डिक्री का निष्पादन होगा ।         समझौता कर लेने से पक्षकार अंतिम डिक्री के निष्पादन से और         सम्पत्ति पर कब्जे के परिदान से वंचित नहीं हो जाते ।
     20-    .प्रारंभिक डिक्री पारित करने के बाद अपील का केवल लंबित             रहना विचारण न्यायालय को पक्षकारों के पक्षान्तरण तथा व्यक्तिगत         अंशों के निर्धारण करने के लिए आवेदन ग्रहण करने के लिए कोई         बाधा नहीं करेगा।
      21-    .आवेदन परिसीमा अधिनियम के किसी उपंबध से शासित             नहीं होता । ऐसा आवेदन  लंबित वाद मंे एक आवेदन के रूप             में जाना जाएगा इसलिए, परिसीमा का कोई प्रावधान  लागू नहीं         होगा।
     22-     यदि संयुक्त परिवार की संपति में दो भाईयों का बराबर हिस्सा है         और विभाजन इस शर्त पर होगा कि इस बंधक का मोचन करवाया         जावेगा ।अतः पहले     प्रारंभिक डिक्री दो हिस्सो के विभाजन की             होगी और अंतिम डिक्री पारित करने से पहले वाला ऋृण चुका कर         बन्धक का मोचन करवा सकेगा।

 23-    यदि परिवार की संपतियों के विभाजन के समय अवयस्क रहे सदस्य         ने वयस्क होने पर विभाजन के लिये और अपने हिस्से की संपति         का अलग से     कब्जा दिलाने के लिये वाद किया, परन्तु आवश्यक         न्यायालय फीस देकर विभाजन प्रलेख को रद्द करवाने की प्राथर््ाना         नहीं की ऐसी     स्थिति में विभाजन प्रलेख को अभिखडिंत नहीं किया         जा सकता ।
    24-     विभाजन के बाद का किरायेदार पर कोई प्रभाव नहीं पडता है यदि         वाद में किरायेदार को भी पक्षकार बनाया जाए     परन्तु विभाजन         डिक्री     पारित करने के बाद भी किरायेदार के कब्जे में हस्तक्षेप नहीं         किया जा सकता । इसके लिये किराया नियेत्रण विधि के अधीन         बेदखली की     कार्यवाही फाइल करनी होगी ।
    25-     यदि यह साबित नहीं किया गया कि अवयस्क की संपत्ति             उसके कल्याणके लिये या संयुक्त कुटुम्ब की विधिक आवश्यक्ता के         लिये     निधि फण्ड बनाने के लिये काम में ली गई । ऐसी स्थिति में         अवयस्क वादियों की और से उनकी माता द्वारा फाइल किया गया         विभाजन वाद     संधारणीय है ।
    26-    यदि संयुक्त     परिवार की     संपत्ति का कुछ भाग अनुसूचि में             शामिल नहीं किया गया ऐसा वाद खारिज किये जाने योग्य है।
        इस प्रकार प्रारभिंक डिक्री से अंतिम डिक्री पारित होने के मध्य सहिंता के आदेश 20 नियम 18 आदेश 26 नियम 13, 14 और धारा 54 के प्रावधानो के अनुसार कार्यवाही की जाती है

                                उमेश कुमार गुप्ता
                               





       

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

महिला एवं बालकों के कल्याण के लिए योजनाएं

मध्य प्रदेश सरकार की बालकों एवं महिला कल्याण संबंधी

                       मध्य प्रदेश सरकार ने महिला एवं बालकों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं जिसमें लाडो अभियान, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना , उषाकिरन योजना आदि महत्वपूर्ण हैं ।

 
1 लाडो अभियान

मध्य प्रदेश सरकार ने वाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006की रचना की है जिसके अनुसार 18 वर्ष सेकम आयु में लड़की तथा 21 वर्ष से कम उम्र में लड़के का विवाह करना कानूनी अपराध है । ऐसे विवाह में शामिल होने वाले सभी व्यक्ति अपराध की श्रेणीमें आते हें । वाल विवाह करने और करवाने वाले को दो वर्ष तक का कठोर कारावास या एक लाख रूपये तकका जुर्माना या दोनो हो सकता है।

मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा बाल विवाह न रचे ,अपराध से बचे बेटियों को पढ़ने व आगे बढ़ने का मोका दें ।इसके लिए लाडो अभियान चलाया जिसमें महिला और बच्चों को मध्य प्रदेश शासन द्वारा चलाई जा रही समस्त योजनाओं का लाभ दिलाने समस्त जिला कलेक्टर या महिला विकास विभाग केअधिकारी को अधिकृत किया गया है । प्रत्येक व्यक्ति ,अपने आस पास वाल विवाह होता पाये तो इसकी सूचना इन अधिकारियों को दे सकता है । 

 

2 मध्य प्रदेश सरकार की मुख्य मंत्री कन्यादान योजना

0 प्र0 सरकार के द्वारा गरीब, जरूरत ,निर्धन, निराश्रित परिवारो तथा श्रमिक संवर्ग के अन्तर्गत पंजीकृत हितग्राही परिवारों की विवाह योग्य कन्याओं ,विधवा
तथा परित्यक्ता के विवाह के लिये एक मंगल पहल प्रारंभ की गई।
इस मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के अंतर्गत हर कन्या को विवाह के समय
13 हजार रूपये की गृहस्थी,सामग्री निशक्त कन्या को 25 हजार तथा वर-वधु दोनो के निशक्त होने पर 50 हजार रूपये अतिरिक्त अनुदान दिया जाता है, इस अभिनव योजना में अबतक निर्धन परिवारों की 2,29,680 बेटियों का कन्यादान किया गया है । जिस पपर अबतक 245 करोड रूपये व्यय हो चुके हैं । यह योजना एक अप्रेल 2006 से प्रारंभ हुई है ।

3 लाड़ली लक्ष्मी योजना

प्रदेश में बालिकाओं के शैक्षणिक तथा स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाने, अच्छे भविष्य की आधारशिला रखने, बालिका भ्रूण हत्या रोकने और बालिकाओं के जन्म के प्रति जनता में सकारात्मक सोच लाने एवं बाल विवाह रोकने के उद्देश्य से लाड़ली लक्ष्मी योजना आरंभ की गई। योजना 1 जनवरी 2006 के उपरांत जन्मी बालिकाओं के लिए है।
योजना के मध्य अर्थात 21 वर्ष की आयु पूर्ण बालिका के आवेदन पर उस दिनांक तक देय राशि का समय पूर्व भुगतान किया जावेगा किंतु शर्त यह होगी कि बालिका की आयु 18 वर्ष की हो कक्षा 12 वीं की परीक्षा में सम्मिलित हो एवं 18 वर्ष उपरांत उसका विवाह हुआ हो।
योजना का लाभ कौन ले सकता हैः-ऐसी बालिकांए-जिनके माता पिता
1 मध्य प्रदेश के मूल निवासी हों
2 आयकर दाता न हों।
3 द्वितीय बालिका के प्रकरण में आवेदन करने से पूर्व परिवार नियोजन
अपना लिया हो।
4 प्रथम प्रसव की प्रथम बालिका जिनका जन्म 01.04.2008 क उपरांत परिवार नियोजन कि
शर्त यथावत।
5 हितग्राही की आंगनवाड़ी केन्द्र में उपस्थित नियमित हो।
6 जिस परिवार में अधिकतम दो संतान हों माता/पिता की मृत्यु हो गई हो, उस परिवार के लिये परिवार नियोजन की शर्त अनिवार्य नहीं होगी, परंतु माता अथवा पिता का मृत्यृ प्रमाण पत्र आवश्यक होगा।
7 जिस परिवार में प्रथम बालक अथवा बालिका है तथा दूसरे प्रसव पर दो जु़ड़वा बच्चियां
जन्म लेती हैं तो, जुड़वा बच्चियों को इस योजना का लाभ दिया जावेगा।
8 यदि परिवार ने अनाथ बालिका को गोद लिया हो तो उसे प्रथम बालिका मानते हुए योजना का लाभ दिया जावेगा।
इस योजना का लाभ लेने के लिये अपने गांव/ मोहल्ले या समीप की आंगनवाड़ी केन्द्र में संपर्क कर आवेदन करना होगा। आवेदन पत्र के साथ निर्धारित समस्त दस्तावेज संलग्न करने होंगे। अनाथ बालिका की दशा में संबंधित अनाथालय/ संरक्षण गृह के अधीक्षक द्वारा बालिका के अनाथालय में प्रवेश के 1 वर्ष के अंदर तथा बालिका की आयु 6 वर्ष होने के पूर्वसंबंधित परियोजना अधिकारी को आवेदन करना होगा।

 
4.समेकित बाल विकास परियोजना
मध्य प्रदेश सरकार ने बच्चों मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नीव डालने एवं बाल विकास को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न विभागों के बीच नीति तथा मार्गदर्शन में प्रभावशाली समन्वय मेल-जोल स्थापित करने समेकित बाल विकास परियोजना सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में स्थापित की जाएंगी । जहां पर 0-6 वर्ष के बच्चों, गर्भवती, धात्री, ;केवल 6 माह तक दूध पिलाने वालीद्ध महिलाओं को निम्नलिखित 6 प्रकार की सेवायें दी जाती है।

1. अनौपचारिक शिक्षा 3 से 6 वर्ष तक क बच्चों के लिए।
2. टीकाकरण शिक्षा सभी बच्चे व गर्भवती महिलाओं के लिए।
3. पूरक पोषण आहार 6 माह से 6 वर्ष क बच्चे, गर्भवती, धात्री के लिए।
4. स्वास्थ्य जाॅंच सभी बच्चे, गर्भवती, एवं धात्री के लिए।
5. स्वास्थ्य संदर्भ सेवा सभी बच्चे, गर्भवती, एवं धात्री के लिए।
6. स्वास्थ्य पोषाहार शिक्षा 15 से 45 वर्ष के आयु की महिलाओं के लिए है।
इन योजनाओं से निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति होती है । 
 
1. 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को पौष्टिकता तथा स्वास्थ्य स्तर को बढ़ावा।
2. बच्चों की सही मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नीव डालना।
3. बच्चों कि मृत्यु दर, कुपोषण तथा पाठशाला को छोड़ने की प्रवृत्ति को कम करना।
4. माताओं में ऐसी भावना का विकास करना जिससे वे बच्चों के सामान्य स्वास्थ्य तथा उने आहार संबंधी आवश्यकताओं का स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा की सहायता से ध्यान रख सके।

5 बाल संजीवनी अभियान

कुपोषण से बचाव एवं निदान हेतु मध्यप्रदेश सरकार ने सभी आंगनवाडी केंद्रो में कुपोषण से निपटने बच्चे के वजन टीकाकरण , गर्भवती स्त्री के पोषण हेतु यह योजना चलाई है । जहां पर आंगनवाडी स्थित नहीं है वहां पर गांव में सार्वजनिक स्थल पर योजना का क्रियान्वयन किया जाता है । कुपोषण से तात्पर्य भोजन में पोषक तत्वों की कमी से शरीर में जो लक्षण उत्पन्न होते है। जैसे वजन न बढ़ना। बालों का रंग भूरा हो जाना, बच्चे का चिढ़-चिढा करना व रोते रहना आदि है । प्रथम अभियान नवम्बर 2001 में प्रारंभ किया गया था । 
 
इस अभियान के अन्र्तगत निम्नलिखित सुविधाएं प्रदान की जाती हैं 
 
1 वजन 0 से 5 वर्ष के बच्चे, गर्भवती
2 टीकाकरण 0 से 5 वर्ष के बच्चे,
3 गर्भवतीविटामिन ‘‘ए’’ का घोल-9 माह से 5 वर्ष के बच्चों को पिलाना।
4 स्वास्थ्य परीक्षण -बच्चे व गर्भवती

6 स्व सहायता समूह योजना

इस योजना के अंतर्गत 10-20 महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। बचत राशि के आधार पर उन्हें बैंक से लिंक कर उन्हें कर उन्हें विभिन्न आर्थिक गतिविधियों हेतु ऋण प्रदान की कार्यवाही की जाती है।
योजना का उद्देश्य महिलाओं का समाजिक, आर्थिक विकास कर उनका सशक्तिकरण करना है। गरीब महिलाओं की छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने, उन्हें संगठित करने, उनका सामाजिक आर्थिक विकास कर इनका सशक्तिकरण करने की योजना है। 

 
7 मंगल दिवस योजना

महिला बाल विकास विभाग द्वारा अप्रैल 07 से मंगल दिवस योजना का प्रारंभ किया गया है। प्रत्येक आंगनबाड़ी केन्द्र में प्रत्येक माह के प्रति मंगलवार को विभिन्न प्रकार की गतिविधियां आयोजित की जावेगी जो निम्नानुसार है
।ः-
गोद भराई कार्यक्रमः-
माह के प्रथम मंगलवार को आंगनबाड़ी केन्द्रों में पंजीकृत गर्भवती महिलाओं को 6 माह का गर्भ होने पर आंगनबाड़ी केन्द्रों में समारोह पूर्वक कार्यक्रम आयोजित कर गर्भवती महिला की गोद भराई रस्म कर श्रीफल, सिन्दूर, चूड़ी, बिंदी, आदि भेंट स्वरूप दी जावेगी। कार्यक्रम हेतु प्रतिमाह 50/- प्रति आंगनबाड़ी केन्द्र के मान से राशि उपलब्ध करवाई जावेगी।
अन्नप्रसान कार्यक्रम:- 
 
माह के द्वितीय मंगलवार को आंगनबाड़ी केन्द्रों में पंजीकृत प्रत्येक वह बच्चा जिसकी उस माह आयु पूर्ण चुकी हो ऐसे बच्चों को आंगबाड़ी केन्द्र में समारोह पूर्वक कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों का अन्नप्रसान प्रारंभ कर कटोरी, चम्मच भेंट स्वरूप दी जायेगी कार्यक्रम हेतु प्रतिमाह 50/- प्रति आंगनबाड़ी केन्द्रों के राशि उपलब्ध करवायी जावेगी।
जन्मदिवस कार्यक्रमः-
माह के तृतीय मंगलवार को आंगनबाड़ी केन्द्रों में पंजीकृत 1 से 6 वर्ष की आयु के समस्त ऐसे बच्चे जिनका उस माह में जन्म दिवस हो, को समारोह पूर्वक कार्यक्रम आयोजित कर जन्म दिवस आंगनबाड़ी केन्द्रों में मनाया जाकर ऐसे बच्चों को पेन्सिल, चित्रकारी युक्त किताब, रबर, पानी की बाटल आदि गिफट आयटम भेंट स्वरूप दिया जायेगा। कार्यक्रम हेतु प्रतिमाह 50/- प्रति आंगनबाड़ी केन्द्रों के मान से राशि उपलब्ध करवाई जावेगी।
1ण् किशोरी बालिका दिवसः-
माह के चतुर्थ मंगलवार को आंगबाड़ी केन्द्र दर्ज किशोरी बालिकाओं का उक्त दिवस रंगोली निर्माण, सामान्य ज्ञान एवं खेलकूद प्रतियोगिताओं या अन्य कोई रूचिकर कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा। साथ ही आयरन, फलोरिक, एसिड गोलियों का वितरण किया जावेगा।

8 किशोरी शक्ति योजना

किशोरी बालिकाओं को स्वास्थ्य, संतुलित भोजन व आर्थिक स्वावलंबन का प्रशिक्षण दिया जाता है। किशोरी बालिकाएॅं 11 से 18 वर्ष तक को प्रशिक्षण देने का प्रमुख लक्ष्य एनीमिया में कमी लाना एवं पारिवारिक जीवन में शिक्षा के महत्व को प्रतिस्थापित करना है ताकि किशोरियों को स्वास्थ्य, नियोजन के लाभ एवं कुपोषण की समस्या के संबंध में पता चल सके ताकि भविष्य में किशोरी कुशल गृहणी बन सके।

9 जावाली योजना- 

 
वैष्यावृत्ति उन्मूलन हेतु जावाली योजना का संचालन किया जाता है । योजना अंतर्गत जिले में अशासकीय संस्था के माध्यम से आश्रम शाला का संचालन किया जाकर बेडिया/बांछडा सासी समुदाय के बालक बालिकाओं को कक्षा 5वी तक निःशुल्क शिक्षा सस्त्र,पुस्तकें भोजन आवास सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है । 

 
10 उषा किरन योजना
 
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 नियम 2006 के अंतर्गत पीडिता को अधिनियम एवं नियमों के प्रावधान के तहत सभी सहायता निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी । सहायता के लिए अपने पास क आंगनवाडी केंद्र/ परियोजना अधिकारी , संरक्षण अधिकारी एकीकृत बाल विकास सेवाए/पुलिस परामर्श केंद्र/ क्षेत्रीय थाना प्रभारी/ जिला कार्यक्रम अधिकारी/ जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन दिया जा सकता है । 

 
11 अति गरीब महिलाओं को प्रसव पूर्व आर्थिक

 सहायता

आति गरीब महिलाओं को प्रसव पूर्व आर्थिक सहायता के लिए यह योजना संचालित है इसका उद्देश्य अति गरीब महिलाओं को प्रसव पूर्व स्वयं ही देखभाल और प्रसव के लिए होने वाले व्यय की कुछ हद तक प्रतिपूर्ति की जाना है । इसका लाभ अति गरीब महिला को जिसकी उम्र 19 वर्ष से अधिक हो तथा उसके केवल प्रथम दो जीवित बच्चे हो एवं उसका परिवार गरीबी रेखा के नीचे अत्यंत गरीब हो ऐसी महिलाओं को सहायता राशि 500/- रू. प्रसव के 6 माह पूर्व दी जावेगी ।