भारतीय संविधान में श्रमिकों के कल्याण संबंधी प्रावधान
1. न्यूनतम मजदूरी।
2. समान मजदूरी।
3. बालश्रम पर रोक।
4. श्रमिकों के स्वास्थय सुविधाऐं प्रदान करना।
5. श्रमिकों की भागीदारी और लाभ में हिस्सेदारी।
6. रोजगार के अवसर मनरेगा योजना।
7. फ्रेक्ट््रीयों में सुरक्षा संबंधी प्रावधानों का पालन।
8. विधिक सेवा प्राधिकरण का कार्य
भारत के संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
न्याय प्रदान किये जाने हेतु मूल अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों का
उल्लेख किया गया है। जिसके अंतर्गत सभी स्त्री और पुरूष जीविका के समान और
पर्याप्त साधन प्राप्त करने के अधिकारी है। उनके मध्य जाति-
वर्ग, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता और विधि के समक्ष समान संरक्षण और सहयोग तथा सहायता प्रदान की जायेगी।
इसके लिये पुरूष और स्त्री दोनों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन
की व्यवस्था की गई है और दैनिक मजदूरी पर नियुक्त व्यक्तियों को यह अधिकार
प्रदान किया गया है कि यदि वे स्थाई कर्मचारियों के समान कार्य करते है तो
उनके समान वेतन पाने के अधिकारी है।
संविधान के अनुच्छेद 23 में मानव का दुर्व्यापार और बलात्श्रम पर रोक
लगाई गई है किसी व्यक्ति से जर्बदस्ती बिना पारिश्रमिक दिये काम नहीं लिया
जा सकता। बंधुआ मजदूरी पर मुख्यतः प्रतिबंध लगाया गया है।
इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 24 में चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक
को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या
किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में राज्य को विशेष निर्देश दिये गये है
कि कर्मकारों के स्वास्थय और शक्ति का ध्यान रखा गया है। श्रमिको और उनके
परिवार के सदस्यों को स्वतन्त्र और गरिमानय वातावरण में शिक्षा स्वास्थ्य
की सुविधाऐं प्रदान की गई है। कर्मचारियों का आर्थिक शोषण ना हो, उनसे
बेगार ना कराई जाये इस संबंध में कानून बनाये गये है।
श्रमिकों के सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास का ध्यान रखा गया है और
वितरण न्याय का सिद्वांत प्रतिपादित किया गया है जिसमें कि नागरिकों के
मध्य आर्थिक विषमता समाप्त करने का प्रयास किया गया है। आय की असमानता को
कम करने के साथ ही साथ विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों के बीच प्रतिष्ठा
सुविधा और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास किया गया है। धन और
उत्पादन के साधन का सभी को लाभ प्राप्त हो इसका प्रयास किया जा रहा है।
राज्य से यह अपेक्षा की गई है कि वह कानून बनाकर उधोग धंधो के प्रबंध में
श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करे और वृद्वाअवस्था, बीमारी, बुढ़ापे,
अपंगता की दशा में श्रमिकों को सहायता प्रदान की जाये तथा उनके काम की
न्यायसंगत और मानव अनुकुल दशा में तथा उनके बच्चों को अनिवार्य, निःशुल्क
शिक्षा प्राप्त हो।
अनिवार्य, निःशुल्क शिक्षा मूल अधिकार में शामिल है। ग्रामों में कुटीर
उधोग धंधे को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है, विशेषकर अनुसूचित
जाति-जनजाति, आदिम जातियों को शिक्षा तथा कार्य संबंधी अवसर प्राप्त है। इस
संबंध में विशेष प्रावधान दिये गये है।
सरकार के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार प्राप्त है उसके लिये मनरेगा
योजना प्रारंभ की गई है जिसमें प्रत्येक परिवार के सदस्यों को साल में 100
दिन के रोजगार की गारंटी प्रदान की गई है। इसके लिये हमें घर बैठे सहायता
प्राप्त नहीं होगी, खुद सरकारी व सामाजिक संस्थाओ से सहायता प्राप्त करनी
होगी, यदि इस संबंध में कोई सहायता प्राप्त नहीं होती है तो समाज सेवक,
समाज सेवी संस्था और पैरालिगल वालेंटियर का सहयोग प्राप्त किया जा सकता है।
कर्मचारियों के स्वास्थ्य, पोषण का स्तर उॅंचा करने के लिये मादक पदार्थो
पर रोक तथा फ्रेक्ट््री के अंदर साफ-सफाई और सुरक्षा संबंधी प्रावधानों पर
विशेष जोर दिया गया है। यदि इन प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है तो
कारखाना अधिनियम तथा अन्य प्रावधानों के अंतर्गत प्रबंधक और देखरेख करने
वालों के विरूद्व कार्यवाही की जायेगी।
कर्मकारों को काम निर्वाह, मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर और उसका
सम्पूर्ण
उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएॅ तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर
प्राप्त हो इसका प्रयास किया जा रहा है इसके लिये स्वास्थ्य की देखरेख के
संबंध में नेशनल कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाये गये है जिसके अंतर्गत नेशनल
रूरल हेल्थ मिशन के अंतर्गत स्वास्थय और परिवार कल्याण संबंधी कार्यक्रम चल
रहे है जिसके अंतर्गत सफाई एवं स्वास्थय, पोषण, पेयजल, अच्छा स्वास्थ्य की
तरफ ध्यान दिया जा रहा है।
इस संबंध में सरकार के द्वारा राष्ट््रीय स्तर पर राष्ट््रीय विधिक सेवा
आयोग और राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रचना की गई है और
जिनके अंतर्गत जिला व तहसील स्तर पर समितियॅा बनाई गई है जो लोक अदालत,
स्थाई एवं निरंतर लोक अदालत, जन उपयोगी सेवा की स्थाई लोक अदालत, विधिक
साक्षरता शिविर, परिवार समाधान केन्द्र, लिगल एड क्लीनिक आदि संस्थाओं की
स्थापना की गई है।
इन संस्थाओं का अध्यक्ष जिला और तहसील का वरिष्ठतम न्यायाधीश बनाया गया है और उसमें प्रशासनिक अधिकारी एस0डी0एम0
तहसीलदार,
महिला बाल विकास अधिकारी सहित समाज सेवी, सदस्यों को भी शामिल किया गया है
ताकि वे जनता की तकलिफों को समक्ष सके और विधि अनुसार न्याय प्रदान कर
सके, उन्हें सरकार के द्वारा जो सुविधाऐं बी0पी0एल0 कार्ड, वृद्वावस्था
पेंशन योजना, अजीविका योजना आदि चलाई जा रही है उनका लाभ उचित व्यक्तियों
को प्राप्त हो सके। इसके लिये प्रशासनिक अधिकारियों को इन समितियों में
शामिल किया गया है।
विधिक सेवा प्राधिकरण का कार्य यह देखना है कि कोई भी पीड़ित मजदूर भेद-भाव
का शिकार है या जिसको समान वेतन नहीं दिया जा रहा है वे अपने अधिकारों के
लिये न्याय और सुरक्षा प्राप्त करने के लिये आवेदन प्रस्तुत कर सकते है तथा
महिला एवं बाल संरक्षण की इकाई का भी गठन किया गया है जिसका कार्य महिला
और बच्चों संबंधी शिकायतों पर विचार कर उन्हें तुरंत हल करना है। इसके लिये
एक श्रमिक सेल की भी स्थापना की गई है।
विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता के लिये
पैरालिगल वालेंटियर नियुक्त किये गये है शौर्य दल, महिला शक्तिकरण के संबंध
में गठित संस्थाओं की भी सहायता इस संबंध में प्राप्त की जा सकती है। इस
संबंध में तहसील
न्यायालय
नरसिंहगढ़ में स्थापित विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में आवेदन
प्रस्तुत कर सकते है और इन आवेदनों पर प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को
संबंधित पक्ष को सुनकर जनहित संबंधी समस्याओं का निराकरण मध्यस्थता के
माध्यम से किया जा सकता है। जिसमें न्यायाधीश, एस0डी0एम0, तहसीलदार और
समाजसेवी सदस्य समस्याओं का समाधान करते है।
अध्यक्ष
उमेश कुमार गुप्ता
तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण नरसिंहगढ़, जिला-राजगढ (ब्यावरा), मध्यप्रदेश